Sunday, April 28, 2024

महिलाओं की मुक्ति का बिगुल है हिंदू कोड बिल

प्रयागराज। “महिलाओं को उनके अधिकार के साथ सशक्त रूप से खड़ा किया जाये यही हिंदू कोड बिल का उद्देश्य था। इसने महिलाओं के अधिकारों पर ठप्पा लगाया है। महिलाओं की मुक्ति का बिग़ुल है हिंदू कोड बिल। हिंदू कोड बिल लागू करवाने में बहुत सी महलायें शामिल थीं। इनमें राजकुमारी कौर, दुर्गाबाई देशमुख, लीला रॉय, हंसा मेहता, सरोजिनी नायडू, उर्मिला आदि प्रमुख थीं। इन्होंने हिंदू कोड बिल के पक्ष में प्रचार किया। मीटिंग करके महिलाओं को कन्वेंस किया।” उपरोक्त बातें दलित लेखक संघ की अध्यक्ष अनीता भारती ने कल इलाहाबाद के हिंदुस्तानी एकैडमी में वर्तमान परिदृश्य में ‘हिन्दू कोड बिल: जाति और पितृसत्ता’ विषय पर अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुये कहा। 

कार्यक्रम की सदारत करते हुये उन्होंने अपने छोटे किंतु बहुत ठोस और सधे हुये वक्तव्य में ‘मातृ शक्ति’ जैसे ब्राह्मणवादी शब्द से बचने की नसीहत देते हुये कहा कि यह ब्राह्मणवादी शब्द है और इसके इस्तेमाल से बचना चाहिये। गौरतलब है कि कई लोगों ने कार्यक्रम में इस शब्द का इस्तेमाल किया था। अनीता भारती ने कहा कि ‘मातृशक्ति’ की जगह ‘स्त्री शक्ति’ का इस्तेमाल होना चाहिये। क्या यहां बैठी 12-13 साल की बच्ची भी मां है। आरएसएस स्त्री-पुरुष के बीच केवल मातृ संबंधों को देखती है। जबकि बाबा साहेब ने कहा है कि स्त्री-पुरुष के बीच मैत्री संबंध होना चाहिए। बाबा साहब ने हिंदू कोड बिल के लिये बहुत लंबी लड़ाई लड़ी। इसके लिये उन्हें बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा। उनके घर पर पत्थर मारा गया।

उन्हें गालियां दी गईं। भले ही पूरा हिंदू कोड बिल एक बार में न पास हुआ हो लेकिन एक एक करके उसके सारे बिंदु आज क़ानून की शक्ल में मौजूद हैं जो महिला अधिकारों की रक्षा कर रहे हैं। उन्होंने स्त्रियों को थोपी हुई चीजों को अपनी च्वाइस न बनाने की नसीहत दी। अनीता भारती ने तमाम आंदोलनों में महिलाओं की नगण्य भागीदारी पर सवाल उठाते हुये कहा कि वामपंथी आंदोलन, दलित आंदोलन और समाजवादी आंदोलनों ने यह बात नहीं समझी कि महिलाओं की भागीदारी के बिना कोई भी आंदोलन सफल नहीं हो सकता है। लोग कहते हैं स्त्रियों के लिया राजनीति ठीक नहीं है। जो स्त्री घर चला सकती है बच्चों के परिवार को संभाल सकती है वो राजनीति भी कर सकती है। महिलाओं को उनका अधिकार देने की शुरुआत परिवार से होनी चाहिये। परिवार का लोकतंत्रीकरण किये बिना ये मुमकिन नहीं है। उन्होंने राशन कॉर्ड के मुद्दे को उठाते हुये कहा कि सरकार ने राशन कार्ड छीन लिया है। इसका दुष्प्रभाव ग़रीब परिवारों की स्त्रियों पर पड़ता है। भूखे पेट आदमी स्त्री पर हिंसा करता है, उसे मारता है।

इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत बुद्ध वंदना से हुई। जिसके बाद जेएनयू की शोध छात्रा सुभी ने हिंदू कोड बिल पर एक विस्तृत प्रस्तावना पढ़ी। सुभी ने बताया कि ब्राह्मणवाद और बुद्ध के बीच हुये संघर्ष से जाति और पितृसत्ता जन्मा है। महिलाओं को समाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिये बाबा साहेब ने महिलाओं को संपत्ति का अधिकार दिया। बेटियों का उत्तराधिकारी बनाया। शादी और तलाक का अधिकार दिया। बाबा साहेब कहते थे एक जाति में शादी करने से जाति व्यवस्था मजबूत होती है। 

इसके बाद जौनपुर की सोशल एक्टिविस्ट ऊषा ने जाति व्यवस्था के बारे में कहा कि यह सीढ़ीनुमा है। इसमें कोई ऊपर है कोई नीचे। हम सब एक दूसरे के ऊपर होने पर खुश हैं। इससे जाति व्यवस्था अभी तक मजबूत बनी हुई है। उन्होंने कहा कि जाति व्यवस्था को तोड़े बिना समाजिक परिवर्तन नहीं हो सकता। उन्होंने हरदोई में ऑनर किलिंग का जिक्र करते हुये बताया कि मामले में एफआईआर तक नहीं दर्ज़ हुई उल्टा पीड़ित पर ही केस दर्ज हो जाता है। लोग थक हारकर बैठ जाते हैं। पितृसत्ता का उल्लेख करके उन्होंने कहा कि पितृसत्ता को समझे बिना हम जेंडर को नहीं समझ सकते। पितृसत्ता राजनैतिक सोच है, जो कि स्त्री के यौनिक क्षमता और प्रजनन अंगों को नियंत्रित करता है। 

इसके बाद कार्यक्रम में जालौन की सोशल एक्टिविस्ट रेहाना मंसूरी ने मुस्लिम परंपरा पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि तमाम धर्मों के धर्मगुरु पितृसत्ता के पोषक और नियंता हैं। उन्होंने बताया कि पहले जिन घरों की स्त्रियां लड़कियां हिजाब नकाब पहनती ही नहीं थी वो हिजाब नक़ाब पहनकर स्कूल जाने लगीं यही पितृसत्ता की साजिश है स्त्रियों को वापस धकेलने की। उन्होंने कहा पिता के पास दो चीजें होती हैं सम्पत्ति और सम्मान। सम्पत्ति की रक्षा का भार उसने बेटों को दिया और सम्मान की रक्षा का भार बेटियों के हिस्से डाल दिया। उन्होंने मरहूम फेमिनिस्ट कमला भसीन का जिक्र करते हुये कहा कि अच्छी महिलायें मरने के बाद स्वर्ग जाती हैं और बुरी महिलायें जीते जी कहीं भी आ जा सकती हैं। 

छत्तीसगढ़ की सोशल एक्टिविस्ट गायत्री सुमन ने जाति का सवाल उठाते हुये कहा कि अनुसूचित जातियों में भी इतनी जातियां हैं कि उनसे बाहर शादी की तो सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ता है। हम लोग एक जनहित याचिका दायर कर रहे हैं सामाजिक बहिष्कार के ख़िलाफ़ क़ानून बनाने की। उन्होंने ‘नरवा गरुवा घुरवा बाड़ी’ योजना के बाबत बताया कि इसमें गाय का गोबर इकट्ठा करके खाद बनाया जाता है। इसके लिये ज़मीन की ज़रूरत पड़ती है। तो आदिवासियों और दलितों को उनकी ज़मीन से बेदख़ल करके इस योजना को उस ज़मीन पर चलाते हैं। उन्होंने बताया कि बस्तर अत्याचार का हब है। वहां जो अपने हक़ के लिये आवाज़ उठाये वही नक्सली है। आलम यह है कि हर घर से 2 व्यक्ति जेल में है। जिसके चलते वहां की फर्टिलिटी रेट बेहद कम हो गई है। 

हरियाणा की सोशल एक्टिविस्ट मोहिनी ने हरियाणा के सामंती समाज में महिलाओं के यातनापूर्ण जीवन का उल्लेख करते हुये कहा कि पितृसत्ता अपने आप में ख़तरनाक साजिश है, मनुवादी विचारधारा के प्रसार के साथ पितृसत्ता मजबूत होती गई और महिलाओं की भागीदारी तमाम जगहों से खत्म हो गई। मोहिनी ने बताया कि हरियाणा में अधिकांश लोगों ने नारीवाद का नाम नहीं सुना है। मोहिनी घर घर जाकर महिलाओं में यूथ लीडरशिप विकसित करने का काम कर रही हैं।

प्रयागराज की सोशल एक्टिविस्ट सभ्या शाक्या ने कहा कि पितृसत्ता की शुरुआत घर से होती है। जहां बेटियों को रसोई में और बेटों को अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में भेजा जाता है। वहीं पंजाब की समाज सेविका हरप्रीत कौर ने राजनीति में महिलाओं की नगण्य मौजूदगी का मुद्दा उठाते हुये कहा कि अमूमन महिलाओं का राजनीति में रास्ता यह कहकर रोक लिया जाता है कि महिलायें बोल नहीं पातीं। उन्हें बताया जाता है कि राजनीति बहुत गंदी चीज है। उसमें जाओगी तो जगह-जगह जाना पड़ेगा, सबके बीच उठना, बैठना, बोलना पड़ेगा। जब हम महिलायें बच्चे पैदा कर सकती हैं, घर संभाल सकती हैं तो राजनीति क्यों नहीं कर सकतीं।

झारखंड की सोशल एक्टिविस्ट सुधा टुड़ू ने कहा कि जब तक महिलायें अपने हक़ के लिये खुद नहीं लड़ेंगी उन्हें उनका अधिकार कोई नहीं दिला सकता। वहीं मुख्य वक्ता के तौर पर रोहतक हरियाणा के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के मास एंड कम्युनिकेशन विभाग की प्रो सुमेधा डी बौद्ध ने कहा कि देश की बहुजन आबादी बौद्ध है। बहुजन आबादी पर नियंत्रण करने के लिये ब्राह्मणों ने उन्हें जातियों में बांट दिया। साथ ही उन्होंने बहुजनों से अनुरोध किया कि आप अपने घरों के मोहारों पर बुद्ध और अम्बेडकर की तस्वीर लगायें। 

अब बात कार्यक्रम की खामियों पर। कार्यक्रम को बहुजन महिला साहित्यकारों का एकदिवसीय महासम्मेलन बताकर प्रचारित किया गया, जबकि उसमें केवल दो ही महिला साहित्यकारों का नाम था- अनीता भारती और सुशीला टाकभौरे का। जिसमें सुशीला टाकभौरे कार्यक्रम में नहीं आईं, तो अनीता भारती को छोड़कर कोई साहित्यकार नहीं था। सब समाजसेवी थे। वहीं कार्यक्रम का उत्तरार्ध पूरी तरह से मर्द पुलिस वालों के नाम रहा। दो घंटे के सत्र में डेढ़ घंटे पुलिस वाले ही बोलते रहे। पुलिस अधीक्षक अपराध (प्रयागराज) सतीश चंद्र और अपर पुलिस अधीक्षक पुलिस प्रशिक्षण निदेशालय, अपर पुलिस महानिदेशक प्रेम प्रकाश (गैर-मौजूद) को डॉ बी आर अंबेडकर समाज सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया। दो पुरुषों को साहित्य के क्षेत्र में काम के लिये सम्मानित किया गया। शोध पत्र जमा करवाने वाले छात्रों को प्रमाण पत्र और वक्ताओं को प्रशस्ति पत्र दिया गया।    

प्रबुद्ध फाउंडेशन, देवपती मेमोरियल ट्रस्ट, डॉ अम्बेडकर वेलफेयर एसोसिएशन एकेडमी, बाबा साहेब शादी डॉट काम इस कार्यक्रम के साझा आयोजक थे। जबकि डॉ अंबेडकर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष राम ब्रिज गौतम ने कार्यक्रम का संचालन किया। कार्यक्रम में दौना कांड की पीड़िता शिवपतिया को शॉल और साड़ी देकर सम्मानित किया गया। इसके बाद मंच से घोषणा किया गया कि बाबा साहेब अंबेडकर व तथागत बुद्ध की 10 फीट ऊंची प्रतिमा व 1 हजार किलो के सिक्के को नव निर्मित संसद भवन में स्थापित करने के लिये 8 अगस्त को नई दिल्ली पहुंचे। साथ ही बाबा साहेब अम्बेडकर और बुद्ध के चित्रों वाला सिक्का सभी मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को देने की घोषणा की गई।

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

एक बार फिर सांप्रदायिक-विघटनकारी एजेंडा के सहारे भाजपा?

बहुसंख्यकवादी राष्ट्रवाद हमेशा से चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सांप्रदायिक विघटनकारी...

Related Articles

एक बार फिर सांप्रदायिक-विघटनकारी एजेंडा के सहारे भाजपा?

बहुसंख्यकवादी राष्ट्रवाद हमेशा से चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सांप्रदायिक विघटनकारी...