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फिर सामने आया गुजरात सरकार का मनुवादी चेहरा, प्रश्नपत्र में पूछे सवाल पर भड़के दलित

भाजपा शासित गुजरात सरकार एक बार फिर दलित समाज के निशाने पर आ गई है। बाबा रामदेव द्वारा आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद दलित समाज का गुस्सा ठंडा भी नहीं हुआ था कि राज्य सरकार भर्ती बोर्ड द्वारा नॉन सेक्रेटरिएट क्लर्क परीक्षा के सामान्य ज्ञान के 170 न. प्रश्न ने विवाद खड़ा कर दिया है। दलित संगठनों से जुड़े दलित सामजिक कार्यकर्ताओं ने प्रश्न पर नाराज़गी व्यक्त की है। 

17 नवंबर को हुई गुजरात सरकार गैर-सचिवालय कलर्क परीक्षा में जनरल नॉलेज के परचे में 170 नंबर का प्रश्न इस प्रकार है,

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश सरकार ने हरिजनों को पृथक मताधिकार देने की कुचेष्टा की थी। उस समय डॉ. आंबेडकर, सरदार पटेल वगैरह ने एक समझौता करके दलित वर्गों के लिए समाधान करके कुछ सीटें तय की थीं। यह समाधान कौन सी जगह हुआ था-

1. मुंबई, 2. कलकत्ता, 3. पूना, 4. हैदराबाद.

प्रश्न में भाषा को लेकर दलित समाज को आपत्ति है। दलित चिंतक राजू सोलंकी ने जन चौक को बताया, ‘हरिजन शब्द केंद्र द्वारा 1980 से सरकारी पत्र-व्यवहार में भी प्रतिबंधित है। संविधान में अनुसूचित जाति शब्द है। यही शब्द दलित समाज के लिए उपयोग होता है। जिस शिक्षक ने प्रश्न पत्र तैयार किया है, उसने भूलवश नहीं बल्कि सवर्ण मानसिकता और हीन भावना से ऐसा किया है। शब्द प्रयोग करना केवल शिक्षक की मानसिकता नहीं भाजपा की मानसिकता दर्शाता है।’

दलित चिंतकों का एक धड़ा पूना पैक्ट के प्रस्ताव के बाद गांधी जी के आमरण अनशन को दलित विरोधी मानसिकता मानते हुए गांधी जी के विचारों का विरोध करता है और गांधीजी को विलेन मानते हैं। सोलंकी का मानना है कि पृथक मताधिकार पूरे समाज की मांग और भावना थी। अनशन के माध्यम से पूना समझौता कर पृथक के बजाये राजनीतिक आरक्षण मिला है। इससे लाभ समाज को नहीं राजनीतिक दलों को हो रहा है।

दलित विचारक राजू सोलंकी ने फेसबुक वाल पर भाजपा और कांग्रेस को एक ही विचार की पार्टी बताते हुए लिखा है, ‘पृथक मताधिकार के खिलाफ गांधी जी ने आमरण उपवास किया था। इसे हम नौटंकी कहते हैं, मगर सवर्ण इतिहास लेखक तो, गांधी जी ने देश बचाने के लिए अपने प्राण दांव पर लगा दिए थे,  ऐसा ही लिखते हैं। वाकई में यह इतिहास कांग्रेस ने लिखा है और बीजेपी कांग्रेस की इकलौती संतान है। कांग्रेस से बीजेपी का नजरीया अलग कैसे हो सकता है?’

गुजरात प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोषी ने जन चौक को बताया, ‘गुजरात जैसे प्रगतिशील राज्य में सरकार न केवल दलितों के संवैधानिक अधिकार की रक्षा में असफल रही है, बल्कि समय-समय पर भाजपा शासित गुजरात में दलित समाज का अपमान भी किया जाता है। सरकारी नौकरी की परीक्षा में इस प्रकार के प्रश्न से सरकार की मानसिकता का पता चलता है।’

वर्ग-3 की परीक्षा में पूछे गए इस आपत्तिजनक प्रश्न पर अहमदाबाद के अमराईवाड़ी पुलिस स्टेशन में राकेश कनु भाई वाघेला ने लिखित फरियाद की है। राकेश ने जवाबदार अधिकारी तथा पेपर तैयार करने वाले के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है। 

पिछले वर्ष जुलाई में सुरेंद्रनगर ज़िले की पियावा प्राथमिक शाला नंबर दो के प्रिंसिपल मान सिंह राठौर, जो सवर्ण जाति से आते हैं, उन्होंने स्कूल शिक्षकों के लिए उच्च जाति और दलित जाति के पानी पीने के बर्तन अलग बना रखे थे, क्योंकि इस सरकारी स्कूल में अनुसूचित जाति के शिक्षक भी थे। शिक्षक कन्हैया लाल बरैया जो अनुसूचित जाति से थे, जिन्होंने उच्च जाति वाले बर्तन से पानी पी लिया तो प्रिंसिपल ने शिक्षक को नोटिस जारी कर दिया। यह घटना तीन जुलाई 2018 की है। बैरया ने चोटिला पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराई तो घटना की जानकारी मीडिया में आई। इसके बाद दलित समाज ने विरोध दर्ज कराया। गुजरात में आए दिन दलित घोड़े पर विवाह करें, ताव वाली मूंछ रखें या सवर्ण लड़की से प्रेम करें तो जाति के नाम पर दलितों को अपमानित करने की घटनाएं बनती रहती हैं।

(अहमदाबाद से जनचौक संवाददाता कलीम सिद्दीकी की रिपोर्ट।)

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