छत्रपति सम्मान 2022- न्यूज़ 24 के संदीप चौधरी को 

2002 में सिरसा से निकलने वाले सांध्य दैनिक “पूरा सच ” की पत्रकारिता से आतंकित होकर डेरा सच्चा सौदा के मुखिया गुरमीत सिंह उर्फ़ राम रहीम ने इस समाचार पत्र के संस्थापक संपादक राम चंद्र छत्रपति की हत्या करवा दी थी।  यह  वह दौर था जब पूँजी अपने नग्नतम रूप में हमारे सामने आनी शुरू हुई। 2002 से 2004 तक यह केस स्थानीय पुलिस के हाथों में अपनी अंतिम साँसें गिनता रहा और छत्रपति के पुत्र अंशुल छत्रपति  की संजीदगी और केस को लगातार फॉलो करने की वजह से 2004 में यह केस सीबीआई के पास चला गया। और इसे संजीवनी मिली। 

डेरा मुखी ने धनबल बाहुबल और राजनीतिक बल पूरी तरह इस केस में झोंक दिया ताकि वह अपने अनुयायियों के लिए ईश्वर बना ही रहे। सिरसा के कुछ लोगों की नजर में वह ईश्वर खंडित हो चुका था। छत्रपति ने बहुत सारे लोगों के सामने डेरा मुखी की सच्चाई खोली लेकिन पूँजी के बहाव के आगे बहुत लोग टिक नहीं सके। अंशुल छत्रपति एक के बाद एक दिन अकेले होते गए लेकिन उन्होंने अपने अकेले होने की परवाह नहीं की और यह प्रण मजबूत किया कि उनके पिता भी तो अकेले ही लड़ने निकले थे। बड़ी लड़ाई है, खड़े रहने से ही लड़ी जायेगी।

2009 में छत्रपति के कुछ मित्रों ने यह पाया कि यह अंशुल की अकेले की लड़ाई नहीं है। यह हम-ख्याल लोगों की साझी लड़ाई है। 2009 में कुछ लोगों ने महसूस किया कि पूँजी का खेल धर्म और राजनीति में पूरी तरह हावी है और डेरा मुखी राजनीतिक गोटियां खेलने के लिए राजनीतिक विंग भी बना  चुका है। 2010 में उन हम-ख्याल लोगों ने संवाद सिरसा संस्था का गठन किया और शहीद छत्रपति की स्मृति में हर बरस आयोजन का निर्णय लिया। यह आयोजन  दरअसल लड़ रहे लोगों के लिए एक अभिप्रेरणा का काम करने लगा। कुछ लोग हर बरस छत्रपति को याद करने आते और लड़ाई को नजदीक से समझते कि किस तरह से डेरा मुखी ने अपनी ताकत झोंक रखी है लेकिन भीतर से वह बहुत बेचैन है। वह हर पेशी पर अपने अनुयायियों की भीड़ दिखाता। सफाई अभियान के बहाने अपनी भीड़ दिखाता और अंत में यही भीड़ उसने पंचकूला में दिखाई लेकिन कानून के फीते में उसका कद नाप लिया गया।

संवाद संस्था ने 2010 में पहला छत्रपति सम्मान पद्मश्री लेखक गुरदयाल सिंह को दिया उसके बाद प्रख्यात रंगकर्मी अजमेर सिंह ओलख,  कुलदीप नैयर साहब, प्रोफेसर जगमोहन ( शहीद भगत सिंह के भांजे) रविश कुमार, अभय कुमार दूबे, ओम थानवी, उर्मिलेश, राम पुनियानी, सुब्रत बासु, अभिसार शर्मा और 2022 का छत्रपति सम्मान न्यूज़ 24 के कार्यकारी संपादक संदीप चौधरी को दिया गया।

धर्म में राजनीति और राजनीति का धर्म विषय पर बोलते हुए संदीप चौधरी ने काफी तल्ख़ चीजें अपने अंदाज में लोगों के सामने रखीं। उन्होंने कहा कि धर्म निजी शै है। जब कोई संकट में होता है तो अपने अपने ईश्वर को याद करता ही है लेकिन यदि आप अपने ईश्वर का राजनीतिकरण करने देते हैं तो आप की कमजोरी है। और उसके बाद आपको अपने ईश्वर तक सीमित कर दिया जाए और दूसरों के ईश्वर गाली हो जायें ये राजनीति है जिसमें हम सब ट्रैप होते हैं। 1947 में जितना बड़ा दंश हम झेल कर आये हैं, धर्म का राजनीतिकरण होने के बाद लाशों से भरी ट्रेनें हमारी चेतना के ऊपर से गुजरती हैं, क्या उतना काफी नहीं था? लगभग हर घर में इस राजनीति के  शिकार का कोई न कोई किस्सा है, उससे भी हम सबक नहीं लेते तो कसूर किसका है। 

2022 का यह पहला कार्यक्रम था जिसमें शहीद रामचंद्र छत्रपति की धर्म पत्नी श्रीमती कुलवंत कौर शामिल नहीं रही,  विगत वर्ष उनका निधन हो गया। उनके लिए सभा में एक मिनट का मौन रखा गया।  कार्यक्रम का कुशल मंच संचालन साहित्यकार हरभगवान चावला ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता अंशुल  छत्रपति ने की। छत्रपति के मित्र लेखराज ढोट ने बाबा की पेरोल पर अपनी बात रखते हुए कहा कि सत्ता किस तरह ताकतवर के लिए कानून में ही बदलाव कर देती है। प्रो. हरविंदर सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया और संस्था के बारे में बताया। सुरजीत सिंह सिरडी ने संदीप चौधरी का परिचय  दिया। अध्यक्ष मंडल में उपस्थित अधिवक्ता सुरेश मेहता ने छत्रपति के साथ बिताये अपने  संस्मरण साझे किये। वीरेंदर भाटिया ने अंशुल के संघर्ष पर अपनी बात रखी, संस्था के संयोजक परमानन्द शास्त्री ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया। 

(वीरेंदर भाटिया की रिपोर्ट पर आधारित।)

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