ग्राउंड रिपोर्ट: ‘जन’ से दूर होता ‘प्रधानमंत्री का जन औषधि केन्द्र’

मिर्जापुर। “सेवा भी, रोजगार भी” को मूल उद्देश्य मानकर जिस प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र को वर्ष 2017 में धरातल पर लाने का कार्य किया गया था, वह 6 साल बाद भी अपने उद्देश्य से भटका हुआ नजर आ रहा है। सरकारी अस्पतालों की बदहाली के बीच डॉक्टरों की कमीशनखोरी ने इस योजना की मंशा पर पानी फेर दिया है। ऐसे में ‘सेवा’ की बात तो दूर ‘रोजगार’ पाने की आस में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोलकर बैठे कई केंद्र संचालक अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

वजह बताया जा रहा है केंद्र खोलने के पूर्व जमा की गई (जमानत राशि) लाखों रुपए की रकम, ऊपर से सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों का जन औषधि की दवाओं के प्रति रुचि ना लेना, दवाओं की वापसी ना होना आदि ऐसे कई कारण हैं जो जन औषधि केंद्र संचालकों को घाटे की ओर ले जा रहा है। ऐसे में कई केंद्र संचालकों का जन औषधि केंद्र के प्रति रुझान कम होता जा रहा है।

“सेवा भी, रोजगार भी” की भावना से प्रेरित होकर 2 साल पहले प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोलकर तीन बेरोजगार युवकों को रोजगार देने वाले प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के हरहुआ निवासी उमेश प्रताप सिंह कहते हैं “सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों के असहयोग भरे रवैए के कारण प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र गर्त की ओर जा रहा है”।

सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर धड़ल्ले से बाहर से दवा लाने के लिए मरीजों पर दबाव बनाते हैं और प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र की दवा के प्रति उनका रुख पूरी तरह से असहयोग भरा है। “जिसका नतीजा यह है कि प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र के संचालक दोहरी मार सहने के लिए मजबूर हैं। एक तो दवा बिक्री ना होने से यह केंद्र घाटे का सौदा साबित हो रहा है, दूसरे दवाओं की वापसी ना होने के कारण उन्हें दोहरा घाटा हो रहा है।“

कुछ ऐसी ही व्यथा मिर्जापुर मंडलीय अस्पताल परिसर में संचालित प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र के संचालक की है जिन्हें अस्पताल के डॉक्टरों से सहयोग न मिलने के कारण भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। औषधि केंद्र संचालक का कहना है कि अधिकांश डॉक्टर बाहर से दवा लाने के लिए मरीजों पर न केवल दबाव बनाते हैं, बल्कि उन्हें कुछ गिनी-चुनी दुकानों से ही दवा लाने के लिए कहते हैं।

प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र

यदि गलती से भी कोई मरीज-तीमारदार प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र से दवा लेकर डॉक्टर के पास पहुंचता है तो उसे गलत दवा बता कर वापस करा दिया जाता है। यह समस्या किसी एक जनपद या किसी एक प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र से जुड़ी हुई नहीं है, बल्कि सभी केंद्रों के हालात एक जैसे हैं। जिसका सीधा प्रभाव जन औषधि केंद्र संचालकों पर पड़ रहा है।

खुद इन समस्याओं से प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के जन औषधि केंद्र संचालक जूझ रहे हैं। वाराणसी के अलावा जौनपुर, भदोही, सोनभद्र, चंदौली, गाजीपुर, बलिया, आजमगढ़, मऊ, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, इलाहाबाद जनपद के भी प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र संचालकों की समस्या एक जैसी ही बनी हुई है।

यह रहा है उद्देश्य

आम लोगों को कम दाम पर सस्ती और सुलभ दवा मिले इस उद्देश्य से प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना अंतर्गत जन औषधि केंद्रों का संचालन पूरे देश में शुरू किया गया था। वर्ष 2015 में इसकी कार्य योजना बनी और 2017 में इसे धरातल पर लाया गया।

सबसे पहले राजस्थान से प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना का शुभारंभ किया गया था। फार्मा/बी फार्मा कर बेरोजगार लोगों के लिए यह योजना बनाई गई थी। स्लोगन दिया गया था “सेवा भी, रोजगार भी”। इस योजना के तहत भारत में 9 हजार से अधिक केंद्र खोले गए हैं और 280 सर्जिकल उपकरण के साथ 1759 बेहतरीन क्वालिटी की 50 से 90% तक सस्ती दवाएं यहां उपलब्ध कराई गईं।

बावजूद इसके प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र उपेक्षा के शिकार होकर रह गए। प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोले जाने के पीछे उद्देश्य रहा है गरीबों को बेहद सस्ते दर पर दवाएं उपलब्ध कराना, डॉक्टरों और दवा विक्रेताओं के कमीशनखोरी, मुनाफाखोरी पर लगाम लगाना। नकली दवाओं के कारोबारियों और ड्रग माफियाओं पर अंकुश लगाना। लेकिन इन सभी उद्देश्यों पर फिलहाल पानी फिरता हुआ नजर आ रहा है।

प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र

केंद्र खोलने की पात्रता

प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोलने के लिए फर्मासिस्ट की अनिवार्यता जरूरी है। जनपद मुख्यालय पर स्थित सरकारी अस्पताल परिसर में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोलने के लिए 5 लाख रुपये और अन्य सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र परिसर में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोलने के लिए 3 लाख रुपये की जमानत राशि जरूरी है।

जबकि सरकारी अस्पताल परिसर से बाहर खोलने के लिए जमानत राशि निःशुल्क है। आवेदन करने के लिए 5 हजार रुपये चार्ज के तौर पर जमा जरूर करने पड़ते हैं। इसी के साथ केंद्र खोलने के लिए फर्मासिस्ट को छोड़ सहायक के तौर दो से तीन लोगों की जरूरत होती है जिन्हें दवाओं के बारे में अच्छी जानकारी हो।

परेशानी क्या है?

प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र के संचालकों की मानें तो सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों का सहयोग न मिलने के कारण उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। अधिकांश डॉक्टर मरीजों को बाहर के मेडिकल स्टोर से दवा लाने के लिए कहते हैं, बल्कि कमीशनखोरी के चक्कर में उन्हें मजबूर भी करते हैं। ऐसे में मरीज और तीमारदार मजबूर होकर प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र की दवाओं के प्रति कम झुकाव रखते हैं।

इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि खुद सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर यह कहते हैं कि प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र की दवाएं असरकारक नहीं होती हैं। मिर्जापुर में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र के संचालक का आरोप है कि ज्यादातर डॉक्टर पर्चे पर बाहर से दवा लाने के लिए लिखते हैं। यदि मरीज का तीमारदार गलती से भी प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र से दवा ले आता है तो डॉक्टर आग बबूला हो जाते हैं और दवा सही ना होना बताकर वापस कराने का दबाव बनाते हैं।

प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र के संचालकों की समस्याओं पर गौर करें तो उन्हें ऑर्डर देने के बाद भी समय से दवा उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। ऐसे में स्टोर संचालकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उत्तर प्रदेश की बात करें तो पूरे प्रदेश में दो से तीन डिस्ट्रीब्यूटर चुने गए हैं, जो पूरे उत्तर प्रदेश में जन औषधि केंद्र संचालकों को दवा सप्लाई करते हैं।

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, सुल्तानपुर, आजमगढ़ और लखनऊ के डिस्ट्रीब्यूटर के सहारे पूरे उत्तर प्रदेश के 75 जिलों को सप्लाई देने का भार दिया गया है। ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि भला इतने कम डिस्ट्रीब्यूटर के सहारे पूरे प्रदेश के सैकड़ों जन औषधि केंद्रों को दवा समय से कैसे उपलब्ध कराया जा सकता है। ऊपर से सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों का असहयोग भरा रवैया जन औषधि केंद्रों की उपयोगिता पर सवाल खड़े करने के साथ ही प्रधानमंत्री के मूल मंत्र “सेवा भी, रोजगार भी” का मजाक उड़ाने का काम कर रहा है।

प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र

नहीं किया जाता प्रोत्साहित

कहने को तो जब भी कोई मरीज बीमार हो कर डॉक्टर के पास जाता है तो डॉक्टर उन्हें वे दवाएं बताते हैं जिनके दाम बाजार में ज्यादा होते हैं। योजना का एक लक्ष्य डॉक्टरों को इस बात के लिए प्रेरित करना है कि वे लोगों को खासतौर पर गरीब और आर्थिक रूप कमजोर मरीजों को जेनरिक दवाओं की सलाह दें।

लेकिन देखा जाए तो ना डॉक्टरों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जाता है और ना ही डॉक्टर आमजनों को प्रेरित करते हैं। हालांकि मिर्ज़ापुर मंडलीय अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर अरविंद कुमार का कहना है कि “जेनरिक और सस्ती दवाओं के लिए प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्रों से दवा लेने के लिए लोगों के साथ-साथ डॉक्टरों को भी प्रेरित किया जाता है, ताकि लोगों को सस्ती दवाएं आसानी से मिल सकें। 

7 मार्च को मनाया जा रहा है जन औषधि दिवस

देश भर में 7 मार्च को जन औषधि दिवस मनाया जायेगा। वैसे तो 1 मार्च से 7 मार्च तक जन औषधि पखवाड़ा का आयोजन किया जा रहा है, लेकिन 7 मार्च को विशेष तौर पर जन औषधि दिवस मनाने की तैयारी चल रही है। देश में जरूरी (जेनरिक) दवाओं के प्रति जन जागरूकता और लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए इस दिवस का आयोजन किया जा रहा है।

इसी के साथ ही इस दिवस को प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना और देश में लोगों को सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से मनाया जाएगा। इस दिन देश के प्रधानमंत्री जनऔषधि परियोजना केन्द्रों के संचालकों, लाभकर्ताओं से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सीधे रूबरू होंगे।

इस दिन पर देश भर में कई प्रकार के कार्यक्रमों के आयोजन के साथ ही डॉक्टरों, लाभार्थियों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों, गैर सरकारी संगठनों आदि से जुड़े हुए लोग भाग लेंगे। जन औषधि दिवस का उद्देश्य जेनरिक दवाओं के उपयोग को बढ़ावा देने और उनके प्रति लोगों में जागरुकता बढ़ाना है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इन सब के बाद भी यह महत्वपूर्ण योजना आम लोगों से दूर है।

(मिर्जापुर से संतोष देव गिरि की रिपोर्ट।)

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