इंडियन मुस्लिम्स फॉर सेकुलर डेमोक्रेसी (आईएमएसडी), जमात-ए-इस्लामी और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नेताओं समेत मुस्लिम दक्षिणपंथियों और कुछ मुस्लिम संचालित वेबसाईट की तरफ से केरल में एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय से जुड़े मुस्लिमों का मज़ाक उड़ाने, अपमानित करने, उनके खिलाफ घृणा फैलाने की कोशिशों की कड़ी निंदा करता है।
यह त्रासद विडंबना है कि जब देश में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय खुद इस्लामोफोबिया का दंश झेल रहा है तो उनमें कुछ रूढ़िवादी यौनिक अल्पसंख्यकों (अल्पसंख्यकों में अल्पसंख्यक) के खिलाफ नफरती बयानबाज़ी कर रहे हैं। आखिर कौन सा तर्क इस्लामोफोबिया को तो गलत ठहराता है लेकिन होमोफोबिया, क्वीरफोबिया, ट्रांसफोबिया को सही ठहराता है? इसलिए यह आश्चर्यजनक नहीं है कि मुस्लिम दक्षिणपंथियों और हिंदू दक्षिणपंथियों में बहुत समानता है।
दरअसल, पिछले महीने केरल के एक ट्रांस जोड़े ट्रांस पुरुष ज़ाहिद फाज़िल और ट्रांस महिला ज़िया पायल ने बच्चा पैदा करने का निर्णय किया। जोड़े ने यह निर्णय इसलिए लिया क्योंकि तृतीयपंथी बच्चा गोद नहीं ले सकते।
नैतिकता के स्वयंभू ठेकेदारों को इस तथ्य ने भी उकसाया कि केरल स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने फोन पर जोड़े को बधाई दी और राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय को निर्देश दिया कि जोड़े को उपचार नि:शुल्क मुहैया कराया जाए। उन्होंने बच्चे के लिए दूध भी ह्यूमन मिल्क बैंक से मुहैया कराने का निर्देश दिया।
नफरती राजनीति के निशाने पर रहे मुस्लिमों को फ्री स्पीच और हेट स्पीच में फर्क पता होना चाहिए। होमोसेक्सुअलिटी की पीडोफीलिया से तुलना करना, एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के सदस्यों को निशाना बनाना और उनके लिए “शर्मनाक”, “मानसिक रूप से बीमार”, “सबसे बुरे लोग”, “इनका इलाज होना चाहिए” आदि जैसे शब्द और भावों का उपयोग नफरती बयान है, स्वतंत्र विचार नहीं।
जो संविधान मुस्लिमों को अपने धर्म को मानने, उसके अनुसार चलने का अधिकार देता है वही संविधान यौनिक अल्पसंख्यकों को भी अपने होने की घोषणा करने का, प्राईड परेड करने का अधिकार देता है।
संयुक्त राष्ट्र के सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र (1948) की शुरुआत ही “मनुष्य परिवार के सभी सदस्यों के लिए गरिमा और समान अधिकारों से होती है।” यही भारतीय संविधान भी कहता है।
भारतीय मुस्लिम समुदाय जो खुद अपने गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार के लिए तिरस्कार और परेशानी झेल रहा है लेकिन संघर्ष कर रहा है, उसे सभी नागरिकों के “गरिमा के अधिकार” का सम्मान करना सीखना चाहिए।
हस्ताक्षरकर्ताओं में आईएमएसडी के सह संयोजक व वकील एजे जावेद (चेन्नई), फिरोज़ मीठीबोरवाला (मुंबई), सीजेपी से तीस्ता सेतलवाद, पीयूसीएल से वकील लारा जेसानी, शायर व वैज्ञानिक गौहर रज़ा, अनहद से शबनम हाशमी, सहमत के सोहैल हाशमी (दिल्ली), फिल्म जगत से नसीरुद्दीन शाह, रत्ना पाठक और जावेद अख्तर समेत कई हस्तियों के हस्ताक्षर हैं।
(जनचौक की रिपोर्ट।)
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