कांग्रेस को पूर्ण बहुमत और भाजपा को शर्मनाक हार से बचने की उम्मीद

नई दिल्ली/बेंगलुरु। कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम के शुरुआती रुझानों को देश के सामने रखने के लिए न्यूज रूमों में पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सुबह से ही डट गए थे। आज हर किसी की नजर टीवी पर लगी है। कर्नाटक के शुरुआती रुझान जहां कांग्रेस के लिए नई उम्मीद की किरण बन कर आई है वहीं भाजपा के लिए यह किसी सदमे से कम नहीं है। कांग्रेस ने शुरुआती रुझानों में जैसे ही बढ़त बनाई दिल्ली से लेकर बेंगलुरु तक भाजपा खेमे में खलबली मच गई। सुबह 10 बजे तक भाजपा को लग रहा था कि अंतिम परिणामों तक रुझानों में फेरबदल होने की संभावना रहती है। लेकिन जैसे-जैसे समय आगे बढ़ रहा है भाजपा का प्रदर्शन कमजोर होता जा रहा है। भाजपा नेतृत्व अब जीत की उम्मीद नहीं लगा रहा है बल्कि अब वह शर्मनाक हार से बचने की उम्मीद लगा रहा है।

जैसे ही कांग्रेस ने कर्नाटक में बढ़त बनाई, बीजेपी में पीछे रह जाने के कारणों की खोज शुरू हो गई। पार्टी के कुछ विद्वान त्रिशंकु विधानसभा की उम्मीद लगा बैठे तो कुछ टिकट बंटवारे में गड़बड़ी को वजह बताते हुए पार्टी हाईकमान को कोसने लगे। राज्य के कुछ नेता मुद्दा और नेतृत्व पर भ्रम की स्थिति बनाये रखने को इस स्थिति को जिम्मेवार ठहरा रहे हैं।

दिल्ली से लेकर बेंगलुरु तक जहां कांग्रेस खेमे में पूर्ण बहुमत की आशा की जा रही हैं वहीं भाजपा नेतृत्व अभी भी शर्मनाक हार से बचने की उम्मीद पाले हुए है। रुझानों ने भाजपा खेमे में ऐसी खलबली मचाई है कि वो अंतिम परिणाम का इंतजार किए बगैर अपनी भड़ास निकालने लगे हैं। कुछ भाजपा नेता टिकट वितरण के बारे में “नेतृत्व के मुद्दे पर विवाद और मुद्दों पर पूरी तरह से भ्रम” की ओर इशारा कर रहे हैं। राज्य के नेता कह रहे हैं कि पार्टी हाईकमान ने चुनाव प्रचार के दौरान ऐसे मुद्दों को उठाया जो जनता के मुद्दे नहीं थे।

कर्नाटक विधानसभा चुनावों के शुरुआती रुझान कांग्रेस के लिए एक स्पष्ट बढ़त का संकेत देते हैं। लेकिन भाजपा अब जीत की सारी उम्मीद छोड़कर शर्मनाक हार से बचने की उम्मीद मे लगी है, और इस हार के कारणों के साथ ही इसके लिए जिम्मेदार ‘बकरों’ की तलाश में लग गई है। भाजपा राज्य इकाई के सूत्रों का कहना है कि चुनाव अभियान के दौरान सत्ता विरोधी लहर, सामंजस्य की कमी और राज्य स्तरीय मजबूत नेतृत्व की अनुपस्थिति के कारण यह हुआ है।

मतगणना के दौरान शुरू से ही पीछे चल रही भाजपा के राज्य स्तरीय नेताओं का कहना है कि गलत टिकट बांटने और मुद्दों पर भ्रम के कारण हम चुनाव हार रहे हैं। राज्य भाजपा के एक नेता ने कहा, पार्टी ने शुरू में जोर देकर कहा था कि उसका अभियान विकास के एजेंडे पर होगा और रिपोर्ट कार्ड वह मतदाताओं के सामने रखेगा। लेकिन पार्टी धीरे-धीरे अपने हिंदुत्व के तख्ते पर चली गई, खासकर जब कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में बजरंग दल के बारे में बात की। “पार्टी को यह स्पष्ट था कि हिंदुत्व का मुद्दा कर्नाटक में काम नहीं करेगा। लेकिन हमने प्लॉट खोना शुरू कर दिया।”

हालांकि रुझानों ने कांग्रेस के लिए स्पष्ट जीत का संकेत दिया, फिर भी भाजपा नेताओं के एक वर्ग ने आशावाद व्यक्त किया कि अंतिम परिणाम एक त्रिशंकु विधानसभा लाएगा, जिससे पार्टी को सत्ता बरकरार रखने की संभावनाएं तलाशने का अवसर मिलेगा। लेकिन दूसरों ने पहले से ही “हार के कारणों” को खोजना शुरू कर दिया है, जिसके लिए वह अपने प्रदर्शन को आधार बना रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि कुछ कारणों में राज्य इकाई में स्पष्ट विचार की कमी, राष्ट्रीय नेतृत्व पर निर्भरता और उम्मीदवार चयन के साथ-साथ नेतृत्व के बारे में “पूरी तरह से भ्रम” था। उन्होंने बताया कि राज्य इकाई पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बहुत अधिक निर्भर है, दोनों ही लोकप्रिय हैं।

(जनचौक की रिपोर्ट)

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