2012 से ही अडानी की दो ऑफशोर शेल कंपनियां I-T रडार पर थीं

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हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में अडानी समूह की जिन कंपनियों का जिक्र हुआ है उनमें से मॉरीशस स्थित कम से कम दो कंपनियां ऐसी हैं जो भारतीय कर अधिकारियों की रडार पर पिछले कई सालों से थीं। सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने के बाद सेबी को अपनी जांच पूरी करने के लिए हाल ही में तीन महीने का समय मिला है।

2017 में द इंडियन एक्सप्रेस की पैराडाइज पेपर्स की जांच के दौरान पता लगा था कि 2012 में मावी इनवेस्टमेंट फंड लिमिटेड (जो अब एपीएमएस हो गया है) को मारीशस रेवेन्यू अथॉरिटी से एक नोटिस मिला था। जिसमें कंपनी के टैक्स के विवरण को भारतीय कर अधिकारियों से भी सूचना साझा करने की बात कही गई थी।

2005 में एक अन्य कंपनी ‘लोटस ग्लोबल इन्वेस्टमेंट लिमिटेड’ ने अडानी समूह की कंपनियों में निवेश करना शुरू किया था। जुलाई 2014 में एमआरए से भारतीय कर अधिकारियों को आगे प्रसारण के लिए सूचना साझा करने के लिए उसी तरह का नोटिस प्राप्त हुआ था। यह दस्तावेज कानूनी फर्म ‘एप्पलबाई’ के आंतरिक रिकॉर्ड का हिस्सा थे। 

हिंडनबर्ग रिसर्च में बताया गया है कि मारीशस की पांच संस्थाओं को एक ही “स्टॉक पार्किंग इकाई” मोंटेरोसा इन्वेस्टमेंट होल्डिंग्स के नियंत्रण में रखा था। जिसने अडानी समूह की कंपनियों में अपनी अच्छी खासी हिस्सेदारी रखी थी।

SC द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति के अनुसार, इनमें से चार कंपनियां अक्टूबर 2020 से बाजार नियामक सेबी द्वारा जांच की जा रही 13 विदेशी संस्थाओं में से थीं। सेबी ने कहा कि जांच में 13 विदेशी संस्थाओं की अंतिम श्रृंखला स्पष्ट नहीं है क्योंकि उनके पास अपारदर्शी संरचना है।

मई 2010 में सेबी ने नियमों का उल्लंघन करने के तहत मावी(एपीएमएस) से मामले का निपटारा करने के लिए 10 लाख रूपये का भुगतान स्वीकार कर लिया था। अडानी की कंपनियों में मावी की हिस्सेदारी अडानी टोटल गैस में 2072 प्रतिशत, ग्रीन एनर्जी में 1.79 प्रतिशत और अडानी ट्रांसमिशन में 1.86 प्रतिशत रही है।

मावी ने 2006 में अडानी एंटरप्राइज लिमिटेड (एईएल) में निवेश करना शुरू किया और पिछले साल बाहर निकल गया। कंपनी ने 2013 में तीन ब्लॉक डील में अपनी पूरी अडानी पावर लिमिटेड (एपीएल) की हिस्सेदारी गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी को बेच दी थी।

जुलाई 2014 में, MRA ने लोटस ग्लोबल से 2006 से 2012 के लिए ऑडिट किए गए वित्तीय विवरण प्रस्तुत करने के लिए कहा। विवरण में खासकर उस अवधि का जिक्र है, जब लोटस ग्लोबल ने अडानी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी रखी थी।

मांटेरोसा एप्पलबाई ने बैंको से सीधे जानकारी निकालने के किसी भी प्रयास को रोकने के लिए मारीशस के सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने का फैसला किया है। जहां इन बैंकों में, ड्यूश बैक, एचएसबीसी और बैंक ऑफ मॉरीशस में लोटस ग्लोबल के खाते हैं। 

इससे पहले 2012 में, मावी को अप्रैल 2007 से मार्च 2010 तक स्वामित्व विवरण, बैंक विवरण प्रदान करने और पुष्टि करने के लिए कहा गया था कि कंपनी ने निवेश किया है या नहीं।

जवाब में, मावी ने आयरलैंड, केमैन और बरमूडा में 11 संस्थाओं को लाभार्थियों के रूप में नामित किया। यह मावी द्वारा 2013 में फंड के लाभकारी मालिकों के नाम सेबी को इस आधार पर देने से इंकार कर दिया कि इसके निवेशक बैंक और वित्तीय संस्थान थे। जिनके पास बड़ी संख्या में निवेशक हैं जो दिन-प्रतिदिन बदलते रहते हैं। सितंबर 2013 में, सेबी ने बाजार में हेरफेर के “निर्णायक” आरोपों को स्थापित करने में विफल रहने के बाद सितंबर 2011 में मावी पर लगाए गए प्रतिबंध को हटा दिया।

( द इंडियन एक्सप्रेस में 30 मई को प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित)

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