पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा के विरोध में उतरे मानवाधिकार संगठन

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भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा को लेकर मीडिया में बड़ी चर्चा है। अमेरिकी संसद के दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित करने के आमंत्रण को प्रधानमंत्री मोदी को वैश्विक नेता के रूप में स्थापित होना बताने की मुहिम चल रही है, लेकिन अमेरिका में तमाम मानवाधिकार संगठन प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा को लेकर ज़बरदस्त विरोध की भी तैयारी कर रहे हैं, इसकी जानकारी भारतीय मीडिया से लगभग ग़ायब है।

इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल और हिंदू फ़ॉर ह्यूमन राइट और दलित सॉलिडेरिटी इंक समेत सत्रह संगठनों का एक नेटवर्क भारत में मानवाधिकार हनन, ख़ासतौर पर मुस्लिमों और दलितों पर बढ़ते अत्याचारों के लिए मोदी के नेतृत्व में चलाई जा रही बीजेपी की केंद्र सरकार को सीधे ज़िम्मेदार ठहराते हुए इस यात्रा का विरोध कर रहा है। इसके लिए हफ्ते भर का विरोध कार्यक्रम घोषित किया गया है जिसमें गुजरात दंगों पर बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन समेत 2019 के ‘हाउडी मोदी’ की तर्ज़ पर ‘हाउडी डेमोक्रेसी’ का आयोजन तक शामिल है। इसके अलावा अमेरिकी कांग्रेसजनों से मोदी के संबोधन के बहिष्कार और भारत में मानवाधिकार हनन का मुद्दा उठाने की अपील की जा रही है।

विरोध कर रहे संगठनों की ओर से एक खुला पत्रा जारी किया गया है  जिसमें “हिंदू चरमपंथी भीड़ द्वारा मुसलमानों और ईसाइयों को निशाना बनाने, घृणा अपराधों और अभद्र भाषा को बढ़ावा देने में मोदी प्रशासन की भूमिका” को लेकर गहरी चिंता जतायी गयी है। पत्र मे कहा गया है कि “अल्पसंख्यकों के नागरिक अधिकारों को दबाने, अंतर्धार्मिक विवाहों को बाधित करने, भाषण, असहमति और प्रदर्शन के लिए इकट्ठा होने की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से मोदी सरकार ने भेदभावपूर्ण कानून” बनाये हैं। ऐसे में “राजकीय अतिथि के रूप में मोदी को निमंत्रण देने से ऐसा संकेत जाता है कि अमेरिका मौलिक लोकतांत्रिक अधिकारों के ख़िलाफ़ भारत सरकार की कार्रवाई का समर्थन करता है और मोदी प्रशासन को अपने लोकतंत्र विरोधी एजेंडे को तेज करने के लिए प्रोत्साहित करता है।“ पत्र में राष्ट्रपति बाइडेन से प्रधानमंत्री मोदी को रात्रिभोज देने के फ़ैसले पर पुनर्विचार का आग्रह किया गया है। 

विरोध-प्रदर्शनों का यह सिलसिला मोदी की यात्रा शुरू होने के दो दिन पहले से ही शुरू हो जायेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित मानवाधिकार संगठन ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ और ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ ने 20 जून को वाशिंगटन में 2002 के गुजरात में हुए दंगों पर बनी बीबीसी की चर्चित डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ दिखाने की घोषणा की है। गुजरात दंगों और भारत में सांप्रदायिक विभाजन गहराने के लिए सीधे-सीधे प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी-आरएसएस की नीतियों को ज़िम्मेदार ठहराने वाली इस डॉक्यूमेंट्री पर भारत सरकार ने बैन लगा दिया था। यही नहीं, इसका प्रदर्शन करने वालों के ख़िलाफ़ कई जगह कानूनी कार्रवाई भी की गयी थी। यहाँ तक कि बीबीसी के दफ्तर पर भी छापेमारी की गयी थी। 

इसके अलावा 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर न्यूयॉर्क में ‘हाउडी डेमोक्रेसी’ नाम से एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा, जिसमें भारत और अमेरिका के तमाम गायक, संगीतकार, अभिनेता-अभिनेत्रियों से लेकर स्टैंडअप कॉमेडियन तक जुड़ेंगे और भारत में हो रहे अल्पसंख्यकों के दमन, गैर बराबरी, हिंसा और हेट स्पीच के ख़िलाफ़ अपने लाइव कार्यक्रमों के ज़रिए आवाज़ बुलंद करेंगे। यह कार्यक्रम 22 सितंबर, 2019 में टेक्सास के ह्यूस्टन में आयोजित ‘हाउडी मोदी’ रैली की तर्ज पर है जिसमें प्रधानमंत्री मोदी के साथ तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी मौजूद थे। टेक्सास में ‘हाउडी’ को ‘आप कैसे हैं?’ पूछने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। 21 जून को ‘हाउडी डेमोक्रेसी’ का मकसद भारत में डेमोक्रेसी के हालचाल पर सवाल उठाना है।

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि ‘हिंदुत्व’ की वर्चस्वशाली विचारधारा भारत में लोकतंत्र को ख़त्म कर रही है। अमेरिकी प्रशासन सिर्फ़ आर्थिक सौदों के लिए ही भारत से बातचीत न करे, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ प्रस्तावित बातचीत में भारत में हो रहे मानवाधिकार हनन को भी मुद्दा बनाए। दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी के रूप में उसका यह फर्ज भी है। भारत के मीडिया का वर्ल्ड फ्रीडम इंडेक्स में 161 वें स्थान पर पहुँच जाना भी इन संगठनों के लिहाज़ से भारत में सिकुड़ते लोकतंत्र का संकेत है। 

इस बीच पूर्व कांग्रेसमैन एंडी लेविन ने बाइडेन प्रशासन से आग्रह किया है कि प्रधानमंत्री मोदी को लोकतंत्र पर हो रहे हमलों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा भड़काने में उनकी पार्टी की भूमिकी के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाए।

प्रधानमंत्री का विरोध करने वाले नेटवर्क में भारतीय अमेरिकी मुस्लिम काउंसिल, हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स, दलित सॉलिडैरिटी इंक, वर्ल्ड विदाउट जेनोसाइड, इंटरनेशनल डिफेंडर्स काउंसिल, इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर पीस एंड जस्टिस, जेनोसाइड वॉच, एशियन चिल्ड्रन एजुकेशन फेलोशिप, काउंसिल ऑन अमेरिकन-इस्लामिक रिलेशंस (CAIR), मिशन विदा पैरा लास नैकियोनेस, चर्च इन द रिपब्लिक ऑफ उरुग्वे, ग्लोबल क्रिश्चियन रिलीफ, अमेरिकन सिख काउंसिल, ह्यूमन राइट्स एंड ग्रासरूट्स डेवलपमेंट सोसाइटी, इंटरनेशनल कमीशन फॉर दलित राइट्स शामिल हैं।

(लेखक चेतन कुमार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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