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भाजपा की राजनीतिक हिन्दी और उसमें भरा गौरव गान

रवीश कुमार

भाजपा ने कार्यकर्ता से लेकर नेता तक जिस स्तर की भाषाई एकरूपता स्थापित की है, उसका अलग से किसी प्रशिक्षित भाषाविद को अध्ययन करना चाहिए। भाजपा की हिन्दी’ एकरूपता के चरम पर है। मैं इसे ‘भाजपा की हिन्दी’ कहना चाहूंगा क्योंकि पहले संघ से प्रशिक्षित लोग ऐसी हिन्दी बोलती थे, अब जो संघ से नहीं हैं वो भी ऐसी हिन्दी बोलने लगे हैं।

भाजपा ने एक राजनीतिक हिन्दी विकसित की है। यह कोई सामान्य उपलब्धि नहीं है। इसे नोटिस में लिया ही जाना चाहिए। अगर आप बोलने की शैली और शब्दों का सैंपल लेकर देखेंगे तो एक निश्चित फार्मेट नज़र आएगा। 

एक अलग भाषा युग नज़र आएगा। उस भाषा में जीत के क्षणों का जिस तरह वर्णन है, उन वर्णनों से वर्तमान में अतीत के एक ख़ास युग की कल्पना झलकती है।

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हिन्दी ही नहीं अंग्रेजी में भी एकरूपता

ऐसा नहीं है कि भाजपा के नेता या कार्यकर्ता अंग्रेज़ी में दक्ष नहीं हैं, बल्कि उनकी अंग्रेज़ी में भी हिन्दी की तरह एकरूपता दिखने लगी है। हिन्दी के शब्दों के समानांतर अंग्रेज़ी के भी उन शब्दों का चयन किया जाता है जिसमें उम्मीद हो, लक्ष्य हो, हासिल करने की दावेदारी हो, गौरव हो, गाथा हो, वीर रस हो। भाजपा की हिन्दी और अंग्रेज़ी अपने विरोधी को उसी फार्मेट में पेश करती है। भाजपा की अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनलों की अंग्रेज़ी से आई है। संघ से नहीं। कुछ चैनल विरोधी दलों के बारे में जिस ज़ुबान का इस्तमाल करते हैं, सरकार के एजेंडे को जिस तरह से वीर रस में रखते हैं, अब वही ज़ुबान भाजपा के अंग्रेज़ी दां नेताओं पर है।

एक फार्मेट में बात करती है भाजपा

भाजपा एक फार्मेट में बात करती है। इसका एक अच्छा उदाहरण आपको जीत के समय नेता से लेकर कार्यकर्ताओं की अभिव्यक्ति में मिलेगा। अक्सर इन बधाई संदेशों को भाषाविद नज़रअंदाज़ कर देते हैं। इन संदेशों में ख़ास तरह के शब्दों, विशेषणों और प्रतीक शब्दों का इस्तमाल होता है। जैसे- शिखर, संदेश, लक्ष्य, कर्मठ, जोश, उत्साह, संकल्प, प्रचंड, पराक्रम, परिश्रम, अटूट विश्वास, विजयश्री, प्रतिबद्धता की जीत, अभिनंदन, वंदन, यशस्वी, ओजस्वी, तेजस्वी. कर्मयोगी, पुरुषार्थ, आदरणीय, प्यार, स्नेह, अद्भुत, हृदय, हार्दिक।

हर जीत ऐतिहासिक!

भाजपा के लिए हर जीत ऐतिहासिक होती है। हार ऐतिहासिक नहीं होती है। उसके लिए सामान्य चुनावी जीत भी ऐतिहासिक है। वो ऐसी भाषा का इस्तमाल करती है जिससे लगे कि वर्तमान नहीं आप किसी ऐतिहासिक युग में जी रहे हैं। जिसे हम आमतौर पर स्वर्ण युग या सतयुग के फार्मेट में समझते हैं। इसलिए इन संदेशों का अध्ययन करना चाहिए। एक पार्टी जब अपनी जीत को देखती है, उसे वो किस फार्मेट में अपनी जीत देख रही होती है।

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‘नरेंद्र’ जी की महिमा, ‘महेंद्र’ जी की मेहनत और ‘अमित’ प्रभाव के ‘योग’ से उत्तर प्रदेश में भाजपा का ‘आदित्य’ प्रखरता के साथ शिखर पर। congratulations

यह ट्वीट भाजपा के प्रवक्ता डॉक्टर सुधांशु त्रिवेदी का है। उन्होंने यूपी के निकाय चुनावों में पार्टी की अपार सफलता के मौके पर ट्वीट किया था। इसके बाद मैंने भाजपा के कई मुख्यमंत्रियों और नेताओं के ट्वीट देखे। अगर आप उन सभी को एक पट्टी पर रखकर चलाएंगे तो लगेगा कि कोई एक ही आदमी बोल रहा है या लिख रहा है।

 

इस तरह की एकरूपता सिर्फ प्रशिक्षण या कार्यशाला से हासिल नहीं की जा सकती है। भाजपा की राजनीतिक हिन्दी बताती है कि पार्टी में सब एक ही तरह से देखने लगे हैं, सोचने लगे हैं और बोलने लगे हैं।

 

आप देख सकते हैं राजनाथ सिंह और उनके पुत्र पंकज के ट्वीट की शैली में कितनी समानता है और बाकी नेताओं से भी।

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मुमकिन है कि कुछ लोगों को लगे कि यह दसवीं कक्षा की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में बोली जाने वाली संस्कृत निष्ठ हिन्दी है। जहां छात्र तर्कों से कम, शब्दों के संयोजन और उनके प्रभाव से अपना पक्ष साबित करने का प्रयास करता है। मैंने कई मंचों पर सुना है। छात्र किसी कविता या वाक्य का चुनाव इस तरह करता है कि वह तुरंत श्रोता को एक दूसरे युग में ले जाता है। बोलते हुए उसकी नसें तन जाती हैं और मुखड़ा ऊपर की तरफ उठा होता है। वो ख़ुद भी युगपुरुष की मुद्रा में ट्रांसफार्म यानी रुपांतरित हो जाता है। नज़र मिलाकर या कंधे झुकाकर बात करने वाला तो कभी ये प्रतियोगिता जीत ही नहीं सकता है। इस लिहाज़ से तो गांधी बहुत अच्छे वक्ता नहीं कहे जाएंगे। वे धीरे बोलते थे, कभी बातों में जोश नहीं भरते थे। आप वाद-विवाद प्रतियोगिता से बाहर आते हैं और कुछ भी याद नहीं रहता कि किसने क्या बोला है। जबकि ताली ख़ूब बजाते हैं।

बीजेपी का चुनावी विज्ञापन।

गौरव-गान की परंपरा

भारत में इस तरह के गौरव-गान की परंपरा रही है। राजस्थान का इतिहास से भोपा, भाट, चारण, लंगा, मंगनियारों से भरा पड़ा हुआ है। भाटों और चारणों का काम ही था, वीर रस से भर देना। वे मामूली लड़ाई को भी महाभारत के युद्ध में बदल देते थे, और छोटी सी जीत को कौरवों के पराजय से जोड़ देते थे। आज भी यह परंपरा चल रही है। चारणिक काव्य और उसकी डिंगल भाषा के संदर्भ में भी इन बधाई संदेशों को देखा जा सकता है। 19-14-20 में इतालवी व्याकरणाचार्य एल पी टेसेटरी ने बीकानेर के राजा के यहां रहते हुए इस पर ख़ूब काम किया है। आजकल चारण और चरण वंदना से लोग आहत हो जाते हैं मगर यह बहुत सम्मानित काम था। इन कार्यों के ज़रिए लोक संस्कृति बनी है और उसमें राज दरबारों के प्रति लोक कल्पना और लोक कल्पनाओं में दरबारों की उपस्थिति की चाहत के प्रमाण मिलते हैं।

यह हिन्दी का देव रूप है!

भाजपा की राजनीतिक हिन्दी यह भी बताती है कि हम किस तरह की हिन्दी चाहते हैं। यह वो हिन्दी नहीं है जिसे सरल करते करते फिल्मों और अखबारों के ज़रिये लोक रूप दिया गया है। यह हिन्दी का देव रूप है। जहां तर्क या तस्वीर न हो, बस शब्दों का शोर हो। दसवीं कक्षा का बोध अभी तक एक ख़ास तबके पर हावी है। भाजपा की राजनीतिक हिन्दी का एकीकरण नव-वर्ष, दिवाली और होली पर भेजे जाने वाले व्हाट्स-एप मैसेजों के साथ हो गया है।

ऐसी हिन्दी की चाह हिन्दी जगत की दबी हुई चाह है जो समय समय पर निकलती रहती है। बहुत सी शादियों में देखा है, लोक चारण शैली में कविता लिखकर मेहमान को देते हैं, निमंत्रण पत्र पर भी ऐसी भाषा होती है। कई मझोले किस्म के नेताओं के यहां भी इस भाषा में उनकी महानता का बखान हमने फ्रेम किया हुआ देखा है। हिन्दी की कुंठा हिन्दी जाने मगर भाजपा की जीत के क्षणों की हिन्दी में जो पराक्रमी तेवर दिखते हैं वो हैं तो दिलचस्प। आप अगर ग़ौर से देखें तो गौरव से भरे इन वाक्यों में अर्थ कहीं नहीं मिलता है। दरअसल यही वो राजनीतिक हिन्दी है जो अर्थ को किनारे लगा देती है, उसकी जगह गौरव को बिठा देती है।

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मेयर की जीत से बड़ी हार गायब

इन बधाई संदेशों से यह तो पता चलता है कि भाजपा ने 14 मेयर के पद जीतकर शानदार उपलब्धि हासिल की है, मगर यह नहीं पता चलता कि नगर पंचायतों में भाजपा 438 में से 337 सीटों पर हारी है, नगर पालिका परिषद की 5261 में से 4303 सीटों पर हारी है, नगर पालिका परिषद अध्यक्ष की 198 में से 127 सीटों पर हारी है। नगर पंचायत सदस्य की 5434 की 4728 सीटों पर हारी है।

भाजपा ने अपनी बड़ी हार को मेयर की जीत से ग़ायब ही कर दिया है। वह हार कर भी जीत के ऐतिहासिक क्षणों में अपना गौरव गान कर रही है।

भाजपा की हिन्दी का यही कमाल है। एक ऐसे युग को व्यक्त करते चलो जो है नहीं।

कांग्रेस की हिन्दी

इसी क्रम में कांग्रेस की भी एक हिन्दी मिली। भाजपा जहां अपनी जीत को ऐतिहासिक बताने की शब्दावली गढ़ चुकी है, कांग्रेस अपने लिए मनोवैज्ञानिक जीत की शब्दावली गढ़ रही है। पता चलता है कि पार्टी के लिए मनोवैज्ञानिक जीत का लक्ष्य कितना बड़ा और कठिन हो चुका है। इसका भी सैंपल देख ही लीजिए।

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(रवीश कुमार के ब्लॉग कस्बा से साभार)

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