पाकिस्तान के खिलाफ बड़े अभियान की तैयारियों की कवायद से देश को उहापोह की स्थिति में रखने की सरकार की कोशिशें तब धराशायी होती जा रही हैं, जब सोशल मीडिया में पहलगाम हमले को लेकर सरकारी लापरवाही और अकर्मण्यता से आम लोगों का ध्यान नहीं हट रहा। इस घटना को पूरे एक सप्ताह बीत चुके हैं, और देश में विभिन्न जगहों पर कश्मीरी मूल के छात्रों, वीजा लेकर भारत की यात्रा पर आये पाकिस्तानी परिवारों को वापस भेजने के सरकारी फरमानों और उत्तर प्रदेश-नेपाल की सीमा पर बने भवन निर्माण की शिनाख्त कर उन्हें अवैध घोषित करने की कार्यवाहियों के बावजूद नैरेटिव बदल नहीं पा रहा।
जयपुर में शुक्रवार को जुमे की नमाज के दौरान जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर स्थानीय हवा महल सीट से भाजपा विधायक आचार्य बाल मुकुन्द की धार्मिक भावनाएं भड़काने की कोशिश हो या पश्चिम बंगाल में पहलगाम हमले की पीड़िता के बच्चे को अपने हाथ में लिए नेता प्रतिपक्ष, सुवेंदु अधिकारी की हरकतों को देश देख रहा है। यह एक ऐसा हमला था, जो सेना या कश्मीरी पंडितों अथवा बाहरी मजदूरों के ऊपर नहीं किया गया था, बल्कि सीधे भारतीय मध्य और अभिजात वर्ग के उन सैलानियों पर किया गया था, जो पढ़े-लिखे होने के साथ-साथ मौजूदा व्यवस्था में खुद को सफल और महफूज दोनों पा रहे थे।
जब यह हमला हुआ, तो भारतीय मध्य वर्ग के लिए यह हजम कर पाना कहीं से भी संभव नहीं हो पा रहा कि आखिर 2,000 पर्यटकों की मौजूदगी वाले बैसरण घाटी में सुरक्षा के कोई इंतजाम कैसे नहीं थे? टैक्सपेयर्स के पैसे से चलने वाली सरकार और कल्याणकारी योजनाओं के जुमलों का यह पटाक्षेप है, जिसमें 10% संपन्न तबका लाखों रूपये खर्च कर आनंद के कुछ पल बटोरना चाहता है, लेकिन कश्मीर में आतंकवाद को जड़ से मिटाने का दावा करने वाली सरकार सर्वदलीय बैठक में टका सा जवाब देती है कि बैसरण घाटी तो अप्रैल में पर्यटकों के लिए खोली ही नहीं गई थी।
यह वर्ग बेवकूफ नहीं है, जिसे ऐसे बयानों से बरगलाया जा सकता है। पूरा देश भी अब जान गया है कि चाहे नोटबंदी या कश्मीर में धारा 370 को खत्म कर आतंकवाद की कमर तोड़ने का दावा पूरी तरह से खोखला है। ऊपर से नेहा सिंह, डॉ. मेडुसा और स्वतंत्र यूट्यूब चैनलों के साथ समानांतर मीडिया चलाने वाले पत्रकारों की जमात के धारदार तर्कों को पहली बार भारतीय मध्य वर्ग ने भी समझना और साझा करना शुरू कर दिया है।
कल आखिरकार मोदी सरकार ने भोजपुरी लोकगायिका नेहा सिंह राठौर और लखनऊ विश्वविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर माद्री कोकोटी (प्रचलित नाम डॉ. मेडुसा) के खिलाफ ऍफ़आईआर ही दर्ज नहीं करा दी, बल्कि आज हिंदी के सबसे लोकप्रिय यूट्यूब न्यूज़ चैनल में से एक 4PM के राष्ट्रीय संस्करण को भी प्रतिबंधित कर दिया गया है। 4PM के संपादक संजय शर्मा का यह चैनल लखनऊ से चलता है, और हाल के वर्षों में इसकी लोकप्रियता इस कदर बढ़ी कि 4 PM यूपी के साथ-साथ इसका राष्ट्रीय चैनल 73 लाख से अधिक लोगों के द्वारा सब्सक्राइब किया जा चुका था।
नेहा सिंह राठौर के खिलाफ राजद्रोह के साथ-साथ देश की शांति भंग करने और विद्वेष बढ़ाने का आरोप लगाया गया है। लेकिन राजद्रोह का आरोप लगाने के बाद प्रशासन मामले की तफ्तीश करने की बात कर खुद फंसता हुआ दिख रहा है। आखिर नेहा सिंह या डॉ मेडुसा ने ऐसा कौन सा अपराध कर दिया है, जो इन दोनों महिलाओं से राजसत्ता इतना घबरा गई कि उनके खिलाफ विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज करने की नौबत आन पड़ी है?
इसका जवाब नेहा सिंह राठौर के सोशल मीडिया पर जारी इस बयान से निकाला जा सकता है, “लड़ना आतंकवादियों से था…लेकिन लड़ बेटियों से रहे हैं।
आतंकवादियों के सिर काटने की जगह देश की बेटियों पर FIR करवा रहे हैं।
सारी बहादुरी बेटियों को परेशान और अपमानित करने में ही है क्या?
जिन लोगों का घर के बाहर वश नहीं चलता वो घर के अंदर इसी तरह शेर बनते हैं।”
इतना ही नहीं, नेहा सिंह राठौर अपने ऊपर राजद्रोह की धाराओं की परवाह किये बिना सोशल मीडिया के माध्यम से और भी ज्यादा मुखरता से अपनी बात कह रही हैं। पहलगाम आतंकी घटना के ठीक एक दिन बाद एक बीएसफ जवान की गलती से सीमा पार चले जाने पर पाक सैनिकों के हत्थे जाने पर ध्यान दिलाते हुए नेहा सिंह ने देश का ध्यान आकृष्ट कराते हुए लिखा है, “बीएसएफ़ के जवान पूर्णम साहू एक सप्ताह से पाकिस्तान के क़ब्ज़े में हैं। उनकी पत्नी गर्भवती हैं और अपने पति को वापस लाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।
उनका साथ दीजिये…उनकी आवाज़ बनिये।
ये काम हमें और आपको ही करना होगा…
…भाजपा और आईटी सेल के पास गाली-गलौज़ के दूसरे काम हैं।”
नेहा सिंह की हिम्मत के पीछे देश के बदलते मूड में छिपी है, और उनके ट्वीट, गीत और फेसबुक पोस्ट लाखों की संख्या में लाइक, शेयर हो रहे हैं। ऐसा मालूम होता है कि पिछले 11 वर्षों में पहली बार मोदी सरकार के पास से राष्ट्रवाद का झंडा छिन चुका है। कश्मीरी छात्रों को देश भर में प्रताड़ित करने और खदेड़ने की हिंदुत्ववादी खेमे की कोशिशों का खुलकर विरोध किया जा रहा है, क्योंकि कश्मीर में देश भर से आये पर्यटकों की मुंहजुबानी के किस्से पूरे देश में देखे जा रहे हैं।
पहलगाम आतंकी हमले के दिन ही श्रीनगर में इस घटना के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन और उमर अब्दुल्ला की राज्य सरकार के द्वारा कल विधानसभा का विशेष सत्र भी इस तथ्य की गवाही दे रहा है कि समूचा कश्मीर आज के दिन देश के साथ न सिर्फ एकजुट है, बल्कि शेष भारत से कहीं अधिक इस घटना पर अफ़सोस कर रहा है। इसके उलट, विपक्ष जब सरकार से इस मुद्दे पर संसद का विशेष सत्र आहूत करने की मांग कर रहा है तो सरकार इसे अनसुना करती जा रही है।
ऐसा जान पड़ता है कि भाजपा सरकार ने इस घटना को हल्के में ले लिया। उसे लगा कि अपने आईटी सेल और गोदी मीडिया की मदद से वह अपना नैरेटिव साधने में कामयाब रहेगी। शायद यही वजह थी कि दिल्ली या कश्मीर जाकर इस आतंकी हमले पर अपना वक्तव्य देने के बजाय पीएम नरेंद्र मोदी ने बिहार की एक सार्वजनिक सभा में इसे जारी करने का मन बनाया। अब सभी को पता है कि देश में अगला चुनाव बिहार में है, और सारे घटनाक्रम और पिछले 11 वर्षों के भाजपा के इतिहास को देखने के बाद आम लोग इसे चुनावी भाषण से ज्यादा अहमियत नहीं दे रहे।
भाजपा के लिए सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि अभी तक जिन उपायों को आजमाकर वह वांछित नतीजे हासिल करने में कामयाब रही थी, इस बार हर संभव कोशिश के बावजूद वे काम नहीं आ रहे। इसकी सबसे बड़ी वजह जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि इस बार की चोट सीधे मध्य-अभिजात वर्ग के परिवारों को पहुंची है, इसलिए हल्के राजनीतिक बयानों की कलई झट से खुल जा रही है। नतीजा, आक्रोश और अविश्वास कम होने के बजाय उल्टा बढ़ रहा है।
उदाहरण के लिए, जैसे ही सर्वदलीय बैठक के दौरान सरकारी पक्ष की यह दलील सामने आई कि बैसरण घाटी अप्रैल माह में आम लोगों के लिए नहीं खुली होती, सोशल मीडिया में इस तथ्य को लेकर जोरदार चर्चा होने लगी। कई लोगों ने गूगल मैप के हवाले से स्क्रीन शॉट डालकर बताना शुरू कर दिया कि फला परिवार तो अप्रैल क्या 3 महीने पहले भी बैसरण घाटी की अपनी वीडियो और तस्वीरें गूगल मैप पर डालकर टिप्पणी कर रहा था। आखिर जिस बैसरण घाटी को भारत के स्विटज़रलैंड के नाम से जाना जाता है, और हर टूर ऑपरेटर के द्वारा अपने कार्यक्रम में स्थान दिया जाता है, उसके बारे में आखिर इतना बड़ा झूठ खुद सरकार कैसे कह सकती है?
आम लोगों को फिर यह बात भी समझ नहीं आ रही है कि सरकार को यदि नेहा सिंह के वीडियो को पाकिस्तानी मीडिया के द्वारा दिखाए जाने पर अगर इतनी ही आपत्ति है तो गोदी मीडिया के सिरमौर, रिपब्लिक भारत पर बीजेपी के प्रवक्ता और पाकिस्तान से आमंत्रित व्यक्ति को आपस में मुर्गा लड़ाने की इजाजत क्यों दी जा रही है? बता दें कि रिपब्लिक भारत नामक न्यूज़ चैनल पर एंकर अर्नब गोस्वामी, बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया के खिलाफ पाकिस्तानी व्यक्ति के द्वारा गोबर खाने की बात करता है, लेकिन अर्नब गोस्वामी पूरी ख़ामोशी के साथ इसे होने दे रहा है। इतना ही नहीं पूर्व सेनाध्यक्ष और सीडीएस, स्वर्गीय बिपिन सिंह रावत के खिलाफ पाक प्रवक्ता की अभद्र और बेहद अपमानजनक टिप्पणी के बावजूद अर्नब गोस्वामी उसे चलने देता है।
कई जानकारों का मानना है कि पाकिस्तानी प्रवक्ता की इन टिप्पणियों को बेरोक-टोक जारी रख असल में रिपब्लिक भारत भारतीय दर्शकों के भीतर घृणा को बढ़ाने का नायाब तरीका तलाश रहा है। क्या भारत सरकार नेहा सिंह, डॉ. मेडुसा या 4PM न्यूज़ के किसी भी वीडियो और न्यूज़ की तुलना रिपब्लिक भारत के उक्त कार्यक्रम से कर सकती है?
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने 26 अप्रैल को ही इस मुद्दे को गंभीरता से उठाते हुए सरकार से मांग की थी कि देश के खिलाफ बयान देने वालों को अपना मंच प्रदान करने वाले गोदी मीडिया पर सरकार लगाम लगाये, लेकिन मोदी सरकार ने इसकी बजाय देश की चेतना को जागृत करने वाली साहसी बेटियों पर ही राजद्रोह का आरोप मढ़ दिया है।
डॉ. मेडुसा ने अपने जवाब में लिखा है, “पहलगाम में हुए नृशंस आतंकवादी हमले पर सरकार से सवाल पूछते वीडियो और ट्वीट के संदर्भ में मैं यह स्पष्टीकरण देना चाहती हूं:
मेरे द्वारा किए गए ट्वीट और बनाए गए वीडियो में आतंकवादी/आतंकी शब्द सिर्फ़ और सिर्फ़ पाकिस्तान द्वारा समर्थित और प्रायोजित आतंकवादियों के लिए है, जिन्होंने पहलगाम में धर्म पूछकर भारतीयों की निर्मम हत्या को अंजाम दिया। इन सभी आतंकवादियों की और ऐसे पाकिस्तान समर्थित हमले की जितनी निंदा की जाए कम है। भारत की अस्मिता और अक्षुण्णता के लिए ऐसी विषम परिस्थिति में हम सभी को एकजुट रहने की सबसे ज्यादा आवश्यकता है। मेरा हर ट्वीट, हर वीडियो इसी बात को बार बार दोहराता है और दोहराता रहेगा।
मुझे अत्यंत दुःख है कि एक शिक्षक होते हुए भी मैं यह समझा नहीं पाई कि मेरा आशय क्या था। भाषा विज्ञान की डिग्री रखते हुए भी मेरी भाषा इतनी साफ नहीं हो पाई कि मेरे देशवासियों तक मेरा संदेश सीधा पहुंचे। देश में एकता और शांति का संदेश। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे संविधान द्वारा कहे गए मेरे दायित्वों का पूर्ण श्रद्धा से निर्वहन करते हुए मुझे पाकिस्तान से जोड़ा जायेगा। इससे मेरी और मेरे विश्वविद्यालय की आत्मा पर चोट लगी है, हमारी छवि धूमिल हुई है। मेरी देशभक्ति पर सवाल खड़ा हुआ है, मुझे इस बात का खेद है कि मेरे शब्दों के अर्थ का अनर्थ हुआ है और आपको दुख पहुंचा है।
मैं कल भी अपने देश और देश के लोगों के साथ खड़ी थी। आज भी हूं, और मरते दम तक रहूंगी।
जय हिंद। जय संविधान।”
राहत और संतोष की बात है कि देश की इन जागरूक बेटियों के साथ देश एकजुट हो रहा है, और समर्थन में आवाजें बढ़ती जा रही हैं।
(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)