मशहूर दास्तानगो महमूद फारूक़ी और पूनम गिरधानी ने सुनाई ‘दास्तान-ए-रेत-समाधि’

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नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित इकलौते हिन्दी उपन्यास ‘रेत-समाधि’ के साथ एक और उपलब्धि जुड़ गई है। मशहूर दास्तानगो महमूद फ़ारूक़ी और पूनम गिरधानी ने शनिवार शाम गीतांजलि श्री के इस बहुचर्चित उपन्यास की कहानी दास्तान के रूप में पेश की। यह आयोजन राजकमल प्रकाशन के कृति-उत्सव के तहत इंडिया हैबिटेट सेंटर में हुआ। इस दौरान लार्ड मेघनाद देसाई, शर्मिला टैगोर, विशाल भारद्वाज, रेखा भारद्वाज,  अशोक वाजपेयी, सुधीर चन्द्र, रवीश कुमार समेत बड़ी संख्या में लेखक, साहित्यप्रेमी, श्रोता मौजूद रहे।

‘दास्तान-ए-रेत-समाधि’ शुरू होने के ठीक पहले, आयोजन में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए गीतांजलि श्री ने कहा, “रेत समाधि पर दास्तानगोई के इस आयोजन से मुझे बहुत ख़ुशी है। मैंने कहानी लिखकर बताई है, उसे बोलकर बताने में अलग ही मज़ा पैदा होगा। अपने फ़न में माहिर महमूद फ़ारूक़ी इसे कर रहे हैं, बहुत बड़ी बात है। ज़रूर कुछ नया होगा, कहानी के परिवेश और संदर्भ को वे अपने ख़ास कलात्मक ढंग से रचेंगे। रचनात्मकता की अलग एक यात्रा यह होगी। उपन्यास को नई सांसें मिलेंगी।”

दास्तान की शुरुआत करते हुए महमूद फ़ारूक़ी ने सबसे पहले ‘रेत-समाधि’ पर दास्तान बनाने के अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा, “मुझे बहुत खुशी है कि ‘रेत-समाधि’ पर दास्तान बनाने का मुझे मौका मिला। इसके लिए मैं राजकमल प्रकाशन और गीतांजलि जी दोनों का बहुत शुक्रगुजार हूं। बेहद बारीकी से बुने गए इस उपन्यास को दास्तान में ढालना वाकई बहुत मुश्किल था। दास्तानगोई के अपने बीस साल के सफर में इसके बराबर का चुनौतीपूर्ण काम शायद ही कोई रहा हो।”

महमूद फ़ारूक़ी ने कहा, “रेत-समाधि की कहानी दूसरे उपन्यासों से बहुत अलग है। यह जिस तरह से परत-दर-परत अपनी कहानी को खोलता है, ऐसी बारीक कहानी की दास्तान पर काम करते हुए मैं काफी घबरा रहा था। हमें इसके लिए ऐसी कोई राह चाहिए थी कि जिन श्रोताओं ने किताब पढ़ी हो उनको भी अच्छा लगे और जिन्होंने नहीं पढ़ी हो उनको भी कहानी समझ में आए। हमारी कोशिश यही है कि इस उपन्यास की अस्मिता और दास्तान सुनने वालों की जिज्ञासा बनी रहे। वो चीज जिसकी बुनावट ऐसी हो कि जिसे खामोशी से अकेले में पढ़ा जाए, उस चीज को बाआवाजे-बुलंद मजमे में सुनाना और उसके लिए तैयार करना बिलकुल विपरीत धाराएं हैं। इन विपरीत धाराओं में चलना एक चुनौती थी, इस चुनौती में हम कितना कामयाब हुए हैं यह तो आप श्रोता दास्तान सुनने के बाद बताएंगे।”

इस अवसर पर राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा, “रेत-समाधि हमारे समय की महत्वपूर्ण कृति है। यह महाभारतीय रचना है। कहा जा सकता है कि जो परिवार में है, जो साहित्य में है, जो हमारे आसपास है, वह रेत-समाधि में है। कृति या कृतिकार पुरस्कार-सम्मान मिलने से महत्वपूर्ण नहीं हो जाते, सम्मान उन्हें पहचान देते हैं। उनकी ओर ध्यान आकर्षित कराते हैं। अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार ने इस महान रचना की ओर सारी दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया है। विश्व की प्राय: सभी प्रमुख भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है या हो रहा है। और यह भूरि-भूरि प्रशंसा पा रही है।” 

उन्होंने कहा, “मुझे इस बात का गर्व है कि मैं रेत-समाधि के लेखन और प्रकाशन से लेकर अब तक की यात्रा में जुड़ा रहा हूं। मैं इसके एकदम शुरुआती पाठकों में से एक हूं। ‘दास्तान-ए-रेत-समाधि’ इसकी कामयाबी का एक और पड़ाव है। प्रकाशन के बाद ही महमूद फ़ारूक़ी ने इसे पढ़ा और पसंद किया। आज हम उनकी बुलंद आवाज में रेत-समाधि का नया पाठ सुनने जा रहे हैं। निश्चय ही यह हम सबके लिए यादगार अनुभव का क्षण है।”

(जनचौक की रिपोर्ट)

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