डोनाल्ड ट्रम्प की भारत को धमकी और उसके निहितार्थ

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डोनाल्ड ट्रम्प ने अमरीका का राष्ट्रपति बनने के पहले ही पूरी दुनिया के देशों को धमकाना शुरू कर दिया था। जो देश उसकी “अमरीका पहले की नीति” को नहीं मानेगा, उस देश को गंभीर अंजाम भुगतने होंगे। ट्रम्प ने उन देशों को फतवा सुनाया;

1. अमरीकी आयात पर करों में कमी करो।

    2. डॉलर के अलावा दूसरी मुद्रा में व्यापार करने की बात भी मत सोचना।

    3. अमरीका से आयात बढ़ाना होगा।

    जो देश ऐसा नहीं करेगा, उस पर भारी कर लगाए जाएंगे और प्रतिबंध भी।

    ट्रम्प ने सत्ता संभालते ही अपने फतवों को अंजाम देना शुरू किया। चीन, कनाडा और मैक्सिको पर कर लगाए। पनामा को नहर छीनने की धमकी दी। यूरोपियन यूनियन पर कर लगाने की धमकी दिया। ग्रीनलैंड को अमरीका के कब्जे में करने का फरमान सुनाया। रूस को यूक्रेन युद्ध तुरंत बंद करने को कहा, अन्यथा भारी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। इजराइल और गाजा में शांति बहाल करने की बात कहीं। भारत को लताड़ते हुए कहा की यह “देश कर लगाने वाले देशों का राजा है”, अगर इसने कर कम नहीं किए तो इसे बुरे अंजाम भुगतने पड़ेंगे।

    सभी देशों ने अपने-अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए, ट्रम्प की इन धमकियों का जवाब दिया। चीन ने धमकी का जवाब धमकी से देने का निर्णय किया। चीन ने कुछ अमरीकी तकनीकी कंपनियों पर रोक लगाई, अमरीकी आयात पर कर बढ़ाए, गूगल वगैरह के खिलाफ एंटी-ट्रस्ट (anti-trust) का मुकदमा लगाया तथा नयी तकनीक में प्रयोग होने वाले दुर्लभ खनिज तत्वों के निर्यात पर हल्की रोक लगाई। कुल मिलाकर चीन ने ये बताया कि हम भी अमरीका का नुकसान कर सकते हैं, और ये अभी एक चेतावनी है।

    रूस ने धमकी मानने से इंकार किया और कहा कि हम अपने हितों को छोड़कर शांति करने को तैयार नहीं हैं। कनाडा और मैक्सिको ने भी झुकने से इंकार किया। यूरोपियन यूनियन के दो मुख्य देशों फ्रांस और जर्मनी ने जवाब दिया की हम बत्तख नहीं हैं जो डर से अपना सिर छुपाकर बैठ जाएंगे। हम अमरीका को जवाब देंगे। पनामा के राष्ट्रपति ने कहा कि पनामा नहर छीनने की बात अमरीका सोचना बंद करे, हम अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता से कोई समझौता नहीं करेंगे।

    हालांकि कुछ दिनों बाद अमरीका ने बताया कि पनामा नहर में अमरीका के नेवी के जहाजों को कर मुक्त आवाजाही की अनुमति मिल गयी है। पनामा नहर प्राधिकरण ने अगले दिन मीडिया को बताया कि ये अमरीकी सरकार द्वारा फैलाया गया झूठ है। हमने अमरीकी नेवी के जहाजों की पनामा नहर में आवाजाही को कर से मुक्त नहीं किया है। इस कर मुक्ति से अमरीका के लाखों-लाख डॉलर बचेगे।

    डेन्मार्क ने ग्रीनलैंड में अमरीका के और ज्यादा कब्जे को स्वीकृति दे दी है। डेन्मार्क के अनुसार ग्रीनलैंड पहले से ही अमरीका के प्रभाव में है, वहाँ पर अमरीका का एक सैनिक अड्डा मौजूद है। ट्रम्प ने यूक्रेन के राष्ट्रपति को बोला कि हम तुम्हारी मदद इस शर्त पर करेंगे कि तुम अमरीका को अपने देश के दुर्लभ खनिज तत्वों के मालिकाने की गारंटी करोगे। यूक्रेन जैसा युद्ध में बर्बाद और लाचार देश क्या ही कर सकता है? पहले अमरीका ने उसे युद्ध में झोंका अब गिद्ध की तरह उसकी लाश को नोच-नोचकर खाएंगा। यही अमरीका का असली चरित्र है। अमरीका शेक्सपियर के नाटक “वेनिस के सौदागर” के सूदखोर शाइलोक से भी दो हाथ आगे बढ़ गया जो अपने कर्जदार से सूद के बदले उसके मांस का टुकड़ा कटवाकर ले लेता था।

    बर्बाद, तबाह होने के बाद गाजा और इजराइल में युद्ध बंद करा दिया और आस-पास के देशों को बोला गया कि सभी देश इजराइल से अच्छे संबंध बनाने की कोशिश करे। अब ट्रम्प बोल रहा है कि गाज़ा को अमरीका अपने कब्जे में लेगा और फिर इसे विकसित करेगा। गाज़ा के निवासियों को किसी दूसरे देश में चले जाना चाहिए। इसका प्रतिरोध फिलिस्तीन कि सरकार ने कड़े शब्दों में किया।

    हमास ने कहा कि इजराइल, गाज़ा के साथ युद्ध में अपना एक भी उद्देश्य हासिल नहीं कर पाया है। हम गाज़ा को किसी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे। अबदेल घानी, जो गाज़ा का निवासी है उसने कहा कि हम अपनी जमीन तुम्हें नहीं बेचेंगे, रियल स्टेट डेवलपर।हम भूखे हैं, हम बेघर-बार हैं, हम निराश हैं, लेकिन समझौतापरस्त नहीं हैं। यदि ट्रम्प हमारी मदद करना चाहता है, तो आए हमारे लिए दुबारा गाज़ा को बसाये। इस इंसान के हिम्मत और जज्बे को सलाम है। इसे ही सच्चा इंसान कहते है। जुल्मो-सितम का विरोध करने के लिए दौलत और लावलसकर की ज़रूरत नहीं होती है, बल्कि अबदेल घनी जैसे जज्बे और हिम्मत की ज़रूरत होती है।

    सैनिक कब्जे के तहत लोगों का जबर्दस्ती और ताकत के दम पर विस्थापन, युद्ध अपराध कि श्रेणी में आता है, जो 1949 कि जेनेवा कन्वेन्शन (Geneva convention) के तहत प्रतिबंधित है। उपरोक्त तथ्य बता रहे हैं कि सभी देश अमरीका की हेकड़ी को नकार रहे हैं और अमरीका के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को अपने क्षेत्रों से नहीं गुजरने दे रहे हैं।

    इस पृष्ठभूमि के आलोक में हम दो बाते देखने का प्रयास करेंगे। अमरीका पूरी दुनिया के साथ दादागिरी का व्यवहार क्यों कर रहा है ? वह दुनिया से क्या चाहता है? दूसरी बात ये कि अमरीका की इस दादागिरी में भारत पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? और वह किस तरह जवाब दे रहा है?

    हम समझते हैं कि इस दादागिरी के पीछे अमरीका के तात्कालिक और दूरगामी दो उद्देश्य हैं। तात्कालिक अपने वित्तीय घाटे को कम करना है। दूरगामी दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनी अपनी नव-आर्थिक उपनिवेशवादी विश्व-व्यवस्था को यथास्तिथिपूर्ण बनाए रखना, यानी समय का पहिया एक ही जगह ठहरा रहे। क्या ऐसा कभी हुआ है? समय किसी के ठहराने से ठहरा है?

    अमरीका का वित्तीय घाटा वहाँ की संविधान की बनाई सीमा को पार कर चुका है। अमरीकी संविधान में ये प्रावधान है कि अगर एक हद से ज्यादा वित्तीय घाटा पहुँच गया तो सरकार को सत्ता में रहने की मंजूरी नहीं होगी। यह हद जनवरी 2024 में पार हो चुकी है। अमरीका के 16 फीसदी नौजवान गरीबी में पलकर जवान होते हैं। बेरोजगारी अपने चरम पर है, छात्रों पर कर्जे का अंबार है, बड़ी संख्या में लोगो की स्वाथ्य सेवाओं तक पहुँच नहीं है।

    ऊपर से अमरीकी एकाधिकारी वित्तीय और तकनीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ करों में कटौती कराती रहती हैं। जिसका मतलब है कि गरीबों पर होने वाले सरकारी खर्चों पर और ज्यादा कमी करनी पड़ेगी। विडम्बना ये है कि अमरीकी सरकारें इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नाराज नहीं कर सकती; क्योंकि इन्हीं के पैसे से सरकारें बनती हैं। इसलिए अमरीका चाहता है कि बाकी देश उसके समान का ज्यादा आयात करें उनपर कर में कमी करें और डॉलर की सत्ता बनी रहे।

    दूसरा और दूरगामी उद्देश्य है दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनी अमरीकी आर्थिक-नव उपनिवेशवादी विश्व व्यवस्था। जिसके तहत अमरीका वित्तीय, तकनीक और सैनिक प्रभुत्व कायम कर रखा है और जो 1990 की नयी आर्थिक नीतियों के बाद मुक्कमल हो गया था। अब चीन और रूस इस सैनिक और वित्तीय-तकनीकी अमरीकी उपनिवेशवाद को चुनौती दे रहे हैं। अमरीका इस चुनौती को किसी भी हद तक जाकर खत्म करना चाहता है और दुनिया में यथास्थिति (stagnation) बनाए रखना चाहता है।

    भारत इस नाटक में किस भूमिका में है और किन समस्याओं से घिरा है? अब हम इसी पर अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे।

    भारत के जीडीपी में उत्पादन (Manufacturing) की हिस्सेदारी 12.5 फीसदी के आसपास है। मेक इन इंडिया का नारा धरा का धरा रह गया। आयात-निर्यात घाटा अपने चरम पर है। डॉलर की तुलना में रुपया मोदी जी के चंद्रयान पर बैठकर रॉकेट की गति से गिरता जा रहा है। बाहरी कर्जा जीडीपी का 5.6 फीसदी के आसपास है। एआई जैसी नयी तकनीक बनाने की क्षमता नहीं है। बाजार में खरीददारी का स्तर बहुत गिर गया है। शेयर बाजार और उत्पादन के क्षेत्रों से विदेशी निवेशक पैसा निकालकर भाग रहे हैं।

    भुखमरी में 125 देशों में से 111 वें नंबर पर है। बेरोजगारी पिछले 50 सालों में अपने चरम पर है। भ्रष्टाचार, तानाशाही और अराजकता गगन चूम रही है। अपने पड़ोसी देशों बांगलादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और चीन से रिश्ते बहुत खराब हालात में हैं। दूसरे गरीब देशों की आर्थिक खेमेबंदी में शामिल होने से डरते है कि कहीं दूसरे देश अपने समान से हमारा बाजार न पाट दे। क्योंकि हमारा उत्पादन तो न के बराबर है। भारत के बाजार में मंदी किसी बाहरी वजह से या कुछ समय के लिए नहीं है, बल्कि भारत एक संरचनात्मक ठहराव में फंस चुका है, जो निरंतर गहराता ही जाएगा।

    इस स्थिति में भारत के सामने क्या विकल्प बचता है? एक ही विकल्प है कि अमरीका से वित्त और तकनीक ले। उनके लिए कनिष्ठ साझीदार के तौर पर काम करे। अपनी सैनिक सुरक्षा के लिए अमरीका का मुंह तांके और अमरीका की विश्व साम्राज्यवादी व्यवस्था का मुहरा बनकर काम करे। भारत आर्थिक, राजनीतिक, सामरिक, डिप्लोमेसी और भू-राजनीतिक क्षेत्रों में अमरीका के सामने घुटने टेक चुका है।

    ये गुलामी कुछ वक्तव्यों से स्पष्ट हो जाती है। जब ट्रम्प ने भारत को करों का राजा कहा तो भारत ने कोई जवाब नहीं दिया। अमरीका के भारतीय राजदूत ने कहा कि ट्रम्प का भारत को लताड़कर (bluntly) बात करना सही है। इस तरह बात की शुरुआत करने से आगे बात करने का एक अनुकूल वातावरण बनता है और अच्छे रिश्ते बनते हैं। यानी पहले दो थप्पड़ रसीद करो और फिर प्यार से बैठाकर अपनी बात मनवाओ। बल्कि भारत के आयात-निर्यात विभाग ने बोला कि हमें अमरीका की धमकियों पर “प्रतिक्रियावादी जवाब नहीं देना है, सकारात्मक क्रिया करनी है” और अमरीका से आने वाले सामानों पर कर घटाकर कम कर दिया।

    अमरीका का लताड़ना और भारत का सकरात्मकता से जवाब देना। इसी एक वाक्य में भारत-अमरीका की विदेश नीति और रिश्ते की कुंजी है। इसी रिश्ते को दूसरी बाते भी पुष्ट करती हैं। ब्रिक्स देशों ने डॉलर की जगह दूसरी मुद्रा बनाने और उसमें व्यापार करने की सहमति बनाई। ट्रम्प ने फरमान सुनाया कि ब्रिक्स का जो भी देश डॉलर की जगह दूसरी मुद्रा का प्रयोग करेगा, उसे 100 फीसदी कर और दूसरे भयानक अंजाम भुगतने पड़ेंगे। अन्यथा सभी देश इसकी गारंटी करें। हमारे विदेश मंत्री जयशंकर ने तुरंत गारंटी दी कि डॉलर की जगह दूसरी मुद्रा में व्यापार करने की हमारी कोई मंशा नहीं है और न ही हमें डॉलर से कोई दिक्कत है। भारत के तात्कालिक रिजर्व बैंक गवर्नर, शक्तिदास कान्त ने भी वक्तव्य दिया कि डॉलर की जगह दूसरी मुद्रा में व्यापार करने की हमारी कोई मंशा नहीं है।

    जब अमरीका ने रूस के तेल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जिसमें उत्पादन, ढुलाई, बीमा, खरीददारी आदि सब पर रोक हैं। इसके बाद भारत का रूस से तेल खरीदना बंद हो गया। हमारे ऊर्जा मंत्री बोलते है कि इससे हमें नए विकल्प मिलेंगे, अब हम अमरीका से ज्यादा तेल खरीदेंगे। क्या लोग है जबर्दस्ती को विकल्प बोलते हैं।

    देश की नाक, गौतम अडानी पर अमरीका ने फ़्रॉड का मुकदमा किया है। ट्रम्प के शपथ समारोह में मोदी को नहीं बुलाया लेकिन मुकेश अंबानी और उसकी पत्नी पहुँच गए। उसी के यहाँ जो ऐलन मस्क के रहमोकरम से सत्ता में आया है तथा जिसके खिलाफ अंबानी भारतीय कोर्ट में अर्जी लगा रहे थे कि मस्क भारत में सैटेलाइट संचार को हमसे छीन रहा है और अपना एकाधिकार स्थापित कर रहा है। जब मस्क चाहता था कि भारत सैटेलाइट संचार का बंटवारा करे और अंबानी चाहता था कि बोली लगे और बिक्री हो। लेकिन भारत सरकार ने बंटवारा किया था। जो मस्क के फायदे में था और अंबानी पैर पटककर रह गया था।

    शपथ ग्रहण में जाना बताता है कि अंबानी ने मस्क की कनिष्ठता स्वीकार कर ली। अब उसका प्यादा बनकर ही मुनाफा कमाया जा सकता है तो यही सही। साथ ही एनवीडिया (NVIDIA) के साथ व्यापार का समझौता कर आए। बेजमीरी, बेईमानी और बेईज्जत, यही हमारे पूँजीपतियों का चरित्र है।

    भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकर अजीत डोभाल पर अमरीका में जाने पर रोक लगाई है। देश के गृहमंत्री अमित शाह को अमरीकी नागरिक की हत्या में शामिल बताया है।

    अमरीका ने नया चिप कानून बनाकर दूसरे देशों को उन्नत चिप के निर्यात पर रोक लगा दी। भारत भी चिप के निर्यात से बाहर कर दिया गया। इस पर इलेक्ट्रॉनिक्स और आइटी मंत्री अश्वनी वैष्णव कहते हैं कि हम एनवीडिया (NVIDIA), जो अमरीकी कंपनी है, की मदद से देशी जीपीयू (GPU) बनाएँगे। बनाए तो नहीं गए, अब उस कंपनी से 1000 जीपीयू खरीद रहे हैं।

    इस सब के बावजूद जो किसी भी शर्मदार इंसान को सबसे नागवार गुजरने वाली बात है। वह राहुल गांधी के शब्दों में ये है कि हमारे विदेश मंत्री ट्रम्प के शपथ समारोह के लिए मोदी को बुलाने का आमंत्रण मांगते रहे लेकिन ट्रम्प ने नहीं बुलाया। इसको राहुल ने बेहद शर्मनाक बात बताई है और कहा कि हम भविष्य में ऐसी बेइज्जती नहीं होने देंगे।

    लेकिन बात यहीं तक होती तो हम लोग खून का घूंट पीकर रह भी जाते। डूबकर मरना तो तब हुआ जब मोदी ने ट्रम्प से फिर फरवरी में मिलने की गुहार लगाई और ट्रम्प ने मना कर दिया। फिर ये हुआ कि एकबार फोन पर ही बात करने का मौका दे दिया जाए। खैर फोन हुआ। ट्रम्प ने सीधे बोला कि तुम्हारा देश करों का राजा है, पहले कर कम करो, तभी अच्छे रिश्ते बनेंगे। दूसरी बात बोला कि पहले अमरीका के सैनिक उपकरण खरीदने की गारंटी करो और अमरीकी फार्मर्स के लिए अपने बाजार तथा खेती को खुला करो। फिर मिल सकते हैं। हमारे प्रधानमंत्री, जो विश्व गुरु है और विश्व बंधुत्व में विश्वास रखते है, उन्होंने इन बातों कि हँसते-हँसते हामी भर दी। और कहा कि मेरे प्यारे दोस्त ट्रम्प ने मेरा दिल गदगद कर दिया बात करके। वाह मोदी जी दिल हो तो ऐसा। सही है! महान लोग ऐसे ही होते हैं कोई कितना भी बेइज्जत करे, वे उनको हमेशा प्यार ही करते हैं।

    इस गदगद कर देने वाली फोन कॉल के चंद दिनों के भीतर ही फोन पर हुए वादों को भारत सरकार अमलीजामा पहनाने लगी। मोदी 12-13 फरवरी को अमरीका गए। ट्रम्प से मिले। मिलने के बाद ट्रम्प ने बताया की मैंने भारत के प्रधानमंत्री, मोदी को साफ कर दिया है कि भारत को करो से बाहर नहीं रखा जाएगा और ज़ोर देकर बोल दिया कि इस मुद्दे पर मुझसे कोई भी तर्क-वितर्क नहीं कर सकता।

    इसके आगे ट्रम्प ने कहा कि अमरीका भारत को खरबों रुपए के सैनिक उपकरण बेचेगा। वहीं मोदी ने कहा कि ट्रम्प अमरीका को दुबारा महान बनाएगे यानि मागा (MAGA)। इसी तर्ज पर मोदी ने भी नारा दिया मिगा (MIGA) यानि भारत को दुबारा महान बनाएगे। नकलचीपन की हद हो गयी। लेकिन ये नहीं बताया कि कैसे महान बनाएगे? खिसयानी बिल्ली खंबा नोचे।

    भारत को महान बनाने की योजना ट्रम्प ने मोदी को थमा दी। जिसके अनुसार द्विपक्षीय व्यापार समझौता करना तय हुआ। जो विश्व व्यापार संगठन के नियम-क़ानूनों का उलंघन करता है।

    1. इसके तहत 2030 तक 41,07,500 करोड़ रुपए का व्यापार उद्देश्य तय हुआ।

    2. अमरीका से एफ़-35 लड़ाकू विमान और दूसरे सैनिक उपकरण खरीदे जाएंगे।

    3. गैस और तेल यानि ऊर्जा क्षेत्र में समझौते किए जाए।

    4. सिविल न्यूक्लियर समझौते किए जाएंगे।

    5. गैर-कानूनी प्रवासी भारतीयों को वापस बुलाया जाएगा।

    6. भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा पर काम किया जाएगा।

    7. नासा और इसरो दोनों मिलकर धरती की सतह का नक्शा बनाएगे और अन्तरिक्ष में दूसरे समझौते करेंगी।

    8. अमरीकी आयात पर करो में कटौती की जाएंगी।

      इन सारे समझौतों को भारत सरकार मोदी के अमरीका जाने के पहले ही अमलीजामा पहना चुकी थी। पैट्रोलियम और गैस मंत्री हरदेव पुरी ने कहा की ट्रम्प के ऊर्जा क्षेत्र में किए गए बदलाव मेरे कानों में संगीत की तरह बजते हैं। पुरी ने ट्रम्प के ऊर्जा बदलावों को ध्यान में रखते हुए भारतीय ऊर्जा अधिनियम में बदलाव कर दिये। तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास ) संशोधन विधेयक 2024 पेश किया गया जिसके तहत बहुराष्ट्रीय कंपनिया भी इस क्षेत्र में निवेश कर सकेगी। इन कंपनियों में चेवरॉन, एक्सोन्मोबिल (ExxonMobil) और टोटल एनर्जी जैसी कुख्यात कंपनियाँ शामिल हैं। भारत की चार तेल कंपनियों पर अमरीका द्वारा प्रतिबंध लगा दिये गए।

      भारत की “राष्ट्रीय थर्मल पावर कार्पोरेशन” (NTPC) अमरीकी कंपनी “क्लीन कोर थोरियम एनर्जी” के साथ मिलकर न्यूक्लियर प्लांट लगाएंगी। अब सरकार ने इस क्षेत्र को देशी-विदेशी निजी पूँजीपतियों के लिए खोल दिया है। जो यूरेनियम की जगह थोरियम से चलेंगे। ये न्यूक्लियर प्लांट पर्यावरण और इंसान दोनों के लिए खतरा है। लेकिन नयी तकनीक, जिससे भारत को बाहर कर दिया गया है, एआई, डिजिटल तकनीक, सर्वर डाटा केंद्र, के लिए क्लीन एनर्जी की आवश्यकता पूरी की जाएंगी।

      वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने बजट पेश करते हुए घोषणा की कि राष्ट्रीय थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (एनटीपीसी ) न्यूक्लियर-ऊर्जा पर 45 खराब रुपए खर्च करेगी तथा न्यूक्लियर पावर प्लांट लगाने के क्षेत्र में तुरंत प्रभाव से अधिनियमों में बदलाव किए गए। जो भारत-अमरीका 123 सिविल न्यूक्लियर समझौते के तहत आते हैं। जिनमे परमाणु ऊर्जा अधिनियम और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियमों में बदलाव किए गए हैं। जो देशी-विदेशी पूंजीपतियों को खुली छूट और गैर-ज़िम्मेदारी का परमिट देते हैं।

      अमरीकी व्यापार प्रतिनिधि के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा नामित जैमीसन ग्रीर ने गुरुवार को अमरीका के किसानों के लिए विदेशी बाजार तक पहुंच हासिल करने की वकालत की। ग्रीर ने अपनी पुष्टिकरण सुनवाई में सीनेट की वित्त समिति को बताया कि “मेरे लिए, इसका मतलब है कि हमें वहां जाकर बाज़ार तक पहुंच हासिल करने की ज़रूरत है जहां बाजार बंद हैं।” ग्रीर ने भारत और टर्की को ऐसे बाज़ारों के रूप में उद्धृत किया जिन्हें “संयुक्त राज्य अमरीकी और उसके कृषि उत्पादों के लिए खोलने की आवश्यकता है”। आटोमोबाइल, फार्मासुइटिकल, स्टील, एल्युमिनियम और सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में 25 से 47 फीसदी तक भारतीय उत्पादों पर कर ठोक दिये गए।जिससे भारत की रही-सही अर्थव्यवस्था भी चौपट हो जाएंगी।

      रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने समझौता किया है कि अमरीका-भारत सैनिक क्षेत्र में राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में एक-दूसरे को सेवाओं का आदान-प्रदान करेंगे। भारत, चीन के मामले में अनुकूलित सुरक्षा (adaptive defence) पर ज़ोर देता है। यानी समय के साथ रणनीति विकसित करते जाएंगे और चीन के प्रति विरोध करने का (dissuasive) रुख रखना है। अमरीकी सैनिक सहयोगियों आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ भी सैनिक संधियाँ की गयी हैं।

      रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके समकक्ष पीट हेगसेथ ने गुरुवार को एक महत्वाकांक्षी एजेंडे पर काम करने पर सहमति जताई, जिसमें भारत- अमरीकी रणनीतिक साझेदारी को और बढ़ावा देने के लिए परिचालन, खुफिया, रसद और औद्योगिक सहयोग के क्षेत्र शामिल हैं। हिन्द-प्रशांत और पश्चिम एसिया में भारत की भूमिका बढ़ाने और हिन्द-प्रशांत कि सुरक्षा कि पूरी ज़िम्मेदारी लेने पर समझौता हुआ। 10 सालों के लिए समझौता हुआ जिसके तहत भारत-अमरीका सैनिक साझेदारी को ज्यादा गहरा करेंगे। जिसके तहत भारत पश्चिम एसिया, हिन्द-प्रशांत और दूसरे देशों में अपने सैनिक तैनात करेगा।

      अमरीका चीन के साथ झगड़े वाले प्रशांत महासागर को हिन्द-प्रशांत बोलता है ताकि भारत को चीन के खिलाफ अपने झगड़े में बेमतलब शामिल कर सके। भारत ने एक बार भी एतराज नहीं किया कि भाई हमारा नाम उस महासागर से क्यों जोड़ रहे हो। हमारा वहाँ कोई मतलब नहीं है। भारत, अमरीका और यूएई के साथ मिलकर भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा बना रहा है।

      अमरीका ने 104 प्रवासी भारतियों को वापस लौटाया। जिनके हाथों में हथकड़ियाँ पड़ी हुई थी और सैनिक जहाज से भेजे गए। इससे पहले हमेशा सिविल जहाज से भेजे जाते थे। यानी भारत की आम मेहनतकश जनता अपराधी है। क्या मोदी भारतीयों के इसी सम्मान पर गदगद हो रहे है? भारतीय प्रवासियों को कोस्टा रिका भेजा जा रहा है। जहां पर उनसे बेहद निचले दर्जे के काम करवाए जाएंगे और उनके बारे में कोई जानकारी भारत को नहीं दी जा रही है।

      उपरोक्त तथ्य चीख-चीखकर भारत की गुलामी की दास्तां ब्यान कर रहे हैं। भारत अमरीका का सैटेलाइट बन चुका है। जहां-जहां अमरीका गति करता है, वहीं-वहीं भारत उसके पीछे-पीछे चलता है। यह प्रक्रिया 1990 से चल रही है। ट्रम्प बस हमारी आजादी की मौत पर आखिरी हस्ताक्षर कर रहा है। ताबूत में आखिरी कील ठोक रहा है। विदेश नीति, अर्थव्यवस्था, सामरिक, भू-राजनीतिक, अन्तरिक्ष राजनीति, शिक्षा आदि सभी क्षेत्रों में ये गुलामी सिर चढ़कर बोल रही है।

      इस नयी गुलामी की जड़ों में क्वाड (QUAD), समृद्धि के लिए हिन्द-प्रशांत आर्थिक ढांचा (Indo-Pacific Economic Framework for Prosperity) और 1990 की नयी आर्थिक नीतियाँ हैं।

      निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते हैं कि भारत में संरचनात्मक ठहराव है। जो भारत की सभी जातियों को संपत्ति का सही बंटवारा न होने, मजदूरों और आदिवासियों की बेतहाशा लूट की वजह से है। भारत के पूंजीपति और उनकी सरकारों ने इस ठहराव से निकालने का उपाय परनिर्भरता में ढूंढा है। अमरीका और जी-7 देशों पर निर्भरता में। ये ट्रम्प के विश्व नकटा पंथ में शामिल हो गए है जिनकी कोई लाज-शर्म, मानवता नहीं है। उनकी तकनीक, वित्त और सैनिक सुरक्षा में अपना एक सुरक्षित आशियाना बनाना चाहता है। जिसके लिए भातीय पूंजीवाद अमरीका की कनिष्ठता स्वीकार कर चुका है।

      भारत की राजनीतिक सत्ता भी बेशर्मी की हद तक अमरीका के सामने घुटने टेक चुकी है। और अपने पड़ोसियों से रिश्ते खराब करती जा रही है। यानी भू-राजनीति, आर्थिक और सामरिक तथा डिप्लोमेटिक मामलों में अमरीकी साम्राज्यवाद के साथ नाभि-नाल जुड़ चुकी है और उसकी दुनिया की यथास्तिथिवादी नीतियों में सहायक बन चुकी है। जिनसे अमरीका अपने तात्कालिक आर्थिक संकट और दूरगामी अमरीकी साम्राज्यवाद के संकट से उभरना चाहता है।

      लेकिन समय की गति का पहिया अमरीका से रोका नहीं जा रहा है। ऐसा हो भी नहीं सकता। अगर ऐसा हुआ तो वो प्रकृति के खिलाफ होगा। लेकिन विडम्बना यह है कि भारत इसी प्रकृति विरोधी विचारधारा के साथ खुद को नत्थी कर लिया है जिसमे ठहराव, गुलामी और हार के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा।

      (हरेंद्र कुमार का लेख)

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