यूपी की तस्वीर-1: निवेश के तमाम दावों के बावजूद लगातार गिरावट की ओर है सूबे का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर

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(ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट यानि एआईपीएफ ने उत्तर प्रदेश पर केंद्रित एक बुकलेट जारी की है। 20 पेज की इस बुकलेट में सूबे की अर्थव्यवस्था से लेकर नागरिकों के स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, कृषि, उद्योग समेत तमाम क्षेत्रों की गहरी पड़ताल की गयी है। अद्यतन आंकड़ों से भरपूर यह किताब मौजूदा उत्तर प्रदेश और उसकी स्थिति को समझने के लिहाज से बेहद कारगर दस्तावेज साबित हो सकती है। संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एसआर दारापुरी की ओर से जारी बुकलेट के लेखों को लिखने का काम आईपीएफ के संस्थापक सदस्य अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने किया है। ‘उत्तर प्रदेश एक नजर में’ शीर्षक से जारी इस बुकलेट को कई हिस्सों में बांटा गया है। जिसमें बैंकिंग और वित्तीय से लेकर मैनुफैक्चरिंग समेत सूबे के बजट तक कई हिस्से शामिल हैं। सूबे की अर्थव्यवस्था के संकट पर बाकायदा एक अलग से लेख है। इसकी उपयोगिता और उसके कंटेंट को देखते हुए जनचौक ने इसको श्रृंखलाबद्ध तरीके से प्रकाशित करने का फैसला लिया है। उसी के तहत पेश है पहली कड़ी-संपादक)

सूबे में मैन्युफैक्चरिंग की स्थिति

प्रदेश की जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी करीब 25 फीसद है जो कि हाल के वर्षों में करीब 28 फीसद थी, इस तरह मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी में गिरावट आई है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाइयों की संख्या की दृष्टि से (लगभग 90 लाख, 14.2 प्रतिशत कुल संख्या का) उत्तर प्रदेश का देश में प्रथम स्थान है। देश भर में करीब 11 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है इसमें उत्तर प्रदेश में 1.65 करोड़ है। रोजगार प्रदान करने में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम (एमएसएमई) सेक्टर का कृषि क्षेत्र के बाद दूसरा स्थान है। राष्ट्रीय स्तर पर एमएसएमई सेक्टर का जीडीपी में 8 प्रतिशत व मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादन में 45 प्रतिशत और निर्यात में 40 प्रतिशत योगदान है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एमएसएमई ईकाइयों के पुनर्जीवन और मजबूत बनाने की नीति के तहत 2017-22 अवधि में 253402 करोड़ लोन दिया गया। लेकिन अभी भी यह सेक्टर संकटग्रस्त स्थिति में है। प्रदेश में बुनकरी और सूती वस्त्र उद्योग 90 के दशक से ही संकटग्रस्त था, इसके बाद नोटबंदी, जीएसटी व लॉक डाउन ने इस सेक्टर की कमर तोड़ दी। इसके पुनर्जीवन के लिए लोन मुहैया कराने जैसे कदम नाकाफी हैं। तकनीक और बाजार की उपलब्धता सुनिश्चित करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। आजीविका के अन्य साधनों के अभाव से कुटीर उद्योगों में भी लोग जुड़े हुए हैं लेकिन जमीनी स्तर पर सर्वे में देखा गया है कि लोगों की आय में तेजी से गिरावट आई है।
उदाहरणार्थ इस सेक्टर के कुछ प्रमुख उत्पादों के संबंध में दी गई जानकारी इस सेक्टर की समस्या व जटिलता को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
अलीगढ़ में ताला उत्पादन के करीब 6400 मध्यम यूनिट और 3,000 कुटीर उद्योग हैं और इनमें करीब 2 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। देश का करीब 80 फीसदी ताला अलीगढ़ में ही बनता है। कई देशों में निर्यात भी किया जाता है। यहां का ताला उद्योग कारोबार करीब 4,000 करोड़ रुपये का है। लेकिन जीएसटी, नोटबंदी व कोरोना महामारी के बाद संकटग्रस्त है खासकर कुटीर उद्योग।
वाराणसी में बनारसी साड़ी का सालाना कारोबार 2400 करोड़ का है, इसमें प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सात लाख लोगों की आजीविका जुड़ी है। यह कारोबार भी संकटग्रस्त है।
प्रदेश में कालीन उद्योग में 15-20 लाख लोग जुड़े हैं। इसमें दो से ढाई लाख बुनकर व मजदूर शामिल हैं। भदोही जनपद में ही 800 से अधिक कालीन कारखानों में विभिन्न प्रांतों के करीब डेढ़ लाख से अधिक बुनकर काम करते हैं। बुनकरी कारोबार सर्वाधिक संकटग्रस्त है।
आगरा में करीब सात हजार छोटे जूता कारखाने हैं। यह देश के जूता कारोबार की 65 फीसद मांग को पूरा करता है। करीब 15 हजार करोड़ रुपये का वार्षिक टर्नओवर है। लेकिन यह कारोबार भारी संकट में है।
उत्तर प्रदेश में समय-समय पर बाहर से पूंजी लाने के लिए उद्यमियों की इंवेस्टर्स मीट और निवेश की खूब चर्चा होती है। फरवरी 2018 की लखनऊ में आयोजित इंवेस्टर्स मीट में ही 4.28 लाख करोड़ रुपये के 1045 निवेश प्रस्ताव सरकार को सौपें थे। जबकि सरकारी आंकड़े को ही अगर माना जाए तो वास्तव में अभी तक 51240 करोड़ रूपये का ही निवेश प्रदेश में हुआ है। सन 2023 में भी बड़े इंवेस्टर्स मीट की चर्चा सरकार चला रही है जिसमें 10 लाख करोड़ रूपये के निवेश की बात हो रही है। मीडिया की खबरों और पुराने विदेशी निवेश के अनुभव के आधार पर लोगों को यह लग रहा है कि निवेश के नाम पर सरकार के मंत्री और अफसर विदेश के दौरों पर हैं। वास्तविक निवेश की अभी तक कोई तस्वीर उभर कर नहीं आयी है।
उत्तर प्रदेश में महज 5616 स्टार्टअप का पंजीकरण कराया गया है, जिसमें यह स्पष्ट नहीं है कि इसमें कितने क्रियाशील हैं और उनमें पूंजी निवेश की क्या स्थिति है। इसमें भी अधिकांश नोयडा, गाजियाबाद व लखनऊ में हैं।
कुछ प्रमुख जिलों का पंजीकरण
गौतम बुद्ध नगर- 1899, लखनऊ- 907, गाजियाबाद- 867, कानपुर-268, वाराणसी-197, आगरा-178, मेरठ-150, इलाहाबाद-127, गोरखपुर-89, बरेली-62।
देश के समस्त निर्यात में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 4.73 प्रतिशत है जबकि जीडीपी में हिस्सेदारी करीब 8 प्रतिशत है और जनसंख्या में हिस्सेदारी 15.98 प्रतिशत है।

रोजगार
उत्तर प्रदेश में नवंबर 2022 में श्रम शक्ति भागीदारी दर 33.50 प्रतिशत थी। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर यह 39 प्रतिशत रही। दरअसल बेरोजगारी के आंकड़ों से आजीविका संकट का संपूर्ण परिदृश्य स्पष्ट नहीं होता है। इसकी वास्तविक स्थिति श्रम भागीदारी दर और लोगों की आय से समझी जा सकती है। राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी रेखा के नीचे 22 प्रतिशत जबकि उत्तर प्रदेश में यह प्रतिशत नीति आयोग द्वारा जारी बहुआयामी गरीबी सूचकांक में 37.79 फीसद है जोकि बिहार 51.91 फीसद, झारखंड 42.16 फीसद के बाद तीसरे स्थान पर है।

बजट का विवरण


केन्द्र सरकार का बजट 2022-23, 39.45 लाख करोड़ रूपये।
उत्तर प्रदेश बजट 2022-23, 6.15 लाख करोड़ रूपये।
प्रदेश में राजकोषीय घाटा – 81178 करोड़ रूपये, जोकि राज्य जीडीपी का 3.96 प्रतिशत है।
देश में राजकोषीय घाटा – 1661196 करोड़ रूपये जोकि जीडीपी का 6.4 प्रतिशत है।

उत्तर प्रदेश बजट 2022-23 में प्रमुख सेक्टरवाईज खर्च
शिक्षा – 75165 करोड़ (12.2 प्रतिशत बजट शेयर) यह सभी राज्यों द्वारा शिक्षा के लिए औसत आवंटन (15.2 प्रतिशत) से कम है।
स्वास्थ्य – 40991 करोड़ (6.67 प्रतिशत बजट शेयर है।) नीति आयोग के अनुसार स्वास्थ्य रैकिंग में केरल पहले नम्बर, बिहार 18 वें और उत्तर प्रदेश 19 वें नम्बर पर है।  
ट्रांसपोर्ट – 39864 करोड़ (6.48 प्रतिशत बजट शेयर)
ऊर्जा –   37566 करोड़  (6.11 प्रतिशत बजट शेयर)
समाज कल्याण –  31239 करोड़  (5.08 प्रतिशत बजट शेयर)
रूरल डेवलपमेंट – 29542 करोड़ (4.80 प्रतिशत बजट शेयर) यह राज्यों द्वारा ग्रामीण विकास के लिए औसत आवंटन 5.7 प्रतिशत से कम है।
शहरी विकास –  27541 (4.41 प्रतिशत बजट शेयर)
वाटर सप्लाई  एवं सैनीटेशन – 21733 (4.51 प्रतिशत बजट शेयर)
सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण – 21431 करोड़  (4.46 प्रतिशत बजट शेयर)
कृषि एवं संबद्ध गतिविधि 2.8 प्रतिशत बजट शेयर। यह राज्यों द्वारा कृषि के लिए औसत आवंटन (6.2 प्रतिशत) से काफी कम है।
(स्रोत- पीआरएस, बजट विश्लेषण)

केंद्र सरकार के बजट में प्रमुख सेक्टरवाईज
शिक्षा – 104278 करोड़ (2.64 प्रतिशत बजट शेयर)
नोट- विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय (केंद्र व राज्य) 4.39 प्रतिशत जीडीपी का है जोकि बजट का 14.1 प्रतिशत है। जो समान स्तर के जीडीपी वाले वियतनाम 18.5 प्रतिशत व इंडोनेशिया 20.6 प्रतिशत से काफी कम है।
स्वास्थ्य – 86606 करोड़ (2.19 प्रतिशत बजट शेयर)
ऊर्जा –   49220 करोड़ (1.25 प्रतिशत बजट शेयर)
ग्रामीण विकास –  206293 करोड़ (5.23 प्रतिशत बजट शेयर)
सोशल वेलफेयर – 51780 करोड़ (1.31 प्रतिशत बजट शेयर)
शहरी विकास –  76549 करोड़ (1.94  प्रतिशत बजट शेयर)
वित मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रत्येक आदमी पर 98776 रूपये का कर्ज है। भारत पर कुल कर्ज 128.41 लाख करोड़ का है। (स्रोत:- न्यूज 18 हिन्दी 30 मार्च 2022 की रिपोर्ट) उत्तर प्रदेश में कुल कर्ज वित्तीय वर्ष 2022-23 में 6.66 लाख करोड़ रूपये है। वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति कर्ज 26000 रूपये से ज्यादा था। (स्रोत:- पत्रिका हिन्दी 22 फरवरी 2022 की रिपोर्ट)
एनएसएसओ की रिपोर्ट के अनुसार देश में किसान परिवारों पर 2013 में औसतन 47000 रूपये कर्ज था जबकि 2019 में बढ़कर 74121 रूपये हो गया।

(नोट – उत्तर प्रदेश में बजट में प्रस्तावित धनराशि वास्तविक खर्च व आय में भारी अंतर है, उदाहरण के लिए 2020-21 बजट)
बजट में प्रस्तावित खर्च –  512861 करोड़
वास्तविक खर्च  –        351933 करोड़
शिक्षा में प्रस्तावित बजट 64805 करोड़, वास्तविक खर्च 54844 करोड़
स्वास्थ्य में प्रस्तावित बजट 26266 करोड़, वास्तविक खर्च 21549 करोड़
सोशल वेलफेयर में प्रस्तावित बजट 23438 करोड,़ वास्तविक खर्च 14753 करोड़
रूरल डेवलपमेंट में प्रस्तावित बजट 31402 करोड़, वास्तविक खर्च 23247 करोड़)
(स्रोत- उत्तर प्रदेश बजट 2022-23)

2022-23 के 6.15 लाख करोड़ के बजट में राजस्व खर्च 4.56 लाख करोड़ है, जिसमें से 2.76 लाख करोड़ रूपया मुख्य रूप से वेतन, पेंशन व ब्याज की अदायगी में खर्च होता है। 2020-21 के बजट में इस मद में वास्तविक खर्च 1.83 लाख करोड़ था जोकि कुल खर्च 3.52 लाख करोड़ का 52 प्रतिशत था। पूंजीगत व्यय जो इंफ्रास्ट्रक्चर आदि विकास मदों पर खर्च किया जाता है उसका बजट में महज 1.23 लाख करोड़ का आवंटन है जोकि बजट का 20 प्रतिशत है। इसमें यह नोट किया जाना चाहिए कि वास्तविक आय-व्यय 4 लाख करोड़ के ही करीब होगा। इसके लिए 2020-21 बजट के वास्तविक खर्च व आय के प्राप्त सरकारी आंकड़ों में देखा जा सकता है।

बजट से यह भी देखा जा सकता है कि महत्त्वपूर्ण सेक्टर सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण, समाज कल्याण, ग्रामीण व शहरी विकास आदि में बेहद कम बजट का आवंटन है। इस तरह आंकड़ों से स्पष्ट है जो पूंजीगत व्यय इंफ्रास्ट्रक्चर में खर्च भी किया गया है, उसका अधिकांश हिस्सा एक्सप्रेस वे, मेट्रो आदि में खर्च किया गया है। शिक्षा व स्वास्थ्य में भी जो बजट आवंटित हैं उसका बड़ा हिस्सा वेतन, पेंशन आदि में ही खर्च होता है। शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर पर सार्वजनिक व्यय करने के बजाय सरकार का फोकस पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल की नीति में है। तमाम स्कूलों, कालेजों व अस्पतालों को पीपीपी मॉडल के तहत संचालित करने की घोषणा भी की गई है। स्वास्थ्य महकमे के कायाकल्प की सच्चाई यह है कि चिकित्सकों व पैरामेडिकल स्टाफ के औसतन 40 प्रतिशत स्वीकृत पद रिक्त पड़े हुए हैं, विशेषज्ञ डॉक्टर के तो 60 प्रतिशत से ज्यादा पद रिक्त पड़े हुए हैं। यही हाल प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज तक में है।

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