मौजूदा दौर में फिल्में विचारों के प्रसारण का सबसे महत्वपूर्ण ज़रिया बन गई हैं। मुसलमान विरोधी सियासत करने वाले इसका ज़बरदस्त इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इस सियासत के विरोध में खड़े लोगों में इसके प्रति एक उदासीनता नज़र आती है।
इसी से याद आया कि एक समय उस्मानिया सल्तनत में धार्मिक नेताओं के प्रभाव में प्रिंटिंग प्रेस पर उस वक़्त रोक लगाई गई जब महज़ इस एक तकनीक से दुनिया बदलने जा रही थी। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि धर्म के इस बेजा दख़ल ने कैसे एक सल्तनत को बिखेर दिया।
उस्मानिया सल्तनत में मुद्रण प्रेस पर लगाए गए प्रतिबंध का प्रभाव न केवल सल्तनत की बौद्धिक और वैज्ञानिक प्रगति पर पड़ा, बल्कि इसके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक ताने-बाने को भी कमजोर कर दिया। 15वीं शताब्दी में यूरोप में मुद्रण क्रांति शुरू हुई, जिसने ज्ञान के प्रसार को तेज कर दिया और वैज्ञानिक सोच को नया आयाम दिया।
इसके विपरीत, उस्मानिया सल्तनत में प्रेस पर कठोर पाबंदियां लगा दी गईं, जिससे मुस्लिम समाज इस क्रांति का लाभ नहीं उठा सका। यह प्रतिबंध मुख्य रूप से धार्मिक प्रतिष्ठान और शेख़-उल-इस्लाम की ओर से लगाया गया था, जिन्होंने इसे पारंपरिक इस्लामी शिक्षा और धार्मिक सत्ता के लिए खतरा समझा। हालांकि प्रशासन ने इस फैसले का समर्थन किया, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम विनाशकारी साबित हुए।
शैक्षिक और बौद्धिक स्तर पर इस रोक का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि ज्ञान का प्रसार धीमा पड़ गया। जहां यूरोप में गुटेनबर्ग प्रेस के आविष्कार के बाद लाखों किताबें छपने लगीं और आम जनता तक ज्ञान पहुंचा, वहीं उस्मानिया सल्तनत में धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रंथों को हाथ से नकल करने की परंपरा जारी रही। इससे न केवल किताबों की संख्या सीमित रही, बल्कि ज्ञान केवल कुलीन वर्ग और उलेमा तक सीमित रह गया।
यूरोप में पुनर्जागरण और वैज्ञानिक क्रांति के दौर में जब गैलीलियो, केपलर, और न्यूटन जैसे वैज्ञानिक अपने शोध को छपवाकर व्यापक स्तर पर वितरित कर रहे थे, तब उस्मानिया समाज में विज्ञान और दर्शन पर बहुत धीमी गति से काम हो रहा था। इस वजह से मुस्लिम समाज बौद्धिक रूप से पिछड़ता चला गया और नया ज्ञान अपनाने में असमर्थ हो गया।
राजनीतिक रूप से देखा जाए तो यह प्रतिबंध उस्मानिया शासन की कमजोरी का कारण बना। 16वीं और 17वीं शताब्दी तक सल्तनत यूरोप की सबसे शक्तिशाली सत्ता थी, लेकिन जैसे-जैसे पश्चिमी देश आधुनिक ज्ञान, प्रौद्योगिकी और प्रशासनिक सुधारों को अपनाने लगे, उस्मानिया साम्राज्य पिछड़ने लगा।
मुद्रण प्रेस की अनुपस्थिति के कारण नए सैन्य और रणनीतिक विचारों का प्रसार धीमा रहा, जिससे सल्तनती सेना यूरोपीय सेनाओं के मुकाबले कमजोर पड़ गई। युद्ध रणनीतियों, तोपों के निर्माण, जहाजों की डिज़ाइन और अन्य सैन्य तकनीकों पर यूरोप में व्यापक अध्ययन और प्रयोग हुए, जबकि उस्मानियों के पास जानकारी के पारंपरिक स्रोत ही उपलब्ध रहे। यह फर्क 17वीं और 18वीं शताब्दी में स्पष्ट रूप से दिखने लगा, जब कई यूरोपीय शक्तियों ने उस्मानिया सेना को युद्ध में हराना शुरू कर दिया।
आर्थिक दृष्टि से यह प्रतिबंध उस्मानिया सल्तनत के लिए एक बड़ा झटका था। मुद्रण प्रेस ने यूरोप में व्यापार और शिक्षा से जुड़े नए अवसर खोले, जिससे वहां की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई। किताबों की बढ़ती संख्या ने शिक्षा का प्रसार किया और लोगों को नए व्यवसायों से जोड़ा।
इसके विपरीत, उस्मानिया सल्तनत में ज्ञान का केंद्रीकरण होने से व्यावसायिक और प्रशासनिक सुधार देरी से लागू हुए। इससे व्यापार और उद्योगों में वह तेज़ी नहीं आ सकी, जो यूरोप में देखी गई। आधुनिक बैंकिंग प्रणाली, कॉर्पोरेट व्यापार मॉडल, और विज्ञान आधारित नवाचारों की तरफ पश्चिमी देश बढ़ते गए, जबकि उस्मानिया शासन पुरानी परंपराओं में बंधा रहा।
इस प्रतिबंध के सामाजिक प्रभाव भी गहरे थे। प्रेस न होने की वजह से मुस्लिम समाज में बौद्धिक स्वतंत्रता और विचारों की विविधता पर असर पड़ा। यूरोप में मुद्रित सामग्री ने लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों की समझ को बढ़ावा दिया, जिससे वहां की जनता राजनीतिक और सामाजिक सुधारों की ओर बढ़ी।
लेकिन उस्मानिया समाज में यह प्रवृत्ति बहुत देर से आई, क्योंकि ज्ञान पर धार्मिक प्रतिष्ठानों और कुलीन वर्ग का नियंत्रण था। शिक्षा का स्तर ऊंचा होने के बावजूद, आम लोगों तक नई सोच नहीं पहुंच पाई, जिससे सामाजिक गतिशीलता सीमित हो गई।
18वीं शताब्दी में इब्राहिम मुतफ़र्रिका को पहली मुस्लिम प्रिंटिंग प्रेस स्थापित करने की अनुमति दी गई, लेकिन यह काफी देर से हुआ। उन्होंने केवल ऐतिहासिक और वैज्ञानिक ग्रंथों को छापने की अनुमति प्राप्त की, जबकि धार्मिक ग्रंथों को छापने की पाबंदी बनी रही। यह उस समय का संकेत था कि उस्मानिया शासन अब बदलाव को अपनाने की दिशा में बढ़ रहा था, लेकिन यह प्रक्रिया बहुत धीमी थी। यूरोप में जहां किताबों और अखबारों ने समाज में जागरूकता पैदा की और राजनीतिक चेतना को जन्म दिया, वहीं उस्मानिया समाज में ये बदलाव 19वीं और 20वीं शताब्दी में जाकर आए।
इस प्रतिबंध के दूरगामी प्रभावों में से एक यह भी था कि जब यूरोपीय शक्तियां उपनिवेशवाद के ज़रिए दुनिया पर अपना प्रभुत्व बढ़ा रही थीं, तब मुस्लिम समाज उनके मुकाबले पिछड़ा हुआ था। ब्रिटिश, फ्रांसीसी और डच साम्राज्यों ने मुद्रित ज्ञान का उपयोग करके प्रशासनिक और सैन्य शक्ति को मजबूत किया, जिससे उन्होंने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित किया। यदि उस्मानिया सल्तनत ने शुरुआती दौर में प्रेस को स्वीकार कर लिया होता, तो शायद मुस्लिम समाज बौद्धिक रूप से कहीं अधिक सशक्त होता और पश्चिमी उपनिवेशवाद का प्रभाव कम होता। तब मुमकिन है कि दुनिया आज से कुछ अलग होती !
अंततः, यह निष्कर्ष निकलता है कि मुद्रण प्रेस पर लगी रोक ने उस्मानिया सल्तनत को बौद्धिक, राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक रूप से कमजोर किया। यह फैसला धार्मिक सत्ता को बनाए रखने की मंशा से लिया गया था, लेकिन इसका प्रभाव पूरे समाज पर पड़ा। यूरोप जहां आधुनिकरण और वैज्ञानिक सोच की ओर बढ़ रहा था, वहीं मुस्लिम समाज रूढ़िवादिता में फंसा रह गया। जब तक सल्तनत ने इस गलती को सुधारा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस ऐतिहासिक भूल से यह सबक मिलता है कि ज्ञान और सूचना पर रोक लगाने से समाज की प्रगति रुक जाती है और अंततः वह अन्य सभ्यताओं से पिछड़ जाता है।
(डॉ सलमान अरशद स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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