क्यों लगाया जाना चाहिए अमीरों पर अतिरिक्त टैक्स?

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इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान विरासत टैक्स को लेकर ऐसा बयान दे दिया, जिससे बवाल मचने लगा। उन्होंने कहा कि, “अमेरिका में विरासत पर टैक्स लगता है, अगर किसी के पास सौ मिलियन डॉलर की सम्पत्ति है और जब वह मर जाता है, तो केवल 45% सम्पत्ति ही बच्चों को दी जाती है और 55% सरकार रख लेती है। नियम के मुताबिक अमेरिका में 6 राज्यों में विरासत टैक्स लगाया जाता है और आयोवा ने टैक्स रेट कम करके अगले वर्ष इसे घटाकर 5% कर दिया जाएगा और 2025 में इसको ख़त्म करने की घोषणा की है।

टैक्स की दरें राज्य के आधार पर अलग-अलग होती हैं, लेकिन कम से कम 1% से लेकर 20% तक होती हैं और आमतौर पर छूट सीमा से ऊपर की राशि पर लागू होती है। टैक्स दरें आपके विरासत के आकार राज्य टैक्स कानूनों और ‌मृतक के साथ आपके संबंधों पर निर्भर करती हैं। भारत में फिलहाल विरासत पर कोई टैक्स नहीं लगाया जा सकता।” चुनाव प्रचार के दौरान अप्रैल के आख़ि‍री हफ़्ते में विरासत टैक्स का मुद्दा चुनावी माहौल में ख़ूब उछाला गया।

मोदी ने अपने भाषण में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि विरासत टैक्स लाकर कांग्रेस लोगों की मेहनत की कमाई छीनना चाहती है। उसने कहा कि यह महिलाओं का मंगलसूत्र छीनकर मुसलमानों में बांटना चाहती है। इस तरह विरासत और संपत्ति टैक्स पर एक सांप्रदायिक तर्क देकर इसे ग़लत साबित करने की कोशिश की गई, जिसके बाद कांग्रेस द्वारा तुरंत सफ़ाई देते हुए इस आरोप को रद्द कर दिया गया, लेकिन दोनों पार्टियों ने टैक्स लगाने को लेकर चुपी साध ली यानी कांग्रेस ने भी संपत्ति और विरासत टैक्स लगाने का समर्थन करने के बजाय सफ़ाई देना शुरू कर दिया। आख़ि‍र ऐसा क्या ख़तरनाक है इस टैक्स में कि दोनों पूंजीवादी पार्टियां ये टैक्स नहीं लगाना चाहतीं? आख़ि‍र इस टैक्स में ऐसा क्या है कि इसे लागू करने का किसी
भी पूंजीवादी पार्टी द्वारा खुलकर समर्थन नहीं किया जा रहा?

विरासत टैक्स ऐसा टैक्स है जो व्यक्ति की मौत के बाद उसके उत्तराधिकारियों को दी जाने वाली उच्च मूल्य की संपत्ति और कुल मूल्य पर लगता है। उत्तराधिकारियों को जाने वाला एक हिस्सा सरकार रख लेती है। आज भारत में यह टैक्स नहीं लगाया जाता। यह टैक्स 1953 में भारत में लागू हुआ था, लेकिन राजीव गांधी की सरकार ने 1985 में इसे हटा दिया था। कारण दिया गया था कि हटाने से टैक्स ढांचा व्यवस्थित होगा और साथ ही निवेश और बचत में वृद्धि होगी। यह उदारवादी नीतियों के शुरुआती चरणों के फ़ैसलों में से एक था। इसमें एक और बहाना लगाया गया कि एक ही संपत्ति पर दो बार टैक्स लगाना सही नहीं है।

जैसा कि हमने ऊपर ज़ि‍क्र किया था कि विरासत टैक्स केवल उच्च मूल्य वाली संपत्ति पर लगाया जाता है। भारत में कितने प्रतिशत लोगों के पास संपत्ति है, इस टैक्स की जांच करने के लिए यह जानना बेहद ज़रूरी है।

ग़ैर-बराबरी के मामले में भारत दुनिया के चोटी के देशों में शामिल है, जहां भारत के एक प्रतिशत अमीरों के पास देश की कुल संपत्ति का 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है, वहीं 10 प्रतिशत के पास 77 प्रतिशत हिस्सा है। फ़ोर्ब्स की ताज़ा आई सूची के अनुसार भारत में अरबपतियों की संख्या 200 से अधिक हो गई है, जो पिछले साल 169 थी। एक अन्य अख़बार के मुताबिक़ यह संख्या 271 है। इस लिस्ट में भारत चीन और अमेरिका के बाद तीसरे नंबर पर पहुंच गया है।

दूसरी ओर संसार की ग़रीब आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा भी भारत में है। हर एक सेकंड में देश के दो लोग स्वास्थ्य सेवाओं पर हुए ख़र्चे के कारण ग़रीबी रेखा से नीचे धकेले जा रहे हैं। यह अंतर दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आज भारत की अधिकांश आबादी के पास अपनी इतनी संपत्ति ही नहीं कि वह अपनी रोज़ी-रोटी का, रिहाइश का, स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा आदि का ख़र्च उठा पाएं, तो फिर संपत्ति टैक्स की तो बात बहुत दूर है।

उपरोक्त आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि भारत की जनसंख्या की बड़ी बहुसंख्या तो संपत्ति और विरासत टैक्स के दायरे में ही नहीं आती। इसे और समझने के लिए हम कुछ और आंकड़े देखते हैं। भारत में एक करोड़ या उससे अधिक की संपत्ति वाले लोगों की संख्या कुल आबादी का केवल 0.016 प्रतिशत है। दूसरी ओर ई-श्रम पोर्टल के अनुसार, भारत के 30 करोड़ असंगठित मज़दूरों में से 90 प्रतिशत की प्रति महीना कमाई 10,000 रुपए से कम है। तो फिर जब देश का प्रधानमंत्री यह बात करता है कि विरासत या संपत्ति टैक्स लोगों की लूट करेगा, तो वो यह स्पष्ट करे कि किन लोगों के बारे में बात कर रहा है। साफ़ है कि मोदी को चिंता उन एक प्रतिशत लोगों की है, जिन्होंने अय्याशी के ऊंचे महल खड़े किए हुए हैं, जो अपने बच्चों की प्री-वेडिंग पर 1200 करोड़ रुपए से अधिक ख़र्च कर देते हैं। दूसरी ओर वह 90 प्रतिशत आबादी है, जो आज भूख से मरने के लिए मज़बूर है। जिस देश में 80 करोड़ लोग राशन योजनाओं पर जीने को मज़बूर हैं, संपत्ति टैक्स उन्हें क्या लूटेगा? इसका जवाब किसी पूंजीवादी पार्टी के पास नहीं है।

विरासत टैक्स ना लगाने के लिए एक बेतुका तर्क दिया जाता है कि यह टैक्स संपत्ति पर दूसरी बार बोझ डालता है। सरकार यहां पूंजीपतियों को पीड़ित पक्ष के रूप में पेश करती है, जैसे कि वे पहले से ही एक भारी बोझ के तले दबे हुए हों! ऑक्सफै़म की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में कुल जी.एस.टी. आमदनी में नीचे की 50 प्रतिशत आबादी का 64 प्रतिशत हिस्सा था, जबकि उसके पास केवल 3 प्रतिशत संपत्ति है। दूसरी तरफ़ चोटी के 10 प्रतिशत अमीर आबादी के पास कुल संपत्ति का 74 प्रतिशत हिस्सा है, उसका जी.एस.टी. में योगदान महज तीन प्रतिशत है।

फिर एक और कुतर्क निकाला जाता है कि काम करने वाले ज़्यादातर लोगों द्वारा तो आयकर का भुगतान ही नहीं किया जाता। यह असल में मेहनतकश लोगों पर सवाल नहीं है, बल्कि इस लुटेरे ढांचे पर सवाल है, जो उनके पास इतनी संपत्ति ही नहीं छोड़ता कि वे टैक्स भर सकें। दूसरी बात सरकारी कमाई में लोगों की आमदनी पर लगने वाले टैक्स में बड़े हिस्से अप्रत्यक्ष टैक्सों के हैं, जो बहुसंख्या ग़रीब मेहनतकश आबादी से एकत्र किए जाते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि दौलत और विरासत टैक्स जायज़ हैं, ज़रूरी हैं। बढ़ती ग़ैर-बराबरी में पूंजीपतियों के मुनाफ़े (जो केवल लोगों की लूट से आते हैं) में से कुछ हिस्सा
टैक्स द्वारा निकालकर जन सुविधाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन आदि के लिए लगाना पूरी तरह से उचित है।

2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक प्रतिशत अमीरों पर केवल दो प्रतिशत का संपत्ति टैक्स और 33 प्रतिशत का विरासत टैक्स लगाया जाए तो 12.1 लाख करोड़ रुपए जमा किए जा सकते हैं जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य, सरकारी परिवहन आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं का एक बड़ा ढांचा तैयार किया जा सकता है, लेकिन मोदी और कांग्रेस के बयानों से साफ़ है कि ऐसा करने का इनका कोई इरादा नहीं है।

असल में मोदी को तो अंबानी और अडानी जैसे एकाधिकारी पूंजीपतियों की ही चिंता है, यही कारण है कि 2019-20 में भाजपा ने पूंजीपतियों पर लगाए जाने वाले कॉरपोरेट टैक्स की दर को 30% से घटाकर 22% कर दिया था, जिससे पहले दो वर्षों में ही यूनियन सरकार को 1.84 लाख करोड़ रुपए का घाटा हुआ, लेकिन यह घाटा सरकार ने मेहनतकश जनता पर टैक्स बढ़ाकर पूरा कर लिया। कुल प्रत्यक्ष टैक्सों में पूंजीपतियों पर लगने वाले कॉरपोरेट टैक्स का हिस्सा 2020 में 53% से घटकर चार सालों में ही 46.5% कर दिया गया है, जबकि अप्रत्यक्ष टैक्सों द्वारा सरकार की कमाई दो लाख करोड़ रुपए से पार हो गई है, जो टैक्स मुख्य रूप में भारत की मेहनतकश आबादी देती है।

आज के समय में निम्नस्तरीय राजनीतिक इल्ज़ामबाजी इस बात का सबूत है कि ये पार्टियां बड़े पूंजीपतियों के इस या उस गुट की सेवा के लिए एक-दूसरे के ख़ि‍लाफ़ बयानबाजी करती हैं, लेकिन आम लोगों की स्थितियों से इनका कोई सरोकार नहीं है। मौजूदा आर्थिक सामाजिक ढांचे के लिए यानी पूंजीवादी ढांचे की सीमाओं में सत्ता पूंजीपतियों की सेवा के लिए ही इस्तेमाल की जा सकती है, इसलिए वर्तमान समय में अमीरों पर टैक्स लगाने की ज़ोरदार वकालत की जानी चाहिए और सभी वोट-बटोरू राजनीतिक पार्टियों के असल पूंजीवादी चरित्र को उजागर करना चाहिए। आज दुनिया भर में अमेरिका सहित सभी विकसित देशों तक में मज़दूर आंदोलनों की एक प्रमुख मांग यह है कि उन‌ बड़े कॉरपोरेट पूंजीपतियों पर; जो बेतहाशा मुनाफ़ा कमा रहे हैं अर्थात सुपर रिच हैं, उन पर अतिरिक्त टैक्स लगाया जाए, जिसे आम जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा रोज़गार और जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए ख़र्च किया जाए। क्या भारत में भी मज़दूर आंदोलन की यह प्रमुख मांग नहीं होनी चाहिए?

(स्वदेश सिन्हा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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