मोदी सरकार की अग्निपथ योजना पर पूर्व सेना प्रमुख का बड़ा खुलासा, कहा- योजना हैरान कर देने वाला

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नई दिल्ली। मोदी सरकार द्वारा शुरु की गई अग्निपथ योजना पर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। पूर्व सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने अपनी पुस्तक में बड़ा खुलासा किया है। नरवणे 31 दिसंबर 2019 से 30 अप्रैल 2022 तक सेना प्रमुख रह चुके हैं।

जनरल नरवणे ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि मोदी सरकार की इस योजना ने सेना को चौंका दिया था। यह योजना नौसेना और वायु सेना के लिए हैरान कर देने वाली थी। उन्होंने अपने संस्मरण फोर स्टार्स में कहा है कि, “इस योजना की घोषणा से हम आश्चर्यचकित रह गए। नौसेना और वायु सेना के लिए यह योजना अचानक आए किसी झटके की तरह था।”

जनरल नरवणे की पुस्तक का प्रकाशन पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया कर रहा है। पुस्तक में नरवणे ने लिखा है कि, “त्रि-सेवा मामला बन जाने के बाद, अब प्रस्ताव को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत पर आ गई है, भले ही सेना प्रमुख सेवा बनी रहे।”

उन्होंने लिखा है कि अग्निवीर में भर्ती होने वाले नौजवानों के लिए पहले साल का शुरुआती वेतन 20,000 रुपये प्रति माह था जो बिल्कुल स्वीकार्य नहीं था। वे लिखते हैं कि यहां हम बात कर रहे हैं एक प्रशिक्षित सैनिक की, जिससे उम्मीद की जाती है कि वह देश के लिए अपनी जान दे देगा। निश्चित रूप से एक सैनिक की तुलना दिहाड़ी मजदूर से नहीं की जा सकती? हमारी बहुत कोशिशों के बाद इसे बढ़ाकर 30,000 रुपये प्रति माह किया गया।

इस योजना की शुरुआत 14 जून, 2022 को की गई थी। जिसमें साढ़े 17 साल से 21 साल के बीच के युवाओं को केवल चार वर्ष के लिए सेना में भर्ती करने का प्रावधान है। चार साल बाद इनमें से केवल 25 प्रतिशत युवाओं की सेवा नियमित करने का प्रावधान है। इतना ही नहीं उन्हें ग्रेच्युटी और पेंशन देने का भी कोई प्रावधान नहीं है।

इस योजना से पहले शारीरिक रुप से फिट एक जनरल-ड्यूटी सैनिक को 10-15 साल की सेवा करनी पड़ती थी।

बुधवार, 20 दिसंबर को एक पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल ने द टेलीग्राफ को बताया कि जनरल नरवणे के खुलासे से साफ पता चलता है कि सरकार ने “विनाशकारी” योजना की घोषणा करने से पहले सशस्त्र बलों से सलाह भी नहीं लिया था।

उन्होंने कहा कि “अब यह बिल्कुल साफ है कि जिन नेताओं ने इस योजना पर अंतिम फैसला लिया था, उन्हें सेना में भर्ती या सैन्य परंपराओं के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। सरकार हितधारकों, सशस्त्र बलों से सलाह-मशविरा किए बिना ऐसी योजना की घोषणा कैसे कर सकती है?”

जनरल नरवणे के खुलासे के बाद कई पूर्व सैन्य अधिकारी भी अब खुल कर बोल रहे हैं और सरकार की इस योजना की खामियां बता रहे हैं। कर्नल बीरेंद्र धनोआ ने बुधवार को एक्स पर एक पोस्ट किया जिसमें उन्होंने लिखा है कि “#अग्निवीर योजना की घोषणा और पीएमओ के आदेश पर तीनों सेवाओं में इसके कार्यान्वयन के बारे में जनरल नरवणे का स्पष्टीकरण बताता है कि कैसे सभी जिन स्टार रैंकर्स ने इसकी प्रशंसा ऊंचे आसमान तक की, वे दरबार में सिर्फ बीरबल थे।“

एयर वाइस मार्शल के पद से रिटायर हुए एक पूर्व अधिकारी ने कहा कि “यह रोजगार योजना सशस्त्र बलों के लिए मौत की घंटी के अलावा कुछ नहीं थी। जनरल नरवणे के खुलासे से पता चलता है कि कार्यान्वयन से पहले इस योजना का परीक्षण करने के लिए कोई पायलट प्रोजेक्ट नहीं था। क्या इस देश में सशस्त्र बल अब रोजगार योजनाएं चलाने तक ही सीमित रह गये हैं?”

वहीं कर्नल अमित कुमार एक्स पर लिखते हैं कि “यह योजना राजनीति से प्रेरित थी और सशस्त्र बलों में घुसपैठ करने की एक कोशिश थी। नुकसान हुआ है लेकिन मरम्मत की जा सकती है। इस मुद्दे पर सभी दिग्गजों को एक साथ होना चाहिए। फौज के कामकाज में किसी को दखलंदाजी नहीं करने देनी चाहिए। पिछले 10 वर्षों में, हम सरकार के प्रचार-प्रसार में सेनाओं की भागीदारी देख रहे हैं। मीडिया उनके प्रवक्ता के रूप में काम कर रहा है। जो कोई भी सरकार के खिलाफ बोलता है उसे राष्ट्रीय दुश्मन घोषित कर दिया जाता है। हमारे सोशल मीडिया अकाउंट फ्रीज कर दिए गए हैं। उम्मीद है कि सरकार इस योजना को खत्म करेगी।”

सरकारी सूत्रों के मुताबिक जनरल नरवणे की आगामी पुस्तक के लिए सरकार ने अनुमति नहीं दी थी जिसमें उन्होंने अग्निपथ योजना के बारे में अंतर्दृष्टि साझा की है और साथ ही 2020 में अपने कार्यकाल के दौरान पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ सीमा तनाव का भी जिक्र किया है।

इससे पहले सेना के कई दिग्गजों ने मोदी सरकार की अग्निपथ योजना की जमकर आलोचना की थी और इसे “विनाशकारी” और “गलत सोच” वाली योजना बताया था। उन्होंने कहा था कि यह योजना सेना की दक्षता और प्रभावशीलता पर उल्टा असर डालेगी। उन्होंने सेना के चार साल के कार्यकाल पर भी सवाल उठाया और यह कहा था कि एक नए सैनिक को अनुभवी सैनिक बनने में कम से कम सात-आठ साल लग जाते हैं और सिपाहियों को बुनियादी कौशल सीखने में तीन-चार साल लगते हैं।

जून 2022 में इस योजना की घोषणा के बाद देश के कई हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन किया गया था। प्रदर्शनकारियों ने ट्रेनों में आग लगा दी थी और रेलवे ट्रैक जाम कर दिया था।

(‘द टेलिग्राफ’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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