संसद में बहुमत से नहीं आम सहमति से पास हों विधेयक!

Estimated read time 1 min read

जब कोई तानाशाह झूठ, वर्णवाद और धर्मांधता से जनता की मति भ्रमित कर सत्ता पर काबिज़ हो जाए और विपक्ष को संसद से मक्खी की तरह बाहर फेंककर मनमाने विधेयक पास करवा ले तब बहुमत नहीं आम सहमति से कानून बनाने का कानून ही संसद, विपक्ष और लोकतंत्र को बचा सकता है।

वर्णवादी-धर्मांध तानाशाह ने 272 के आंकड़े से विवेक और विचार की हत्या तो पहले ही कर दी थी अब संसद की हत्या कर रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि संविधान की धज्जियां उड़ रही हैं सब जगह चाहे संसद हो, न्याय पालिका हो, नौकरशाही हो या मीडिया।

एक अंहकारी के जुमले के सिवा देश में कोई आवाज़ सुनाई दे रही है क्या?

एक अहंकारी ऐसा क्यों कर पा रहा है क्योंकि विपक्ष अपने तुच्छ हितों में उलझा है। यह सबके सामने है कि देश, संविधान और लोकतंत्र के लिए कोई नहीं लड़ रहा सब अपने अपने गणित बैठा रहे हैं- कोई धर्म, कोई जात, कोई क्षेत्र और कोई भाषा का।

जो पैंतरे तानाशाह निर्लज्ज रूप से अपना रहा है वो विपक्ष दबे छुपे अपना कर तानाशाह को हराना चाहता है और यही विपक्ष की हार की वजह है।

जरूरत है निर्णायक भूमिका की। राहुल गांधी सत्य की बात करते हैं पर धर्म और ईश्वर की शरण में कौन सा सत्य बोध उन्हें हुआ है या उन्होंने जनता में कौनसा सत्य बोध जगाया है? उन्हें याद करना चाहिए नेहरू को जिन्होंने अपने को धर्म से दूर रख धर्मनिरपेक्षता के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया था। जब आत्महीन, विकारी हिंदू राष्ट्र की मांग कर रहे थे तब नेहरू ने पहला आम चुनाव धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जीता था।

2जी स्पेक्ट्रम के तथाकथित घोटाले में जब संयुक्त रूप से वामपंथी, दक्षिणपंथी और लोहियावादी पार्टियां देश को मालामाल करने वाले और नेहरू की कब्र खोदने वाले मनमोहन सिंह की कांग्रेसी सरकार की बलि ले रहे थे तभी मैंने कहा था देश की राजनैतिक कौम मर चुकी है।

थोड़ी बहुत उम्मीद थी बुद्धिजीवी कौम से तो अन्ना हज़ारे के अराजनैतिक आंदोलन में खत्म हो गई। भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अराजनैतिक आंदोलन ही सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। जिस आंदोलन का मकसद राजनीति को प्रभावित करना हो वो आंदोलन अराजनैतिक कैसे? इतना भी भारत का सभ्य बुद्धिजीवी और पढ़ा लिखा प्रोफेसर-शिक्षक वर्ग समझ नहीं पाया।

आज जब जनता धर्म के नाम पर मूर्छित हो झूठे तानाशाह के पीछे चल रही है तब देश को जरूरत है सत्य के मार्ग पर चलने वाली जनता की और जनता को धर्मांधता और वर्णवाद से बाहर निकालने वाले नेहरू, पेरियर, फुले, आंबेडकर और गांधी की।

आज भारत देश खतरे में है। तानाशाह की पालकी ढोने वाला ओबीसी, बहुजन और महिला वर्ग खतरे में है। क्योंकि वर्णवाद से इनको संविधान ने मुक्ति दी और मनुष्य होने की पहचान देने के साथ साथ समानता का अधिकार दिया।

जब संविधान से नहीं, देश मनुस्मृति से चलेगा तब उन महिलाओं का क्या होगा जो आज तानाशाह का जयकारा लगा रही हैं। उनको मणिपुर भी शर्मिंदा नहीं करता।

तानाशाह जब पूछता है कि 70 साल में क्या हुआ तो उसका जवाब है 70 साल में भारतीय इतिहास में सबको मनुष्य होने की पहचान मिली और सबको समता और समानता का अधिकार मिला। भारत के इतिहास में 26 जनवरी, 1950 से पहले मानवीय अधिकारों को कानून सम्मत दर्ज़ा नहीं मिला था।

भारत को इस विध्वंस से बाहर निकालने के लिए लंबा संघर्ष करना होगा। ठीक वैसा ही जैसा देश की आज़ादी के लिए किया था। उसके लिए सत्य, संविधान, लोकतांत्रिक मूल्यों से सज्जित नई पीढ़ी तैयार करनी होगी। आओ अपने बच्चों से शुरुआत करें उन्हें भारत के सत्यनिष्ठ, संविधान सम्मत और लोकतांत्रिक मूल्यों पर चलने वाले राजनेता बनाएं।

(मंजुल भारद्वाज थियेटर ऑफ रेलेवंस के निदेशक हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author