युवाल नोआ हरारी की किताब नेक्सस में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के तीव्र विकास पर व्यक्त चिंता उनके विचारों के उस पहलू को उजागर करती है, जहां वे मानते हैं कि AI का निर्माण और नियंत्रण मुख्यतः बड़े पूंजीपतियों के हाथों में है।
यह विचार स्वाभाविक रूप से एक गहन बहस को जन्म देता है, जिसमें सत्ता, पूंजी और तकनीकी विकास की नैतिकता पर सवाल उठते हैं।
हरारी का यह तर्क कि गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, और फेसबुक जैसे बड़े टेक कॉरपोरेशन AI के प्रमुख धुरंधर हैं, एक व्यापक चर्चा का हिस्सा है, जिसे समझने के लिए हमें उनकी किताब के संदर्भ और दुनिया के वर्तमान भू-राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य का विश्लेषण करना होगा।
हरारी का तर्क: टेक्नोलॉजी का विकास और पूंजीवाद का प्रभाव
हरारी इस बात पर जोर देते हैं कि AI का तेज विकास मुनाफे की दौड़ के लिए हो रहा है। गूगल के लैरी पेज, फेसबुक के जुकरबर्ग, अमेजन के जेफ बेजोस, और टेस्ला के एलन मस्क जैसे पूंजीपति AI के उन्नयन के पीछे खड़े हैं।
ये कंपनियां AI को बेहतर बनाने के लिए करोड़ों डॉलर का निवेश कर रही हैं, क्योंकि AI का व्यवसायिक उपयोग उन्हें अभूतपूर्व लाभ प्रदान कर सकता है।
हरारी के अनुसार, पूंजीपतियों की यह महत्वाकांक्षा मानवता के भविष्य के लिए खतरा बन सकती है।
उनका एक मुख्य तर्क यह है कि AI का नियंत्रण कुछ गिने-चुने लोगों के हाथों में है, और ये लोग AI को नैतिकता से ज्यादा लाभ के नजरिए से देख रहे हैं। वह इस तथ्य को सामने रखते हैं कि AI न केवल मानव श्रम का प्रतिस्थापन करेगा, बल्कि यह सत्ता और शक्ति के मौजूदा ढांचे को भी चुनौती दे सकता है।
पूंजीवाद की सीमाएं और अंतर्विरोध
यह तर्क अत्यंत महत्वपूर्ण है कि पूंजीवादी व्यवस्था का उद्देश्य मुनाफे को प्राथमिकता देना है, और जब तक किसी तकनीक से मुनाफा होता है, उसे बगैर नैतिकता की परवाह किए आगे बढ़ाया जाएगा। AI का विकास भी इसी पूंजीवादी ढांचे के तहत हो रहा है, जिसमें नैतिकता और मानवता के हितों की चिंता गौण है।
हरारी का यह विचार कि पूंजीपति और उनके समर्थक नेता जैसे बाइडेन, पुतिन, शी जिनपिंग, मोदी आदि इस दौड़ में शामिल हैं, एक बड़ी राजनीतिक और आर्थिक चुनौती को इंगित करता है।
यह स्पष्ट है कि AI का विकास केवल तकनीकी या वैज्ञानिक चुनौती नहीं है, बल्कि यह आर्थिक और राजनीतिक शक्तियों के आपसी संबंध का परिणाम है। बड़े देश और उनके पूंजीपति AI में अपनी बढ़त स्थापित करना चाहते हैं ताकि वे दुनिया पर अपने प्रभुत्व को बनाए रख सकें।
यह प्रक्रिया केवल आर्थिक लाभ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक सत्ता संरचना को भी प्रभावित करती है।
हरारी की आलोचना: क्या समाधान पूंजीपतियों के पास है?
हरारी की इस चिंता में एक गंभीर विरोधाभास है। एक ओर वे AI के खतरों को उजागर करते हैं, वहीं दूसरी ओर वे इस बात की भी उम्मीद करते हैं कि यही पूंजीपति और नेता AI को नियंत्रित कर सकते हैं। यह एक वैचारिक दुविधा को सामने लाता है।
अगर पूंजीपति AI का विकास अपने मुनाफे के लिए कर रहे हैं, तो उनसे यह उम्मीद करना कि वे नैतिकता के आधार पर इसे नियंत्रित करेंगे, एक असंभव कल्पना प्रतीत होती है। पूंजीवाद का मूल सिद्धांत मुनाफे को प्राथमिकता देना है, और इसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है।
हरारी का यह दृष्टिकोण कई सवाल खड़े करता है
- क्या पूंजीपति वास्तव में AI को नियंत्रित करेंगे, या केवल मुनाफे के लिए इसे आगे बढ़ाएंगे?
- क्या वैश्विक राजनेता, जो खुद पूंजीपतियों के साथ जुड़े हैं, AI पर नियंत्रण रख सकते हैं?
- क्या AI के नैतिक और सामाजिक परिणामों पर ध्यान दिया जाएगा, या केवल आर्थिक परिणामों पर?
तर्क और तथ्य आधारित विरोध:
- AI का उद्भव और सामाजिक असमानता*: AI का तेज विकास पहले से ही समाज में असमानता को बढ़ा रहा है। इससे नौकरियों का नुकसान हो सकता है, खासकर निम्न और मध्यम वर्ग में।
- उच्च वर्ग और पूंजीपति इस तकनीकी बदलाव से अधिक लाभान्वित होंगे। यह आर्थिक असमानता को और गहरा कर देगा, जो हरारी के तर्कों के खिलाफ एक मजबूत तथ्य है।
- राजनीतिक नियंत्रण की चुनौती: हरारी का यह तर्क कि पूंजीपति और नेता AI को नियंत्रित करेंगे, उनके पूरे तर्क के खिलाफ जाता है। पूंजीवादी नेता और कंपनियां AI को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही हैं, और नैतिकता की परवाह किए बिना इसे आगे बढ़ा रही हैं। इसके कई उदाहरण जैसे कि फेसबुक का डेटा चोरी का मामला, या अमेजन में कर्मचारियों के साथ अमानवीय व्यवहार सामने आते हैं, जो इस बात को प्रमाणित करते हैं कि मुनाफा उनके लिए प्राथमिकता है, न कि नैतिकता।
- नैतिकता की मांग: AI का विकास एक नैतिक चुनौती भी है। इसके विकास के लिए हमें ऐसे तंत्र की आवश्यकता है, जो वैश्विक स्तर पर तकनीकी नैतिकता और मानवाधिकारों की सुरक्षा कर सके। लेकिन हरारी का तर्क यह है कि यही पूंजीपति और नेता इसे नियंत्रित करेंगे, जो एक अवास्तविक और विरोधाभासी विचार है। वास्तविकता में हमें स्वतंत्र निकायों और संस्थानों की आवश्यकता है, जो AI पर नैतिक और कानूनी नियंत्रण स्थापित कर सकें।
निष्कर्ष
हरारी का तर्क कि AI का तेज विकास पूंजीपतियों के हाथों में है और वे इसे नियंत्रित करेंगे, एक विरोधाभासी और अवास्तविक दृष्टिकोण प्रतीत होता है।
पूंजीवाद का इतिहास बताता है कि मुनाफे के लिए किसी भी हद तक जाया जा सकता है, चाहे वह सामाजिक, राजनीतिक, या नैतिक नुकसान ही क्यों न हो।
इस संदर्भ में, AI का नियंत्रण केवल उन्हीं लोगों के हाथों में छोड़ना जो मुनाफे के पीछे दौड़ रहे हैं, मानवता के लिए एक बड़ा खतरा हो सकता है।
AI के विकास को नैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से नियंत्रित करने की आवश्यकता है, जिसके लिए स्वतंत्र वैश्विक संस्थानों का निर्माण किया जाना चाहिए, न कि इसे पूंजीपतियों और नेताओं के हाथों में छोड़ना चाहिए, जिनका प्राथमिक लक्ष्य मुनाफा है।
हरारी की चिंताओं का समाधान उनके द्वारा सुझाए गए पूंजीवादी मॉडलों से नहीं, बल्कि व्यापक वैश्विक नैतिक दृष्टिकोण से होना चाहिए।
( समीक्षक-ठाकुर प्रसाद )
+ There are no comments
Add yours