बनारस। भारत में लगातार दो मर्तबा प्रधानमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को इस बार भी बनारस में भारी जीत की उम्मीद थी। नतीजे बता रहे हैं कि ‘ब्रांड मोदी’ को तगड़ा झटका लगा है। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में जिस ‘ब्रांड मोदी’ ने शानदार रिजल्ट दिया था, लोकसभा के चुनाव में उस तरह का करिश्मा नहीं दिखा सके। बनारस में शहर दक्षिणी क्षेत्र में विश्वनाथ मंदिर है, जिसकी चकाचौंध में भी नरेंद्र मोदी का प्रदर्शन कायदे का नहीं रहा। ‘मोदी मैजिक’ का असर कैसा रहा, यह इस बात से भी समझा जा सकता है कि शहर दक्षिणी में उन्हें पिछले विधानसभा चुनाव से भी कम वोट मिले। दरअसल, बनारस का मिजाज ऐसा है कि इस शहर में कब जातिवाद हावी हो जाएगा, कब धर्म और कब सर्जिकल स्ट्राइक, यह पहले से तय नहीं होता?
देश की सर्वाधिक हाई प्रोफाइल लोकसभा सीट बनारस से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भले ही तीसरी मर्तबा चुनाव जीत गए, लेकिन यहां का जनमानस मानता है कि वो नैतिक रूप से चुनाव हार गए हैं। मोदी की गिरती साख ने बीजेपी के ‘इंडिया शाइनिंग’ को भी तगड़ा झटका दिया है। साथ ही इस सांस्कृतिक शहर ने एक अलग तरह की राजनीति और नए तरह का लोकतंत्र देने का गलियारा भी खोला है। बनारस में बीजेपी के नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के अजय राय के बीच मुकाबला बाहर से जितना सीधे, स्पष्ट और आसान नज़र आ रहा था, अंदर से उतना ही पेचीदा, उलझन भरा और भरमाने वाला रहा।
चुनाव की धुंध छंट चुकी है और सियासी गलियारों में सभी दलों की स्थिति साफ हो चुकी है। साल 2024 का आम चुनाव बनारस के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक रहा। यहां नरेंद्र मोदी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी अजय राय को 01 लाख 52 हजार 513 वोटों से पराजित किया। मोदी के जीत का फासला साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले काफी नीचे रहा, वहीं लोकसभा चुनाव 2019 के मुकाबले उन्हें काफी कम वोट मिले। 04 जून 2024 को वोटगणना में पोस्टल बैलेट की गिनती के शुरुआती रुझान में प्रधानमंत्री आगे रहे, लेकिन पोस्टल बैलेट की गिनती के बाद ईवीएम के वोटों की गिनती के प्रथम चरण में इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी अजय राय से छह हजार से अधिक वोटों से पिछड़ गए।
नैतिक रूप से हार गए मोदी
दूसरे राउंड में उन्होंने मामूली अंतर से बढ़त बनाई तो यह सिलसिला 30वें राउंड तक चलता रहा। चक्रवार गणना के दौरान इंडिया गठबंधन के अजय राय हर राउंड में मजबूती से लड़ते दिखे। यह सिलसिला आखिरी दौर तक बना रहा। 30वें और आखिरी राउंड में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को 6,12,970 और इंडिया गठबंधन के अजय राय को 4,60, 457 और बसपा के अतहर जमाल लारी को 33,766 वोट मिले। दरअसल, बनारस का मिजाज दूसरे सभी शहरों से अनूठा और रहस्यमयी रहा है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुल 5,81,022 वोट और दूसरे स्थान पर रहे आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को 2,09,238 वोट मिले थे। चुनाव में कांग्रेस के अजय राय को 75,614, बसपा के सीए विजय प्रकाश को 60,579 और सपा के कैलाश चौरसिया को 45,291 वोट मिले थे। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में काशी के वोटरों ने उन्हें प्रचंड बहुत से जिताया। उस चुनाव में उन्हें कुल 6,74,664 वोट मिले थे।
साल 2019 में समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी शालिनी यादव दूसरे नंबर पर रहीं, जिन्हें 1,95,159 वोट मिले थे। शालिनी यादव अब बीजेपी में शामिल हो चुकी हैं। 2019 में अजय राय लगातार तीसरी बार तीसरे नंबर पर रहे और उन्हें 1,52,548 वोट मिले थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दूसरी बार 4,79,505 मतों के अंतर से बड़ी जीत हासिल की थी। तब भी वाराणसी में लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में मतदान हुआ था। प्रधानमंत्री मोदी ने 56।37 प्रतिशत वोट हासिल किया था। पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक से बीजेपी की बढ़ती लोकप्रियता का इसमें बड़ा योगदान था।
पिछले एक दशक में पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ धाम को संवारा। नमो घाट बनवाया। पक्का महाल को स्मार्ट बनाने की कोशिश की। ये ढेर सारे काम शहर दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र में कराए गए। इसके बावजूद दक्षिणी इलाके के वोटरों ने मोदी को एक लाख से कम यानी 97,878 वोट ही दिए। दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी अजय राय को यहां 81 हजार से भी अधिक वोट हासिल हुए। पोस्टल बैलेट में भी अजय राय मोदी से थोड़े ही पीछे थे। मोदी को 1531 पोस्टल वोट मिले तो 1373 वोट अजय राय को।
पीएम मोदी के खिलाफ इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी अजय राय के मुकाबले को कांटे का बनाने में इस बार संसदीय सीट के पांचों विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं ने भागीदारी निभाई। शहर दक्षिणी के मतदाताओं ने अलग ही इतिहास लिखा। पांच विधानसभा क्षेत्रों में सिर्फ शहर दक्षिणी ही ऐसा था, जहां पीएम मोदी एक लाख वोट का आंकड़ा पार नहीं कर पाए। जिस रोहनिया और सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र को बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता रहा, वही पाला बदलकर इंडिया गठबंधन के साथ खड़े नजर आए। अजय राय को मिले कुल वोटों का 40.74 फीसदी कांग्रेस के 72 साल के इतिहास का सबसे बड़ा रिकार्ड है।
कांग्रेस ने बनाया नया रिकार्ड
बनारस संसदीय क्षेत्र के सेवापुरी और रोहनिया इलाके में सर्वाधिक आबादी भूमिहार और पटेल वोटरों की है। पिछली बार दोनों इलाकों के वोटरों ने मोदी को झूमकर वोट दिया और बनारस में नया रिकार्ड बनाने में जैक लगाया। भूमिहार वोटरों को साधने के लिए लोकसभा चुनाव से ठीक पहले धर्मेंद्र सिंह को एमएलसी बनाया गया तो पूर्व विधायक सुरेंद्र नारायण सिंह को अहम जिम्मेदारी सौंपी गई। बीजेपी प्रभारी अश्वनी त्यागी भी भूमिहार बिरादरी के हैं। उन्हें यहां चुनाव प्रचार में उतारा गया। भूमिहार समुदाय से आने वाले पिंडरा के विधायक डॉ. अवधेश सिंह भी अपनी बिरादरी के वोटरों के घरों पर दौड़ लगाते रहे। इन नेताओं ने हाईकमान को पुख्ता यकीन दिलाया था कि भूमिहार वोटर झूमकर मोदी को वोट देंगे।
अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल के निर्देश पर दोपहरिया में लोग सेवापुर और रोहनिया की पगडंडियों को नापते रहे, लेकिन ईवीएम खुले तो नतीजों ने बीजेपी नेताओं के माथे पर बल डाल दिया। भूमिहार समुदाय के लोगों का थोक वोट कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय के पक्ष में गया तो पटेल समुदाय ने भी हाथ के पंजे वाला बटन दबाया। बनारस के अस्सी इलाके में बैजनाथ कारिडोर को लेकर उपजे आक्रोश के बावजूद यहां के वोटरों ने मोदी का साथ दिया। मोदी को पांच विधानसभा क्षेत्रों में सर्वाधिक डेढ़ लाख वोट कैंट इलाके से मिले। उत्तरी विधानसभा क्षेत्र के वोटरों ने मोदी को राहत पहुंचाई। उनकी जीत का अंतर कम करने में शहर दक्षिणी इलाके के मुस्लिम वोटरों की भूमिका अहम रही। बनारस के मुसलमानों ने बनारस के पुराने समाजवादी नेता बीएसपी प्रत्याशी अतहर जमाल लारी को सिरे से खारिज करते हुए अजय राय के पक्ष में एकतरफा मतदान किया।
पूर्वांचल भर में मोदी हुए खारिज
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनारस में अपने फेवर में रोड शो और महिलाओं से संवाद किया तो पूर्वांचल के दस जिलों की 13 लोकसभा सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों को जिताने के लिए ताबड़तोड़ जनसभाएं भी कीं। गाजीपुर, मिर्जापुर, भदोही, जौनपुर, घोसी, आजमगढ़ और लालगंज लोकसभा क्षेत्र में उनकी जनसभाओं का कोई खास असर नहीं हुआ। बनारस, मिर्जापुर और भदोही को छोड़कर बीजेपी सारी सीटें हार गईं। चंदौली सीट को जिताने के लिए मोदी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा रक्षामंत्री रहे राजनाथ को भी भेजा, लेकिन अपने कबीना मंत्री डा.महेंद्र नाथ पांडेय को चुनाव नहीं जिता पाए।
मिर्जापुर, बलिया और सलेमपुर में नरेंद्र मोदी दो मर्तबा सभाएं कीं, इसके बावजूद 13 में से दस लोकसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी ने अप्रत्याशित रूप से अपना झंडा गाड़ दिया। राजनीति के चाणक्य अमित शाह की भी इस इलाके में नहीं चली। उन्होंने गाजीपुर में रोड शो किया तो रॉबर्ट्सगंज (सु।), बलिया, सलेमपुर, मछलीशहर (सुरक्षित) और चंदौली में जनसभाएं कीं। ये सभी सीटें बीजेपी हार गई। दूसरी ओर, बनारस के मोहनसराय में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने गठबंधन प्रत्याशी अजय राय के समर्थन में जनसभा की। कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी के संग डिंपल यादव ने उनके पक्ष में दुर्गाकुंड से लंका तक रोड शो किया। बनारस में अजय राय को जितने वोट मिले, आजादी के बाद किसी लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस को कभी नहीं मिले थे।
बनारस के साथ ही पूर्वांचल के नतीजे बताते हैं कि पूर्वांचल के वोटरों ने अब साबित कर दिया है कि इस इलाके में न मोदी मैजिक का असर है, न उनका नाम किसी प्रत्याशी को जीत की गारंटी देता है। इस बार बीजेपी के वोटरों का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस के साथ चला गया। यह स्थिति तब रही जब यादव और मुसलमान मतदाता इंडिया गठबंधन के पक्ष में तटस्थ बने रहे। इस चुनाव में वोटरों में मोदी के प्रति आक्रोश नहीं, उदासीनता नजर आई है। उनकी तुलना में योगी की लोकप्रियता ज़्यादा दिखी।
चुनाव के नतीजों से यह भी साफ हो गया कि वोटरों के मन में महंगाई और बेरोज़गारी को लेकर हताशा है। तमाम परीक्षाओं के अलावा सेना भर्ती की तैयारी कर रहे युवाओं में बेचैनी दिखी। आंचलिक इलाकों में छुट्टे पशुओं के आतंक के अलावा कोविड वैक्सीन से हो रही मौतों ने भी बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाया। पिछली मर्तबा बीजेपी के पक्ष में खड़े एक चौथाई वोटरों को यह कहते सुना गया कि वो अबकी इंडिया गठबंधन के पक्ष में मतदान करेंगे।
दंभ में मोदी, भ्रम में बीजेपी
वरिष्ठ पत्रकार राजीव मौर्य कहते हैं, “मोदी दंभ में थे तो बीजेपी भ्रम में थी। शायद इन्हें यकीन था कि राम मंदिर, धारा 370 और ब्रांड मोदी की प्रचंड लहर पर सवार बीजेपी इस बार बनारस में नया रिकार्ड बनाएगी और नया इतिहास भी रचेगी। बनारस में कौन की लहर कब उठने लगेगी, पता ही नहीं चलता। बुलबुले सा छोटा सा नारा बड़े तूफान में बदल जाए, कोई भरोसा नहीं। कौन सा मुद्दा कब लहर में बदल जाता है और कब झाग में तब्दील हो जाता है, कहा नहीं जा सकता है। बनारस रस से बना है, इसलिए बनारस है। इस सदाबहार नगरी में बहुत सी बातें ऐसी हैं जो दूसरे शहरों में नहीं है। यह कभी कालजयी बनाता है तो कभी मृत्युंजयी।”
“बनारस में बीजेपी को पुख्ता यकीन था कि मोदी रिकार्ड मतों से जीतेंगे। यह भरोसा इसलिए भी था कि उन्होंने खुद को स्वयंभू महामानव घोषित कर दिया था। आम जनता की गरीबी, शोषण, अत्याचार, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार की चिंताओं को उन्होंने खूंटी पर टांग दिया था। बीजेपी के कार्यकर्ता भी हद तक लापरवाह हो गए थे और इन्होंने अपने मसीहा को उनके हाल पर छोड़ दिया था। मोदी की जीत का मार्जिन कम हाने से बीजेपी में भितरघात का बवंडर उठ रहा है। सच यह है कि बीजेपी का ओवरकॉन्फिडेंस ही उसे ले डूबा। इस चुनाव ने एक बड़ा संदेश यह भी दिया है कि मोदी को अब एनडीए में शामिल सभी दलों को साथ लेकर चलना होगा। आप पूरे तंत्र को हल्के में लेंगे और जिस तरह से चाहेंगे, वैसे चलाने की कोशिश करेंगे तो नतीजे हैरान करने वाले ही आएंगे।”
बनारस में लोकसभा के नतीजे पर बीएचयू के चर्चित प्रोफेसर ओमशंकर कहते हैं, “बनारस के वोटरों ने मोदी के दंभ को तोड़ा है। उन्होंने भ्रष्टाचारियों पर एक्शन न लेकर गुजरातियों को लूटने-खसोटने का मौका दिया। भ्रष्टाचार का खुलेआम समर्थन किया, जिसका जनमानस में गलत संदेश गया। बीएचयू के भ्रष्टाचार की जानकारी मिलने के बाद भी वो आंखें मूंदे रहे। बीएचयू के निजीकरण का मामले ने उनके नतीजों को प्रभावित किया। स्वास्थ्य और शिक्षा के मौलिक अधिकारों के मुद्दों पर चुनाव के दौरान उनकी चुप्पी जनता को रास नहीं आई।”
छोटी पड़ गई ‘ब्रांड मोदी’ की लकीर
बनारस में मोदी मैजिक के बेअसर होने की कई वजहें गिनाई जा रही हैं। पूर्वांचल से जुड़े दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार अमरेंद्र राय कहते हैं, “इंडिया गठबंधन ने संविधान संशोधन और आरक्षण के मुद्दे से मोदी मैजिक को बेअसर किया। जिन मुद्दों को विपक्ष ने उठाया, उससे दलित और पिछड़े गोलबंद हुए। बीजेपी चाहकर भी इन मुद्दों का आखिर तक काट नहीं ढूंढ पाई। नतीजा बीजेपी बिखरती चली गई। हाशिये पर चली गई कांग्रेस के वोट प्रतिशत में जिस तरह की बढ़ोतरी हुई है और कई सीटों पर जीत ने उसके उत्साह और आत्मविश्वास को बढ़ाया है।”
“दो बार प्रधानमंत्री रहे नरेंद्र मोदी भले ही तीसरी बार सत्ता के शीर्ष पर आ जाएं, लेकिन उनकी करिश्माई छवि में जबर्दस्त डेंट लगा है। पिछले एक दशक में बनारस में बीजेपी का यह सबसे खराब प्रदर्शन रहा। साल 2014 में विकास और भ्रष्टाचार के जिन मुद्दों पर सवार होकर उन्होंने वोटरों को अच्छे दिन का ख्वाब दिखाया था वह साल 2024 में बुरी तरह दरक गया। यह स्थिति तब है जब खबरिया चैनलों ने उनके प्रचार-प्रसार में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। समाजवादी पार्टी ने पूर्व में मंत्री सुरेंद्र पटेल को चुनाव मैदान में उतारा था। इस बार अगर वो मैदान में रहते तो शायद नरेंद्र मोदी का चुनाव जीत पाना मुश्किल हो जाता।”
एग्ज़िट पोल तक मेन स्ट्रीम की मीडिया ने 73 साल के करिश्माई छवि वाले नरेंद्र मोदी को सिर आंखों पर बैठाए रखा। ‘मोदी है तो मुमकिन है’ का नारा लगाने वालों को यह भी एहसास हो गया कि उनका करिश्मा और जादू दोनों बेअसर हो गए हैं। साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में हिंदुत्व और जातीय गोलबंदी में माहिर बीजेपी ने ‘मोदी मैजिक’ का जो मिथक गढ़ा था वो इस बार भर-भराकर गिर गया। इंडिया गठबंधन के आगे ‘ब्रांड मोदी’ की लकीर बहुत छोटी पड़ गई।”
बनारसः किसे कहां मिले, कितने वोट
नरेंद्र मोदी अजय राय अतहर जमाल
शहर दक्षिणी 97878 81732 1032
शहर उत्तरी 131241 101731 4173
वाराणसी कैंट 145922 87645 3423
रोहनिया 127508 101225 10527
सेवापुरी 108890 86751 14491
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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