छत्तीसगढ़ सरकार शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलनरत आदिवासियों से बात करे: सोनी सोरी

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रायपुर। आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी समेत विभिन्न संगठनों ने सरकार से छत्तीसगढ़ में आंदोलनरत आदिवासियों के साथ बातचीत करने की अपील की है। उनका कहना है कि आदिवासी अपनी मांगों को लेकर शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे हैं इसलिए उनका पुलिस के जरिये दमन करने की जगह सरकार को उनसे बात करनी चाहिए। यह बात उन्होंने रायपुर में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कही। जिसमें सोनी सोरी के अलावा मूलवासी बचाओ मंच की सुनीता पोटम, आंसू मरकाम, पीयूसीएल की रिनचिन और कलादास डहरिया के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार मौजूद थे।

सोनी सोरी ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलनरत आदिवासियों से राज्य सरकार को बातचीत करनी चाहिए। साथ ही उन्होंने चेतावनी भी दी। उनका कहना था अगर सरकार ने आदिवासियों से शांतिपूर्ण ढंग से वार्ता नहीं किया तो आंदोलन तेज किया जायेगा। उन्होंने बताया कि 10 जनवरी को आदिवासी बुर्जी गाँव में जमा होंगे और इस सिलसिले में सरकार के पास अर्जी भी भेज दी गयी है। अगर सरकार ने इसमें कोई बाधा पैदा कि तो उसके नतीजे बुरे होंगे। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर आदिवासियों को बुर्जी गाँव मे जमा होने नहीं दिया गया तो जिस तरह से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं, उसी तरह सोनी सोरी भी आदिवासियों के न्याय के लिए हजारों आदिवासियों के साथ रायपुर तक पैदल यात्रा करेंगी।

मूलवासी बचाओ और पीयूसीएल ने आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में लगातार लोगों पर पुलिस व सुरक्षाबल द्वारा हिंसा की जा रही है जो न केवल गैर कानूनी है बल्कि मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है।

ऐसे कई जगहों पर शांतिपूर्ण तरीकों से चल रहे धरना-प्रदर्शनों पर पुलिस व सुरक्षाबलों ने लोगों से मारपीट की और उन्हें गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया है।

वैसे ही बीजापुर ज़िले के पुसनार गांव में स्थापित किए जाने वाले कैम्प के खिलाफ वहा़ं के सैकड़ों गांव वाले धरने पर बैठे थे। 15 दिसम्बर की देर रात को सैकड़ों की संख्या में पुलिस व सुरक्षाबल के जवानों ने पहु़ंचकर रातों-रात बिना ग्राम सभा की अनुमति से जबरदस्ती कैम्प खड़ा कर दिया और बुर्जी गांव के धरना स्थल में प्रदर्शन करने वालों को बेरहमी से पीटा। इस घटना में कई बुजुर्गों को भी गम्भीर चोट पहुंची है। कइयों को झूठे केसों में फंसाकर उनको हिरासत में लिया गया है।

प्रेस वार्ता में सोनी सोरी ने आरोप लगाया कि धरना स्थल पर पहुंचने से सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी रोका जा रहा है। इस सिलसिले में उन्होंने खुद का उदाहरण दिया। अपनी कहानी बयान करते हुए सोनी सोरी ने कहा कि उन्हें मुख्य रास्ते से नहीं जाने दिया गया इसलिए गांव का रास्ता चुनना पड़ा। और इस कड़ी में पास के एक गाँव में रात बितानी पड़ी। इतना ही नहीं प्रशासन को जब इसकी सूचना मिली तो पुलिस अधीक्षक ने फोन कर बाकायदा सोनी को धमकी दी और कहा कि उन्हें उस गांव को छोड़कर अपने घर लौट जाना चाहिए। इसके अलावा पूर्व विधायक मनीष कुंजाम को भी घटना स्थल तक पहुंचने से रोका गया।

संगठन ने यह भी आरोप लगाया है कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार बस्तर में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों पर आवाज़ उठाने के बाद वहाँ की जनता का वोट हासिल कर सत्ता में आई है – उसने वादा किया था कि वह बस्तर की आदिवासी जनता के अधिकारों की सुरक्षा करेगी – चाहे वो विस्थापन के खिलाफ हो या जेल में विचाराधीन कैदी की रिहाई की बात हो या फिर बढ़ते सैन्यीकरण व पुलिस व सुरक्षाबल द्वारा आदिवासी जनता पर की जा रही हिंसा पर रोक लगाने का मामला हो। सभी मामलों में वह आदिवासियों के साथ खड़ी रहेगी। लेकिन कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद जगह-जगह पुलिस कैंप गैर कानूनी तरीके से बनाया जा रहा है और लगातार वहां के आदिवासियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है – फर्ज़ी मुठभेड़, विस्थापन, मारपीट, फर्ज़ी केस में गिरफ्तारियाँ और पत्रकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं के आने-जाने पर रोक टोक लगातार बढ़ रही है। 

संगठनों का कहना था कि शांतिपूर्ण आंदोलनों की अनदेखी कर दिसंबर, 2022 में ही बस्तर संभाग के अलग-अलग इलाकों में 18 पुलिस कैंप स्थापित किए गए हैं। ये सारे काम रात के अंधेरे में किए गए हैं। इस तरह से पुलिस कैम्पों को बिना ग्राम सभा की अनुमति और निजी जमीन मालिक के बगैर अनुमति के बस्तर संभाग में स्थापित करना पेसा कानून का उल्लंघन है। एक तरफ सरकार पेसा कानून देकर लोगों से वाह वाही ले रही है और दूसरी ओर उसी कानूनी प्रक्रिया व लोकतांत्रिक ढांचे को हानि पहुंचा रही है। 

मूलवासी बचाओ मंच, बेचापाल के अध्यक्ष आंसू मरकाम ने भी राज्य सरकार के ऊपर आरोप लगाते हुए कहा कि बस्तर संभाग में जब भी नया पुलिस कैम्प खुला है तब-तब संयुक्त फोर्स ने आदिवासियों की फर्जी नक्सल मुठभेड़ दिखाया है। फर्जी मुठभेड़ के बाद आदिवासियों के शवों का अंतिम संस्कार आदिवासी रीति रिवाज से करने तक का मौका नहीं दिया गया है। हाल ही में भैरमगढ़ क्षेत्र के तिम्मेनार गाँव मे एक आदिवासी युवक की जिला सुरक्षा बल (DRG) के जवानों द्वारा हत्या कर दी गयी और शव को डीजल डालकर जलाया गया है। 

बस्तर संभाग के अंदरूनी क्षेत्रों में आज भी आदिवासियों द्वारा शांतिपूर्ण आंदोलन के जरिये पुलिस कैम्पों का विरोध चल रहा है। आंदोलनकारियों को तरह-तरह से धमकियां स्थानीय पुलिस प्रशासन द्वारा दिया जा रहा है। धमकियों में जिला बीजापुर के बुर्जी आंदोलनकारियों के साथ जो पुलिस ने बर्बरता किया है। उसी का उदाहरण देकर अन्य जगह चल रहे आंदोलकारियों को धमकाया जा रहा है। 

PUCL संगठन व मूलवासी बचाओ मंच ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से राज्य सरकार के समक्ष मांगे रखी हैं:

– जबरन दमनकारी तरीके से लगाए गए पुलिस व सुरक्षा कैंप हटाए जाएं।

– जिन लोगों को पुलिसिया हिंसा के कारण चोटें लगी हैं उनको तुरंत स्वास्थ्य सेवाएं व इलाज प्रदान किया जाए।

– सिलगेर में पुलिस कैंप लगाए जाने के लिए ली गई जमीन का मुआवजा दिया जाए और आंदोलन के बाद मारे गए ग्रामीणों की जांच के लिए गठित कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए।

– वर्तमान में बुर्जी व अन्य धरना स्थलों में बड़े स्तर पर तैनात पुलिस व सुरक्षाबलों को तुरंत हटाया जाए।

– सामाजिक कार्यकर्ताओं व पत्रकारों के आने जाने पर रोक व रुकावटें बंद करके उनको अपने लोकतांत्रिक हक से बस्तर के सभी इलाकों में जाने की स्वतंत्रता रहे।

-जगह जगह के आन्दोलनकारियों व अन्य ग्रामीणों पर लगे फर्जी मुकदमों को तत्काल वापस लिया जाए।

(रायपुर से जनचौक संवाददाता लिंगा कोडोपी की रिपोर्ट।)

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