आदिवासी कोरोना से बचने को अपना रहे देसी तरीके

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बस्तर। कहते हैं ग्रामीण भारत में संसाधनों की कमी नहीं होती। जरूरत के हिसाब से वो अपने आस-पास की चीजों से अपनी जरूरत पूरी कर लेते हैं। अभी देश में वैश्विक कोरोना वायरस का संक्रमण फैला हुआ है। इसकी वजह से पूरे देश में 21 दिनों का लॉक डाउन है।

जनता मास्क-और सेनेटाइजर लेने मेडिकल स्टोरों पर उमड़ पड़ी है। गांव के लोग कहां से मास्क लाएंगे और लाएंगे भी तो क्या वो उसकी कीमत अदा कर सकते हैं? इन्ही जरूरत को पूरा करने छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासी ग्रामीणों ने अपना खुद का मास्क और सेनेटाइजर तैयार कर लिया है। 

इनके लिए मास्क का साधन सराई पेड़ का पत्ता है। हाथ धोने के लिए चूल्हे की राख। इससे वो अपने हाथ की सफाई कर रहे हैं। 

ग्रामीणों का कहना है कि इस बिमारी के बारे में उन्होंने सुना है कि किसी को छूने से ही फैलता है। इसलिए ये निर्णय लिया है। पूरे गांव के लोग पत्ते का मास्क पहन कर इस कोरोना से जंग लड़ रहे हैं।

उत्तर बस्तर कांकेर जिले के सुदूर आदिवासी बाहुल्य आमाबेड़ा के ग्राम कुरुटोला में संचार की व्यवस्था नहीं है। उन्हें देश के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाती है। उन्होंने लोगों से ही सुना है कि देश में कोरोना वायरस का प्रकोप है।

इस इलाके में न कोई  मेडिकल स्टोर है और न ऐसी कोई दुकान जहा से यह मास्क खरीद सकें। न ही नजदीक में कोई अस्पताल, जहां से वे इस वायरस  के लिए कुछ संसाधन जुटा सकें।

जिला प्रशासन ने शहरी क्षेत्रों में सभी माकूल व्यवस्था की है, लेकिन सुदूर अंचलों में कोई व्यवस्था नहीं की गई है। यहां ग्रामीणों ने खुद इस वायरस से लड़ने का बीड़ा उठाया है और पत्ते का मास्क बना कर सभी गांव के लोग पहन रहे हैं।

सिर्फ इतना ही नहीं लोगों ने गांव को भी लॉकडाउन कर रखा है। कोई भी अनजान व्यक्ति इस गांव में नहीं आ सके, इसका ख्याल रखा जा रहा है। ग्रामीणों का  कहना है कि 31 मार्च तक वे अपने घरों में ही रहेंगे।   

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