(पांच दरियाओं की धरती ‘गैंगलैंड’ में तब्दील हो रही है। बेहद त्रासद स्थिति है। कोई पुख्ता समाधान इसे रोकने के लिए सामने नहीं है। यकीनन पंजाब बर्बादी के कगार पर है। इस सब पर ‘जनचौक’ के पंजाब के विशेष संवाददाता अमरीक ने एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। प्रस्तुत है पहली कड़ी:)
आबादी के औसत के लिहाज से जितना बर्बर खून-खराबा और तबाही का मंजर भारतीय पंजाब ने झेला है; शायद इस महादेश के किसी अन्य राज्य ने नहीं। 1947 से पहले का सब कुछ अब इतिहास का हिस्सा है और बेशक उसे भुला पाना नामुमकिन है। आजादी के बाद के दशक वर्तमान के दायरे में आते हैं। बहुतेरे लोग जिंदा हैं जिन्होंने अपनी आंखों से रक्तरंजित विभाजन और उजाड़ देखा। बुलंद हौसलों के दावों के बावजूद दहशत उन पर कहीं न कहीं हावी नजर आती है।
स्थानीय लोक बोली में कहावत है कि पंजाब का नक्शा बदल सकता है लेकिन बंटवारे की कहानियां नहीं! यह भी कहावत मौजूं है की पांच दरियाओं की यह धरती जल नहीं खून भी मांगती है। सत्तर के दशक में सुदूर नक्सलबाड़ी से चलकर हथियारबंद नक्सल लहर पंजाब चली आई। जबकि रास्ते में कई राज्य और शहर पड़ते थे। उस लहर ने अवतार पाश, गुरशरण सिंह, लाल सिंह दिल, अमरजीत चंदन, संत राम उदासी, कुमार विकल, नाटककार अजमेर सिंह औलख… सरीखे हस्ताक्षर दिए। निरूपमा दत्त जैसी नक्सलियों पर बेखौफ होकर लिखने वाली पत्रकार को जन्म दिया। पुलिसिया दमन ने (जिनमें तत्कालीन आईपीएस अधिकारी और अब अलगाववादी खालिस्तानी नेता सांसद सिमरनजीत सिंह मान तथा दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल सरकारी कमांड संभाले हुए थे)। उस लहर को बेरहमी के साथ कुचल दिया।
मुहावरे की भाषा में दो सूबे की दीवारों पर आज भी नक्सल प्रभावित लोक नेताओं के खून से इंकलाब की इबारतें लिखी हुईं हैं। व्यवस्था तब भी अंधी थी और आज भी उसकी आंखों पर सत्ता के काले चश्मे चढ़े हुए हैं। जिसके चलते उसे कुछ दिखाई नहीं देता। वैचारिक तौर पर पंजाब से नक्सलवाद कभी विदा नहीं हुआ। लेखकों और छात्रों की पीढ़ी दर पीढ़ी नक्सलवाद के प्रभाव में रही। 1978 के आसपास केंद्र की कांग्रेस सरकार की खुली हिमायत से जरनैल सिंह भिंडरांवाला की अगुवाई में आतंकवाद का आगाज हुआ। अलहदा पहलू है कि वह अपने ही आकाओं से ही बागी हो गया और समूचा पंजाब उसके गुर्गों की दहशत की जद में आ गया। तब वामपंथी और पूर्व नक्सली ही थे जिन्होंने भिंडरांवाला को खुलकर ललकारा। उस समय हुकूमत तक उससे खौफजदा थी। आखिरकार कुछ आंतरिक परिस्थितियों के चलते और कुछ बाहरी देशों के दबाव में सिखों को शाश्वत जख्म देने वाला ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ’।
ऑपरेशन ब्लू स्टार की कहानी से युवाओं का हृदय परिवर्तन
36 साल पहले जिस पीढ़ी का जन्म ही नहीं हुआ था; वह ऑपरेशन ब्लू स्टार की बाबत लगभग अनभिज्ञ रहती लेकिन सोशल मीडिया/यूट्यूब में उसे उस दौर में ला खड़ा कर दिया जब श्री स्वर्ण मंदिर साहब पर फौज का हमला हुआ था। कनाडा से एक सर्वेक्षण आया था कि सिख परिवारों से आने वाले किशोर बच्चे- बच्चियां अतिरिक्त ध्यान से ऑपरेशन ब्लू स्टार की कहानी देखते थे। कमोबेश भारत में भी ऐसा था। यहां तो गुरुद्वारों में सविस्तार बताया जाता था। कुछ सच कुछ झूठ। बेशुमार आतंकी सरगनाओं-जिन्हें कमांडर, उप कमांडर, एरिया कमांडर और चीफ कमांडर कहा जाता था-की कहानियों को गौरवान्वित किया जाता था।
नतीजा यह रहा कि किशोरों के लिए बंदूक कोई खिलौना नहीं रही बल्कि किसी मकसद का सबब बन गई। सूक्ष्म से सूक्ष्म आंखें कई बार नहीं देख पाती कि धर्म से कट्टरता कब गायब हो गई और कट्टरता से धर्म। धर्म और कट्टरता ओट का काम करने लगे। सन् 2000 आते-आते पंजाब में एक नए लफ्ज़ ‘गैंगस्टर’ का विधिवत आकार लिया। इस पत्रकार को बखूबी याद है कि तब पटियाला के थापर कॉलेज के एक छात्र ने अपनी दोनों बाजुओं पर पंजाबी में लिखवाया था, ‘मैं हां गैंगस्टर’ यानी ‘मैं गैंगस्टर हूं’। उसके बाद विभिन्न कॉलेजों, यहां तक की हाई स्कूल के सैकड़ों छात्रों ने इस प्रक्रिया को खुद अपने जिस्म पर दोहराया था।

गैंगस्टर शब्द रफ्ता-रफ्ता सूबे के एक कोने से दूसरे कोने तक गूंजने लगा और व्यवहारिक शक्ल भी अख्तियार करने लगा। आम लोगों में भी यह शब्द प्रचलित हो गया। छोटे व्यापारी और दुकानदार उन किशोरों, नौजवानों और युवकों से बाकायदा खौफ खाने लगे, जिनकी बाजुओं पर गैंगस्टर और हथियारों के टैटू बने हुए थे। पहले-पहल सिलसिला शुरू हुआ रंगदारी से। राज्य के बाशिंदों के लिए यह नया शब्द था। देसी कट्टों और चाकू-छूरे आदि का निर्लज्ज प्रदर्शन करते हुए सरेआम दिन-दहाड़े गल्ले लूट लिए जाते। धमकी दी जाती कि पुलिस के आगे शिनाख्त की या शिकायत तो अंजाम बुरे से बुरा होगा!
बठिंडा के एक छोटे आढ़ती के साथ यह हुआ था। इत्तेफाक से यह पत्रकार उन बुजुर्ग तरसेम लाल को जानता है। वह बताते हैं कि उनसे 2690 रुपए की नगदी और हाथ घड़ी छीन ली गई थी। वह पुलिस में नहीं गए लेकिन कुछ दिन के बाद लुटेरा गिरोह का सरगना पुलिस की गिरफ्त में आया तो उसने सब कुछ बता दिया। तरसेम लाल को बुलाया गया लेकिन उन्होंने पहचानने से इंकार कर दिया। सरगना के साथ उसके तीन साथी भी दबोचे गए थे। सबकी बाजुओं पर गैंगस्टर और हथियारों के टैटू थे।
पंजाब में फिर यह सब आम हो गया है। हर जिले से खबर छपती कि किसी पेट्रोल पंप को लूट लिया गया है या किसी स्टोर को। पंजाब के एक आईपीएस का कहना है कि लंबे अरसे तक लूटपाट करने वाले तथाकथित गैंगस्टर असंगठित थे। उनके गिरोह छोटे-मोटे थे। सदस्य नशेड़ी थे और चार या पांच से ज्यादा नहीं होते थे लेकिन जब व्यापक रूप से लूटपाट होने लगी और तंत्र को चुनौती महसूस हुई तो पुलिस हरकत में आई। तब तक काफी देर हो चुकी थी।
हिंदी और अंग्रेजी में डब हुईं क्राइम फिल्में देखने के बाद कुछ लोगों ने विधिवत प्रोफेशनल तरीके से कमान संभाल कर काम करना शुरू किया। गन कल्चर ऐसे पनपा जैसे आतंकवाद के काले दौर में भी नहीं पनपा था। सोशल मीडिया अपनी जगह बना चुका था। हर हाथ में मोबाइल मिलने लगा।
देश की 2 प्रतिशत आबादी वाले पंजाब में 10 फीसदी हथियार
गौर कीजिए कि पंजाब में देश की 2 फ़ीसदी आबादी रहती है। शेष भारत से तुलना करें तो यहां दस फ़ीसदी लाइसेंसी हथियार हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय का एक आंकड़ा बताता है कि 31 दिसंबर 2016 तक देशभर में 33.69 लाख से ज्यादा लाइसेंसी बंदूकें, पिस्टल और रिवाल्वर थे। अब यह आंकड़ा कई गुना ज्यादा है। भगवंत मान सरकार ने गन कल्चर की बाबत सख्ती बरती है। वाहियात गीतों का हथियार संस्कृति को बढ़ावा देने में बहुत बड़ा योगदान है। अब सरकार ने गीतों या सोशल मीडिया पर बंदूक या अन्य जानलेवा हथियारों के प्रदर्शन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। उल्लंघन का मतलब सीधी गिरफ्तारी होगा। अगले आदेशों तक हथियारों के लिए नए लाइसेंस भी जारी नहीं किए जाएंगे।

अमृतपाल सिंह खालसा प्रकरण ने सरकार के तमाम सख्त आदेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ा दी थीं। अजनाला प्रकरण हुआ और अमृतपाल सिंह पुलिस की नाक के ऐन नीचे से फरार होने में कामयाब हो गया। बाद में पकड़ा गया। जब तक वह खुलेआम सरगर्म था, उसके साथ तीस से चालीस गनमैन रहते थे। बाद की तफ्तीश में पाया गया था कि उनमें से ज्यादातर के पास नाजायज असलहा था।
4 नवंबर को अमृतसर में शिवसेना नेता सुधीर सूरी को भारी भरकम पुलिस फोर्स की मौजूदगी में सरेआम गोली मार दी गई और वह ठौर मारा गया। 10 नवंबर को डेरा सच्चा सौदा के अनुयाई प्रदीप सिंह का कत्ल हो गया। जब उसे मारा गया तो उसके साथ दो सुरक्षा गार्ड थे। इससे पहले मार्च में इंटरनेशनल स्तर के कबड्डी खिलाड़ी संदीप नांगल अंबिया को और मई में पंजाबी गायक सिद्धू मुसेवाला को सरेराह गोलियों से भून दिया गया। देसी-विदेशी मीडिया ने लगभग लिखा कि पंजाब ‘आतंक की राजधानी’ बनता जा रहा है! कहीं न कहीं इसमें आंशिक सच्चाई भी थी।
पंजाब पुलिस में ऊपर से नीचे तक गुटबंदी
आज भी पंजाब कानून व्यवस्था के लिहाज से पूरी तरह महफूज नहीं है। आए दिन खुलेआम लूटपाट-छीनाझपटी की वारदातें सरेआम अंजाम दी जाती हैं। पुलिसिया पकड़ का आंकड़ा बहुत नीचे है। अवाम का मनोबल टूटा हुआ है। बावजूद इसके कि भगवंत मान ने लोकहित के कई अच्छे काम किए हैं और उनकी सराहना भी खूब हो रही है। लेकिन कानून-व्यवस्था शायद उनसे इसलिए नहीं संभल पा रही कि राज्य पुलिस के मुखिया गौरव यादव कार्यकारी पुलिस महानिदेशक हैं।

ऊपर से लेकर नीचे तक पुलिस खेमों में विभाजित है। पुलिस विघटन का शिकार है। इसीलिए बार-बार अर्धसैनिक बल शहरों से लेकर कस्बों तक फ्लैग मार्च करते नजर आते हैं। जेलों में बंद या बाहर गैंगस्टरों के गुर्गों पर इस सबका प्रत्यक्ष या परोक्ष कोई प्रभाव देखने को नहीं मिलता। तमाम बड़ी जेलों में सीआरपीएफ तैनात है। फिर भी वहां एक माह में दो बार गैंगवार होती है। मोबाइल फोन और अन्य आपत्तिजनक सामग्री पकड़ी जाती है।
जेल से लॉरेंस बिश्नोई दे रहा इंटरव्यू
लॉरेंस बिश्नोई सिद्धू मुझसे वाला कत्ल केस में मुख्य आरोपी है। कथित तौर पर बठिंडा जेल से उसका दो बार इंटरव्यू वायरल हुआ। इंटरव्यू में उसने जो कहा सो कहा, सिने अभिनेता सलमान खान को जान से मार देने की खुली धमकी दी। आलम यह है कि पुलिस ने इसकी सूचना महाराष्ट्र पुलिस को तो दी लेकिन लॉरेंस बिश्नोई से इस बाबत वह कुछ भी उगलवा नहीं पाई। पंजाब से दी गई धमकी का असर मुंबई में खूब पड़ा लेकिन यहां यह मामला अजीब से रहस्य के साथ शांति के हवाले हो गया। इस सवाल का जवाब भी अभी तक नहीं मिला है कि आखिर लॉरेंस बिश्नोई जैसे खतरनाक गैंगस्टर ने जेल से बाकायदा पूरी तैयारी के साथ इंटरव्यू कैसे दे दिया? वह भी दो किस्तों में! लॉरेंस का इंटरव्यू जिसमें उसने सलमान को मारने की धमकी दी है हमारी जेल व्यवस्था पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लगाता है।
पंजाब में लगभग 70 संगठित गिरोह सक्रिय
पुलिस सूत्रों के मुताबिक इस वक्त पंजाब में लगभग 70 संगठित गिरोह सक्रिय हैं। 500 गुर्गे हैं और इनमें से 300 विभिन्न जेलों में बंद हैं। 70 में से पहली कतार के 10 प्रमुख गैंगस्टर गिरोह हैं जिनके मुखिया जेल की सलाखों के पीछे से अपना काला धंधा जारी रखे हुए हैं। सुपारी लेकर हत्या करवाने तक और जबरन वसूली के लिए खुद धमकी देना इनके लिए आम बात है। बड़े नशा तस्करों, दुबई और पाकिस्तान में बैठे गैंगस्टरों से इनके खुले ताल्लुक और व्यापारिक संबंध हैं।
नशे की लत लगाकर युवाओं को अपने गैंग में शामिल कर रहे गैंगस्टर
पिछले दिनों पंजाब के आतंकवाद के दौर का कुख्यात आतंकवादी परमजीत सिंह पंजवड़ पाकिस्तान के लाहौर में अपने प्रतिद्वंद्वियों के हाथों कत्ल हो गया था। खुलासा हुआ कि उसके ताल्लुक पंजाब की जेलों में बंद गैंगस्टरों से थे। वह आईएसआई और गैंगस्टरों के बीच मजबूत कड़ी का काम करता था। सूत्रों के मुताबिक अब उसकी जगह किसी और (पाकिस्तान में पनाह लिए हुए) सिख को तैयार किया जा रहा है ताकि हिंदुस्तानी पंजाब की नौजवानी की बर्बादी जारी रहे। जिक्रेखास है कि गैंगस्टर्स लूटपाट, कत्ल और फिरौती का काला धंधा ही नहीं करते बल्कि नौजवानों को जानलेवा नशे भी महंगे दाम पर बेचते हैं। सेवन करने वाले के पास जब पैसे नहीं बचते तो एक आखरी रास्ता बचता है कि वह इन गैंगस्टर्स के लिए काम करे। राज्य में यह खुलेआम हो रहा है। कड़वी है लेकिन हकीकत है।
पंजाब के युवाओं के ‘हीरो’ कैसे बने गैंगस्टर
अहम सवाल है कि युवा पीढ़ी के ‘हीरो’ कौन गैंगस्टर कैसे बने? इस पहलू पर हमने छानबीन की तो पाया कि जिला जालंधर का रहने वाला सुक्खा काहलवां पंजाब के गैंगस्टर्स की जमात का पहला ‘पोस्टर बॉय’ था। उस पर बाकायदा पंजाबी फिल्म भी बनी थी। उसके संगी-साथी उसे रोबिन हुड भी कहते थे लेकिन वह वस्तुतः एक सीरियल किलर था। उत्तर भारत में उसके खिलाफ हत्या, हत्या की कोशिश, अपहरण और फिरौती के कई मामले दर्ज थे। उसकी लीक पर चलने वाले ही बाद में उसके दुश्मन हो गए।
15 साल की उम्र में ही खून से रंग गए थे सुक्खा काहलवां के हाथ
सुक्खा ने पहली बार अपने हाथ जब खून से रंगे थे तब उसकी उम्र महज 15 साल थी। उसके बाद वह अपराध के रास्ते पर आगे बढ़ता रहा। विक्की गोंडर कभी उसका साथी था लेकिन बाद में दोनों में जबरदस्त दुश्मनी हो गई। 2015 में पुलिस उसे जेल में पेशी के लिए ले जा रही थी तो पुलिस वाहन को विकी गोंडर और उसके साथी बदमाशों ने जबरन रोक लिया।

सुक्खा काहलवां को बुलेट प्रूफ गाड़ी से दर्जन भर से ज्यादा अत्याधुनिक हथियारबंद पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में बाहर निकाला गया और ताबड़तोड़ गोलियों से भून दिया गया। यह सब दिनदहाड़े जीटी रोड पर हुआ और पुलिस तमाशा देखती रह गई। वीभत्स यह कि सुक्खा की निर्मम हत्या के बाद उसके शव पर खड़े होकर पांच मिनट तक भांगड़ा डाला गया। उसके बाद हत्यारे आराम से चले गए।
रातों-रात विक्की गोंडर बना युवाओं का ‘नायक’
रातों-रात विक्की गोंडर नायक बन गया। सुक्खा का गिरोह अभी भी सक्रिय है और सोशल मीडिया पर उसके नाम से सैकड़ों पेज बने हुए हैं। मरने तक वह नौजवानों को गैंगस्टर बनने और हथियार उठाने के लिए उकसाता था। चंद सालों तक वह पंजाब में अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह था। जेल में बंद हुआ तो वहीं से सारा नेटवर्क चलाया। कहा जाता है कि लॉरेंस बिश्नोई उससे काफी प्रभावित था।
सुक्खा काहलवां की हत्या के बाद विक्की गोंडर पंजाब के अंडरवर्ल्ड का सर्वेसर्वा बनना चाहता था। वह मुक्तसर जिले के सरवन बोड़ला गांव के एक साधारण किसान परिवार में जन्मा था। उसका असली नाम हरजिंदर सिंह था। उसने गोंडर अपने कच्चे नाम के पीछे इसलिए लगाया कि वह अपना ज्यादातर समय खेल के मैदान में बिताता था यानी खिलाड़ी था और बहुत अच्छा खिलाड़ी!

वह एथलीट बनना चाहता था लेकिन 2008 उसे अपराध की दुनिया में ले आया। अचानक उसने दाऊद इब्राहिम के बारे में कुछ पढ़ा तो फैसला किया कि उसे पंजाब का दाऊद बनना है! इसी कवायद में उसके खिलाफ अपराध की फाइलें बढ़ती चली गईं और 2010 आते-आते वह पंजाब ही नहीं बल्कि हरियाणा और राजस्थान में भी आतंक का पर्याय बन गया। उसने अपने गैंग का दायरा बढ़ाया और उसकी एक फोन कॉल पर लाखों की फिरौती अथवा वसूली मिलने लगी। कानून के लंबे हाथों ने आखिर उसे दबोच लिया और विक्की गोंडर हरजिंदर सिंह 2018 में एसटीएफ के हाथों लंबे मुकाबले के बाद मारा गया। मुठभेड़ में उसके दो साथी भी खेत हो गए। उसका गिरोह भी बगैर उसके जैसे-तैसे चल रहा है।
लॉरेंस बिश्नोई के गैंगस्टर बनने की कहानी
सुक्खा काहलवां और विक्की गोंडर तो अपने हश्र को हासिल हो गए। अपने पीछे वे जहर की लंबी जड़ें छोड़ गए हैं। प्रसंगवश, विपथगा नौजवान पीढ़ी को थोड़ा लॉरेंस बिश्नोई के बारे में भी जानना चाहिए जिसे पिछले दिनों खूब सुर्खियां हासिल हुईं। वह चर्चित सिद्दू मूसेवाला हत्याकांड का मुख्य आरोपी है। मानसा पुलिस उसका चालान पेश कर चुकी है। उसे दिल्ली की तिहाड़ जेल से जब पंजाब के मानसा लाया गया था तो कोर्ट के आदेश पर पूरे रास्ते की वीडियोग्राफी की गई थी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह नामी बदमाश किस कतार का है। यानी प्रथम श्रेणी का!
31 वर्षीय लॉरेंस बिश्नोई, बिश्नोई जाति से है। वह चंडीगढ़ के प्रख्यात डीएवी कॉलेज का स्नातक है। उसके बाद वह पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ का छात्र हो गया और आगे जाकर स्टूडेंट यूनियन का अध्यक्ष बना। इस पर हत्या के प्रयास, अतिचार, डकैती और मारपीट सहित कई आपराधिक मामले विभिन्न राज्यों में दर्ज हैं। 2017 से वह राजस्थान की भरतपुर जेल में बंद था। 2022 में उसे ट्रांजिट रिमांड पर दिल्ली की तिहाड़ जेल लाया गया और सिद्धू मुसेवाला की हत्या के बाद पंजाब। यहां उसके खिलाफ कई जिलों में मामले दर्ज हैं।

2018 में उसका एक खास सहायक पुलिस की गिरफ्त में आया था और उसने बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान की हत्या की योजना का चौंकाने वाला खुलासा किया था। पुलिसिया हथकंडों के आगे टूट गया था और बताया था कि लॉरेंस बिश्नोई किसी भी सूरत में सलमान खान की हत्या करना चाहता है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक लॉरेंस बिश्नोई के देश में 800 से ज्यादा सक्रिय गुर्गे हैं। वह जेल से साम्राज्य चलाता है। जेल चाहे तिहाड़ हो, भरतपुर हो या पंजाब की अति सुरक्षित मानी जाने वालीं जेलें। सूत्रों की मानें तो लॉरेंस बिश्नोई मनी लॉन्ड्रिंग का भी बड़े स्तर पर काला धंधा करता है।
गैंगस्टर देवेंद्र बंबीहा का गिरोह आज भी सक्रिय
गौरतलब है कि इसी साल जालंधर में अंतरराष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी संदीप सिंह की सरेआम हत्या कर दी गई थी और इसकी जिम्मेदारी गैंगस्टर देवेंद्र बंबीहा के गिरोह ने ली थी। बंबीहा मोगा जिले के बंबीहा भाई गांव का मूल बाशिंदा था। छोटी उम्र में ही वह शार्पशूटर बन गया। 21 साल की उम्र में जेल ब्रेक करके उसने अपना मजबूत गिरोह बनाया था। वह आधा दर्जन हत्या के मामलों में नामजद था।

2012 से 2016 में अपनी पुलिसिया मुठभेड़ में हुई हत्या के वक्त तक वह पंजाब में मोस्ट वांटेड गैंगस्टर में से एक था। वह सोशल मीडिया पर अपनी आपराधिक गतिविधियों को अपडेट करता था। 9 सितंबर, 2016 को बठिंडा जिले के रामपुरा के पास गिल कलां में पुलिस ने उसे चौतरफा घेरकर मार डाला। जबकि बंबीहा कहा करता था कि वह पुलिस की गोली से हरगिज़ नहीं मरेगा। मौत के वक्त उसकी उम्र 26 साल की थी। वह तो मारा गया लेकिन उसका खड़ा किया गया गिरोह आज भी सक्रिय है। जालंधर में अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी संदीप सिंह की हत्या बंबीहा गिरोह ने ही की थी।
मनी लॉन्ड्रिंग पंजाब के गैंगस्टर्स का काला धंधा
मनी लॉन्ड्रिंग पंजाब के गैंगस्टर्स का पर्दे के पीछे का काला धंधा है। फोन पर सब कुछ चलता है लेकिन फोन अति सुरक्षित जैमर लगी जेलों तक कैसे पहुंचते हैं, इस रहस्य को समझना भी जरूरी है। अब तो जेल विभाग भी सीधे मुख्यमंत्री के अधीन है। लेकिन कुव्यवस्था में कोई खास सुधार आया नहीं दीखता। यह महकमा पूर्व आईपीएस अधिकारी और आम आदमी पार्टी के विधायक कुंवर विजय प्रताप सिंह को सौंप देना चाहिए था। तेजतर्रार और निहायत ईमानदार छवि वाले कुंवर जेल अधीक्षक भी रह चुके हैं। खैर, यह सरकार के अपने फैसलों पर निर्भर है।
आम आदमी पार्टी की सरकार बनने से पहले गैंगस्टर्स संस्कृति
पंजाब में आम आदमी पार्टी के गठन से बहुत पहले गैंगस्टर्स संस्कृति ने जड़ें जमा ली थीं। निसंदेह भगवंत मान सरकार ने बेरोजगार नौजवानों को खूब नौकरियां दी हैं और आए दिन एलान करके उस पर पूरा भी उतरते हैं लेकिन बेरोजगारों की फौज बहुत बड़ी है। इनमें से 50 फ़ीसदी हिस्सा नशे की दलदल में है और गैंगस्टरों के हाथों चढ़ा हुआ है।

अकेले मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल तथा विधायकों की ईमानदारी काम नहीं आएगी। युद्ध स्तर पर इसके लिए कुछ करना होगा। कम से कम इतना तो करना ही होगा कि किशोरावस्था से नौजवानी की तरफ जाते लड़के गैंगस्टर्स को अपना आदर्श तो नहीं ही मानें। शासन व्यवस्था संभालने वालों के साथ-साथ स्थानीय लोगों का सहयोग भी लिया जाए तो किसी हद तक मुफीद नतीजे निकल सकते हैं। नहीं तो पंजाब बर्बादी की एक और कहानी बनकर रह जाएगा। पंजाबियों के हीरो सरदार भगत सिंह या करतार सिंह सराभा नहीं होंगे। जो होंगे; इनके साथ उनका नाम लिखना भी गुनाह है!
यह था पंजाब के ‘गैंगलैंड’ के कुछ तथ्य। अभी बहुत कुछ बाकी है। मसलन पुलिस-गैंगस्टर गठजोड़। जेलों में बंद गैंगस्टर अपना साम्राज्य कैसे चलाते हैं? कयास है कि कुछ नामी पंजाबी गायक इनसे जुड़े हुए हैं और बाकायदा इनके लिए काम भी करते हैं। इनमें से एसटीएफ ने कुछ की खास पड़ताल भी की है।
(पंजाब से अमरीक की विशेष रिपोर्ट)
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