स्पीकर के चुनाव से तय होगा एनडीए सरकार का भविष्य

Estimated read time 1 min read

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भले ही एनडीए गठबंधन को इस बार भी सरकार बनाने में सफलता हासिल हो गई हो, और साथ ही तमाम घटक दलों के बीच थोड़ी-बहुत खींचतान के बावजूद मंत्रिमंडल बंटवारे की औपचारिकता पूरी कर ली गई हो, लेकिन 2024 की सरकार में लोकसभा अध्यक्ष पद असल में सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभर चुका है। 24 जून से संसद की नई पारी की शुरुआत हो रही है, और इसी के साथ एनडीए सरकार की असल अग्निपरीक्षा का वक्त शुरू होता है।

इस तथ्य से भाजपा भी वाकिफ है, और घटक दलों को भी अहसास है कि अल्पमत मोदी सरकार के लिए इस बार सदन के अध्यक्ष की क्या अहमियत है। यही वजह है कि गठबंधन में सबसे बड़े दल टीडीपी और जेडीयू ने कैबिनेट बंटवारे को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है, क्योंकि सबकी नजर कहीं न कहीं लोकसभा अध्यक्ष पद पर टिकी हुई है।

अल्पमत भाजपा के पक्ष में गोदी मीडिया के शोर की वजह

जब मोदी सरकार की कैबिनेट में एक बार फिर से मोदी पार्ट 1 और पार्ट 2 की तरह सभी महत्वपूर्ण मंत्रालयों पर भाजपा के सांसदों को आसीन किया जा रहा था, तो देश का राष्ट्रीय मीडिया माहौल बना रहा था कि 240 सीट के बावजूद मोदी सरकार ही अपना पार्ट 3 सफर शुरू करने जा रही है। जो लोग गोदी मीडिया और पीएम नरेंद्र मोदी के बयानों पर आज भी यकीन कर लेते हैं, उन्होंने अभी से मान लिया है कि मंत्रिमंडल की तरह लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी भी भाजपा के पाले में ही जाने वाली है। उन्हें यकीन दिलाया जा चुका है कि जनता दल (यूनाइटेड) और तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी) को बिहार और आंध्र प्रदेश में अपने जनाधार को मजबूत करने के लिए भाजपा की सख्त जरूरत है, इसलिए उनका पूरा ध्यान विशेष राज्य के दर्जे और आर्थिक पैकेज को हासिल करने पर लगा रहने वाला है।

लेकिन क्या यही एकमात्र सच्चाई है? मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल को देखते हुए एनडीए में शामिल घटक दलों को भी कहीं न कहीं लगता है कि लोकसभा स्पीकर का पद गैर-भाजपा सदस्य को ही मिलना चाहिए। हालांकि जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी का हालिया बयान इसके उलट है। केसी त्यागी ने अपने बयान में कहा है कि एनडीए में सबसे बड़ा घटक दल होने के नाते लोकसभा स्पीकर पद पर पहला अधिकार भाजपा का है। घटक दलों में तोड़फोड़ की भाजपा की कोशिशों को नकारते हुए त्यागी ने आगे कहा, “हम पिछले 35 वर्षों से भाजपा के साथ गठबंधन में हैं, और हमें इस प्रकार की कोई समस्या अभी तक नहीं आई है।”

इस बयान को यदि आधार बनाएं तो माना जा सकता है कि जेडीयू और टीडीपी का आपस में कोई तालमेल नहीं है, और दोनों दल केंद्र सरकार से अपने-अपने राज्यों के लिए ज्यादा से ज्यादा आर्थिक पैकेज की राह तक रहे हैं। लेकिन यही भी सही है कि नीतीश कुमार के पैंतरों को समझ पाना शायद सबसे कठिन है। वे जो कहते हैं, अक्सर उसके उलट काम करते हैं। टीडीपी के लिए भी तात्कालिक कार्यभार आंध्र प्रदेश में हासिल जनादेश की आकांक्षाओं को पूरा करने में निहित है। इसके साथ ही आंध्र की जनता को राज्य विभाजन के पश्चात अभी तक हैदाराबाद जैसे बूमिंग शहर और राज्य की राजधानी की कमी बुरी तरह से खल रही है। नायडू के लिए अमरावती में रुके पड़े विकास कार्यों को पुनर्जीवित करने और अगले 5 वर्षों में एक शानदार राजधानी को खड़ा करने का कार्यभार है।

लेकिन टीडीपी और जेडीयू के नेता राजनीति के कोई कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। वे अच्छी तरह से जानते हैं कि आज उन्हें जो महत्व मिला है, उसके पीछे भाजपा के संख्याबल में भारी कमी सबसे बड़ी वजह है। उन्हें यह भी पता है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भाजपा और अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा में जमीन असमान का अंतर है। जो भाजपा आज 240 सांसद होने की वजह से पूर्ण बहुमत से 32 सीट दूर है, मौका मिलते ही अपने संख्याबल में इजाफा करने से नहीं चूकेगी। महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी में तोड़फोड़ इसका जीता-जागता सुबूत है, जिसे विधानसभा अध्यक्ष की वजह से ही साकार किया जा सका।

विपक्ष भी बखूबी जानता है कि इस बार सदन में लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका सबसे अहम होने जा रही है। अगर भाजपा अपनी पसंद के व्यक्ति को स्पीकर पद पर बिठाने में कामयाब रही तो एनडीए सरकार को मोदी सरकार में तब्दील करने के लिए ज्यादा समय नहीं लगेगा। पिछले 10 वर्षों के दौरान इस तथ्य से आम भारतीय तक परिचित हो चुका है। इसलिए संकट सिर्फ भाजपा के घटक दलों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि विपक्षी खेमे में भी भारी तोड़फोड़ संभव है। इसकी सबसे बड़ी वजह देश के कॉर्पोरेट घरानों का अभी भी नरेंद्र मोदी की सरकार में भरोसे से जुड़ी हुई है। एक स्थिर मोदी सरकार उन्हें जो लाभ पहुंचा सकती है, वह गठबंधन की बैसाखियों पर टिकी सरकार हर्गिज पूरा करने में विफल रहने वाली है। ऐसे में सांसदों को भाजपा के पक्ष में करने के लिए अन्य पार्टियों के दो-तिहाई सांसदों को तोड़ने के लिए धन-बल को पानी की तरह बहाने से भी देश का कॉर्पोरेट नहीं चूकेगा।

लोकसभा अध्यक्ष चुनाव पर एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन की रस्साकशी

इसी को ध्यान में रखते हुए इंडिया गठबंधन के साझीदार दल भी पूरी तरह से सजग हैं। लोकसभा स्पीकर पद को लेकर एनडीए के घटक दलों में मतभेद को बढ़ाने और इसके जरिये विपक्ष शुरू से ही एनडीए सरकार को पटरी से नीचे डालने की कोशिश में जुट गया है। दो दिनों से इंडिया गठबंधन की ओर से ऐसे संकेत आने लगे हैं, जिनसे पता चलता है कि वह स्पीकर पद के चुनाव को लेकर सक्रिय भूमिका में उतरने के लिए कमर कस रही है। शिवसेना उद्धव गुट के नेता संजय राउत ने हाल ही में एएनआई के साथ अपनी बातचीत में जो कहा, वह महत्वपूर्ण है।

राउत का कहना था, “लोकसभा स्पीकर का पद बेहद अहम है। अब 2014 या 2019 वाली स्थिति नहीं है। राहुल गांधी ने यदि कहा है कि हम इस सरकार को कभी भी गिरा सकते हैं, तो इसका मतलब आप समझ जाइए। यह सरकार स्थिर नहीं है। हमने सुना है कि चंद्रबाबू नायडू ने स्पीकर पद की मांग की है, इस बारे में उनके साथ डील हुई है। अगर टीडीपी को यह पद नहीं मिला तो सबसे पहले नरेंद्र मोदी और अमित शाह चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी, नीतीश बाबू की जेडीयू और चिराग पासवान की पार्टी को तोड़ देंगे। जयंत चौधरी की पार्टी को तोड़ देंगे। उनका ये काम है, जिनका नमक खाते हैं उनको खत्म कर देते हैं, यह हमारा अपना अनुभव रहा है।”

संजय राउत ने आगे कहा, “नायडू ने अगर स्पीकर पोस्ट की मांग की है, तो हम इसका स्वागत करेंगे। उन्हें यह पद मिलना चाहिए, क्योंकि स्थित बदल चुकी है। अगर हम चाहें तो सदन में अपना बहुमत साबित कर सकते हैं। अगर नायडू को यह पद नहीं मिला और उन्होंने अपना उम्मीदवार खड़ा किया तो हम इंडिया गठबंधन में बातचीत करेंगे। हम कोशिश करेंगे कि पूरा गठबंधन नायडू के उम्मीदवार के पीछे खड़ा रहे।”

टीडीपी की ओर से 10 जून तक लोकसभा स्पीकर पद की मांग उठाई गई थी, लेकिन उसके बाद से अभी तक कोई खास हलचल नहीं दिखी है। टीडीपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता पट्टाभि राम कोम्मारेड्डी ने हालांकि एक समाचार पत्र के साथ अपनी बातचीत में इतना भर कहा था कि लोकसभा स्पीकर पद के लिए एनडीए के सभी घटक दलों के साथ आपसी रजामंदी के आधार पर नाम तय किया जायेगा। टीडीपी वास्तविक धरातल पर क्या रुख लेने जा रही है, इसकी तस्वीर 24 जून तक साफ़ होने की संभावना है। इससे पहले 1999 में भी बालयोगी के रूप में एनडीए शासन में टीडीपी अपना लोकसभा अध्यक्ष बनाने में कामयाब रही थी। ऐसा भी सुनने में आ रहा है कि पूर्व की तरह इस बार भी टीडीपी अपनी पार्टी से किसी दलित सांसद को इस पद के लिए उम्मीदवार घोषित कर सकती है।

भाजपा की ओर से भी इस चुनाव को लेकर सरगर्मी देखी जा रही है। आज केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के आवास पर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की मुलाक़ात को इसी संदर्भ से जोड़कर देखा जा रहा है। भाजपा जीतोड़ कोशिश में है कि स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पद पर भी भाजपा के ही सदस्य को घटक दल स्वीकार कर लें। लोकसभा अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के तौर पर अभी तक पूर्व लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और दग्गुबती पुरंदेश्वरी के नाम की चर्चा हो रही है। दोनों भाजपा सांसद हैं। भाजपा की ओर से पुरंदेश्वरी के नाम का प्रस्ताव असल में टीडीपी को राजी करने के लिए लाया गया है। बता दें कि पुरंदेश्वरी तेलगु देशम पार्टी के संस्थापक एनटी रामाराव की बेटी होने के साथ-साथ चंद्रबाबू नायडू की पत्नी की बहन भी हैं।

अपना उम्मीदवार उतार सकता है इंडिया गठबंधन

इंडिया गठबंधन ने भी ऐलान कर दिया है कि यदि टीडीपी ने स्पीकर पद की दावेदारी की तो विपक्ष सदन में इस प्रस्ताव का समर्थन करेगा। अगर एनडीए सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई और टीडीपी ने अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा किया तो उस सूरत में वह स्पीकर पद पर विपक्ष का उम्मीदवार खड़ा करेगी। इसके अलावा, इस बार वह लोकसभा उपाध्यक्ष पद के लिए अपना उम्मीदवार खड़ा करने जा रही है। पिछले कार्यकाल के दौरान भाजपा ने लोकसभा उपाध्यक्ष पद को खाली जाने दिया था। भाजपा ने भी संकेत दिए हैं कि इस बार उपाध्यक्ष पद के लिए भाजपा के भीतर से ही किसी को प्रत्याशी बनाया जायेगा।

जाहिर है, इंडिया गठबंधन की ओर से अभी से टीडीपी को लगातार फीडबैक दिया जा रहा है कि वह भाजपा के दबाव में आने के बजाय उसके ऊपर हावी रहे, क्योंकि समूचा विपक्ष उसके पीछे खड़ा रहने वाला है। विपक्ष जानता है कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में जबर्दस्त गिरावट आ चुकी है। महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त जनता को नीट परीक्षा में धांधली ने और भी हमलावर बना दिया है, क्योंकि अब इसकी जद में देश का मध्य वर्ग और उच्च मध्य वर्ग भी आ चुका है। सरकार को गिराने की बजाय अपने आंतरिक अंतर्विरोधों से भर-भराकर गिरने देने के लिए उसे चुनावी अभियान की तरह जनता के ज्वलंत मुद्दों पर केंद्रित रहना होगा। महाराष्ट्र, हरियाणा और बिहार राज्य विधान सभा में भाजपा की शिकस्त स्वतः भाजपा में दो-फाड़ को जन्म देने जा रही है।

विपक्ष की इस रणनीति का सबसे पहला पड़ाव लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव से जुड़ा हुआ है, जिसके लिए 26 जून की तारीख तय की गई है। असल में पीएम नरेंद्र मोदी की तीसरी पारी भी 26 जून से ही शुरू होगी, क्योंकि इसी से सदन में संख्या बल भी तय होना है। देखना होगा कि एनडीए सरकार और इंडिया गठबंधन के बीच की इस पहली रस्साकशी में टीडीपी, जेडीयू सहित सरकार में शामिल अन्य घटक दल क्या रुख अख्तियार करते हैं, क्योंकि इसी चुनाव से अगले पांच साल तक के भारतीय लोकतंत्र के सफर की तस्वीर साफ़ होने जा रही है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments