अडानी-अंबानी ही नहीं स्टॉक मार्केट भी मध्य-वर्ग का सूपड़ा साफ करने में निभा रहा भूमिका

Estimated read time 2 min read

आज सभी राष्ट्रीय समाचारपत्रों ने शेयर मार्केट में 85,000 अंक छू लेने को अपनी सबसे प्रमुख खबर में स्थान दिया है। हाल के वर्षों में देखने को मिल रहा है कि देश में भले ही कोई नया निवेश नहीं हो रहा हो, नई नौकरियों का भारी अकाल पड़ा हो, यहां तक कि आईआईटी मुंबई जैसे सबसे प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान के विद्यार्थियों को कैंपस इंटरव्यू में जॉब ऑफर करने वाली कंपनियों के लाले पड़ गये हों, और जॉब ऑफर के नाम पर 3-4 लाख रुपये सालाना का ऑफर दिया जा रहा हो, लेकिन स्टॉक मार्केट तो दिनोंदिन नई ऊंचाइयों को छू रहा है।

पिछले तीन दशक से देश आईटी सेक्टर के बल पर खुद को आगे खिसका रहा था। 90 के दशक में नई अर्थनीति के बाद से सरकारी नौकरियों में भर्ती की रफ़्तार धीमी पड़ने लगी थी, वह 2014 के बाद से अचानक से बंद सी हो गई है।

लेकिन हाल के वर्षों में पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था में मंदी के साथ-साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स ने भारतीय आईटी सेक्टर से पश्चिमी देशों को जो सस्ते मजदूर उपलब्ध कराए थे, और उसके बल पर भारतीय कंपनियां भी मोटा मुनाफा कमा रही थीं, वे अब नए रोजगार उपलब्ध कराने के बजाय अपने मौजूदा वर्कफोर्स में कमी ला रहे हैं।

ये सारी बातें भारतीय मध्य वर्ग को पता हैं, क्योंकि यही वो वर्ग है जिनके बच्चे पिछले दो दशकों से तेजी से बी टेक और एमबीए की पढ़ाई और प्राइवेट स्कूलों में अंग्रेजी पढ़, इन जॉब ओपनिंग को भर रहे थे, और खुद को भारतीय अर्थव्यवस्था में तेज वृद्धि का ग्रोथ इंजन समझ रहे थे।

जबकि इधर 80% आबादी अभी भी दो जून की रोटी, बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य, शुद्ध पेयजल और स्वच्छता जैसे विषयों से जूझ रही थी, लेकिन उनमें भी एक बड़े हिस्से के बीच उनके जैसे तरक्की करने की आस पैदा हो रही थी।

लेकिन आज न सिर्फ आईटी सेक्टर बल्कि कोविड महामारी के दौरान तेजी से विकसित होते एड-टेक, फिन-टेक स्टार्टअप का मार्केट ने दम तोड़ना शुरू कर दिया है।

करोड़ों भारतीय मां-बाप अपने जीवन भर की जमापूंजी आजकल अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा के नाम पर लुटाने के बाद खुद को ठगा सा पा रहे हैं। प्री-प्राइमरी में दाखिले से लेकर निजी स्कूलों में पढ़ाई और ट्रांसपोर्ट के खर्चे के बाद मोटी ट्यूशन फीस को देने में पति-पत्नी में से एक की पूरी तनख्वाह ही बिला जा रही है।

यह सिलसिला जो एक बार शुरू होता है, वो खत्म होने का नाम ही नहीं लेता। और जब ये बच्चे मां-बाप से भी बेहतर शिक्षा ग्रहण कर जॉब मार्केट में प्रवेश करते हैं तो पता चलता है कि एक अदद नौकरी के लिए उनके जैसे सैकड़ों नहीं हजारों लोग लाइन में खड़े हैं।

इनमें से संपन्न परिवारों के बच्चे, जिनके परिवार के सदस्य पहले से अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया या यूरोप में बस चुके थे, उनके लिए शरणस्थली को मुहैया कराने का साधन बन रहे हैं। लाखों की संख्या में जिन्हें भारत की युवा प्रतिभा समझा जाना चाहिए अब वह पश्चिमी देशों के काम आ रहा है।

क्योंकि भारत की मौजूदा व्यवस्था के पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं है। हाल के वर्षों में अमेरिका में अवैध घुसपैठ के मामले में पड़ोसी देश मेक्सिको के लोग नहीं, हम भारतीय पाए गये हैं, जो लाखों रूपये खर्च कर डंकी रूट से अपनी जान की बाजी लगाकर किसी तरह अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाना चाहते हैं।

हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान हरियाणा के युवाओं से हुई मुलाक़ात का वीडियो जारी किया है। 35 लाख रूपये खर्च कर डंकी रूट से किसी तरह अमेरिका की धरती पर जाने वाले ये भारतीय युवा अपने पीछे मां-बाप, पत्नी और छोटे-छोटे बच्चों को छोड़ आये हैं।

न जाने कब अमेरिकी प्रशासन, देश में दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी विचारधारा के दबाव में ऐसे लाखों लोगों को डिपोर्ट कर दे, इसका खौफ़ और वर्षों से अपने प्रियजनों से न मिल पाने की निराशा उनकी आंखों में साफ़ देखी जा सकती है।

ऐसे दौर में, जब न सरकारी नौकरी और न ही प्राइवेट जॉब को लेकर कोई आस है, और न ही कोई छोटा-मोटा व्यवसाय या उद्योग धंधा शुरू करने के लिए अमेज़न, रिलायंस फ्रेश और फ्लिप्कार्ट जैसे ई-प्लेटफार्म ने कोई जगह छोड़ी हो, तो आखिर देश का करोड़ों बेरोजगार युवा कहां जाये?

देश में पहले से ही 1 करोड़ से अधिक खुदरा दुकानदारों और अब तो होलसेलर्स की रोजीरोटी तक, इन बड़े देशी बिग कॉर्पोरेट और मल्टीनेशनल कंपनियों के मैदान में उतर जाने के बाद खतरे में पड़ती जा रही है।

कोई सूरत नज़र नहीं आती

ऐसे में देश के भीतर जो एकमात्र रास्ता नजर आता है, वो है शेयर बाजार में निवेश का। रियल एस्टेट एजेंट, दलाली और छोटी-मोटी ठेकेदारी की तुलना में इसमें ज्यादा रिस्क या बाहुबल की भी कोई जरूरत नहीं।

फिर पिछले 10 वर्षों के दौरान जबसे पीएम मोदी ने स्वंय निवेशकों को सेना के जवानों से भी ज्यादा रिस्क लेने वाला करार दिया है, तब से इस धंधे में निवेश से देश की सेवा करने और लाखों भारतवासियों के लिए नए रोजगार के अवसर मुहैया कराने का अतिरिक्त गौरव भाव ने इस काम को प्रतिष्ठित बना डाला है।

लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू क्या कहता है? अंग्रेजी अखबार इकॉनोमिक टाइम्स ने 26 सितंबर, अर्थात आज अपनी लीड खबर में बताया है कि बड़ी मात्रा में प्रोमोटर्स अपनी कंपनियों के स्टॉक बेचकर मुनाफा बटोरने में लगे हुए हैं।

अकेले तीसरी तिमाही में, लगभग 180 कंपनियों ने 40,000 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के अपने स्टॉक की बिक्री कर दी है।

वर्ष 2024 में अभी तक कुल 1 लाख करोड़ रूपये के अपने स्टॉक से विभिन्न कंपनियों ने खुद को मुक्त कर लिया है। उनके मुताबिक, यही सुनहरा मौका है जब सेंसेक्स रिकॉर्ड ऊंचाई को छू रहा है, क्योंकि स्टॉक अपने वास्तविक मूल्य से 20 से लेकर 40 गुना कीमत पर ट्रैड हो रहे हैं।

भारत की जीडीपी के भी छक्के छुड़ा रहे हैं स्टॉक मार्केट के तेजड़िए

हालत यह है कि भारतीय स्टॉक मार्केट का मूल्यांकन इस वक्त 5 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक है। जी हां, यह भारत की जीडीपी से भी 25% ऊपर चल रहा है। जबकि इसमें भारतीय अर्थव्यवस्था के मात्र 6% हिस्से का ही प्रतिनिधित्व होता है।

दिल्ली स्थित एक बाइक शो रूम चलाने वाले व्यवसायी ने जब अपना आईपीओ जारी किया तो उसे 12 करोड़ की पूंजी के स्थान पर उसका स्टॉक 400 गुना ओवर-सस्बक्राइब होने का सुखद अनुभव प्राप्त हुआ। आखिर यह सब कैसे संभव हो गया? क्या हमारा मध्य वर्ग कोई नशा-वशा तो नहीं करने लगा है?

जी नहीं। वास्तविक हालात पर यदि गौर करें तो हम पाएंगे कि समूचा सिस्टम मिलकर सिर्फ एक दिशा में देश को धकेल रहा है। विशेषकर जबसे मोदी सरकार केंद्र में आई है, उसके लिए चुनिंदा कॉर्पोरेट घरानों और गुजराती निवेशकों के हितों को सर्वोपरि रखना पहली प्राथमिकता बनी हुई थी।

यदि आप देश में जीएसटी लागू होने के ठीक बाद गुजरात विधानसभा चुनावों पर गौर करेंगे तो आप पाएंगे कि उस दौरान बीजेपी के लिए अपनी जीत को सुनिश्चित कर पाना बड़ा कठिन हो गया था, जिसे ऐन चुनाव से पहले तत्कालीन वित्त मंत्री ने कई वस्तुओं पर जीएसटी की दर में कमी लाकर हजारों निवेशकों को खुश करने का काम कर जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।

इसके बाद से तो स्टॉक मार्केट और सेंसेक्स को तंबू में बम्बू गाड़ किसी भी सूरत में आसमान की बुलंदियों पर टिकाये रखना जैसे केंद्र सरकार की टॉप प्रायोरिटी बन गया है।

जैसे हर हिमालयी नदी आखिरकार महासागर के खारे पानी में समाकर खुद को खारा बना लेती है, उसी प्रकार देश में उपलब्ध हर जमा पूंजी, जैसे कि न्यू पेंशन फंड का 10 लाख करोड़ रुपया, पीएफ फंड सहित हर माह म्यूच्यूअल फंड और एसआईपी के माध्यम से जमा होने वाले दसियों हजार करोड़ रुपये की रकम को स्टॉक मार्केट में समाहित किया जा रहा है।

कैसे आपकी जमापूंजी काम आ रही सेंसेक्स को आसमान की बुलंदियों तक पहुंचाने में

आखिर अब जब हमारी सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र में कोई निवेश करने के बजाय उसका विनिवेश ही करना है, तो इस जमाराशि का कुछ तो करना ही होगा।

नतीजतन, भले ही सरकार, देश में कॉर्पोरेट समूह को कॉर्पोरेट टैक्स में कमी लाकर हर वर्ष लाखों करोड़ रुपये का फायदा ही क्यों न पहुंचा रही हो, उसके द्वारा एक धेले का भी निवेश करने के बजाय अभी तक स्टॉक में उतार-चढ़ाव लाकर मोटा मुनाफा कमाने में ही अपनी भलाई दिखती है तो इसमें उनका क्या कुसूर है?

इसी वर्ष जब विदेशी संस्थागत निवेशकों ने बड़ी संख्या में भारत से अपना निवेश निकालना शुरू किया था, तब आशंका थी कि शेयर मार्केट में गिरावट की संभावना है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। आखिर म्यूच्यूअल फंड, एसआईपी, पेंशन फंड, एलआईसी और भविष्य निधि जैसे अनेकों फंड में जो करोड़ों आम लोगों की जमापूंजी किस दिन काम आने वाली है?

लेकिन इसी बीच एक चौंकाने वाली घटना भी देखने को मिली। अगस्त 2024 तक देश में कुल 17.1 करोड़ डीमेट अकाउंट खुल चुके थे। एक दशक पहले तक यह आंकड़ा करीब 2 करोड़ तक था। इस वर्ष तक अकेले 3। 2 करोड़ नये डीमेट अकाउंट खुल चुके हैं।

सबसे हैरत की बात यह है कि इनमें सबसे अधिक अकाउंट उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे अति पिछड़े राज्यों से खोले जा रहे हैं। आर्थिक मामलों पर गहरी नजर रखने वाले पत्रकार अजय कुमार से जब इस संबंध में सवाल किया गया तो उनका कहना था कि बिहार में यह परिघटना अब शहर ही नहीं गांवों तक में पसर चुकी है।

ये नए निवेशक लॉन्ग टर्म निवेश के बजाय इंट्रा डे ट्रेडिंग सहित ऍफ़ & ओ में निवेश कर रहे हैं। इन्हें स्टॉक में निवेश की कोई समझ नहीं है। उन्हें बस इतना समझ आ चुका है कि अगर देश में कहीं पर ग्रोथ हो रही है तो वह है शेयर बाजार, जो सोने-चांदी से भी तेज रफ्तार से आपको धनी बना सकता है।

अजय कुमार का कहना था कि इनमें से लगभग सभी लोग नुकसान में हैं, लेकिन वे अपनी स्थिति के बारे में साझा नहीं करना चाहते। आये दिन सोशल मीडिया और यूट्यूब पर स्टॉक ट्रेडिंग में मास्टरी हासिल करने के लिए विज्ञापन आते रहते हैं, जिसमें युवा बड़ी शान से बताते हैं कि कैसे वे कुछ ही वर्ष में लाखों-करोड़ों में खेल रहे हैं और उनकी क्लास में मात्र 100-200 रुपये खर्च कर दर्शक भी जल्द ही लाखों में खेल सकते हैं।

कुछ को आबाद करने के वास्ते करोड़ों लोगों को बर्बादी की राह पर धकेलना

असल में देखें तो भारत वर्ष सपनों को बेचने का चारागाह बन चुका है। भारतीय प्रधानमंत्री की अगुआई में इसकी शुरुआत हुई, और पढ़-लिखकर खाली हाथ युवा कुछ वर्ष में ही जो कौशल या योग्यता हासिल की हुई होती है, प्रैक्टिस के अभाव में वह भी उनके काम का नहीं रहता।

नव-उदारवादी अर्थनीति के चलते सर्विस सेक्टर में ग्रोथ एवं वैश्वीकरण ने नई पीढ़ी को हाथ से काम करने की आदत से दूर कर दिया है। हर युवा का सपना जल्द से जल्द कुछ बनकर गाड़ी, अपार्टमेंट और आई फोन जैसी वस्तुओं में समा चुका है। इन्हें जब तक वस्तुस्थिति का पता चले, उससे पहले ही उनकी कमाई या कर्ज लेकर स्टॉक मार्केट में लगी जमापूंजी स्वाहा हो जाती है।

अभी हाल ही में स्टॉक मार्केट की नियामक संस्था, सेबी की ओर से बेहद चौंकाने वाले आंकड़े जारी किये गये हैं, जिसके मुताबिक वित्त वर्ष 2022 से लेकर 2024 के बीच में तकरीबन 93% ट्रेडिंग करने वाले निवेशकों को F&O (फ्यूचर एंड आप्शन) में घाटा हुआ है।

F&O के तहत स्टॉक ट्रेडिंग करने वाले इन लोगों की संख्या 1.13 करोड़ बताई गई है, जिनके 1.81 लाख करोड़ रुपये डूब गये हैं। यह औसत नुकसान 2 लाख रूपये बैठता है, जिसमें से 3.5 लाख लोगों को औसतन 28 लाख रुपये का नुकसान झेलना पड़ा है, लेकिन लाभ कमाने वालों का प्रतिशत मात्र 7. 2% रहा है, जबकि सिर्फ एक प्रतिशत निवेशकों ने ही 1 लाख रुपये से अधिक का मुनाफा कमाया है।

F&O ट्रेडिंग को शुरू करने वाली सेबी, स्टॉक मार्केट की दिशा में झोंकने वाली हमारी केंद्र सरकार, चीनी माल के आयात के माध्यम से कुछ भारतीय व्यापारियों को मुनाफे और लाखों MSME उद्योगधंधों को बर्बाद करने वाली हमारी सरकार की नीतियों का ही यह नतीजा है कि अब मुंबई और गुजरात ही नहीं देश के दूर-दराज के लोग भी किसी कीट-पतंगे की तरह डीमेट अकाउंट खोल जलते दीये की मानिंद खुद भस्म हो जाने के लिए स्टॉक मार्केट की ओर खिंचे चले आ रहे हैं।

जिस देश में 2 करोड़ लोग भी मुश्किल से आयकरदाताओं की सूची में आते हों, वहां पर 17 करोड़ से भी बड़ी संख्या में डीमेट अकाउंट खुलने की घटना को भले ही हमारे देश के कर्ता-धर्ता बड़े गर्व के साथ वैश्विक मंचों पर घोषणा करते हों, लेकिन जल्द ही यह गुब्बारा फूटने के करीब है।

इसके नतीजे बेहद हाहाकारी हो सकते हैं, शायद इसीलिए विदेशी निवेशक और 200 कंपनी प्रोमोटर्स एक-एक कर आसमान छूते सेंसेक्स में ज्यादा से ज्यादा मुनाफावसूली कर किनारे बैठ तमाशा देखने के मूड में लगते हैं। बाकी करोड़ों मध्य वर्ग और निम्न मध्यवर्ग का क्या है, वे तो बड़ी मछली का ग्रास बनने के लिए ही पैदा हुए हैं।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author