गाज़ा में बीती रात एक बार फिर तबाही का मंजर देखने को मिला जब इज़राइल ने एकतरफा जंगबंदी तोड़ते हुए भीषण हमले किए। इन हमलों में 236 फ़िलिस्तीनी नागरिक शहीद हो गए, जिनमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल थे। इज़राइल का दावा है कि उसने हमास की मिड-लेवल लीडरशिप को निशाना बनाया है, लेकिन असलियत यह है कि आम नागरिक सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। रिपोर्टों के अनुसार, इस हमले में हमास के प्रमुख नेता अबू ओवैदा के मारे जाने की भी खबर सामने आ रही है, हालाँकि हमास ने इसकी पुष्टि नहीं की है।
इज़राइल और फ़िलिस्तीन के बीच दशकों से चला आ रहा संघर्ष हर बार कुछ नए समझौतों और युद्धविराम के प्रयासों के बावजूद जारी रहता है। इज़राइल ने हाल ही में हमास के साथ हुए संघर्ष विराम को अचानक समाप्त कर दिया और भारी बमबारी शुरू कर दी। इस बमबारी में खान यूनिस के रिहायशी इलाकों को भी निशाना बनाया गया, जहाँ आम नागरिक पहले से ही विस्थापन और बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे थे। हमले में कई परिवार तबाह हो गए और बचाव दल लगातार मलबे से शव निकालने में जुटे रहे।
खबरों के अनुसार, हमले में इस्तेमाल किए गए हथियारों में अमेरिकी निर्मित फाइटर जेट, मिसाइलें और स्मार्ट बम शामिल थे। अमेरिका द्वारा इज़राइल को दिए जाने वाले हथियार लंबे समय से विवाद का विषय रहे हैं। वाइट हाउस की प्रवक्ता कैरोलिन लेविट ने स्पष्ट किया कि अमेरिका इज़राइल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करता है, लेकिन यह सवाल उठता है कि जब निर्दोष नागरिक मारे जा रहे हों, तब इसे आत्मरक्षा कहना कितना जायज है।
अमेरिका लगातार इजराइल की हर तरह की क्रूरता में न सिर्फ़ सहयोग दे रहा है बल्कि ये उदहारण भी स्थापित कर रहा है कि कोई ताकतवर मुल्क जो चाहे, जैसा चाहे और जहाँ चाहे कर सकता है, अमेरिका की ये प्रवृत्ति न सिर्फ़ अरब इलाके के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है।
इज़राइल और हमास के बीच हाल ही में कतर की राजधानी दोहा में शांति वार्ता की कोशिशें भी हो रही थीं। लेकिन इन हमलों के बाद इज़राइल ने वार्ता में शामिल अपनी टीम को अचानक वापस बुला लिया। इससे साफ जाहिर होता है कि इज़राइल फिलहाल किसी कूटनीतिक हल के बजाय सैन्य दबाव की नीति पर चल रहा है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पहले ही कह चुके हैं कि हमास को समाप्त करने के लिए इज़राइल किसी भी हद तक जाएगा।
गाज़ा में इस समय हालात बेहद गंभीर हो चुके हैं। खाद्य संकट, जल संकट और चिकित्सा सुविधाओं की भारी कमी के बीच अब लोगों को लगातार बमबारी का भी सामना करना पड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र की मानें तो गाज़ा में 90 प्रतिशत से अधिक लोग मानवीय सहायता पर निर्भर हैं और स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। इन हमलों के बाद गाज़ा के अस्पतालों पर दबाव और बढ़ गया है, जहाँ पहले से ही संसाधनों की भारी कमी है।
यह हमला केवल गाज़ा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर पूरे क्षेत्र पर पड़ सकता है। इज़राइल और ईरान के बीच पहले से ही तनाव बना हुआ है और अगर यह संघर्ष और आगे बढ़ता है, तो पूरा मध्य पूर्व इसकी चपेट में आ सकता है। इज़राइल की ओर से बार-बार यह संकेत दिए गए हैं कि अगर ज़रूरत पड़ी, तो वह ईरान पर भी हमला कर सकता है। दूसरी ओर, ईरान ने साफ कर दिया है कि अगर इज़राइल ने कोई उकसाने वाली कार्रवाई की, तो वह जवाब देने में देर नहीं करेगा।
इतिहास गवाह है कि सैन्य ताकत से कोई भी संघर्ष लंबे समय तक हल नहीं किया जा सकता। फिलहाल, यह जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मसले को गंभीरता से ले और दोनों पक्षों को वार्ता की मेज पर लाने के लिए प्रयास करे। संयुक्त राष्ट्र और अन्य संस्थाओं को इज़राइल पर दबाव बनाना होगा कि वह इस हमले को तुरंत रोके और एक स्थायी समाधान की ओर बढ़े। गाज़ा के निर्दोष लोगों को इस क्रूर हिंसा से बचाने के लिए ठोस कूटनीतिक कदम उठाने की सख्त जरूरत है।
यह लड़ाई सिर्फ हथियारों की नहीं, बल्कि मानवता के भविष्य की भी है। जब तक इस संघर्ष का कोई न्यायपूर्ण समाधान नहीं निकलता, तब तक गाज़ा के लोगों को लगातार तबाही झेलनी पड़ेगी। दुनिया को अब यह तय करना होगा कि वह इस क्रूरता को कब तक अनदेखा करती रहेगी।
(डॉ. सलमान अरशद स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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