Friday, April 19, 2024

जी टीवी के मालिक सुभाष चंद्रा डकार गए एस बैंक के 11760 करोड़ रुपये

(कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने बीजेपी सांसद और ज़ी समूह के सर्वेसर्वा सुभाष चंद्रा से जुड़े एक बड़े घपले का खुलासा किया है। जिसमें एसबीआई से जुड़े एस बैंक से लिए गए लोन को सुभाष द्वारा डकार जाने का मामला सामने आ रहा है। दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में एस बैंक बार-बार मंत्रालय से लेकर सरकारी एजेंसियों तक का दरवाजा खटखटा रहा है लेकिन उसको कहीं से भी मदद नहीं मिल रही है। पेश है पवन खेड़ा के शब्दों में सुभाष चंद्रा के फ्राड की पूरी कहानी-संपादक)

यस बैंक लिमिटेड एक निजी बैंक था। 2020 तक बहुत ज्यादा घाटे में चला गया था और उसको एसबीआई के तहत लाया गया और भी बाकी फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन्स थे, लेकिन एसबीआई ने 11,760 करोड़ उसमें डाले और एसबीआई में हम सबका, आप सबका पैसा, आम, जो डिपोजिटर हैं, खाताधारी हैं, उसका पैसा लगा होता है। तो 11,760 करोड़ एसबीआई ने यस बैंक में डाले, उसको जीवित रखने के लिए, उसको ठीक करने के लिए, उसको दुरुस्त करने के लिए। अब यह यस बैंक जो है, वो एसोसिएट बैंक एसबीआई का माना जाता है, कहलाया जाता है, उसकी कैटेगराइजेशन जो है वो है, एसोसिएट बैंक ऑफ एसबीआई। अब वो निजी बैंक नहीं माना जाता है, अब वो एसबीआई का एसोसियेट बैंक है। यह बात पहले ही स्पष्ट हो जाए, तो फिर आगे बात करना, आपको समझना आसान होगा, मुझे बोलना आसान होगा।

अब उसके जो बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स हैं, यस बैंक के। उसमें एसबीआई के प्रतिनिधि हैं, आरबीआई के प्रतिनिधि हैं, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के और फाईनेंशियल बैंक के प्रतिनिधि उसके बोर्ड पर हैं। जब मॉरिटोरियम लगा यस बैंक पर, तो उसमें यह लिखा गया, दर्शाया गया कि यस बैंक की जो स्थिति बनी है, जो घाटे की स्थिति में यस बैंक आया है, उसका प्रमुख कारण एस्सेल ग्रुप है जो सुभाष चंद्र गोयल का है। उसने लोन लिए और लोन भी 6,789 करोड़ के आउटस्टैंडिंग इस ग्रुप ने लिए। जो नया यस बैंक का बोर्ड बना, जिसमें एसबीआई, आरबीआई और बाकी लोग थे, उसने फॉरेंसिक जांच की खातों की, ऑडिटिंग की, फॉरेंसिक ऑडिटिंग जिसे अंग्रेजी में कहते हैं। 22, जो कर्जे लिए थे, एस्सेल  ग्रुप ने, उसमें से 12 की जांच हुई और उन 12 में से 8 फ्रॉड अकाउंट पाए गए। 3,197 करोड़ के फ्रॉड अकाउंट थे। बाकी और बैंकों ने भी जो लोन एस्सेल ग्रुप को दिए हैं, उनको फ्रॉड घोषित किया, फ्रॉड अकाउंट की श्रेणी में डाला।

जब कोई कर्जा लेता है, कोई कंपनी बैंक से कर्जा लेती है, तो कुछ सिक्योरिटी, कुछ कोलेट्रोल रखना पड़ता है। एस्सेल  ग्रुप ने डिश टीवी, जो उनकी एक कंपनी है, बीएसई और एनएसई में है ये कंपनी। उसके शेयर सिक्योरिटी के तौर पर रखे यस बैंक के साथ। अब जब ये पैसा नहीं लौटा पाए, तो यस बैंक ने जून, 2020 को प्रक्रिया शुरु की कि जो शेयर हैं, वो ले लिए जाएं और अगस्त, 2021 तक ये प्रक्रिया खत्म हुई और अब यस बैंक के पास डिश टीवी के 25.63 प्रतिशत शेयर हैं। कर्जा लिया था, नहीं चुका पाए, जो सिक्योरिटी थी, वो जब्त कर ली। जो शेयर थे सिक्योरिटी, उसे जब्त कर लिया।

जो प्रमोटर था डिश टीवी का, जो कंपनी, उसके शेयर अब 5.93 प्रतिशत बचे। तो बहुत बड़ा शेयर होल्डर डिश टीवी का अब यस बैंक बन गया 25.63 प्रतिशत। 4 सितंबर, 2021 को यस बैंक ने डिश टीवी के बोर्ड को एक पत्र लिखा। उनको कहा कि आप एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी जनरल बॉडी मीटिंग बुलाइए, ताकि नए बोर्ड ऑफ डायरेक्टर बनाए जा सकें, पुराने हटाए जा सकें। एक नियम होता है कि किसी भी कंपनी का 10 प्रतिशत किसी शेयर होल्डर के पास हो, तो वो इस तरह की मीटिंग की मांग कर सकता है। इनके पास 25.63 प्रतिशत है, तो नियम के हिसाब से बिल्कुल सही चल रहा है। एसबीआई का बैंक है अब, उन्होंने मांग की, चिट्ठी लिखी डिश टीवी को, बुलाइए ये मीटिंग ताकि डायरेक्टर बदले जा सकें। डिश टीवी के बोर्ड ने इंकार कर दिया और फिर यस बैंक, एसबीआई वाला यस बैंक, एनएसएलटी के पास गया, नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के पास गया कि आप हस्तक्षेप करिए, हमें राहत दिलवाइए, ये हमारा हक है। हम 25.63 प्रतिशत शेयर होल्डर हैं, हम चाहते हैं कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर बदला जाए, पुराने डायरेक्टर हटें और नए आएं। प्रोफेशनल डायरेक्टर बनें अब।

इस दौरान डिश टीवी ने इनको तो इंकार कर दिया कि एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी जनरल मीटिंग नहीं बुलाई जाएगी और खुद एक एजीएम बुलाई जो कि नियम के हिसाब से हर साल बुलानी पड़ती है। उस एजीएम में उन्होंने यह तो मुद्दा रखा ही नहीं कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर बदलेंगे नहीं, यह तो जाहिर सी बात है कि अपने आपको क्यों बदलेंगे?

इस दौरान सुभाष चंद्र , जो कि भारतीय जनता पार्टी समर्थित सांसद हैं और आरएसएस से बड़े घनिष्ठ संबंध हैं, उसके फंडर हैं, एकल विद्यालय के चेयरमैन रहे हुए हैं, तो हम सब जानते हैं कि उनके क्या रिश्ते हैं संघ के साथ। उन्होंने क्या किया, जिसको मैं कहता हूं आपने कभी जिंदगी में सुना नहीं होगा, मैंने तो नहीं सुना था, क्राइम ब्रांच गौतम बुद्ध नगर के एक इंस्पेक्टर के सामने एक एफआईआर लांच की। एफआईआर का नंबर है – 0821, मैं उसकी कॉपी संलग्न कर रहा हूं। ये पहली बार हुआ होगा, ये एफआईआर है (एफआईआर की कॉपी दिखाते हुए) इस एफआईआर में सुभाष चंद्र गोयल ने जो शिकायत की है, वो ये थी कि यस बैंक ने जबर्दस्ती मुझे लोन दिया।

बताइए कभी सुना आपने? अगर ऐसी स्कीम मोदी जी ला रहे हैं, प्रणव जी, अभी हम इस पर बोल रहे थे कि अगर ऐसी स्कीम नए साल में मोदी जी ला रहे हैं कि मैं जबर्दस्ती आपको भी लोन दूंगा, आपको भी दूंगा, सबको यहाँ जो बैठे हैं, हम सबको लोन मिलेगा, जबर्दस्ती, आपको चाहिए या नहीं चाहिए, लीजिए हमसे। ये एफआईआर है। किसी से आप कर्जा लेते हैं, वो सिक्योरिटी के लिए आपके पास शेयर रखता है, फिर आप क्रिमिनल प्रोसीडिंग ले आते है। एक सिविल मैटर में क्रिमिनल प्रोसीडिंग ले आते हैं, ताकि वो जो उसका हक है, वो शेयर, वो अपने पास वो नहीं रख सके। ये पहली बार हुआ इस देश में और सुप्रीम कोर्ट, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ये रद्द की, इस पर स्टे लगाया, वहाँ से स्टे आया एफआईआर पर कि ये मिस यूज है सीआरपीसी का, एक सिविल केस। विशेषज्ञों ने इस पर लिखा है, काफी कुछ बोला है कि ये कभी हुआ ही नहीं है, अनप्रेसिडेंटेड है, कभी नहीं हुआ ये।

खैर, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने बिल्कुल दर किनार कर दिया, इस एफआईआर को। अब स्थिति क्या है कि एस्सेल वर्ल्ड डिश टीवी से जो लाभ हो रहा है, वो ले रहा है। यस बैंक, एसबीआई का यस बैंक इंतजार कर रहा है, 25.63 प्रतिशत शेयर होने के बावजूद वो कुछ नहीं कर पा रहा है। वो पत्र लिखता है, मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स को पत्र लिखता है, सेबी को पत्र लिखता है, सरकार के अन्य संस्थानों को पत्र लिखता है, कुछ नहीं होता। पत्रों की यह कॉपी, जो यस बैंक ने लिखा है, मिनिस्ट्री ऑफ कोर्पोरेट अफेयर्स को, ये मैं आपके सामने पेश कर रहा हूं, प्रेस रिलीज के साथ आपको संलग्न कर रहा हूं।

ऑडिटर्स ने इस पर आपत्ति भी उठाई कि आप गैर कानूनी तरीके से डिश टीवी से पैसे ले रहे हो। 1,200 करोड़ आपने, एक कंटेंट प्लेटफार्म है, ‘वॉचो’, उसमें डाल दिया है, ये कैसे कर रहे हैं आप? यस बैंक ने भी इस बारे में शिकायत लिखी रेगुलेटर्स को कि आप हस्तक्षेप करिए, ये तो बिल्कुल अनर्थ हो रहा है। लेकिन कोई एक्शन नहीं हुआ, क्यों- क्योंकि दुल्हन वही जो पिया मन भाए। बीजेपी समर्थित सांसद, राष्ट्रीय स्वयं सेवक के बहुत पुराने फंडर। अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक के अकाउंट मांगेंगे तो आपको दिखेगा, कभी अकाउंट मिलेंगे नहीं आपको, वो अलग बात है, लेकिन आपको उसमें दिखेगा कि कौन कितना फंडिंग करता है।

स्टॉक मार्केट पर भी इस बात का प्रभाव पड़ा, इन तमाम शिकायतों का, ऑडिटर्स की रिपोर्ट का, ऑडिटर्स की ऑब्जेक्शन का, इन सबका प्रभाव पड़ा और आम, जो शेयर खरीद-फरोख्त करते हैं, 20,000 करोड़ मार्केट वेल्यू गिरी इन शेयर की, वो भी नुकसान आम आदमी को ही हुआ। इस बैंक को, इसके खाताधारियों को बचाने के लिए एसबीआई आगे आया। अब ये एसबीआई का एसोसिएट बैंक है। सेबी को बार-बार पत्र लिखे जा रहे हैं कि ये जो ड्यूज हैं, ये निकलवाए जाएं, क्योंकि ये आम लोगों के पैसे हैं और छोटा पैसा नहीं है, हजारों-करोड़ का पैसा है। मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स को लिखा बैंक ने, सेबी को लिखा कि ये बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स डिश टीवी के हटाएं, नए लोगों को लाएं, पैसा रिकवर करें और कंपनी में एक एडमिनिस्ट्रेटर बैठाएं ताकि कंपनी का जो प्रबंधन है, वो सुचारु रुप से चल सके, पारदर्शी रुप से चल सके। किसी के कान पर कोई जूं नहीं रेंगी।

हम ये जानना चाहते हैं सरकार से कि एसबीआई का बैंक, यस बैंक आम खाताधारियों का पैसा रिकवर करने के लिए आपसे सहयोग मांग रहा है, आप सहयोग क्यों नहीं दे रहे हैं? क्या इसलिए कि वो भारतीय जनता पार्टी समर्थित सांसद हैं? क्या इसलिए कि वो आरएसएस को फंडिंग देते हैं? क्या कारण है, क्या मजबूरियां हैं आपकी? क्या रिश्ते हैं आपके सुभाष चंद्र गोयल से, क्यों आपके हाथ बंधे हुए हैं?

क्यों मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स ने यह मुद्दा बार-बार उनको बताए जाने के बाद भी गंभीरता से नहीं लिया, उस पर कोई कार्यवाही नहीं की, क्यों? हम समझते हैं ये बात, जो हम सब इस कमरे में बैठे हैं और आपके माध्यम से जो इस देश के लोग सुन रहे हैं, वो सब समझते हैं कि हाँ, एजेंसियां आजकल उत्तर प्रदेश के चुनाव में व्यस्त हैं, सब व्यस्त हैं, आपने अपने काम पर लगा दिया है, भारतीय जनता पार्टी ने उनको। जब वो फ्री हो जाएं चुनाव से, तारीख बता दें, कब वो फ्री होंगे उस चुनाव से तो क्या इन सब पर एक्शन होगा ईडी, एसएफआईओ का, इनकम टैक्स का या सीबीआई का? फरवरी-मार्च में तो फ्री हो जाएंगी ना ये एजेंसियां उत्तर प्रदेश से। तब करवा दीजिए। तारीख तो बताइए कि कब आप राहत देंगे आम खाताधारी को।

क्यों नहीं, आप और हम इस तरह का फ्रॉड करेंगे, हमारे पासपोर्ट जब्त होंगे। क्या जो फ्रॉड इन लोगों ने किया है, इनमें से किसी का भी पासपोर्ट जब्त हुआ, अगर नहीं हुआ, तो क्यों नहीं हुआ? अलग नियम क्यों इन लोगों के लिए?

उत्तर प्रदेश पुलिस कैसे इस तरह की कार्रवाई कर सकती है? ये संभव कैसे हुआ कि बिजनेस मैन के कहने से आप एक बैंक के शेयर पर रोक लगा देते हैं कि ये शेयर आपने जबर्दस्ती ले लिए हैं? ये पुलिस का काम है, बिना सोचे-समझे आंख बंद करके, क्योंकि वो बीजेपी का समर्थित सांसद है, क्योंकि वो आरएसएस को पैसे देता है, जो भी कारण रहे हों। आप तो एक प्रोफेशनल फोर्स हो, पुलिस हो भाई। किसी दल के नहीं हो, किसी बिजनेसमैन के नहीं हो, कोई प्राइवेट मिलिशिया नहीं हो, किसी की निजी आर्मी नहीं हो, आप पुलिस हो। आपकी तनख्वाहें हम सबकी जेब से जाती हैं, आप कैसे कर सकते हो ये? क्यों नहीं इस पुलिस के रोल पर, भूमिका पर कोई जांच नहीं हुई अभी तक? सुप्रीम कोर्ट ने इस एफआईआर को गलत ठहराया, इस पर स्टे लाए। विशेषज्ञों ने इसको बिल्कुल गलत करार दिया। कोई जांच नहीं। गौतम बुद्ध नगर की क्राइम ब्रांच की भूमिका क्या रही है इसमें?

एडमिनिस्ट्रेटर बैठाने में आपको क्या आपत्ति है? बार-बार मांग हो रही है। एक बहुत बड़े शेयर होल्डर, यस बैंक नाम का जो शेयर होल्डर है, एसबीआई है एक तरह से शेयर होल्डर डिश टीवी में, वो मांग कर रहा है और आप एडमिनिस्ट्रेटर नहीं बैठाना चाहते, जैसे सत्यम में बैठा, आईएल एंड एफएस में बैठा, उदाहरण है, सबके सामने हैं उदाहरण। कोई पहली बार नहीं हो रहा है। जो पहली बार हो रहा है, वो ये है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी कुछ नहीं हो रहा है। ये पहली बार हो रहा है और कारण हम सब जानते हैं, लेकिन फिर भी दोहराना पड़ता है बार-बार कि ये बीजेपी समर्थित सांसद हैं, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को पैसे देते हैं, एकल विद्यालय के भूतपूर्व चेयरमैन हैं, स्पष्ट कारण है।

तो ये खास मेहरबानी इन पर क्यों सरकार बरसा रही है? हमारी मांग है कि इन तमाम एजेंसी को एक- आध दिन की मोहलत दिलवा दीजिए उत्तर प्रदेश से ताकि इस काम पर भी वो ध्यान दे सकें, ये हमारी मांग है।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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