कभी कभी ऊंट पहाड़ के नीचे आ जाता है, यह कहावत तो आपने सुनी होगी। तो उच्चतम न्यायालय में केंद्र की मोदी सरकार पेगासस मामले के चक्रव्यूह में फंसती दिखाई दे रही है। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने मामले में केंद्र को औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया है, लेकिन यह कह कर कि अगर ये आरोप सही हैं तो ये मामला काफी गंभीर है, अपने इरादों की एक झलक दिखा दी है। चीफ जस्टिस ने यह कहकर उच्चतम न्यायालय का इरादा जाहिर कर दिया कि सच सामने आएगा, हमें अभी नहीं पता कि किसका नंबर था और किसका नहीं।
आज की सुनवाई में जिस तरह वकीलों ने दलीलें दीं और उच्चतम न्यायालय ने जो सवाल पूछे उससे तो स्पष्ट है कि मामला बेहद संवेदनशील होने के नाते उच्चतम न्यायालय भी अत्यधिक सतर्कता से इस मामले को सुन रहा है। यदि न्याय के शीर्ष चौखट पर पेगासस मामले में मोदी सरकार फंसती है, तो यह देश के लिए बहुत बड़ा संवैधानिक संकट होगा जिसकी परिकल्पना संविधान निर्माताओं ने भी नहीं की होगी।
जिस पेगासस जासूसी कांड को लेकर सड़क से लेकर संसद तक हंगामा है, आज उसी मामले पर उच्चतम न्यायालय में पहली बार सुनवाई हुई। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि पेगासस विवाद के संबंध में समाचार रिपोर्टों में आरोप गंभीर प्रकृति के हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि प्रभावित व्यक्तियों ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से पहले पुलिस में आपराधिक शिकायत दर्ज करने का कोई प्रयास नहीं किया है। चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस सूर्य कांत की पीठ ने याचिकाकर्ताओं को केंद्र सरकार के कानून अधिकारियों पर याचिकाओं की प्रतियां देने के लिए कहा और मामले को अगले सप्ताह मंगलवार 10 अगस्त को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने मामले में केंद्र को औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया।
सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि 2019 में जासूसी की खबरें आईं थीं, मुझे नहीं पता कि अधिक जानकारी हासिल करने के लिए प्रयास किए गए या नहीं। इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार एनराम और शशिकुमार, सीपीएम के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास और वकील एमएल शर्मा सहित अन्य लोगों ने 9 याचिकाएं उच्चतम न्यायालय दाखिल की हैं।
चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से सवाल किया कि इस मामले में आईटी एक्ट के तहत शिकायत दर्ज क्यों नहीं करवाई गई है? सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि अगर आपको लगता है कि आपका फोन हैक हुआ है, तो फिर FIR दर्ज क्यों नहीं करवाई? पीठ ने सुनवाई के दौरान एमएल शर्मा को फटकार भी लगाई, जिन्होंने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और अन्य व्यक्तिगत लोगों के खिलाफ याचिका दायर की थी। अदालत ने कहा कि वह कोई फायदा उठाने की कोशिश ना करें।
याचिका दायर करने वाले वकील एमएल शर्मा को सुनवाई की शुरुआत में ही तंज का सामना करना पड़ा। चीफ जस्टिस ने अदालत में कहा कि वह पहले कपिल सिब्बल को सुनेंगे, क्योंकि एमएल शर्मा की याचिका सिर्फ अखबारों की कटिंग के आधार पर ही है। चीफ जस्टिस ने पूछा कि आपने याचिका दायर ही क्यों की है?
सुनवाई के दौरान एन.राम और अन्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि यह स्पाइवेयर केवल सरकारी एजेंसियों को बेचा जाता है और निजी संस्थाओं को नहीं बेचा जा सकता है। एनएसओ प्रौद्योगिकी अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में शामिल है। सिब्बल ने कहा कि पेगासस एक खतरनाक तकनीक है जो हमारी जानकारी के बिना हमारे जीवन में प्रवेश करती है। इसके चलते हमारे गणतंत्र की निजता, गरिमा और मूल्यों पर हमला हुआ है।
कपिल सिब्बल ने कहा कि पत्रकार, सार्वजनिक हस्तियां, संवैधानिक प्राधिकरण, अदालत के अधिकारी, शिक्षाविद सभी स्पाइवेयर द्वारा प्रभावित हैं और सरकार को जवाब देना है कि इसे किसने खरीदा? हार्डवेयर कहां रखा गया था? सरकार ने प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं की? कपिल सिब्बल ने कहा कि मैं बस इतना चाहता हूं कि पेगासस जैसे गंभीर मामले में उच्चतम न्यायालय भारत सरकार को नोटिस जारी करे।
चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा कि 2019 में भी ऐसी रिपोर्ट्स थीं, आप दो साल बाद अचानक क्यों आए। जिस पर कपिल सिब्बल ने जवाब दिया कि हाल ही में हुए खुलासों से ये सब पता चला है। इसी सुबह पता चला कि कोर्ट के रजिस्ट्रार का भी फोन टैप हुआ है। चीफ जस्टिस ने कहा कि सच सामने आएगा, हमें अभी नहीं पता कि किसका नंबर था और किसका नहीं।
कपिल सिब्बल ने मांग करते हुए कहा कि सरकार को जवाब देना चाहिए कि क्या उन्होंने ये सॉफ्टवेयर खरीदा और कहां पर इस्तेमाल किया। सरकार ने इस बात को माना है कि 121 स्पाइवेयर से प्रभावित यूज़र भारत में हैं। इस सॉफ्टवेयर को सिर्फ सरकारें ही खरीद सकती हैं, जिस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि एक राज्य सरकार भी सरकार ही है। कपिल सिब्बल ने कहा कि ये राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है, ऐसे में सरकार को जवाब देना चाहिए।
पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील से ये भी पूछा कि क्या आपके पास जासूसी का कोई सबूत है? इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि यह सही है कि हमारे पास कोई सीधा सबूत नहीं है। भारत में जासूसी हुई है या नहीं, इस पर सवाल है। कपिल सिब्बल ने कहा कि यह टेक्नोलॉजी के जरिए निजता पर हमला है। सिर्फ एक फोन की जरूरत है और हमारी एक-एक गतिविधि पर नजर रखी जा सकती है। यह राष्ट्रीय इंटरनेट सुरक्षा का भी सवाल है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि हम मानते हैं कि यह एक गंभीर विषय है।लेकिन एडिटर्स गिल्ड को छोड़कर सारी याचिकाएं अखबार पर आधारित हैं। जांच का आदेश देने के लिए कोई ठोस आधार नहीं दिख रहा। यह मसला 2019 में भी चर्चा में आया था। अचानक फिर से गर्म हो गया है। आप सभी याचिकाकर्ता पढ़े लिखे लोग हैं। आप जानते हैं कि कोर्ट किस तरह के मामलों में दखल देता है। इस पर सिब्बल ने कहा, ‘यह सही है कि हमारे पास कोई सीधा सबूत नहीं है। लेकिन एडिटर्स गिल्ड की याचिका में जासूसी के 37 मामलों का जिक्र है। सिब्बल ने व्हाट्सएप और एनएसओ के बीच कैलिफोर्निया की कोर्ट में चले एक मुकदमे का हवाला दिया। सिब्बल ने कहा कि पेगासस जासूसी करता है, यह साफ है। भारत में किया या नहीं, इसका सवाल है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि हमने पढ़ा है कि एनएसओ सिर्फ किसी देश की सरकार को ही स्पाईवेयर देता है। कैलिफोर्निया केस का अभी क्या स्टेटस है? हमें नहीं लगता कि वहां भी यह बात निकलकर आई है कि भारत में किसी की जासूसी हुई। सिब्बल ने जवाब दिया, ‘संसद में असदुद्दीन ओवैसी के सवाल पर मंत्री मान चुके हैं कि भारत मे 121 लोगों को निशाने पर लिया गया था। आगे की सच्चाई तभी पता चलेगी जब कोर्ट सरकार से जानकारी ले। कृपया नोटिस जारी करे।
सीजेआई ने पूछा कि हमारे इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि दो साल बाद यह मामला क्यों उठाया जा रहा है? सिब्बल ने जवाब दिया कि सिटीजन लैब ने नए खुलासे किए हैं। अभी पता चला कि कोर्ट के रजिस्ट्रार और एक पूर्व जज का नंबर भी निशाने पर था। यह स्पाईवेयर मोबाइल का कैमरा और माइक ऑनकर के सभी निजी गतिविधियों को लीक करता है।
पेगासस मामले में शिक्षाविद् जगदीप छोकर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि यह मामला बहुत अधिक गंभीर है। श्याम दीवान का कहना था कि इस मामले की अहमियत बहुत ज्यादा है, इसलिए स्वतंत्र जांच करवाई जाए। इस केस में सबसे उच्च स्तर के ब्यूरोक्रेट के जरिए जवाब दिया जाना चाहिए। इसके लिए कैबिनेट सेक्रेटरी को नियुक्त करने पर प्राथमिकता से विचार होना चाहिए।
याचिकाकर्ता पत्रकारों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दत्तर ने सुप्रीम कोर्ट से अपील करते हुए कहा कि नागरिकों की गोपनीयता और व्यक्तिगत गोपनीयता पर विचार किया जाना चाहिए।
पत्रकार एसएनएम आब्दी की पैरवी करते हुए वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह किसी एक नागरिका से जुड़ा मामला नहीं है, यह व्यापक पैमाने पर हुआ है। इस मामले में तो ख़ुद सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए थी।
याचिकाओं में कहा गया है कि सैन्य-श्रेणी के स्पाइवेयर का उपयोग करके बड़े पैमाने पर जासूसी की जा रही है। जिससे कि लोगों के कई मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। यह एक तरह से स्वतंत्र संस्थानों में घुसपैठ, हमला और अस्थिर करने के प्रयास हैं, इस लिए इस पर जल्द से जल्द सुनवाई की जरूरत है। याचिका में यह भी कहा गया है कि यदि सरकार या उसकी किसी भी एजेंसी ने पेगासस स्पाइवेयर का लाइसेंस लिया और किसी भी तरह से इसका इस्तेमाल किया तो केंद्र को इस बारे में जांच के माध्यम से खुलासा करने का निर्देश दिया जाए।
गौरतलब है कि मीडिया संस्थानों के अंतरराष्ट्रीय संगठन पेगासस प्रोजेक्ट,जिसमें भारत का द वायर शामिल है, ने खुलासा किया है कि केवल सरकारी एजेंसियों को ही बेचे जाने वाले इजरायल के जासूसी साफ्टवेयर के जरिए भारत के दो केन्द्रीय मंत्रियों, 40 से अधिक पत्रकारों, विपक्ष के तीन नेताओं और एक न्यायाधीश सहित बड़ी संख्या में कारोबारियों और अधिकार कार्यकर्ताओं के 300 से अधिक मोबाइल नंबर हैक किए गए हैं। हालांकि सरकार ने अपने स्तर पर खास लोगों की निगरानी संबंधी आरोपों को खारिज किया है। सरकार ने कहा कि इसका कोई ठोस आधार नहीं है या इससे जुड़ी कोई सच्चाई नहीं है।
उच्चतम न्यायालय में पेगासस जासूसी मामले को लेकर विभिन्न याचिकाएं दायर की गई हैं और इन याचिकाओं में पेगासस जासूसी कांड की कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग की गई है। इनमें राजनेता, एक्टिविस्ट, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और वरिष्ठ पत्रकारों एनराम और शशि कुमार द्वारा दी गई अर्जियां भी शामिल हैं। कुछ दिनों पहले ही अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने ये खुलासा किया था कि इज़रायल के पेगासस साफ्टवेयर की मदद से भारत में कई लोगों की जासूसी की गई है। उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन जज अरुण मिश्रा, रजिस्ट्री के दो अधिकारी, दर्ज़नों वकील, तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के चैम्बर के वकील एम. थंगथुराई जिनके फोन नम्बर का इस्तेमाल मुकुल रोहतगी करते थे, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रशांत किशोर, दर्जनों पत्रकार, कुछ केंद्रीय मंत्री और अन्य फील्ड से जुड़े लोगों को फोन हैक किए गए थे। इस मसले पर लगातार संसद में हंगामा हो रहा है और विपक्ष जांच की मांग कर रहा है।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)