अवसरवाद और परिवारवाद का कौशल

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भारतीय राजनीति में वर्तमान में यदि कोई सर्वाधिक प्रभावी ‘वाद’  है तो वह है- अवसरवाद। राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ न केवल चुनाव लड़ती हैं, बल्कि जम कर आरोप-प्रत्यारोप करती हैं। चुनाव खत्म होते ही सत्ता लिप्सा की पूर्ति के लिए तुरंत ही गलबहियां करने लगती हैं। एक जमाने में खुद को ‘पार्टी विद डिफ़्रेंस’ बताने वाली भाजपा, इस वाद को नए स्तर पर पहुंचा चुकी है। इस समय भाजपा इस वाद के प्रयोग में इस कदर कुशल हो चुकी है कि सत्ता की लालसा रखने वाली कांग्रेस और अन्य पार्टियां, इस मोर्चे पर भी निरंतर भाजपा से मात खा रही हैं।

हरियाणा चुनाव के बाद बनी सरकार इस अवसरवाद का ताज़ातरीन उदाहरण है। हरियाणा में भाजपा और दुष्यंत चौटाला की पार्टी  जेजेपी ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव अभियान में बेहद निम्न कोटि की भाषा का इस्तेमाल किया। पर चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए वे ऐसे एकजुट हो गए, जैसे कि दोनों में हमेशा से दांत काटी रोटी रही हो और चुनाव के दौरान एक-दूसरे का विरोध करना तो महज भंगिमा प्रदर्शन (posturing) रहा हो!

भाजपा अपने विरोधियों पर हमला करने के लिए जिन दो शब्दों का सर्वाधिक इस्तेमाल करती रही है, वो दो शब्द हैं- भ्रष्टाचार और परिवारवाद। हरियाणा में जिस दुष्यंत चौटाला को अपने साथ सरकार में भाजपा ने उप मुख्यमंत्री बनाया है, उनकी तो पूरी राजनीतिक बुनियाद ही परिवारवाद और भ्रष्टाचार पर खड़ी है।

दुष्यंत चौटाला अपने परिवार की चौथी पीढ़ी के व्यक्ति हैं, जो राजनीति में आए हैं। उनके परदादा देवी लाल, फिर दादा ओमप्रकाश चौटाला, दादा के बाद पिता अजय चौटाला, चाचा अभय चौटाला और उसके बाद आते हैं दुष्यंत चौटाला और उनके भाई दिग्विजय चौटाला। इतना ही नहीं दुष्यंत की मां नैना चौटाला भी राजनीति में हैं और हरियाणा विधानसभा के लिए चुने गए जेजेपी के दस विधायकों में से एक हैं। यह भी गौरतलब है कि परिवार के भीतर राजनीतिक वर्चस्व को लेकर चले झगड़े के चलते ही दादा ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल से अलग हो कर दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बनाई। इसमें जननायक शब्द दुष्यंत के परदादा देवी लाल को इंगित करने के लिए प्रयोग किया गया है। इस तरह देखें तो न केवल दुष्यंत चौटाला परिवारवाद की जमीन पर खड़े हैं, बल्कि उनकी पार्टी के नाम में ही उस परिवारवाद का ऐलान है।

भ्रष्टाचार का मामला भी देखिए। दुष्यंत चौटाला के दादा ओमप्रकाश चौटाला और पिता अजय चौटाला भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की सजा काट रहे हैं। इस पर चर्चा करने से पहले एक पुराना किस्सा भी जान लीजिए। चौधरी देवी लाल हरियाणा के कद्दावर नेता थे। उनके युवा पुत्र ओमप्रकाश चौटाला, उस वक्त तक राजनीति में नहीं आए थे। एक दिन अचानक खबर आई कि ओमप्रकाश चंडीगढ़ हवाई अड्डे पर स्मगलिंग की घड़ियों के साथ पकड़े गए। अपना चेहरा बचाने के लिए मजबूरन चौधरी देवी लाल को घोषणा करनी पड़ी कि ओमप्रकाश से उनका कोई संबंध नहीं है।

वर्तमान स्थिति यह है कि दुष्यंत के दादा ओमप्रकाश चौटाला और पिता अजय चौटाला तिहाड़ जेल में भ्रष्टाचार के आरोपों के सिद्ध होने के बाद सजा काट रहे हैं। ओमप्रकाश चौटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री थे और अजय चौटाला सांसद। 1999 से 2005 के बीच चौटाला के मुख्यमंत्री रहते हुए तीन हजार बेसिक शिक्षकों की भर्ती हुई। इस भर्ती में हुई धांधली के खिलाफ प्राथमिक शिक्षा के पूर्व निदेशक संजीव कुमार ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की। इस मामले में हुई सीबीआई जांच में चौटाला पिता-पुत्र दोषी पाए गए। 2013 में दिल्ली की अदालत ने चौटाला पिता-पुत्र को अयोग्य शिक्षकों की नियुक्ति करने के अपराध का दोषी पाते हुए, भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम तथा भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं के तहत दस साल के कारावास की सजा सुनाई। दिल्ली उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने चौटाला पिता-पुत्र की सजा को कायम रखा।

जहां अदालत में कानूनी दांवपेंच आजमा कर बड़े लोग अक्सर कानून के शिकंजे से बच निकलने में कामयाब हो जाते हैं, वहीं एक पूर्व मुख्यमंत्री और उसके सांसद बेटे को निचली अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक ने भ्रष्टाचार का गुनहगार ठहराया तो समझा जा सकता है कि किस तरह का खुला भ्रष्टाचार चौटाला पिता-पुत्र ने किया होगा।

परिवारवाद और भ्रष्टाचार की ऐसी बुनियाद पर राजनीतिक महल खड़ा करने वाले दुष्यंत चौटाला, भाजपा के नए पार्टनर हैं। भ्रष्टाचार और परिवारवाद के इस इतिहास के बावजूद भाजपा को उन्हें गले लगाने में कोई दिक्कत नहीं हुई, बल्कि भाजपा से पार्टनर्शिप के एवज में उप मुख्यमंत्री पद के साथ ही तिहाड़ जेल में सजा काट रहे पिता अजय चौटाला की दो हफ्ते के लिए फर्लो के तहत छुट्टी का रिटर्न गिफ्ट भी दुष्यंत चौटाला को मिला।

ऊपर उल्लेख किए गए घड़ी स्मगलिंग प्रकरण में चौधरी देवी लाल ने पुत्र ओमप्रकाश से कोई संबंध न होने की बात कही, पर बाद में अपनी जगह मुख्यमंत्री अपने उसी बेटे को बनाया। भारतीय राजनीति में नेता कितना ही बड़ा हो जाए, लेकिन राजनीतिक विरासत वह अपने बच्चों और परिजनों में ही तलाशता है। संभवतः चौधरी देवी लाल ने भी इसी मजबूरी में अपने पुत्र को मुख्यमंत्री की गद्दी पर बिठाया होगा, लेकिन सत्ता लिप्सा के अलावा भाजपा की ऐसी कौन सी मजबूरी है कि भ्रष्टाचार और परिवारवाद की बुनियाद पर खड़े व्यक्ति के साथ गलबहियां कर रही है?

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