बजट पर राहुल गांधी का धारदार भाषण और मीडियाकर्मियों के लिए संसद के बाहर पिंजरे का इंतजाम  

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आज सबको पता था कि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का भाषण होना है, इसलिए उम्मीद की जा रही पिछली बार की तरह इस बार भी हंगामेदार भाषण होगा, और मीडिया में इसको लेकर आम लोगों में अच्छा-खासा उत्साह देखने को मिल सकता है। इससे पहले शुक्रवार के दिन संसद की कार्यवाही खत्म होने के बाद अनेकों सांसदों से मीडियाकर्मियों ने बाइट ली थी, जिसमें बजट के बारे में तमाम तरह की चर्चाएं देश के सामने आईं। संभवतः इसे देखते हुए ही आज से पत्रकारों के लिए एक नया नियम लागू हो गया है, कि वे संसद के परिसर में इधर-उधर नहीं जा सकते हैं। उनके लिए एक स्थान निर्दिष्ट कर दिया गया है, जिसके शीशे के पार वे अब सिर्फ माननीय सांसदों को निहार सकते हैं। न कोई इंटरव्यू या चलते-चलते कोई ऐसी बाइट, जो महत्वपूर्ण क्लू दे सके। 

प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया ने इसकी सख्त आलोचना करते हुए लिखा है, “पत्रकारों ने संसद परिसर में अपनी आवाजाही पर लगे प्रतिबंधों के खिलाफ़ आज संसद में प्रदर्शन किया और उन्हें “मकर द्वार” के सामने भी खड़ा होने से प्रतिबंधित कर दिया गया है। इस द्वार पर वे सभी तरफ़ से सांसदों से बातचीत कर सकते थे। हम उन पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने की मांग करते हैं।”

चर्चा तो यह भी है कि चूंकि इस बार भाजपा अपने दम पर सरकार बना पाने में कामयाब नहीं हो पाई, और सोशल मीडिया में इंडिया गठबंधन की लोकप्रियता इस चुनाव में काफी बढ़ी है। उत्तर प्रदेश में पीएम मोदी के मुकाबले राहुल गांधी को लोग अधिक पसंद कर रहे हैं, जिसे देखते हुए मुख्यधारा का मीडिया भी धीरे-धीरे ही सही, अपने सुर बदलने लगा है। फिर आज राहुल गांधी को बोलना था, ऐसे में पत्रकारों पर प्रतिबंध सरकार की बेचैनी और घबराहट को ही दिखा रहा है। यह नया फरमान क्यों और किसके आदेश पर आया है? इसके पीछे सरकार का क्या तर्क हो सकता है? पिछले 10 वर्षों से मीडिया को दरकिनार करने वाले मोदी जी ने ऐन लोकसभा चुनाव के बीच में एक के बाद एक इंटरव्यू दिए, जिनकी संख्या 80 से अधिक थी। लेकिन अब स्वंय की तो बात ही छोड़ दीजिये, चुनिन्दा मीडिया समूह के अलावा शेष मीडिया कर्मियों के लिए संसद के दरवाजे ही बंद कर दिए गये हैं।  

मीडिया संसद परिसर के बाहर के एक कमरे में-राहुल आए मिलने

इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार रोहिणी सिंह की टिप्पणी बेहद सामयिक है, “संसद में ग्राउंड रिपोर्टरों को पिंजरे में बंद करने का कारण सिर्फ़ यही है कि वे विपक्षी नेताओं से बात कर रहे थे और उनके बयानों को आगे बढ़ा रहे थे। उन बयानों को काफ़ी तवज्जो भी मिल रही थी। जाहिर है कि यह सरकार को नाराज़ करेगा, जो टीवी चैनलों से विपक्ष को पूरी तरह से गायब करने की आदी रही है। नोएडा के एंकरों को तुरंत सरकार की मदद के लिए आगे आना चाहिए और दिखाना चाहिए कि पत्रकारों को पिंजरे में बंद करना एक मास्टरस्ट्रोक और देशभक्ति का काम है।”

वहीं, संसद के भीतर आज भी राहुल गांधी के भाषण पर जमकर हंगामा मचा। राहुल ने अपने भाषण को जहां से खत्म किया था, वहीं से आगे बढाते हुए देश में भय का माहौल और उसे खत्म करने की बात कही। देखने में लग सकता है कि नेता प्रतिपक्ष जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे किसी व्यक्ति का भाषण ज्यादा सामयिक और बजट पर सरकार को घेरने का होना चाहिए। पिछले कई दशकों के दौरान हमने यही देखा भी था। स्वंय राहुल गांधी ने भी 2014 से लेकर 2020-22 तक इसी परिपाटी पर चलते हुए राजनीति की थी। लेकिन समय बदल चुका था, 2014 में जो सरकार आई थी, उसके पास अपने सेट नियम और आदर्श थे, उसे पुरानी संसदीय गरिमा और मर्यादा की कोई परवाह नहीं थी। सदन के पटल पर यदि कोई गंभीर प्रश्न हो, या राफेल डील को लेकर देश और दुनिया में सवाल उठ रहे हों, या देश के भीतर ही पेगासस जासूसी उपकरण के माध्यम से विपक्षी नेताओं और पत्रकारों की निगरानी का मामला हो, धारा 370, सीएए कानून, तीन कृषि कानून हों या कुछ भी करना हो, सरकार बेख़ौफ़ तरीके से विपक्ष और जागरूक भारत की आवाज को आसानी से दबा देने में सक्षम थी। 

इन सभी मुद्दों पर विपक्ष ने भले ही अपना विरोध व्यक्त किया हो, लेकिन एक बदले हुए माहौल में ये सारा विरोध नक्कारखाने में तूती के समान हो चुका था। मोदी सरकार और मीडिया की ताकत के आगे विपक्ष बेबस हो चुका था, जो आज भी काफी हद तक है। सिर्फ कुछ लाख लोगों की बौद्धिकता के बल पर देश के नैरेटिव को बदल पाना अब असंभव हो चुका था। जिसे समझने में विपक्ष को 8 वर्ष लग गये, और यह प्रकिया अभी भी जारी है। संभवतः इसीलिए, राहुल गांधी के आज के भाषण में भी कोई तथ्य नहीं रखे गये, बल्कि कौरवों और पांडवों के बीच के महाभारत के युद्ध का एक उदाहरण लिया गया।

राहुल गांधी ने अपने भाषण में जो बातें रखीं, उसका लुब्बोलुआब यह था कि देश में डर का माहौल पिछले 10 वर्षों से बनाया गया है। इससे देश के दलित, आदिवासी, किसान, युवा, अल्पसंख्यक और विपक्ष ही प्रभावित नहीं हैं, बल्कि स्वंय भाजपा के भीतर भी भय का माहौल व्याप्त है। उन्होंने रक्षा मंत्री का उदाहरण तक दिया, हालांकि वे चाहते तो इसे परिवहन मंत्री से लेकर यूपी के घमासान तक ले जा सकते थे। 

चक्रव्यूह के बारे में बताते हुए राहुल ने कहा कि हजारों वर्ष पहले कुरुक्षेत्र में अभिमन्यु को 6 लोगों ने चक्रव्यूह में घेरकर मार डाला था। चक्रव्यूह के अंदर डर और हिंसा होती है, और अभिमन्यु को ट्रैप कर मारा गया था, मैंने रिसर्च कर पता किया है कि चक्रव्यूह का एक दूसरा नाम होता है, पद्म व्यू मतलब लोटस फार्मेशन, जो कमल के फूल के शेप में होता है। 21 वीं सदी में एक नया चक्रव्यूह तैयार हुआ है, वो भी लोटस के शेप में है, जिसका चिन्ह प्रधानमंत्री अपनी छाती पर लगाकर चलते हैं। महाभारत के अभिमन्यु के साथ जो किया गया था, वही आज के हिंदुस्तान के युवाओं के साथ, किसानों के साथ, हमारी माता-बहनों, छोटे और मिडिल बिजनेस वाले लोगों के साथ किया जा रहा है। महाभारत में चक्रव्यूह के केंद्र में जो 6 लोग थे, वे थे द्रोणाचार्य, कर्ण, कृपाचार्य, कृत वर्मा,अश्वत्थामा। 

और शकुनि। आज भी चक्रव्यूह के बीच में 6 लोग हैं, नरेंद्र मोदी, अमित शाह, मोहन भागवत, अजित डोवल, अंबानी और अडानी, जो इसे कण्ट्रोल कर रहे हैं।”

इन नामों को लेते हुए ओम बिरला ने राहुल गांधी को टोका और सत्ता पक्ष हंगामा करने लगा। लोकसभाध्यक्ष के मुताबिक जो लोग सदन के सदस्य नहीं हैं, उनका नाम अब नहीं लिया जा सकता है। 

राहुल ने अपने भाषण में, तीन शक्तियों के हाथों में देश के पूर्ण नियंत्रण को रेखांकित करते हुए कहा, “पहला, मोनोपॉली कैपिटल जिसमें दो लोगों को पूरे देश को वित्तीय शक्तियों को नियंत्रित करने की छूट दी गई है, दूसरा सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग जैसी संस्थाएं और एजेंसियां हैं, और तीसरा है राजनीतिक कार्यकारी शक्तियां। ये तीनों मिलकर देश को बर्बाद कर रही हैं” 

बजट पर टिप्पणी करते हुए राहुल ने कहा, “बजट का फ्रेमवर्क बिग बिजनेस, इकाधिकार पूंजी, राजनीतिक मोनोपॉली को मजबूत कर रहा है, जो देश के लोकतांत्रिक ढांचे को नष्ट करता जा रहा है, और तीसरा है डीप स्टेट या एजेंसियां। इस तिकड़ी ने पहला काम यह चक्रव्यूह बनाने का किया कि जो छोटे और मझोले उद्योग-धंधे हैं, जो हिंदुस्तान के करोड़ों युवाओं को रोजगार देते थे, इस पर नोटबंदी, जीएसटी और टैक्स टेररिज्म के माध्यम से आक्रमण कर दिया। आज पूरे देश में अगर कोई भी व्यक्ति छोटा व्यवसाय चलाता है, तो रात को उसको फोन आ जाता है, आयकर, जीएसटी और टैक्स टेररिज्म का, जिसे रोकने के लिए बजट में कुछ नहीं किया गया है।”

राहुल ने आगे कहा, “कोविड के दौरान बड़े बिजनेस की मदद और छोटे और मझोले उद्योग-धंधों को खत्म किया गया, उसके चलते आज हिंदुस्तान के युवाओं को रोजगार नहीं मिल सकता है।” इंटर्नशिप प्रोग्राम को मजाक बताते हुए राहुल ने कहा, “ये सिर्फ 500 सबसे बड़ी कंपनियों में लागू होगा, और 99% युवा को इस इंटर्नशिप से कोई लेना देना नहीं है। आज मुख्य मुद्दा युवाओं का एग्जाम पेपर लीक है, बेरोजगारी के चक्रव्यूह के बाद आज उनके लिए एक और चक्रव्यूह पेपर लीक भी है। पेपर लीक 10 साल में 70 बार हुआ है। शिक्षा पर 20 साल में सबसे कम 2.5% बजट आवंटन किया गया है।”

अग्निवीर के मुद्दे को भी चक्रव्यूह से जोड़ते हुए राहुल गांधी ने इसे सेना के जवानों को अग्निवीर के चक्रव्यू में फांसना बताया। राहुल ने कहा, “उनके पेंशन के लिए इस बजट में एक रुपया नहीं है। आप अपने आप को देशभक्त कहते हो, लेकिन जब अग्निवीर की बात आती है तो बजट में आपको एक रुपया दिखाई नहीं देता, क्योंकि पेंशन के लिए आपने एक रुपया नहीं दिया”

किसानों के मुद्दे पर राहुल गांधी ने कहा, “अन्नदाता को तीन काले कानून के चक्रव्यूह में फंसाया गया, भूमि अधिग्रहण बिल को कमजोर किया गया। उन्होंने सिर्फ एक चीज मांगी है, क़ानूनी गारंटी वाली एमएसपी। आपने उन्हें सड़क पर रोक दिया, आजतक सड़क बंद है। सरकार उनसे बात करने के लिए तैयार नहीं है। यदि सरकार बजट में इसका प्रावधान कर देती, तो हमारे किसान जो आपके चक्रव्यूह में फंसे थे, वो निकल जाते। लेकिन आपने नहीं किया तो मैं यहां इंडिया गठबंधन की ओर से ऐलान करता हूं कि हम इस काम को करके दिखा देंगे। जो आपने अपने बजट में नहीं किया वो मैं हिंदुस्तान के सब किसानों से कहना चाहता हूं कि एमएसपी की गारंटी को हम इस सदन में आपको पारित करके देंगे।”

मिडिल क्लास पर बोलते हुए राहुल ने कहा, “मिडिल क्लास अभी तक प्रधानमंत्री का समर्थन करता था। कोविड के समय जब उन्होंने उनसे थाली बजाने के लिए कहा तो उन्होंने जमकर थाली बजाई थी। हमें अजीब लगा, मगर प्रधान मंत्री ने मिडल क्लास को आर्डर किया तो उन्होंने बजाई, उसके बाद पीएम ने उसी मिडल क्लास से कहा मोबाइल फोन की लाइट जलाओ। उन्होंने पूरे देश में लाइट ऑन की। अब इस बजट में उसी मिडली क्लास के एक छुरा पीठ में और एक छाती पे मार दिया। इंडेक्सेसन पीठ पर छुरा था, और जो कैपिटल गेन टैक्स था वो छाती पे छुरा मारा है। दुःख की बात है, लेकिन इसमें इंडिया गठबंधन के लिए एक छिपा फायदा है। मिडिल क्लास अब आपको छोड़ने जा रही है, और इंडिया गठबंधन के साथ आ रही है। आप जरा भी मौका मिलता है, चक्रव्यूह बनाने का काम करते हैं, और हम तोड़ने का काम करते हैं।”

अडानी, अंबानी के नाम को दोहराने पर जब लोकसभा अध्यक्ष ने एक बार फिर से टोकना शुरू किया तो राहुल गांधी ने कहा कि इनका नाम तो लेना पड़ेगा, या फिर आप कोई वैकल्पिक नाम बता दें। जिस पर संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने इसे सदन के अध्यक्ष की गरिमा, और संसदीय परंपरा की अवहेलना करार दिया। इस पर राहुल ने तपाक से चुटकी लेते हुए कहा, “मंत्री जी को a1 और a2 की रक्षा करनी है, मैं समझता हूं। ऊपर से आर्डर आया है, मैं समझता हूं, मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। वे कमिटेड हैं डिफेंड करने के लिए, डेमोक्रेसी में उन्हें डिफेंड करने का अधिकार है। अगर मंत्री जी a1 और a2 का बचाव कर रहे हैं, तो हम खुश हैं।”

अपने भाषण के अंत में राहुल ने बजट को वो हलवा बताया, जिसे कुछ लोग बना रहे हैं, और चंद लोगों में बांट रहे हैं। इस पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपना माथा पीटती दिखीं, तो कभी हंसते हुए नजर आईं। आपको याद होगा, बजट से पहले वित्त मंत्री एक बड़े से कड़ाह से प्लेट में हलवा डालकर अपने इर्दगिर्द तमाम अधिकारियों को हलवा खिला रही थीं, जो इस बात का प्रतीक था कि उन्होंने बजट को तैयार करने में काफी मशक्कत की थी। राहुल ने कटाक्ष में कहा कि, “आप लोग हलवा खा रहे हो, और देश को हलवा मिल ही नहीं रहा है। हिंदुस्तान के बजट को जिन 20 अधिकारियों ने तैयार किया है, उनमें से 90% लोगों में से सिर्फ दो लोग एक अल्पसंख्यक और एक ओबीसी अधिकारी हैं। मैं चाहता था कि बजट में जाति जनगणना की बात हो, क्योंकि 95% हिंदुस्तान दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, गरीब जनरल कास्ट, अल्पसंख्यक वर्ग सभी को जानना है कि हमारी भागीदारी और हिस्सेदारी कितनी है। सरकार हलवा बांटती जाती है, और बांटता कौन है वही दो तीन प्रतिशत, और बंटता किसके बीच है? वही 2-3 प्रतिशत।”

इस 40 मिनट के भाषण में लोकसभाध्यक्ष ओम बिड़ला कई बार असमंजस की स्थिति में नजर आये, विशेषकर तब जब राहुल गांधी ने ऐलान कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब  उनके भाषण के दौरान कभी भी सदन में नहीं दिखेंगे। झट से लोकसभाध्यक्ष ने राहुल गांधी को रोका, लेकिन कारण पूछने पर ओम बिड़ला ने उन्हें अपनी स्पीच जारी रखने का निर्देश देकर चुप्पी साध ली।

कुलमिलाकर कहा जा सकता है कि सरकार के हर कदम पर विपक्ष की कड़ी निगाह ही नहीं बनी हुई है, बल्कि वह पूरी आक्रामकता के साथ देश के अभिजात वर्ग के चश्मे के बजाय बहुसंख्यक आबादी की भाषा में अपनी बात को संसद के भीतर रख रहा है, जो आम बोलचाल की भाषा में होने के कारण आम लोगों में लोकप्रिय हो रही है। राहुल गांधी ने चक्रव्यूह के उदाहरण के माध्यम से शासक वर्ग और शोषितों के बीच की विभाजन रेखा को और ज्यादा स्पष्ट करने का काम किया है, और मौजूदा निजाम को स्पष्ट कर दिया है कि विपक्ष की पीठ पर बहुसंख्यक आबादी का हाथ है, और वह उनके मुद्दों को आने वाले दिनों में और भी मुखर करने जा रही है। 

(रविंद्र पटवाल जनचौक की टीम के संपादकीय सदस्य हैं।)

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