झारखंड में इस चुनावी गहमा गहमी के बीच लोग पानी के लिए हैं पानी पानी…

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देश में लोकसभा चुनाव 2024 का सात चरणों होने वाला मतदान का चार चरण समाप्त हो चुका है। अब 20 मई, 25 मई और 01 जून का मतदान बाकी है। 

झारखंड की बात करें तो यहां चुनाव आयोग द्वारा चार चरण में मतदान की तारीख घोषित की गई है। जिसके तहत 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को मतदान तय है। राष्ट्रीय स्तर पर चौथे चरण का और झारखंड का पहले चरण का मतदान 13 मई को राज्य के सिंहभूमि, खूंटी, लोहरदगा और पलामू में सम्पन्न हो चुका है। वहीं चतरा, हजारीबाग और कोडरमा में 20 मई, रांची, जमशेदपुर, धनबाद और गिरिडीह में 25 मई और गोड्डा, राजमहल और दुमका में 1 जून को मतदान होना बाकी है। 

चुनाव के इस गहमा-गहमी के बीच क्षेत्रीय दल हों या राष्ट्रीय, सभी राजनीतिक दल अपने उम्मीदवार की जीत को लेकर वोटरों से तरह-तरह के वायदे कर रहे हैं तरह-तरह की घोषणाएं कर रहे हैं, यहां तक कि अपने विरोधी दल से सावधान कर रहे हैं। 

वहीं इस चुनावी गहमा-गहमी के बीच राज्य की आम जनता अपने सामान्य जीवन की मूलभूत व दैनिक आवश्यकताओं को लेकर जद्दोजहद में लगी है। इस जद्दोजहद का आजकल सबसे बड़ा हिस्सा है पानी का संकट। शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण क्षेत्र, पानी को लेकर राज्य में तमाम जगहों पर त्राहिमाम की स्थिति बनी हुई है। 

कहना ना होगा कि इस जल संकट पर सबसे अधिक परेशानी महिलाओं की है। क्योंकि पानी की जरूरतों को पूरा करने में 90 प्रतिशत भूमिका महिलाओं की होती हैं।

बावजूद उक्त चुनाव में राजनीतिक दलों के प्रचार अभियान में इस समस्या पर कोई चर्चा नहीं देखी जा रही है। जबकि यह भी सच है कि विगत सालों में वोट के प्रति महिलाएं ज्यादा संवेदनशील हुई हैं।

गर्मी का मौसम शुरू होते ही राज्य के लगभग जिलों में पानी का संकट गहराता चला जाता है। इस बार भी हालात वही हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में गांवों से कुछ दूर पर पहाड़ी नदियां होती है, वर्षा होने से नदी में पानी का बहाव होता है और अगर बारिश न हुई तो नदी भी सूखी ही रह जाती है। लगभग क्षेत्रों में उसी नदी में चुआं खोदकर ग्रामीण पानी का इंतजाम करते हैं। इस बावत ग्रामीण बताते हैं कि नदी में चुआं खोद कर छोड़ दिया जाता है। रात भर रिसाव के कारण चुआं पानी से भर जाता है, तब सुबह आकर उस पानी का उपयोग करते हैं। यह क्रम बरसात को छोड़ कर बाकी के महीनों में बना रहता है।

सुबह होते ही गांव की महिलाएं व पुरूष बर्तन-गैलन लेकर नदी की ओर दौड़ पड़ते हैं। कटोरी-प्लेट के जरिए चुआं से पानी निकालते हैं और तसला, बाल्टी आदि में पानी भरते हैं। ग्रामीणों की कोशिश होती है कि सभी लोगों को पर्याप्त मात्रा में पानी मिल जाए, जिससे दिन भर का काम चल जाए। हालांकि जरूरत पड़ने पर दिन में भी चुआं के पास दौड़ लगानी पड़ती हैं।

ग्रामीण बताते हैं कि बाकी महीनों के बनिस्पत गर्मी का मौसम आफत बनकर आता है। बाकी समस्याएं तो हैं ही लेकिन पानी की समस्या विकराल हो जाती है। बरसात का मौसम पानी की समस्या से निजात तो दिलाता है, लेकिन जिंदगी गंदे पानी पर ही कटती है। बारिश होने पर इधर-उधर पानी जम जाता है। अभ्रक, कोयला या अन्य खदानों में भी पानी भर जाता है। लेकिन वह इतना गंदा रहता है कि पीने लायक नहीं रहता है। किसी तरह उसे कपड़े से छानकर या गरम कर पीने लायक बनाया जाता है।

उल्लेखनीय है कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में जल जीवन मिशन के तहत जलमीनार वगैरह का काम कराया गया है, लेकिन उसका भी समुचित लाभ नहीं मिल पाता है। कारण है योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार। इस तरह की लगभग योजनाओं पर काम केवल कमीशन खोरी के लिए किया जाता है। यही वजह है राज्य के लगभग जलमीनार लगने के एकाध महीने बाद ही केवल “शो पीस” बनकर रह जाते हैं। वहीं कुछ ऐसे भी जलमीनार हैं जिससे एक घंटे में एक बाल्टी पानी भी नहीं भर पाता है।

अब आते हैं राज्य में इस जल संकट के कुछ बानगी पर।

गिरिडीह जिला अंतर्गत देवरी प्रखंड के गुनियाथर पंचायत का एक गांव है हथगढ़। जहां की कुल आबादी है लगभग आठ सौ। आज की स्थिति यह है कि गांव की महिलाएं हर रोज सुबह पानी की तलाश में निकल पड़ती हैं एक किमी दूर नदी की ओर और रात भर चुआं में जमा पानी को देगची व बाल्टी में भरकर लौटती हैं। पुनः शाम को यही क्रम बनाती हैं, जितना पानी मिल पाता है उसे भरकर लाती हैं और नदी में गढ्ढा बनाकर चुआं बनाती हैं, जिसमें रातभर पानी जमा होता है जो सुबह काम आता है। 

 नदी के पानी पीने से यहां के ग्रामीण बीमार भी पड़ते हैं। लेकिन प्यास बुझाने के लिए इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प इनके पास नहीं है। 

वैसे कहने को गांव में दो चापाकल लगाया गया है, लेकिन दोनों चापाकल महीनों से खराब पड़े हुए हैं। हालत यह है कि इसे देखने वाला कोई नहीं है।

ग्रामीण बताते हैं कि जल जीवन मिशन के तहत जो हर घर नल-जल योजना है, जिससे जलमीनार बनाकर ग्रामीणों को लाभ देना है लेकिन यहां संवेदक की मनमानी के कारण आज भी हमें योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। योजना के तहत गांव में पांच स्थानों पर बोरिंग कर जलमीनार बनाने की योजना थी, लेकिन एक वर्ष पूर्व दो स्थान पर बोरिंग करने के बाद कार्य को अधूरा छोड़ दिया गया है। फलस्वरूप हमलोगों को चुआं खोदकर पानी की व्यवस्था करना पड़ रही है।

बता दें कि जल जीवन मिशन, जल शक्ति मंत्रालय के तहत केंद्र सरकार की योजना है, जिसका उद्देश्य भारत में हर घर तक पाइप से पानी की पहुंच सुनिश्चित करना है। लेकिन यह योजना आज चूं चूं का मुरब्बा साबित हो रही है। 

गिरिडीह जिले के ही गांवा प्रखंड में भी पेयजल की यही समस्या है। भीषण गर्मी में भी महिलाएं नदी में चुआं खोद कर पीने का पानी निकाल कर लाती हैं। 

प्रखंड के अमतरो पंचायत की महिलाएं नदी में चुआं खोदकर पीने के लायक पानी निकालती हैं। ये हाल सिर्फ एक दिन का नहीं बल्कि पूरे गर्मी का है। महिलाओं को पीने के पानी के बंदोबस्त के लिए कड़ी धूप में हर रोज नदी जाना पड़ता है। 

महिलाएं बताती हैं कि कई बार मुखिया से चापाकल और सोलर पानी टंकी देने की मांग की गयी लेकिन कुछ नहीं मिला। क्योंकि गांवा के बीडीओ समेत प्रखंड के कोई बड़े अधिकारी इसे लेकर पहल नहीं कर रहे हैं।

यह क्षेत्र गिरिडीह संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जहां लोकसभा 2024 का 25 मई को मतदान है। मतदान करने के बावत पूछे गए सवाल पर ग्रामीण बताते हैं कि वोट देना मजबूरी है क्योंकि नेता लोग कहते हैं कि वोट नहीं देने पर राशनकार्ड, पेंशन वगैरह सरकारी लाभ बंद हो जाएगा। 

राज्य के लगभग ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह की अफवाह फैलाई जा रही है। दूसरी सबसे अहम बात यह है कि केंद्र सरकार की जो योजनाएं हैं वो तो हैं ही, साथ ही राज्य सरकार की योजनाओं के लाभ को भी ‘केंद्र सरकार की देन है’, यह भाजपा और संघ के लोगों द्वारा आम लोगों में प्रचारित किया जाता रहा है। यही वजह है कि राज्य की आम जनता के भीतर सबकुछ मोदी दे रहे हैं, पैठ गया है, जिसका असर वोट पर भी पड़ने की संभावना बनी रहती है।

झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर दूर सारंडा स्थित छोटानागरा पंचायत का जामकुंडिया गांव जहां बसते हैं दर्जनों आदिवासी परिवार। ये पीने का पानी के लिए आज भी कोयना नदी पर आश्रित हैं। वे नदी किनारे चुआं बनाकर पानी लेते हैं जिसका इस्तेमाल पीने से लेकर खाना बनाने के लिए करते हैं। क्षेत्र की महिलाओं का कहना है कि चुआं में कटोरी की सहायता पानी निकालना पड़ता है। एक देकची पानी निकालने के लिए काफी समय लग रहा है। इस झुलसा देने वाली गर्मी में हम महिलाओं की स्थिति खराब हो जाती है। हम गरीबों की सुनने वाला कोई नहीं है। जामकुंडिया गांव निवासी और सारंडा पीढ़ के मानकी (आदिवासी समाज का एक पद) लागुड़ा देवगम बताते हैं कि गांव के लगभग 8-10 चापाकल पिछले कई महीनों से खराब है। भीषण गर्मी में ग्रामीणों के सामने पेयजल का संकट गहरा गया है। 

यह सिंहभूमि संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है जहां पिछले 13 मई को लोकसभा का चुनाव सम्पन्न हो चुका है। 

राजधानी रांची शहर से लगभग 40 किमी दूर है बुंडू। बुंडू अनुमंडल के अंतर्गत है बुढ़ाडीह गांव, जहां हरिजन टोला तथा मछुवा टोला में मुख्यमंत्री नल-जल योजना के तहत जल जीवन मिशन के अंतर्गत लगाए गए 5,000 लीटर का मिनी वाटर सप्लाई योजना 2019 में लगाई गई थी, जिसके लगातार खराब होने से दर्जनों परिवार चुआं का पानी पीने को मजबूर हो गए हैं।

यहां स्थिति यह है कि ग्रामीण नदी में चुआं बनाकर पानी लाने जाते हैं जहां जानवर उसी चुआं से पानी पीते हैं और ग्रामीण उसी पानी को बर्तन में भरकर ले जाने को मजबूर हैं। 

कई बार महिलाएं जब सूखी नदी पर गड्ढा खोदकर बर्तन से पानी भरने जाती हैं तो वहां उस दौरान आवारा कुत्तों को भी उसी स्थल से पानी पीते पाया जाता है। इस परेशानी को लेकर ग्रामीण मुखिया, पंचायत समिति सदस्य, जिला परिषद सहित कई पदाधिकारियों को कहकर थक हार चुके हैं। लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला, समस्याएं जस की तस हैं। 

यह क्षेत्र रांची संसदीय क्षेत्र के तहत है यहां आगामी 25 मई को चुनाव होना तय है।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

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