लातेहार पुलिस के जुल्म का शिकार आदिवासी को 2 साल बाद मिला आंशिक इंसाफ

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लातेहार। 23 फरवरी 2022 की रात को झारखंड के लातेहार जिला अंतर्गत गारू थाना क्षेत्र के कुकु गांव निवासी 42 वर्षीय खेरवार आदिवासी अनिल कुमार सिंह को गारू थाना के तत्कालीन थाना प्रभारी रंजीत कुमार यादव ने माओवादियों को मदद करने का आरोप लगा कर बेरहमी से पिटाई की थी। अनिल सिंह की न केवल बेरहमी से पिटाई हुई थी, बल्कि पिटाई के बाद थाना प्रभारी ने अनिल के शौच के रास्ते में पेट्रोल डाल दिया था।

अगले दिन पुलिस ने उससे ज़बरदस्ती उसकी खून से लतपथ पैंट और अंडरवियर खोलवा के रख ली थी। 25 फ़रवरी को अनिल को तत्कालीन एसपी अंजनी अंजन के सामने प्रस्तुत करने के बाद यह कह कर छोड़ दिया गया था कि पिटाई की बात घर में किसी को नहीं बताना, नहीं तो अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना। लेकिन जैसे ही मामला सार्वजानिक हुआ एसपी अंजनी अंजन ने मामले की जानकारी से साफ़ इनकार कर दिया।

पुलिस द्वारा अनिल पर नक्सलियों को रेलगाड़ी पर बैठाकर बाहर ले जाने का आरोप लगाया गया था। पुलिस की पिटाई से घायल अनिल 26 फरवरी को सदर अस्पताल पहुंचा। जहां डॉक्टर अखिलेश्वर प्रसाद ने उनका इलाज किया। अनिल ने बताया कि मेरे अलावा पुलिस ने मेरे मामा रामसेवक भगत व भगिन दमाद अजय भगत को भी उठा कर थाना ले गई थी। जहां उन लोगों की भी पिटाई की गई। घटना के बारे में अनिल ने बताया था कि 23 फरवरी की रात हमलोग पूरे परिवार खाना खाकर सो रहे थे।

इसी बीच रात्रि करीब 1:30 बजे थाना प्रभारी रंजीत कुमार यादव दलबल के साथ मेरे घर पहुंचे और दरवाजा खटखटा कर बाहर बुलाया। उसके बाद उन्होंने मुझे, मेरे मामा, भगिन दमाद को यह कह कर तैयार होने को कहा कि तुम लोग नक्सली को ट्रेन में बैठा कर पहुंचाए हो, थाना चलो। इसके बाद हमलोगों को थाना ले जाया गया व जमकर पिटाई की गई।

स्वयं थानेदार ने मेरे शरीर के निचले भाग में अन्धाधुन्ध लाठियां बरसाई। जिससे मेरा चमड़ा उखड़ गया। मेरे पखाने के रास्ते पेट्रोल डाला, जिसके कारण मैं बेहोश हो गया। मेरा ब्लड प्रेशर लो हो गया। जिसके बाद ग्रामीण चिकित्सक को बुलाकर मेरा इलाज कराया गया। इसके बाद पुलिस हमलोगों को लेकर लातेहार पुलिस एसपी के पास गई। हमलोगों से पूछताछ की गई। चूंकि हमलोग पूरी तरह निर्दोष थे। नतीजतन हमलोगों को 25 फरवरी को यह धमकी देकर छोड़ दिया गया कि किसी को यह बात मत बताना।

इस मामले को लेकर क्षेत्र के सामाजिक संगठन और झारखंड जनाधिकार महासभा ने इस मामले में विस्तृत तथ्यान्वेषण किया था और उनके द्वारा पाये गए तथ्यों को सरकार व मीडिया के सामने प्रस्तुत किया था। इस मामले में महासभा लगातार न्याय के लिए संघर्षरत रही। लंबे कानूनी व जमीनी संघर्ष के बाद 22 जून 2024 को झारखंड उच्च न्यायालय ने अनिल सिंह को पांच लाख रु का मुआवजा का आदेश दिया है एवं दोषी पुलिस कर्मी से यह राशि वसूल करने का आदेश दिया है।

उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए महासभा ने न्याय की जीत बताई है एवं अनिल सिंह समेत इस मामले में सहयोग कर रहे सभी ग्रामीणों व सामाजिक कार्यकर्ताओं के संघर्ष व स्थानीय और उच्च न्यायालय में मामले को देख रहे वकीलों की प्रतिबद्धता को सलाम करती है। बावजूद महासभा का कहना है कि यह न्याय अभी आंशिक है।

बताते चलें कि घटना के कई महीनों बाद स्थानीय कोर्ट में कंप्लेंट केस दर्ज करने के बाद थाना प्रभारी व अन्य दोषी पुलिस के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज हो पाई थी। लेकिन पुलिस द्वारा सक्रिय रूप से जांच कर कार्यवाई न करने के कारण अनिल सिंह ने झारखंड उच्च न्यायालय में मामला दर्ज किया था।

झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा बताया गया है कि महासभा द्वारा इस मामले को उठाने के बाद मुख्यमंत्री ने इस पुलिसिया हिंसा का संज्ञान लिया था और झारखंड पुलिस को कार्यवाई का आदेश दिया था। लेकिन इसके बावजूद पुलिस लगातार दोषियों को बचाने की कोशिश करती रही है। अभी तक पुलिस द्वारा दोषियों के विरुद्ध पर्याप्त कार्यवायी नहीं की गई है।

यह मामला फिर से यह दर्शाया है कि किस प्रकार आदिवासी राज्य में दमन का शिकार होते हैं एवं उनके परिवार को न्याय मिलना कितना कठिन होता है। दोषी पुलिस व सुरक्षा बल के विरुद्ध महज़ एक प्राथमिकी दर्ज करवाना एक लंबा संघर्ष है।

महासभा मांग करती है कि तुरंत दोषी पुलिस पदाधिकारियों को बर्खास्त किया जाए, उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाई की जाए और अनिल सिंह को 5 लाख के बजाय 10 लाख का मुआवजा दिया जाए।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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