लुगत-ए-रोजमर्रा
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उर्दू के क्लासिक अदब को जिंदा कर गए शम्सुर्रहमान फारूकी
Janchowk -
यह सन् 1998 की बात है। तब मैं प्रकाशन विभाग से निकलने वाली उर्दू मैगजीन आज कल में सब एडिटर था और मेरे संपादक थे शम्सुर्रहमान फारूकी के भाई महबूब रहमान फारूकी साहब। तब शम्सुर्रहमान साहब का एक मजमून...
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