Thursday, April 18, 2024

लोकंत्र के पाए

बचा-खुचा लंगड़ा लोकतंत्र भी हो गया दफ्न!

आह, अंततः लोकतंत्र बेचारा चल बसा। लगभग सत्तर साल पहले पैदा हुआ था, बल्कि पैदा भी क्या हुआ था। जैसे-तैसे, खींच-खांच कर बाहर निकाला गया था। अविकसित, अपूर्ण, रुग्ण। उम्मीद थी कि एक बार जैसे-तैसे बाहर आ जाएगा और...

Latest News

उत्तराखंड:मतदान आ गया, मतदाता अब भी मौन

उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान हो रहा है। अब जबकि मतदान...