Tag: literature

  • अमृतलाल नागर: भारतीय जनजीवन के आशावान स्वप्नों के चितेरे

    अमृतलाल नागर: भारतीय जनजीवन के आशावान स्वप्नों के चितेरे

    प्रेमचंदोत्तर हिंदी साहित्य को जिन साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं से संवारा है, उनमें अमृतलाल नागर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। किस्सागोई के धनी अमृतलाल नागर ने कई विधाओं से साहित्य को समृद्ध किया। अमृतलाल नागर ने कहानी और उपन्यास के अलावा नाटक, रेडियो नाटक, रिपोर्ताज, निबंध, संस्मरण, अनुवाद, बाल साहित्य आदि के क्षेत्र…

  • जयंती पर विशेष: प्रेमचंद की परम्परा एक सामूहिक प्रगतिशील परम्परा थी

    जयंती पर विशेष: प्रेमचंद की परम्परा एक सामूहिक प्रगतिशील परम्परा थी

    जिस प्रेमचन्द के निधन पर उनके मुहल्ले के लोगों ने कहा कि कोई मास्टर था जो मर गया, जिस प्रेमचन्द की  अत्येंष्टि  में दस बारह लोग ही मुश्किल से शामिल हुए थे, वह प्रेमचन्द अपने निधन के 85 साल बाद भारत के एक  बड़े साहित्यिक सांस्कृतिक  प्रतीक बन गए हैं। ग़ालिब और टैगोर  और सुब्रमण्यम…

  • जन्मदिन पर विशेष: हिंदी साहित्य के एक ज्वालामुखी थे ओमप्रकाश वाल्मीकि

    जन्मदिन पर विशेष: हिंदी साहित्य के एक ज्वालामुखी थे ओमप्रकाश वाल्मीकि

    (30 जून 1950- 17 नवंबर 2013) दोस्‍तो ! बिता दिए हमने हज़ारों वर्ष इस इंतज़ार में कि भयानक त्रासदी का युग अधबनी इमारत के मलबे में दबा दिया जाएगा किसी दिन ज़हरीले पंजों समेत ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता सदियों का संताप की उपरोक्त चंद पंक्तियां ही नहीं, उनका सारा साहित्य इस बात की गवाही देता…

  • ‘मुस्लिम साहित्य’ से धर्मांतरण सरकार का नया शिगूफ़ा

    ‘मुस्लिम साहित्य’ से धर्मांतरण सरकार का नया शिगूफ़ा

    मेरे घर में गीता है तो क्या यह हिन्दू साहित्य है?  मेरे पास घर में बाल्मीकि रामायण है तो क्या यह हिन्दू साहित्य है?  मेरे पास सत्यार्थ प्रकाश भी है तो क्या यह हिन्दू साहित्य है? क्या इनसे मेरा धर्मांतरण कराया जा सकता है? मुझे हिन्दू बनाया जा सकता है। इन किताबों में कहीं नहीं…

  • गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विष्णु पांड्या ने ‘शववाहिनी गंगा’ को दिया अराजक कविता का खिताब

    गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विष्णु पांड्या ने ‘शववाहिनी गंगा’ को दिया अराजक कविता का खिताब

    ‘शववाहिनी गंगा’ कविता लिखने वाली गुजराती कवि  पारुल खाखर ‘अराजक’ हैं और इस कविता को सराहने वाले ‘साहित्यिक नक्सली’! ये मेरा नहीं गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विष्णु पांड्या का कहना है।  दरअसल गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विष्णु पांड्या ने साहित्य अकादमी प्रकाशन की पत्रिका के जून संस्करण के संपादकीय में गुजराती कविता की…

  • उपन्यास, आलोचना और वीरेंद्र यादव का समाज-बोध

    उपन्यास, आलोचना और वीरेंद्र यादव का समाज-बोध

    मार्क्सवादी साहित्यालोचक वीरेंद्र यादव के कुछ लेख और टिप्पणियां मैंने पढ़ी थीं। पर उनकी आलोचनात्मक पुस्तक पढ़ने का पहला मौका हाल के दिनों में मिला। यह पुस्तक है-उपन्यास और वर्चस्व की सत्ता।* 2017 में पुस्तक का दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ। पहली बार यह 2009 में छपी थी। इसकी चर्चा भी हुई। पर मेरे जैसे असाहित्यिक…

  • रेणु की जन्मशती पर सिमराहा से लेकर दिल्ली तक कार्यक्रमों की झड़ी

    रेणु की जन्मशती पर सिमराहा से लेकर दिल्ली तक कार्यक्रमों की झड़ी

    नई दिल्ली। हिंदी के अमर शब्द शिल्पी एवं लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सहयोगी फणीश्वरनाथ रेणु  की सौवीं  जयंती पर कल उनकी कहानी “संवदिया” पर बनी फिल्म उनके गांव में रिलीज होगी। इसके साथ ही दिल्ली रेणुजी पर दस पत्रिकाओं के विशेषांकों का लोकार्पण भी होगा। रेणु की कहानी” तीसरी कसम अर्थात मारे गए गुलफाम” पर…

  • ‘दलित साहित्य’ ही कहना क्यों जरूरी?

    ‘दलित साहित्य’ ही कहना क्यों जरूरी?

    बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में दलित समाज की वेदना और उत्पीड़न को दलित साहित्य के माध्यम से दुनिया के समक्ष लाने का महत्वपूर्ण कार्य हुआ है। पिछली सदी के सातवें दशक में ‘दलित साहित्य’ का हिंदी पट्टी में शुरुआती लेखन आरंभ हुआ था तथापि स्वामी अछूतानंद ‘हरिहर’ एवं कुछ गैर दलितों द्वारा भी दलित जीवन…

  • इंदिरा गांधी नहीं गायत्री देवी से प्रेरित होकर मैंने लिखी थी ‘आंधी’: कमलेश्वर

    इंदिरा गांधी नहीं गायत्री देवी से प्रेरित होकर मैंने लिखी थी ‘आंधी’: कमलेश्वर

    बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी कमलेश्वर की 27 जनवरी को यानी बीते कल 14वीं पुण्यतिथि थी। 6 जनवरी, 1932 को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी में जन्मे कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना उर्फ कमलेश्वर की आला तालीम इलाहाबाद में हुई।शिक्षा पूरी करने के बाद आजीविका के लिए उन्होंने कुछ ऐसे कार्य किए, जो उनके पाठकों को बेहद अविश्वसनीय लग सकते…

  • बांग्ला साहित्य की विद्रोही दलित चेतना का हिंदी दीप

    बांग्ला साहित्य की विद्रोही दलित चेतना का हिंदी दीप

    जब बांग्ला साहित्य और समाज की उदार और विद्रोही चेतना को हिंदी इलाके के संकीर्ण राष्ट्रवाद और बंगाल में पहले से मौजूद हिंदू चेतना से पराजित करने का राजनैतिक अभियान और सांस्कृतिक आख्यान अपने चरम पर हो तब प्रोफेसर कृपाशंकर चौबे की पुस्तक `दलित आंदोलन और बांग्ला साहित्य’ को हिंदी जगत में विद्रोही चेतना का…