पिछले 3-4 दिनों से भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा को लेकर भारतीय मीडिया में खबरें गुलज़ार थीं। प्रधानमंत्री मोदी-ट्रम्प की दोस्ती और मुलाक़ात को लेकर बड़े-बड़े मंसूबे बांधे जा रहे थे। नतीजा क्या निकला, उसका कुछ सच पहले ही सामने आ चुका है, और जैसे-जैसे समझौते को अमल में लाया जायेगा, वह भी पूरी तरह से स्पष्ट हो जायेगा।
लेकिन उन अभागे अप्रवासी भारतीयों और उनके परिवारों की तो जिदगी अभी से स्याह हो चुकी है। इधर पीएम मोदी अमेरिका से रवाना हुए, उधर अमेरिकी माल ढोने वाले सैन्य विमान C-17 Globemaster III से एक बार फिर भारतीयों की पंजाब के अमृतसर में वापसी की तैयारी भी कर दी गई थी।
साफ़ नजर आ रहा है कि इस बार के राष्ट्रपति ट्रम्प ने पीएम मोदी के साथ की पुरानी दोस्ती की जरा भी परवाह नहीं की है। ट्रम्प की जीत के साथ ही यह स्पष्ट होने लगा था कि 2020 की अपनी हार और उसके बाद बड़े बहुमत के साथ जीत के दौरान ही जिस तरह से अमेरिकी मीडिया और टेक कंपनियों ने घुटने टेक दिए हैं, यह ट्रम्प को पूर्ण स्वछंदता के लिए सबसे सुनहरा मौका है।
ट्रम्प-मोदी की मुलाक़ात में सारा जोर द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को लेकर ही था, इसलिए भारत में अभी तक जो खाम-खयाली बनाकर रखी गई थी कि अमेरिका की निगाह में भारत बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है, उस भ्रम को इस बार की मुलाकात से बेहद धक्का लगा है।
यह भ्रम वैसे भी भविष्य में टूटना ही था, लेकिन बाइडेन के जाने और ट्रम्प के सत्ता में वापसी के साथ यह इतनी तेज गति से होगा, इसका अंदेशा शायद किसी को नहीं था। ऊपर से हम सोच रहे थे कि पीएम मोदी जी अमेरिका जाकर अवैध अप्रवासी भारतीयों के पक्ष में वकालत करेंगे? मौजूदा सत्ताधीश पार्टी के लिए सबसे पहली प्राथमिकता अपने क्रोनी मित्र को अमेरिकी क़ानूनी शिकंजे से बचाने, फिर भारतीय सुरक्षा एजेंसी और उसके अधिकारियों की अमेरिका के भीतर आपराधिक संलिप्तता से बचने की होगी। इतना ही महत्वपूर्ण है भारतीय कॉर्पोरेट घरानों के व्यापारिक हितों की रक्षा करना, जिसमें आईटी से जुड़ी कंपनियों का अधिकांश कामकाज अमेरिका पर निर्भर है।
इसके लिए भारत सरकार व्यापार घाटे में असुंतलन और आयात में टैरिफ को घटाते जाने के लिए कृत संकल्प है। पहले ही बजट में इसका प्रावधान किया जा चुका है। यात्रा पर जाने से पहले पीएम मोदी की चिंता यही थी कि किसी तरह राष्ट्रपति ट्रम्प को भारत के खिलाफ टैरिफ लगाने की घोषणा करने से रोका जा सके। ट्रम्प ने ऐसा नहीं किया, पर पूर्व की तरह पीएम मोदी के सामने कई बार साफ़ दोहराया कि भारत के द्वारा अमेरिकी वस्तुओं पर भारी टैरिफ लगाया जा रहा है। पीएम मोदी की यात्रा के दौरान ही ट्रम्प ने reciprocal टेरिफ लगाने की घोषणा की है, जिसे हमारे प्रधानमंत्री चुपचाप सुनते रहे।
इसलिए, आज जब अप्रवासी भारतीयों की दूसरी खेप देश में उतर रही है तो एक स्तब्ध खामोशी छाई हुई है। यह कुछ ऐसा है जैसा हाल के वर्षों में हम मुस्लिम अल्पसंख्यकों के बर्ताव में देखते हैं। वे क्या खायेंगे, क्या पहनेंगे से लेकर उनके धार्मिक स्थलों पर हिंदू देवी-देवताओं की जय-जयकार के नारे लगाती भीड़ को वे इसी ख़ामोशी से सुनते हैं, जैसे देश आज अमेरिका की दादागिरी को देख और जज्ब कर रहा है।
2014 से पहले तक देश मानता था कि भारत एक विकासशील देश है, जो उदारीकरण के चलते तेज जीडीपी वृद्धि के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था में खुद के लिए एक जगह बना रहा था। तब भी अमेरिका और पश्चिमी देश और साथ ही चीन मजबूत आर्थिक शक्ति थे, लेकिन भारत के लिए तरक्की के लिए जगह थी। भारत पश्चिमी देशों की ओर तेजी से झुक रहा था, और ईरान जैसे मित्र देशों के साथ अमेरिकी दबाव में व्यापारिक रिश्तों में कमी ला रहा था।
लेकिन ये सब बातें देश साफ़-साफ देख रहा था, और उसे अपनी हैसियत का अहसास था। ब्रिक्स देशों के संस्थापक सदस्य के तौर पर भारत की भूमिका अहम थी। ईराक युद्ध के दौरान भारत सरकार ने लाखों की संख्या में अप्रवासी भारतीयों को अपने विमानों से सकुशल वापस लाने का काम किया था, लेकिन उसका ढिंढोरा पीटने की परंपरा नहीं थी।
लेकिन मोदी के सत्ता में आने के साथ ही एक अजीब परिघटना हुई। विदेशी दौरे अब भारत की वैश्विक हैसियत की पहचान बनने लगे। भारत में चुनावों में जीत के लिए अब यह एक अचूक हथियार बन चुका है। विदेशों में रह रहे अप्रवासी भारतीयों के साथ पीएम मोदी की मुलाकात और रैलियां आज के दिन ग्रामीण भारत की चौपाल तक में उन बूढों को गौरवान्वित करने लगी हैं, जो अपने प्रदेश से बाहर तक नहीं गये।
बहुत संभव है कि इस दौरे के बाद भी भाजपा आईटी सेल देश में बड़े वर्ग को यह बताने में कामयाब रहे कि पीएम मोदी की शान में अमेरिका के राष्ट्रपति उनकी कुर्सी के पीछे खड़े रहे, और उनकी कुर्सी खींचकर मोदी जी के लिए खड़े होते समय सम्मान प्रदर्शित किया। अपने ऑटोग्राफ के साथ भारत के प्रधानमंत्री को सम्मानित करना ही उनके लिए सबसे बड़ा तोहफा हो सकता है। प्रेस कांफ्रेंस में ट्रम्प का यह कहना कि पीएम मोदी उनसे कहीं बेहतर अपने देश के लिए मोलभाव करने वाले नेता हैं, मोदी समर्थकों को एक बार फिर से अपना दिल न्योछावर करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
लेकिन कड़वी सच्चाई तो यह है कि इन चिकनी-चुपड़ी बातों के साथ भारत के आर्थिक हितों पर ट्रम्प ने भारी कुठाराघात करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। हमें सबसे अधिक तेल और गैस अमेरिका से ही खरीदने के लिए विवश किया जाना है। खाड़ी देशों और रूस से मिलने वाले सस्ते तेल से अपनी निर्भरता को कम करना है। जिन हथियारों को ट्रम्प के बिलिनेयर मंत्री एलन मस्क एक बार कबाड़ बता चुके हैं, उस F-35 को भारी कीमत अदा कर खरीदने की विवशता है।
अमेरिकी काजू, शराब, सेव यहां तक कि डक-मीट की आपूर्ति भी निकट भविष्य में भारतीय बाजारों में हो तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
पिछली बार 104 भारतीयों को अमेरिका ने देश निकाला दिया था, जिसमें से अधिकांश गुजरात और हरियाणा जैसे भाजपा शासित राज्यों से आने वाले लोग थे। पंजाब और हरियाणा के निर्वासित भारतीयों ने तो अपनी आपबीती मीडिया के साथ साझा की थी, लेकिन दैनिक भाष्कर की रिपोर्ट बताती है कि गुजरात में सभी 33 अवैध अप्रवासियों को मीडिया से मिलने नहीं दिया जा रहा है। उनके पते ठिकाने भी गलत डाले गये हैं। हालत यह है कि एक ही परिवार के पति, पत्नी और बच्चे का पता अलग-अलग दर्ज है। ऐसा जान पड़ता है कि इस हादसे में सिर्फ गुजरात की ही नाक कटने का खतरा है, पंजाब जैसे राज्यों की इज्जत उछलती है तो कोई परवाह नहीं।
इस बार की खेप में जिन 119 लोगों को अमेरिकी सैन्य मालवाहक जहाज लेकर आ रहा है, उसमें 67 पंजाब से, 33 हरियाणा से, 8 गुजरात से, 3 उत्तर प्रदेश से, दो-दो गोवा, महाराष्ट्र और राजस्थान से तथा एक-एक हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर से हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान को भी तब जाकर पंजाब और अमृतसर में अमेरिकी सैन्य विमान उतारे जाने का होश आया जब उन्हें महसूस हुआ कि कांग्रेस और अकाली दल इसके लिए केंद्र के साथ उनके शासन को कोस रहे हैं।
भगवंत मान अब कह रहे हैं कि जो भी अप्रवासी अमृतसर आ रहा है, उनके लिए खाने-पीने और आराम करने का पूरा इंतजाम किया गया है। अवैध अप्रवासी भारतीयों से संबंधित राज्य सरकारों ने अमृतसर से अपने-अपने राज्यों के लिए रवानगी का इंतजाम कर रखा है।
यह सिलसिला आगे भी जारी रहने वाला है। अवैध अप्रवासी भारतीयों से लदा तीसरा अमेरिकी मालवाहक जहाज जल्द ही 16 फरवरी को उड़ान भरने जा रहा है। भारतीय प्रधानमंत्री अपने विशेष विमान से भारत वापसी तो कर ही चुके होंगे। भारत क्या है और विश्वगुरु बनने की यह उड़ान 145 करोड़ भारतीयों को कहाँ से कहाँ ला पटकी है, इसका सही-सही अंदाजा तो अगले 6 माह में सभी को नजर आने लगेगा।
(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)
+ There are no comments
Add yours