दिल्ली के गरीबों पर कहर बनकर बरपा है यह नारा : ‘जहां झुग्गी, वहां बुलडोजर’

दिल्ली में वादा तो यह था कि जहां झुग्गी-वहां पक्का मकान, लेकिन नारे की असलियत आज राजधानी के झुग्गीवासियों को समझ आ रही है। दिल्ली में 675 से ऊपर झुग्गी बस्तियां हैं, जिसमें दिल्ली की 25% आबादी रहती है. यानि 50 लाख लोगों के सपने ख़ाक हो रहे हैं, या होने जा रहे हैं। इन झुग्गियों को बुलडोज करने के लिए जून के महीने को विशेष रूप से चुना गया है, क्योंकि स्पेशल अदालतों के अलावा कोर्ट बंद हैं, और इन लोगों की कोई सुनवाई भी नहीं हो सकती।

इन 50 लाख लोगों को रह-रहकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारे, ‘जहां झुग्गी-वहीं मकान’ की याद आती है। वे बात-बात में अरविंद केजरीवाल की सरकार को भी याद करते हैं, और कई तो उस दिन को कोस रहे हैं जब वे भाजपा के बहकावे में आकर दिल्ली की गद्दी उन्हें सौंप बैठे। लेकिन अब पछताने से क्या हो सकता है, क्योंकि दिल्ली में तो ट्रिपल इंजन की सरकार स्थापित हो चुकी है।

सरकारी अनुमान के हिसाब से जून 2025 में अभी तक दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने अपने विभिन्न ध्वस्तीकरण अभियान में 1,500 से अधिक झुग्गियों को बुलडोज करने में सफलता प्राप्त कर ली है। इन हजारों परिवारों के सामने पहले से ही दो जून की रोटी के लिए संघर्ष एक बड़ी चुनौती बनी हुई थी, लेकिन अब उनके सिर के ऊपर का साया भी छिन चुका है। इनमें से अधिकांश परिवारों में छोटे-छोटे बच्चे से लेकर किशोर और युवा भी हैं, जो आसपास के सरकारी या प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते थे।

मोदी सरकार की हृदयहीनता देखिये, कल पूरे देश में 1975 के आपातकाल की घोषणा के 50 वर्ष पूरे होने पर पूर्ववर्ती इंदिरा गांधी के तानशाही युग को सबक के रूप में देश को याद कराया गया। लेकिन दिल्ली सहित देशभर में जगह-जगह बुलडोजर एक्शन से सिर्फ गरीबों, अल्पसंख्यक समुदाय के घरों को जमींदोज किया जा रहा है। आपातकाल का एक क्रूर चेहरा संजय गांधी का था, जिसके नेतृत्व में दिल्ली में उस दौर में बड़ी संख्या में झुग्गियों को ध्वस्त किया गया था। लेकिन यह भी सच है कि इन झुग्गीवासियों में से अधिकांश को जेजे कॉलोनी बनाकर बसाया भी गया था, जो आज विस्तारित दिल्ली में अहम प्रॉपर्टी के रूप में विकसित हो चुके हैं।

जून में अभी तक जिन प्रमुख झुग्गी बस्तियों को जमींदोज किया जा चुका है, उनमें हैं:

1. मद्रासी कैंप: यहां के 370 घरों को जमींदोज किया जा चुका है। यह काम कोर्ट के आदेश पर किया गया बताया जाता है, जिसे बारापुला नाला डीकंजेशन प्रोजेक्ट के तहत किया गया है। ऐसा माना जाता है कि देश की आजादी के बाद ही तमिलनाडु से कई परिवार रोजीरोटी के लिए दिल्ली आये थे, जो यहां आकर बस गये थे। तब दिल्ली में आबादी इतनी विरल थी कि कोई भी कहीं पर आसानी से रह सकता था।

महारानी बाग़ और जंगपुरा के धनाड्य घरों की सेवा में खुद को खपा देने वाले ये मद्रासी लोग आज संभवतः खुद के भाग्य को कोस रहे होंगे, जिनके गृह राज्य ने तब से अब में उल्लेखनीय तरक्की कर ली है। आज उत्तर भारत के लोग रोजगार की तलाश में सबसे बड़ी संख्या में तमिलनाडु पलायन कर रहे हैं।

इनमें से कुछ लोगों को सरकार ने नरेला में पक्के मकान भी आवंटित किये गये हैं, लेकिन रोजगार के लिए तो उन्हें दक्षिणी दिल्ली ही आना है। बिना यथोचित ट्रांसपोर्टेशन के 50 किमी रोज आने-जाने में ही 6-8 घंटे और 150-200 रुपये खर्च होंगे, तो रोजगार और जीवन का कोई अर्थ ही नहीं रह जायेगा।

इसके अलावा यहां उनके बच्चों की शिक्षा के लिए तमिल स्कूल भी था, जो नरेला जैसी जगह में अगले एक दशक तक भी संभव नहीं है। इसके अलावा, नरेला में जिन आवासीय परिसरों में ये मकान आवंटित किये गये हैं, वहां पानी और बिजली अभी तक नहीं है। क्या मई से सितंबर के महीने में बिजली और पानी के बिना कोई जिंदा रह सकता है?

2. नवभारत टाइम्स की 12 जून की खबर के मुताबिक कालकाजी में भूमिहीन कैंप में सुबह-सुबह ही डीडीए अपने फ़ौज-फाटे के साथ करीब 1,300 से अधिक झुग्गियों को तोड़ने के लिए आ धमका था, जब कई लोगों की नींद भी नहीं खुली थी. लेकिन बुलडोजर जैसे ही एक्शन में आया, लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल आये. चंद घंटों में 1,300 से अधिक झुग्गियां मिट्टी में मिला दी गईं। कई लोग तो ऐसे भी थे जो अपना सारा सामान तक नहीं निकाल सके। इस काम को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए प्रशासन अपने साथ भारी संख्या में सुरक्षाकर्मियों और अर्ध सैनिक बल के जवानों के साथ पहुंचा था। रिपोर्ट के मुताबिक यहां पर कई ऐसे परिवार थे जो 80 के दशक से यहां रह रहे थे।

3. अशोक विहार और वजीरपुर की झुग्गी बस्तियां। अशोक विहार में करीब 200 और वजीरपुर में 300 से अधिक झुग्गियों को प्रशासन ढहा चुका है। अशोक विहार के जेलरवाला बाग़ झुग्गी बस्ती के बारे में हालांकि डीडीए का दावा है कि यहां के 1078 परिवारों को 1 बीएचके का पक्का मकान पास ही में निर्मित स्वाभिमान अपार्टमेंट में आवंटित कर दिया गया है, लेकिन इसके साथ ही प्रशासन ने 567 लोगों को इसके लिए अपात्र पाया है।

वजीरपुर में रेलवे लाइन के दोनों तरफ अवैध मकान बनाकर रहे रहे लोगों के लिए प्रशासन ने अर्द्धसैनिक बलों की दो कंपनियों और दिल्ली पुलिस बल को तैनात कर मकानों को जमींदोज करना शुरू किया। पहले यह कहा गया कि रेलवे ट्रैक से 10 फीट दूरी तक के घरों को ध्वस्त किया जायेगा, लेकिन जैसे-जैसे ध्वस्तीकरण की प्रकिया आगे बढ़ी, यह सिलसिला 30-40 फीट भीतर तक चला गया। इसके चलते बड़ी संख्या में पक्के मकानों के भी जमींदोज होने की खबरें हैं। 2 जून से शुरू इस अभियान पर दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता का जवाब था, “अगर रेलवे लाइन पर अतिक्रमण होता है, और कोई दुर्घटना हो जाती है, तो कौन जवाबदेह होगा?”

बात तो सही है, लेकिन इन बस्तियों में 40 वर्षों से रहने वाले लोगों का कहना है कि बीजेपी को हम सत्ता में लाये ही इसलिए थे कि उसका नारा था कि जहां झुग्गी, वहां पक्का मकान देंगे। पुरुष तो सदमे के कारण कुछ खास बोल पाने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन महिलाएं और बच्चे चीख-चीखकर भाजपा और रेखा गुप्ता को बद्दुआ और अपशब्द कहने से खुद को नहीं रोक पा रही हैं। संभवतः उन्हें लगता है कि अब उनके लिए दिल्ली जैसे महानगर में और रह पाना संभव नहीं होने जा रहा है।

अब सुनने में आ रहा है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के विचार में दिल्ली सरकार जल्द ही मुंबई के धारावी रिडेवलपमेंट मॉडल को दिल्ली की 675 झुग्गी बस्तियों पर लागू करने के लिए अध्ययन करने जा रही है। अब इन समझदार लोगों को कौन समझाये कि धारावी मुंबई का एक इलाका है, जहां लाखों लोग एक विशेष इलाके तक ही सीमित हैं, जबकि दिल्ली में एक नहीं 675 अलग-अलग धारावी हैं।

दूसरा, धारावी में क्या रिडेवलपमेंट होगा और गरीब अडानी समूह इससे कितना मालामाल होगा, यह तो भविष्य की बात है, लेकिन कम से कम महाराष्ट्र ने इसके लिए एक औपचारिक प्रक्रिया तो शुरू की। आपने तो बिना पुनर्स्थापन की कोई योजना के ही यूपी के योगी मॉडल को कोर्ट के समर वेकेशन का फायदा उठाकर अंधाधुंध चालू कर दिया है।

ये सब आम लोगों के आँखों में धूल झोंकने के हथकंडे हैं। जो भाजपा सरकार, दिल्ली के मध्य वर्ग की न हो सकी, जो उसका जेबी वोटर है तो झुग्गीवासियों की उसे क्यों परवाह हो, जिसने धुप्पल में इस बार उसे वोट देकर जिता दिया।

बता दें कि दिल्ली में डीपीएस स्कूल सहित तमाम निजी स्कूलों ने इस वर्ष एडमिशन और ट्यूशन फीस में 50 से लेकर 100% तक की वृद्धि कर दी है। दिल्ली की भाजपा सरकार को इस संबंध में मई में ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर निजी स्कूलों पर लगाम लगानी थी, लेकिन सरकार ने इसे जुलाई तक टालकर प्राइवेट स्कूल के प्रबंधन को हरी झंडी दे दी।

मध्य वर्ग के पास तो फिर भी यह विकल्प है कि वह अपने बच्चों को इन स्कूलों से निकालकर सस्ते स्कूलों या सरकारी स्कूलों में पढ़ा सकते हैं, लेकिन 50 लाख झुग्गीवासियों के पास क्या विकल्प है, जिनसे उनका आशियाना ही छिन गया?

देश में बेरोजगारी की विकराल समस्या को देखते हुए, नहीं लगता कि इनमें से आधे लोग भी अगले 6 महीने तक दिल्ली जैसे महानगर में टिके रह सकते हैं। शायद सरकार भी इस बात को समझ रही है, और दिल्ली में अगले चुनाव भी कम से कम ढाई साल दूर हैं। इतनी बड़ी कार्रवाई के पीछे कुछ लोग इसे भी एक बड़ी वजह मान रहे हैं।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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