मानवीय इतिहास में क्रूर शासकों की सूची में सबसे बदनाम व खूंखार शासकों में मंगोल शासक चंगेज खां, रूस का राजा जार, जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर, इटली का निरंकुश शासक बेनिटो मुसोलिनी आदि हैं, लेकिन क्रूरता के मामले में तथाकथित लोकतांत्रिक होने का मिथ्यादंभ भरने वाले अमेरिकी, ब्रिटिश व फ्रांसीसी साम्राज्यवादी किसी भी तरह कमतर नहीं हैं, दुनिया भर में अमेरिकी साम्राज्यवादी अब तक करोड़ों लोगों की निर्मम हत्या कर चुके हैं, वैसे ही फ्रांसीसियों ने अफ्रीकी महाद्वीप में वहाँ के काले लोगों के सिर को काटकर, उसे नुकीले बाँस पर लगाकर अपने उपनिवेशों में दहशत फैलाने के लिए जुलूस निकालने का पाशविक कुकृत्य करते हुए जरा भी शर्म नहीं करते थे।
इतिहासकारों के अनुसार ब्रिटिश साम्राज्यवादी भी भारत में अपने लगभग डेढ़ सौ साल के शासनकाल में लगभग 3 करोड़ भारतीयों की विभिन्न तरीकों से नृशंस हत्या करने के गुनाहगार हैं। भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवादियों द्वारा भारतीय आम नागरिकों की की गयी सामूहिक हत्याओं में अमृतसर के प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर से लगभग सौ कदम दूर स्थित एक बाग, जिसे जालियांवाला बाग कहते हैं, में 13 अप्रैल 1919 को की गई सामूहिक हत्या भारतीय इतिहास में तैमूरलंग, अब्दाली, अल्लाउद्दीन खिलजी व नादिर शाह आदि मुस्लिम लुटेरों और आक्रांताओं तथा दरिंदों द्वारा की गई कत्लेआमों के समकक्ष ही है।
अंग्रेजों द्वारा 1919 में की गई जालियांवाला हत्याकांड को सुनकर अभी भी अंग्रेजों और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रति मन घृणा और तिरस्कार से भर उठता है। इस लोमहर्षक घटना के बाद पंजाब ही नहीं, अपितु पूरे भारत के लोगों में इस ऐतिहासिक जालियांवाला बाग की शहीदों के लहू से सिंचित मिट्टी को, चंदन की तरह अपने माथे पर लगाकर ब्रिटिश-साम्राज्यवाद के ताबूत में आखिरी कील ठोकने और देश को परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़ देने की मानों एक होड़ सी लग गई। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार प्रथम विश्वयुद्ध के बाद भारतीयों के क्रूर दमन के लिए रोलेट ऐक्ट के विरूद्ध भारत की समूची आवाम में भयंकर रोष था, उसी क्रम में जालियांवाला बाग में, जो चारों तरफ से ऊँची-ऊँची दीवारों से घिरे इस बाग में, जिसका एक ही संकरा सा प्रवेश द्वार है, उसमें कई हजार की संख्या में लोग इकट्ठे होकर रोलेट एक्ट के विरोध में एक शांतिपूर्ण ढंग से एक सभा कर रहे थे, तभी अचानक उसके एकमात्र संकरे प्रवेश द्वार से शाम को 5 बजकर 37 मिनट पर एक ब्रिटिश कर्नल रेजीनॉल्ड डॉयर अपने सशत्र सैनिकों के साथ पहुँचकर, उस बाग में शांतिपूर्ण ढंग से सभा कर रहे निरपराध भारतीयों पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू करने का आदेश दे दिया, इतिहासकारों के अनुसार उन निरपराध लोगों पर लगातार 10 मिनट तक फायरिंग होती रही और 1650 राउंड गोलियाँ चलीं, सभास्थल पर भगदड़ मच गई, अचानक हुई इस भयंकर गोलीबारी से घबराई औरतें, इसी बाग में स्थित एक कुँए में अपने बच्चों सहित कूद गईं, कुछ ही पल में वह कुँआ पूरा भर गया, जो बाहर रह गये, वे गोलियों से छलनी होकर वहीं मर गए, बहुत से लोग भगदड़ में कुचलकर मर गये, बाद में उस कुँए से मरी हुई औरतों और उनके दुधमुंहे बच्चों सहित 120 लाशें निकालीं गईं, विभिन्न ऐतिहासिक साक्ष्यों और सबूतों के अनुसार इस जघन्यतम् सामूहिक हत्याकांड में 400 से भी ज्यादे लोग मारे गए और 2000 के लगभग लोग बुरी तरह घायल हुए, लेकिन अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची उपलब्ध है, वहीं ब्रिटिशकालीन अभिलेखों में शहीदों की संख्या केवल 379 और घायलों की संख्या केवल 200 ही दर्ज है, इन शहीदों में 337 वयस्क पुरूष और औरतें, 41 नाबालिग बच्चे और एक दुधमुँहे बच्चे का नाम दर्ज है। भारतीय इतिहासकारों के अनुसार अंग्रेजों ने जानबूझकर शहीदों और घायलों की संख्या कम करके दर्ज किए हैं, जबकि असलियत में इस घटना में 1000 से अधिक लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे थे और 2000 से भी ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे।
भारत के बहुत कम लोगों को यह जानकारी है कि जालियांवाला बाग की इस अत्यंत दुःखद घटना में डायर नामक दो अंग्रेज अफसर संलिप्त थे, एक जो उस समय पंजाब प्रान्त का लेफ्टिनेंट गवर्नर था, उसका नाम माईकल ओ डायर था, क्योंकि माईकल ओ डायर जो उस समय पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था और वह जालियांवाला बाग हत्याकांड में निर्दोष लोगों पर अकारण फायरिंग कर उनकी जघन्यतम् हत्या करने का पुरजोर समर्थन किया था। इसी माईकल ओ डायर को भारत के सपूत स्वर्गीय उधम सिंह ने इस घटना के लगभग 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को लंदन में जाकर, उसे एक सभा को सम्बोधित करते वक्त उसकी कनपटी पर दो सटीक गोली मारकर, उसे वहीं तुरन्त ढेर करके जालियांवाला बाग के दो अभियुक्तों में से एक को मारकर, कुछ मरहम लगाने का नेक काम कर दिया था, हालांकि क्रूर अंग्रेजों ने छद्म मुकदमा चलाकर भारत के इस वीर सपूत स्वर्गीय उधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को पेंटन विले नामक जेल में फाँसी पर चढ़ाकर, उन्हें मृत्यु दंड दे दिया था। दूसरा डायर वह था, जो अपने सशत्र सैनिकों को लेकर जालियांवाला बाग सभास्थल पर जाकर फायरिंग करने का आदेश दिया था, उसका नाम कर्नल रेजीनॉल्ड डायर था।
असली हत्यारा यही कर्नल रेजीनॉल्ड डायर ही था। दूसरा डायर तो इसका समर्थक था। सबसे बड़े दुःख और अफसोस की बात यह है कि ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने जो अब ब्रिटेन के नाम से मशहूर एक छोटे से निस्तेज टापू में सिमटकर रह गये हैं, अपने इस कुकृत्य और ऐतिहासिक जघन्यतम् अपराध पर केवल अफसोस जाहिर किए हैं, वे अभी तक भारतीय राष्ट्र राज्य से अपने किए इस जघन्यतम् अपराध के लिए जापान की तरह, जो सार्वजनिक तौर पर द्वितीय विश्वयुद्ध में चीन, मंगोलिया और कोरिया आदि राष्ट्रों की औरतों के साथ किए गए कदाचार के लिए माफी मांगा है, वैसे माफी नहीं माँगा है। अंग्रेजों में अभी भी एक छद्म दंभ बरकरार है, परन्तु हकीकत यही है कि ब्रिटिश साम्राज्यवादियों का अब सब कुछ नष्ट हो चुका है, कभी सूर्य अस्त न होने वाला ब्रिटिश साम्राज्यवाद अब उत्तर अटलांटिक महासागर के एक निस्तेज टापू भर में सिमटने को अभिशप्त हो गया है, लेकिन एक भारतीय कहावत कि रस्सी जल गई, परन्तु ऐंठन अभी रह गई है, वही हाल दंभी अंग्रेजों का अभी भी बना हुआ है।
(लेखक- निर्मल कुमार शर्मा पर्यावरणविद हैं और आजकल गाजियाबाद (उप्र) में रहते हैं।)
+ There are no comments
Add yours