नई दिल्ली/पटना। जीवन, जीविका और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की मांग पर आज शुक्रवार को देश के तमाम हिस्सों में महिलाएं सड़कों पर उतरीं। इन स्त्रियों का नेतृत्व देश के छह वामपंथी महिला संगठनों ने किया। महिलाओं ने कहा कि देश में असंतुष्ट आवाजों को दबाने का काम किया जा रहा है। उन्होंने सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने की भी मांग की।
दिल्ली में आजीविका, भोजन और अधिकारों की मांग में हजारों महिलाएं सड़कों पर उतरीं। उन्होंने अपनीं मांगों के लेकर प्रदर्शन किया। महिलाओं ने सभी के लिए आजीविका की गारंटी के साथ ही देश के सभी श्रमिकों को प्रति माह 7500 रुपये उनके बैंक खातों में डालने की मांग की। यहां ऐपवा, ऐडवा, एनएफआईडब्लू, पीएमएस, एआईएमएस ने प्रदर्शनकारी महिलाओं का नेतृत्व किया। यह प्रदर्शन योजना भवन और श्रम शक्ति भवन पर किया गया।

इसके अलावा पूरे बिहार में प्रतिवाद दिवस मनाया गया। के तमाम शहरों और गांव में महिलाओं ने प्रदर्शन कर अपनी मांग रखी। उन्होंने महिलाओं के जीवन, जीविका और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के साथ ही रोजगार की मांग उठाई। इसके अलावा हर पंचायत में सरकारी अस्पताल बनाने, स्वयं सहायता समूह का लोन माफ करने और सभी तरह के छोटे लोन की वसूली पर 31 मार्च 2021 तक रोक लगाने की मांग की।
राजधानी पटना में जहां सभी महिला संगठनों ने संयुक्त रूप से प्रतिवाद किया, वहीं ग्रामीण इलाकों में ऐपवा की पहलकदमी पर सैंकड़ों गांवों में महिलाओं ने विरोध कार्यक्रम में हिस्सा लिया। छोटे लोन की माफी को लेकर बिहार में महिलाओं की उठी आवाज एक मजबूत आंदोलन का स्वरूप ग्रहण कर चुकी है। जगह-जगह सैंकड़ों-हजारों की तादाद में महिलायें सड़क पर उतरीं।

पटना के कार्यक्रम में महिलाएं मांगों के समर्थन में पोस्टर और बैनर के साथ शामिल हुईं। डाक बंगला चैराहे पर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए महिला संगठनों की प्रतिनिधियों ने कहा कि कोरोना महामारी के दौर में सरकार ने जिस राहत पैकेज की घोषणा की वह आम लोगों के लिए नहीं बल्कि पूंजीपतियों के लिए था। आज प्राइवेट नौकरी करने वाली महिलाओं समेत, गरीब घरेलू कामगारिन समेत अन्य मजदूर महिलाओं का रोजगार छूट गया है। सरकार ने उन्हें कोई मुआवजा भी नहीं दिया है।
महिला संगठनों के प्रतिनिधियों ने कहा कि इस महामारी ने सिद्ध किया है कि संकट के समय प्राइवेट अस्पताल जनता की नहीं अपने मुनाफे की चिंता करता है, जबकि स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच हर व्यक्ति का अधिकार होना चाहिए, इसलिए बिहार के हर पंचायत में सरकारी अस्पताल बनाया जाए। बिहार में महिलाओं पर बढ़ती हिंसा और अपराध पर अंकुश लगाने में बिहार सरकार की विफलता की भी आलोचना की। कार्यक्रम में ऐपवा, एडवा, बिहार महिला समाज, एआईएमएसएस, घरेलू कामगार यूनियन, बिहार मुस्लिम महिला मंच, एएसडब्लूएफ समेत कई संगठन शामिल थे।

पटना के कार्यक्रम का नेतृत्व ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, एडवा की रामपरी, बिहार महिला समाज की राजश्री किरण, एआईएमएसएस की अनामिका कुमार, बिहार घरेलू कामगार यूनियन की सि. लीमा, एएसडब्ल्यूएफ की आसमा खान और बिहार मुस्लिम महिला मंच की शमीमा ने किया। ऐपवा की बिहार राज्य सचिव शशि यादव, राज्य सह सचिव अनिता सिन्हा, अनुराधा सहित ऐपवा से जुड़ी कई महिलाएं उपस्थित रहीं।
उधर, मधुबनी के कैटोला में ऐपवा की जिला सचिव पिंकी सिंह, किरण दास और शीला देवी के नेतृत्व में मार्च निकाला गया। पटना जिले के धनरूआ में ऐपवा के साथ-साथ रसोइया संघ के कार्यकर्ताओं ने भी प्रतिवाद में हिस्सा लिया। इसी प्रखंड के किश्ती में स्वयं सहायता महिला संघर्ष समिति की सचिव और ऐपवा की नेता रिंकू देवी के नेतृत्व में कार्यक्रम हुआ। नई हवेली नर्मदा नरवा, मंझावली, मधुबन, चकबीर, बडिहा, मिश्रीचक, छोटकी धमौल आदि गांवों में भी प्रदर्शन हुआ। दरभंगा के पोलो मैदान में महिलाओं ने धरना दिया।

जहानाबाद के मांदेबिगहा में मुखिया पिंकी देवी के नेतृत्व में प्रदर्शन हुआ। मुजफ्फरपुर के मुशहरी, आरा सिवान, गोपालगंज, नालंदा, गया, जहानाबाद, अरवल आदि जिलों के कई गांवों में महिलाओं की व्यापक भागीदारी देखी गई। बेगूसराय में रसोइया संघ से संबद्ध ऐक्टू नेत्री किरण देवी के नेतृत्व में कार्यक्रम हुआ। मीरा देवी, अहिल्या देवी, संजू देवी आदि महिलाएं शामिल हुईं।
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