जूता उद्योग: जीएसटी और एक्साइज ड्यूटी बढ़ने से संकट में आगरा का फुटवियर उद्योग

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आगरा को ताजमहल और उसके जूते के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां बड़े पैमाने पर फुटवियर का कार्य होता है, जिसमें जूता, सैंडल और चप्पलों का निर्माण किया जाता है। इधर आगरा का पूरा फुटवियर उद्योग जबरदस्त मंदी का शिकार है। आगरा से जर्मनी, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, इटली, नीदरलैंड, पोलैंड आदि देशों में बड़े पैमाने पर फुटवियर का निर्यात किया जाता है। जाड़े के मौसम के आने से पहले अप्रैल माह से ही जूता का आर्डर इन देशों से मिलना शुरू हो जाता है। इस बार आर्डर में करीब 10 प्रतिशत की कमी आई है। इसके बारे में फुटवियर निर्यातक राजेश सहगल का कहना है कि वर्तमान में हम लोगों को ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। यूरोप के प्रमुख खरीदार अपनी स्वयं की मुश्किल में फंसे हुए हैं उनके यहां बिक्री प्रभावित है इसलिए वे नए ऑर्डर आसानी से नहीं दे रहे हैं।

रूस-यूक्रेन युद्ध और इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध से भी यहां का कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। इसके साथ ही समुद्री जहाज के किराए में भी सामान्य से तीन गुना की वृद्धि हो गई है और जिसके चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी ऑपरेटरों ने भाड़े बढ़ा दिए हैं। जो खरीदार साल में तीन या चार बार आगरा आते थे वह इस बार आने से परहेज कर रहे हैं।

गौर करने की बात यह है कि आगरा में इसी साल चुनाव से ठीक पहले फरवरी माह में उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी करके पिछले साल हुए इंन्वेस्टर समिट में किए गए 2.26 लाख करोड़ के करारों में 9138 करोड़ के निवेश को जमीन पर उतारने की बात की थी। इस ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किया गया था। इस सेरेमनी में 18 हजार लोगों को रोजगार मिलने की बात की गई थी। जबकि सालभर पहले हुए इंन्वेस्टर समिट मे 2.26 लाख करोड़ के एमओयू साइन किए गए थे जिसमें 1.21 लाख लोगों को रोजगार मिलने की बात की गई थी। प्रदेश में इंन्वेस्टमेंट की हालत यह रही कि सालभर में करीब 2.16 लाख करोड़ का निवेश ही नहीं आ सका। इसी निवेश में करीब 700 करोड़ का निवेश आगरा में भी फुटवियर उद्योग में आना था। इस निवेश के आने की बात कौन कहे यहां का परम्परागत फुटवियर उद्योग ही सरकार की नीतियों से संकट में है। 

आगरा के लोगों की आमदनी के दो ही प्रमुख स्रोत है एक ताजमहल दूसरा फुटवियर उद्योग। इस फुटवियर के परम्परागत उद्योग में लाखों लोग लगे हैं, इनमें ज्यादातर जाटव दलित और मुस्लिम है। यहां के बोदला, लोहामंडी, जगदीशपुरवा, हींग की मंडी जैसे मोहल्लों में जूते के छोटे -छोटे कारखाने मिलेंगे। जिसमें कारखानेदार को मिलाकर दस से लेकर बीस लोग काम करते मिलेंगे। इन्हीं में से एक कारखानेदार मनोज कुमार ने बताया कि जूते के सोल के दानों पर सरकार ने एक्साइज ड्यूटी लगा दी। जूता बनाने के कच्चे माल पीऊ, धागे, टिंगल, फोम, सोल, लेदर आदि पर जीएसटी 12 से लेकर 18 परसेंट तक लगा दी गई। यहां तक की सोल धोने वाले केमिकल्स पर 28 प्रतिशत जीएसटी देनी पड़ रही है। इन टैक्सों के कारण हमारे जूते की लागत बढ़ गई। इसका परिणाम यह हुआ है कि कम टैक्स वाले देश बांग्लादेश और भूटान आदि में जूते के निर्माण का ज्यादातर काम चला गया है।

चीनी और इंडक्शन की ऑटोमेटिक मशीनों पर बनने वाले जूते सस्ते में मिल जाते हैं। इसलिए इनके सामने हमारा माल बिक नहीं पा रहा है। इस मंदी से आई मजबूरी के चलते हम कारखानेदारों को अपना काम बंद करके 300 से लेकर 350 रुपए पर जूते की बड़ी फैक्ट्री में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। उन्होंने बताया कि बड़ी मुश्किल से उन्हें जिला उद्योग केंद्र से 7 लाख रूपए का कर्ज मिला था। इस कर्ज में 175000 रुपए की छूट थी, जिसे पूरा उद्योग विभाग के अधिकारियों और बिचौलियों ने मिलकर खा लिया। उनसे पहले 8 प्रतिशत ब्याज के लिए कहा गया था लेकिन अब 12 प्रतिशत ब्याज की दर पर वह कर्ज का भुगतान कर रहे हैं।

कारखानेदार सनी वर्मा ने बताया कि आगरा में फुटवियर उद्योग प्रदेश सरकार के एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) में आता है। इसका बड़ा प्रचार सरकार करती है लेकिन सरकारी योजना के नाम पर निल बटा सन्नाटा है। किसी भी कारखानेदार को किसी भी तरह की सरकारी इमदाद नहीं मिल रही है। कारखानेदार अमर पीपल ने बताया कि मंदी के कारण हमारा धंधा घाटे में है। ऐसे में हमारे मजदूर काम छोड़कर सब्जी का भी ठेला लगाते हैं पर लोगों के पास पैसा ना होने के कारण उनकी भी बिक्री नहीं हो रही है। जो मजदूर ई रिक्शा चला रहे थे उन पर भी पुलिस प्रशासन ने तमाम तरह की रोक लगा दी है, जिससे वे परिवार का पेट नहीं पाल पा रहें है। हमारी तो कई पुश्तें जूते के ही काम में लगी रहीं हैं ऐसे में इस काम को छोड़कर हमारे सामने अन्य काम करने का भी रास्ता नहीं है। इस महंगाई में जैसे-तैसे हम अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं। साल भर में मात्र इतनी ही कमाई होती है जिससे खाना पीना, रहना और बच्चों के स्कूल की फीस आदि कुछ कार्य पूरे हो पाते हैं। गंभीर बीमारी या घर में बड़े आयोजनों के लिए हमें कर्ज लेना पड़ता है।

कारखानेदार रविन्द्र कांत ने बताया कि हींग की मंडी में व्यापारियों के द्वारा भी हमारा शोषण होता है। हमें तो कच्चा माल कैश में लेना पड़ता है और जीएसटी चुकानी होती है लेकिन हमारे बने हुए माल का तुरंत भुगतान नहीं होता। हमें व्यापारियों द्वारा एक पर्ची दी जाती है जिसका भुगतान 6 माह बाद होता है। यदि हम तुरंत पैसा चाहते हैं तो 5 प्रतिशत कटौती के साथ हमें भुगतान किया जाता है। कारखानेदार गणेश ने बताया कि अब छोटे कारखानेदारों द्वारा में चमड़े का जूता बनाने का काम बंद कर दिया और अब हम लोग फोम के जूते, सैंडिल आदि बना रहे हैं। यह भी बताया कि भाजपा सरकार बनने के बाद चमड़े आदि पर बड़ा बवाल होता रहा है इसलिए चमड़े का काम हमने बंद कर दिया है। कहा कि मेट्रो इन मेट्रो, तेज शूज, गुप्ता ओवरसीज, कैंपशन,रोजर, ब्रोला आदि बड़ी कंपनियों में चमड़े के जूते का काम होता है। इन कंपनियों में हजारों मजदूर काम करते हैं। इन मजदूरों को भी मंदी के कारण आए दिन काम न मिलने पर बैठना पड़ रहा है।

जाटव जाति के कारखानेदारों के यहां संत रैदास, डॉक्टर आंबेडकर और महात्मा बुद्ध की बड़ी-बड़ी फोटो लगी हुई थी। वह मायावती द्वारा गठबंधन में शामिल होने पर नाराज थे। उनका मानना था कि यदि मायावती जी गठबंधन का हिस्सा होती तो भाजपा किसी भी तरह केन्द्र में सरकार नहीं बना पाती। कारखानेदारों के अंदर सरकार की योजनाओं को लेकर भी गहरा आक्रोश था उनका मानना था कि बिजली का कमर्शियल रेट उनसे लिया जा रहा है जो बहुत ही महंगा है। सरकार यदि एक उद्योग एक उत्पाद की बात करती है और इसके प्रति ईमानदार है तो उसे आगरा के परम्परागत उद्योग फुटवियर की हर तरह से मदद करनी चाहिए। सरकार को हमारे पैदा किए हुए उत्पादों की खरीद और उसके लिए बाजार की गारंटी करनी चाहिए। सरकार को सस्ते दर पर बिजली और कर्ज की व्यवस्था करनी चाहिए।

(दिनकर कपूर आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट, उत्तर प्रदेश के महासचिव हैं)

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