क्या बिहार की राजनीति बदल रही है करवट ?

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हाल ही में हुआ C वोटर इंडिया टुडे का सर्वे बिहार की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत दे रहा है। बिहार चुनाव इसी साल के आखिर में होने वाला है। जाहिर है उसके लिए सरगर्मी तेज होती जा रही है। मुख्यमंत्री पिछले दिनों विकास यात्रा पर निकले हुए थे। लेकिन हाल ही में हुए सर्वे के नतीजे संकेत दे रहे हैं कि बिहार में हवा का रुख बदल चुका है।

सर्वे के अनुसार नीतीश कुमार की लोकप्रियता गोता खाकर 18% पर पहुंच चुकी है, अर्थात मात्र 18% लोग उन्हें अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। जबकि 41% लोग तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। वहीं महज 15% लोग पीके को 8% भाजपा के सम्राट चौधरी को तो 4% लोग चिराग पासवान को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। यह गोदी मीडिया और एजेंसियों के दुराग्रह का ही सुबूत है कि बिहार की ताकतवर पार्टी भाकपा माले, जिसके एक दर्जन विधायक हैं, या वामपंथ की ओर से किसी नेता का नाम नहीं पूछा गया !

बहरहाल इसी सर्वे में दिल्ली चुनाव के ठीक बाद कहा गया था कि अगर अभी चुनाव हो जाय तो NDA को 33से 35सीटें मिल सकती थीं और महागठबंधन को मात्र 5से 7 सीटें मिल सकती थीं।

पिछले विधानसभा चुनाव में जहां राजद को 75 सीटें मिली थीं वहीं दूसरे नंबर पर रही भाजपा को 74 सीटें मिली। नीतीश कुमार की जदयू को 43 सीटें मिलीं। कांग्रेस को उसके द्वारा लड़ी गई 70 सीटों में मात्र 19 सीटें मिल पाईं जबकि वामपंथ को कुल 16 सीटें मिली जिनमें मात्र 19सीटें लड़कर 12अकेले भाकपा माले को मिलीं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर कांग्रेस की बजाय वाम दलों विशेषकर भाकपा माले को अधिक सीटें लड़ने को मिलती तो विधानसभा चुनाव नतीजे अलग हो सकते थे और महागठबंधन की सरकार भी बन सकती थी।

सर्वे में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह उभरकर आया है कि 45% लोग रोजगार को चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं वहीं 11% लोग महंगाई तथा चार – चार प्रतिशत लोग किसानी और भ्रष्टाचार को प्रमुख मुद्दा मानते हैं।गौर तलब है कि इसमे लालू का बीस वर्ष पुराना कथित जंगल राज, जिसे नीतीश और भाजपा सबसे बड़ा मुद्दा बनाना चाह रहे हैं, वह अब कहीं है ही नहीं।

यह सर्वे संकेत है कि नौकरियों और रोजगार का सवाल इस बार भी, पिछली बार जैसा, बदस्तूर सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है। वह और मुद्दों से बहुत बहुत आगे है प्राथमिकता क्रम में। अभी हाल ही में बीपीएससी परीक्षा में अनियमितता और कदाचार को लेकर पटना और बिहार में जो जबरदस्त युवा आंदोलन हुआ, उसने पूरे देश में सुर्खियां बटोरीं। देश अभी भूला नहीं है कि पिछले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव और महागठबंधन के नौकरियों के वायदे ने पूरे बिहार में लहर पैदा कर दी थी और उन्हें जीत के कगार पर पहुंचा दिया था। क्या इस बार फिर इतिहास अपने को दोहराएगा और रोजगार का सवाल नीतीश भाजपा की सत्ता को उखाड़ फेंकेगा ? इसका जवाब अभी इतिहास के गर्भ में है।

बहरहाल C वोटर के सर्वे में नीतीश भाजपा सरकार के लिए सबसे डराने वाला आंकड़ा यह है कि 50% लोग न सिर्फ इस सरकार से नाराज हैं बल्कि इसे बदलना भी चाहते हैं, इसमें 22% उस आबादी को भी जोड़ लीजिए जो सरकार से नाराज है, हालांकि अभी उसे बदलना नहीं चाहती। महज 25% लोग ऐसे हैं जो न नाराज हैं, न सरकार बदलना चाहते हैं। इसी तरह 58% लोग यह मानते हैं कि नीतीश की लोकप्रियता में गिरावट आई है, जबकि 13%लोग मानते हैं कि कुछ गिरावट हुई है, 21% लोग मानते हैं कि कोई गिरावट नहीं हुई है।

बदलाव की जनता की आकांक्षा की अभिव्यक्ति अभी भाकपा माले के बदलो बिहार महासमागम में हुई, जब लंबे चले अभियान के बाद हुई इस जुटान में गांधी मैदान लाल झंडो से पट गया।

पार्टी ने सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने, समाज में समता की स्थापना तथा सबके सम्मान, अधिकार और न्याय की लड़ाई को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनाया है। और सभी लोकतांत्रिक सरोकार रखने वाली ताकतों से बिहार में बदलाव के लिए आंदोलन में उतरने का आह्वान किया है। पार्टी ने भाजपा संघ द्वारा संविधान के साथ छेड़छाड़, मोहन भागवत द्वारा 22 जनवरी 2024 को स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने तथा अमित शाह द्वारा डॉ अम्बेडकर के अपमान की कड़ी आलोचना की है। इसके अलावा जनता के स्थानीय सवालों को जोरशोर से उठाया है।

बिहार आज चौतरफा गिरावट के किस मुकाम पर पहुंच गया है, इसे शीतल पी सिंह ने अपनी पोस्ट में नोट किया है,” गरीबी का अभाव, शून्य भुखमरी, अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और निरंतर आर्थिक विकास – ये सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के मुख्य घटक हैं, जिन्हें नीति आयोग नियमित रूप से जारी करता है।

तमिलनाडु और केरल के प्रदर्शन पर नजर डालें, जो एसडीजी सूचकांक में शीर्ष पर हैं।

तमिलनाडु और केरल ने एसडीजी सूचकांक में 80.2 अंक हासिल किए हैं, जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है । इन राज्यों ने स्वास्थ्य, शिक्षा, और आर्थिक विकास जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। गुजरात मॉडल की बहुत चर्चा की जाती है लेकिन वह इस तालिका में अनेक राज्यों से पीछे है और राष्ट्रीय औसत से सिर्फ़ दो अंक ही अधिक है।

हिंदी पट्टी के राज्य निराश करते हैं और बिहार तो खैर बुरी हालत में है ही। राष्ट्रीय औसत को बिगाड़ने में इनका उल्लेखनीय योगदान है। “

बिहार 43.2 अंक के साथ विकास की इस सूची में सबसे निचले पायदान पर है। यह नीतीश भाजपा राज के डबल इंजन सरकार की आज हकीकत है। जाहिर है मौजूदा राज को बदलने की सबसे बड़ी जरूरत आज जिस राज्य में है, वह बिहार है।

इंडिया गठबंधन ने पिछली बार की गलतियों से सीखते हुए अगर एकताबद्ध होकर मजबूती से चुनाव लड़ा, तो हिंदी पट्टी के इकलौते बचे राज्य में अपने बल पर सरकार बनाने का भाजपा का मंसूबा धरा रह जाएगा।

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे हैं।)

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