खंडवा, मध्यप्रदेश। बीते दिनों 23 अगस्त को खंडवा के पंधाना थाने से एक आत्महत्या का मामला सामने आया था। बताया गया था कि, धर्मेंद्र दांगोड़े नामक आदिवासी शख्स ने थाने में फांसी लगाकर आत्महत्या की है। मगर, पूरे घटनाक्रम पर धर्मेंद्र के परिजन हत्या का आरोप लगा रहे हैं।
पुलिस प्रशासन ने मीडिया को बताया कि, धर्मेंद्र दांगोड़े चोरी का आरोपी था। धर्मेंद्र से तीन बाइक जब्त किये जाने की बात भी सामने आयी। घटना की गंभीरता को देखते हुए। लापरवाही के कारण चार पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया। मामले में न्यायिक जांच के लिए भी आदेश कर दिया गया है। इस पूरे प्रकरण की न्यायिक जांच भी हो रही है।
जब हमने घटना पर मृतक धर्मेंद्र की पत्नी रानू से बातचीत की, तब दुखद स्थिति में उन्होंने बताया कि, ‘पुलिस मेरे घर आयी और वारंट बता कर पति को घर से थाने ले गयी। फिर, पुलिस मेरे पति को बेरहमी से मार-पीट करके घर लायी थी। मार-पीट की वजह से पति ठीक से चल भी नहीं पा रहे थे।
घर की तलाशी भी ली गयी थी। पुलिस घर से पति का आधार कार्ड, मोबाइल और हमारी मजदूरी के दो हजार रुपए भी ले गयी। जब हम पति से मिलने पुलिस स्टेशन गये, तब हमें पति से ना बात करने दी गयी और ना मिलने दिया गया। हमारे पति की हत्या की गयी है। उन्हें बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला गया।,
मृतक धर्मेंद्र की पत्नी रानू आगे कहती हैं कि, “पुलिस हमारे पति को जिंदा ले गयी थी और हमारे हाथों में उनकी लाश थमा दी गयी। सोचिए! मुझ पर, मेरे बच्चों और परिवार पर क्या बीती होगी? हमें अब तक कोई सहायता प्रदान नहीं की गयी है”।
“हमारे बच्चे छोटे-छोटे हैं, पालन-पोषण कैसे करें? अब बच्चों का भविष्य कैसे बनेगा? समझ नहीं आ रहा। हमें अब पति के लिए न्याय का इंतजार रहेगा”।
मृतक धर्मेंद्र की बहन ममता अपना दुख सुनाते हुए कहती हैं कि, “धर्मेंद्र की पुलिस में कोई रिपोर्ट नहीं है। हमारे परिवार को नहीं बताया गया कि, तुम्हारे लड़के ने क्या गुनाह किया है। भाई के साथ मारपीट भी बहुत की गयी। भाई चार दिन पुलिस के अंडर रहा। फिर हमें बताया गया धर्मेंद्र भाई ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है”।
ममता आगे बोलती है कि, “भाई की आत्महत्या की घटना का वीडियो, फोटो के माध्यम से हमको सबूत दिखाना चाहिए था। हम पुलिस से भाई की मौत का सबूत मांग भी रहे हैं मगर, हमें भाई की मौत का सबूत अब तक नहीं दिया गया। हमको अपनी भाई की मौत के मामले में कुछ नहीं चाहिए ना पैसा चाहिए, बस हम केवल भाई की मौत पर न्याय चाहते हैं”।
पीड़ित परिवार के करीबी और नेमित गांव के पंच इसराम गोलकर घटना को लेकर बताते हैं कि, ‘मृतक धर्मेंद्र अच्छा इंसान था। धर्मेंद्र के खिलाफ पुलिस स्टेशन में कोई रिपोर्ट नहीं थी। गांव नेमित से धर्मेंद्र को पुलिस थाना ले गयी”।
“फिर, पुलिस धर्मेंद्र को गांव लेकर आयी तब गांव वाले चकित थे कि, धर्मेंद्र ठीक इंसान है लेकिन पुलिस उसे क्यों ले गयी। पुलिस वैन से जब धर्मेंद्र को उतारा गया तब धर्मेंद्र की मार-पीट की वजह से हालत इतनी खराब थी कि वह चल नहीं पा रहा था।
इसराम ने आगे बताया कि “धर्मेंद्र ने मुझसे पानी भी मांगा मगर, पुलिस ने उसे पानी नहीं पीने दिया। यह सब स्थिति गांव के लोग इकट्ठे होकर देख रहे थे। फिर, धर्मेंद्र के घर की तलाशी ली गयी मगर, कुछ मिला नहीं”।
“इसके बाद धर्मेंद्र को मारते हुए पुलिस ले गयी और तब पुलिस वैन के पास धर्मेंद्र ने उल्टी भी की। फिर, पुलिस की कस्टडी में धर्मेंद्र की फांसी से मौत की घटना सामने आयी”।
इसराम आगे बयां करते हैं कि, “धर्मेंद्र की मौत कई सवाल खड़े करती है, जैसे धर्मेंद्र ने क्यों फांसी लगायी? हमारी मांग है कि अपराधियों को सजा दी जाए। इसराम गोलकर सहित गांव के लोगों का कहना है कि, यदि अपराधियों को सजा नहीं हुई तब हम धरना प्रदर्शन और आंदोलन करेगें”।
मृतक धर्मेंद्र दांगोड़े के परिवार की तरफ से कई पुलिस अधिकारियों के लिए एक पत्र लिखा गया है। पत्र पर दिनांक 29/08/2024 अंकित है।
पत्र का विषय है, धर्मेंद्र दांगोड़े की पुलिस हिरासत में हत्या के संबंध में एफ़आईआर दर्ज कर पंधाना थाना के दोषी पुलिस कर्मी को गिरफ्तार किए जाने बाबत।
पत्र में आगे उल्लेखित है कि, हमारे बेटे, धर्मेंद्र दांगोड़े पिता गुमान दांगोड़े की पंधाना थाने में दि. 23.08.2024 को मृत्यु हुई। दिनांक 21.08.2024, बुधवार देर रात को जब हमारे धर्मेंद्र को पुलिस उठा कर ले गई, धर्मेंद्र पूरी तरह से स्वस्थ था।
4 दिनों तक उसे थाने में रख कर धर्मेंद्र के साथ मारपीट की गई। घर का खाना भी उसे नहीं देने दिया गया और कभी कोर्ट में भी पेश नहीं किया। धर्मेंद्र की मौत शुक्रवार शाम को ही हो गई।
लेकिन हमें, (उसके परिवार को) शनिवार सुबह तक खबर नहीं दी। पुलिस दावा कर रही है कि धर्मेंद्र ने लॉक अप में चादर फाड़ कर अपने आप को फांसी लगा ली, लेकिन हम जान रहे हैं कि थाने में हुई मारपीट के कारण ही धर्मेंद्र की मौत हुई है।
धर्मेंद्र की मौत के घटनाक्रम को लेकर कुछ बिंदु भी पत्र में वर्णित है। इन बिंदुओं में वर्णित जानकारी इस प्रकार है:-
- हमारा परिवार ग्राम नेमित पंचायत देवित बुजुर्ग, तहसील झिरनिया, जिला खरगोन का है और 2-3 साल से धर्मेंद्र पत्नी और बच्चों के साथ अपने ससुराल, ग्राम दीवाल, तहसील पंधाना, जिला खंडवा में रह कर मिस्त्री काम और मजदूरी करता था। धर्मेंद्र पर आज तक कोई भी पुलिस केस नहीं लगा था, फिर भी अचानक से बुधवार (21 अगस्त) की रात 9.30 बजे कुछ पुलिस कर्मी आए और धर्मेंद्र को जबर्दस्ती खींच कर गाड़ी में बैठाने लगे। हमने जब पूछा की किस केस के बारे में उसे ले जा रहे हैं? उन्होंने बस इतना बोला कि धर्मेंद्र का वॉरंट है। हमें गिरफ्तारी का कोई नोटिस या पंचनामा नहीं दिया गया। उसके खिलाफ क्या केस है, क्या आरोप है, कोई जानकारी हमें नहीं दी गई। आज दिनांक तक हमें कोई सूचना नहीं दी गई है कि किस आरोप में उसे उठाया गया था।
- अगले दिन, धर्मेंद्र की पत्नी, रानु बाई उन्हें मिलने थाने गई, लेकिन टीआई और दूसरे स्टाफ ने डरा धमका कर, बदतमीजी कर के भगा दिया। उसी दिन, पुलिस धर्मेंद्र को नेमित गांव में लाई। हमारे गांव के बहुत सारे लोगों ने देखा कि जब पुलिस के साथ धर्मेंद्र आया, वह गाड़ी से निकल कर चलने की हालत में भी नहीं था। बिना हाथ पकड़े धर्मेंद्र चल भी नहीं पा रहा था, उसे गाड़ी से उतारने के बाद भी मारा था। धर्मेंद्र ने वहां उल्टी भी की थी, इसलिए धर्मेंद्र की हालत देख कर गांव के सभी लोगों को डर था कि शायद धर्मेंद्र बचेगा ही नहीं। नेमित में पुलिस जबरदस्ती हमारे घर में घुसी और बिना पंचनामा बनाए या बिना नोटिस दिए घर की तलाशी करने लगी। घर से पुलिस को कुछ भी नहीं मिला तो उसे दीवाल गांव में ले गए।
- दीवाल में पुलिस धर्मेंद्र को ले कर घर में आई, वहां पर भी बिना नोटिस या पंचनामे के घर की तलाशी की पर कुछ नहीं मिला। उस समय धर्मेंद्र के हाथ और पैर में साफ चोटें दिख रही थी, एक हाथ टूटा हुआ दिख रहा था और पैर में सूजन था चल नहीं पा रहा था। पुलिस को कुछ नहीं मिला तो उसके मजदूरी के 2000 रुपए यह बोलकर ले गए कि आज इसी पैसे की दारू पीकर इसको मारेंगे। हमने पंधाना थाने में 5 पुलिस कर्मियों को धर्मेंद्र को राड से मारते हुए देखा है।
- हम जब भी थाना में उससे मिलने की कोशिश करते, पुलिस वाले हमें भगा देते। शुक्रवार में थाने में झांक कर धर्मेंद्र की हालत देखने के बाद हमने सोचा कि किसी बड़े अधिकारी को बताना चाहिए। उसी रात शुक्रवार को थाने से रानु बाई को फोन आया और उनकी धर्मेंद्र से आखरी बार बात हुई। धर्मेंद्र ने बच्चों की खबर ली और रानु बाई से अगली सुबह 8 बजे तक थाना आने के लिए बोला।
- लेकिन, अगली सुबह, लगभग 5 बजे नेमित के चौकीदार ने हमें खबर दिया कि धर्मेंद्र की थाने में मौत हो गई है। जब रानु बाई सुबह 6 बजे पंधाना थाने में पहुंची तभी उन्हें बताया कि धर्मेंद्र तो मर गया और उन्हें खंडवा अस्पताल जाने बोला। पुलिस का कहना था कि धर्मेंद्र ने शुक्रवार रात को ही थाने में “फांसी लगा ली”। लेकिन हमें उसकी मौत की सूचना अगले दिन तक नहीं मिली।
- जब हम सब अस्पताल पहुंचे, हम में से किसी को भी धर्मेंद्र को देखने नहीं दिया। धर्मेंद्र के पोस्ट मोर्टम में भी परिवार में से किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया, लेकिन गांव के कुछ लोग थे। उन्होंने देखा की धर्मेंद्र के पूरे शरीर पर सर से पैर तक चोटें थी।
- धर्मेंद्र की हुई पिटाई के कारण दोनों पैरों के तलवे काले हो चुके थे। उसका बायां पैर पूरी तरह से कुचला जा चुका था और उसके बाएं पैर की जांघों पर लाठी की मार के 5 सपाटे (पट्टे नुमा) के निशान थे। उसके बाएं हाथ की हथेली और उंगलियां टूटी हुई दिख रही थीं और बुरी तरह हुई मार के कारण काली हो चुकी थी। उसके बायें बाजू पर भी चोट के काले-नीले निशान थे। धर्मेंद्र के दाहिने पैर के तलवे भी पूरी तरह से काले थे। एक सपाटे का निशान उसकी पीट से उसके पसलियों तक थी। धर्मेंद्र के सर और गले के पीछे भी बड़ी चोट का निशान था। 3-4 दिनों तक पड़ी मार के कारण धर्मेंद्र की पीट पूरी तरह से काली-नीली हो चुकी थी। उसका एक दांत भी टूटा हुआ था। यह चोटें मजिस्ट्रेट और डॉक्टर ने भी देखी हैं।
पुलिस बार-बार धर्मेंद्र की मौत को आत्महत्या बता रही है। जो व्यक्ति दो दिन तक चल फिर नहीं पा रहा हो, जिसके हाथ टूट चुके थे, वह इंसान अपने आप को फांसी कैसे लगा सकता है? उसके पूरे शरीर पर चोट के निशान थे। धर्मेंद्र ने फांसी नहीं लगाई है, बल्कि धर्मेंद्र की मार-मार कर हत्या की गई है।
अतः, हम मांग करते हैं कि दोषी थाना पंधाना पर पुलिस कर्मियों पर हत्या का मामला दर्ज हो एवं एफ़आईआर कर उन्हें तत्काल गिरफ्तार किया जाए।
परिवार की परवरिश के लिए शासन ज़िम्मेवारी ले। धर्मेंद्र के 15, 12 और 10 साल के तीन छोटे बच्चे हैं। उनका क्या होगा? हमारी 4.5 एकड़ ज़मीन अपर वेदा बांध में डुबाया गया था, और हमें कोई मुआवजा नहीं दिया गया। तबसे हम मजदूरी करके जी रहे हैं।
खंडवा और खरगोन के आदिवासी वर्ग सहित, आदिवासी एकता परिषद और आदिवासी जागृति दलित संगठन ने भी एक ज्ञापन पत्र खरगोन जिला कलेक्टर और पुलिस अधिकारियों के लिए लिखा।
ज्ञापन पत्र पर 29/08/2024 दिनांक दर्ज है। ज्ञापन पत्र में लिखा गया है कि, हम खरगोन, खंडवा एवं बुरहानपुर के आदिवासी हैं। हाल ही में पंधाना थाने में बर्बर मारपीट और पुलिस प्रताड़ना के कारण हमारे भाई धर्मेंद्र दांगोड़े की हत्या से आदिवासी समाज में बेहद आक्रोश है।
खरगोन और खंडवा में 3 साल में यह तीसरा मामला है जहां किसी आदिवासी को चोरी के आरोप में बिना किसी सबूत, बिना विधिवत कार्यवाही के उठाया जाता है। बिना गिरफ्तारी पंचनामे और बिना कोर्ट में पेश किए उसे थाने में रखा जाता है।
और उसे इतना पीटा जाता है कि वह मर ही जाए। मध्य प्रदेश सरकार की ओर से दोषी अधिकारियों पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई, बल्कि उल्टा सरकार दोषी अधिकारियों को बचाते हुए दिखाई पड़ रही है।
ज्ञापन पत्र में आगे लिखा गया कि, हम कुछ तथ्यों सहित घटना में मांगें करते हैं। इन तथ्यों और मांगों का कुछ महत्वपूर्ण अंश इस प्रकार है।
1. पुलिस बिना किसी भी वॉरंट, बिना किसी गिरफ्तारी पंचनामा या सूचना नोटिस दिए धर्मेंद्र को थाने में ले गयी। यह स्पष्ट रूप से माननीय उच्चतम न्यायालय के “डीके नसु” दिशानिर्देशों का उल्लंघन है, अवैध है। क्या आदिवासियों के लिए कोई कानून व्यवस्था नहीं है?
2. धर्मेंद्र को बुधवार रात से शुक्रवार रात को उसकी मौत तक लगातार थाने में ही रखा गया। उसे एक भी बार कोर्ट में पेश नहीं किया गया जबकि किसी भी नागरिक को कोर्ट में पेश किए बिना 24 घंटे से ज़्यादा नहीं रखा जा सकता है, एक आदिवासी मजदूर को इतने दिन थाने में रखने, पुलिस को धर्मेंद्र के साथ बर्बर मारपीट करने का अधिकार किसने दिया?
3. धर्मेंद्र को थाने में अवैध रूप से बंद करने के बाद उसके साथ बुरी तरह मारपीट हुई है। जब उसकी पत्नी, रानु बाई खाना लेकर उससे मिलने गई, तब उसको उल्टा भागा दिया गया। लेकिन रानु बाई ने खुद 5 पुलिस कर्मियों को लोहे की रॉड से थाने में ही धर्मेन्द्र को पीटते हुए देखा है। धर्मेंद्र के घर में भी बिना किसी पंचनामे या नोटिस दिए ही जबर्दस्ती तलाशी की गई, जहां कुछ नहीं मिला।
राष्ट्रीय आपराधिक रेकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, पूरे देश में आदिवासियों पर सबसे ज़्यादा अत्याचार होते हैं। 2022 में ही आदिवासियों पर अत्याचार के 2979 मामले दर्ज हुए थे, यानि हर दिन 8 मामले दर्ज हुए।
आज तक बिस्टान थाने में मारे गए बिसन भील, मानधाता थाने में मारे गए किशन निहाल और अब पंधाना थाने में मारे गए धर्मेंद्र दांगोड़े को कोई न्याय नहीं मिला।
हमें यही दिखाई पड़ रहा है कि मध्य प्रदेश में आदिवासियों को अवैध रूप से बंधक बनाने, उन्हें जानवरों जैसे पीटने और मार-मार के उनकी हत्या करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। एक आदिवासी मजदूर की इस तरह से हत्या के बाद भी आज तक शासन-प्रशासन की ओर से कोई भी मदद या सहायता नहीं मिली।
धर्मेंद्र का परिवार न्याय चाहता है, जिसका खंडवा खरगोन के सभी लोग इसका पूर्ण रूप से समर्थन करते हैं।
ज्ञापन पत्र में आगे मांगें उल्लेख किया गया है। मांगें क्रमशः निम्न हैं:-
- धर्मेद्र दांगोड़े के हत्यारों के खिलाफ हत्या की धाराओं में एफ़आईआर दर्ज हो एवं सभी की तत्काल गिरफ्तारी हो।
- धर्मेंद्र दांगोड़े की थाने में मृत्यु की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच हो। पूरे थाने के स्टाफ की जांच हो।
- धर्मेंद्र दांगोड़े को अवैध रूप से बंधक बनाने, मारपीट करने के लिए ज़िम्मेवार सभी अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जाए।
- धर्मेंद्र दांगोड़े के 15, 12 और 10 साल के तीन छोटे बच्चे हैं। उनका क्या होगा? सरकार धर्मेंद्र दांगोड़े के परिवार को एक करोड़ की आर्थिक सहायता भी दी जाए।
- धर्मेंद्र दांगोड़े के परिवार के एक सदस्य को नियमित सरकारी नौकरी दी जाए।
इस घटनाक्रम में पीड़ित पक्ष के साथ खड़ी (PUCL-पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज) माधुरी कृष्णास्वामी का घटना पर कहना है कि, “आम नागरिक गलती करे या ना करें, उनके ऊपर छोटे-छोटे मामलों में आरोप लगाते ही पुलिस ने उठा कर ले जाती है। इस मामले में पुलिसकर्मियों के पास से एक आदिवासी की लाश बरामद हुई है”।
“अभी तक…दोषी गिरफ्तार क्यों नहीं किये जा रहे? हमें बताया जा रहा है कि ज्यूडिशरी इंक्वारी के लिए रुके हैं। इंक्वारी के बाद भी दोष सिद्ध होने पर दोषियों को गिरफ्तार नहीं किया जाता। इस तरह के मामले खरगोन और अलीराजपुर जैसे जिलों में आ चुके हैं”।
“लेकिन इंक्वारी बिठाई जाती है और मामला ठंडा हो जाता है। इस…बार की घटना (धर्मेंद्र की मौत) को लेकर यदि न्याय नहीं होता तब आंदोलन भी चलेगा और हम कोर्ट भी जाएंगे”।
पुलिस कस्टडी में हुई मौत के आंकड़े को जब हम देखते हैं, तब राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत (NHRC) के डेटा से ज्ञात होता है कि, देश में अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक पुलिस कस्टडी में और कथित मौतें 239 हुई हैं।
वर्ष 2020-21 में पुलिस कस्टडी में 100 मौतें हुयी थी। ऐसे वर्ष 2019-20 में इन मौतों का आंकड़ा 112 था। जबकि, वर्ष 2018-19 में 136 मौतें पुलिस कस्टडी में हुयीं।
वहीं, 2017-18 में पुलिस कस्टडी में मौत का आंकड़ा 146 था। ऐसे में वर्ष 2016-17 के दौरान 145 मौतें पुलिस कस्टडी में रिकॉर्ड की गयी थी।
वहीं, NHRC के मुताबिक न्यायिक हिरासत में वर्ष 2020-21 में 1,840 मौत दर्ज की गयीं। वर्ष 2019-20 में 1,584 मौत हुयीं। जबकि, वर्ष 2018-19 में 1,797 मौतें न्यायिक हिरासत में रिकॉर्ड की गयी।
वहीं, वर्ष 2017-18 में 1,636 मौतें और 2016-17 में 1,616 मौतें न्यायिक हिरासत में हुयीं।
ज्ञ्यातव्य है कि, जिस तरह से आदिवासी लोगों की पुलिस कस्टडी में मौत हो रही है, उससे पुलिस व्यवस्था पर सवाल खड़े होते हैं। इन सवालों में एक सवाल पुलिस कस्टडी की पारदर्शिता का भी है।
पुलिस प्रशासन लोगों के संरक्षण और समाज से भय के खात्मे के लिए होता है, मगर जब पुलिस कस्टडी में किसी की मौत का मामला सामने आता है, तब पुलिस व्यवस्था के कार्यों पर आशंका उत्पन्न होती है।
धर्मेंद्र की मौत जैसे मामलों में निष्पक्षता और पारदर्शिता को ध्यान में रखकर जांच की जानी चाहिए।
(सतीश भारतीय स्वतंत्र पत्रकार हैं और मध्यप्रदेश में रहते हैं)
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