चंदौली। सहजौर गांव के लगभग 200 से अधिक मजदूर किसानों के पास इन दिनों कोई काम-धाम नहीं है। बेगार और बेउम्मीदी में दिन काट रहे हैं। जबकि, इन दिनों में सैकड़ों की तादाद में भूमिहीन, बटाईदार और मजदूर गंगा किनारे की तराई (तरी खेत) में अपने परिवार के साथ सब्जी की तुड़ाई करते। फिर उसे बाजार ले जाने की तैयारी में जुटे होते। गांव के उत्तरी छोर से गुजरी पिच रोड और इससे लगे तराई इलाके में चहल-पहल रहती। अफसोस, इस बात का है कि इनके पास अब कोई काम ही नहीं बचा है, जो इनके गृहस्थी की गाड़ी को आगे बढ़ने में मदद कर सके। अब दुधारू मवेशी ही इनके पास आमदनी का एकमात्र जरिया है। इस धंधे को भी बट्टा लग गया है।

दरअसल, गंगा नदी उफनाई हुई है। इसकी बाढ़ में नियामताबाद, सकलडीहा, धानापुर विकासखंड से लेकर गाजीपुर जनपद के जमानिया बॉर्डर तक गंगा नदी के किनारे रहने वाले लाखों छोटे जोत के किसान, मालगुजारी और मजदूर किसान हजारों एकड़ में हरी सब्जी की फसल- करैला, नेनुआ, परवल और भिंडी, हरा चारा, खरीफ की फसल में अरहर, ज्वार-बाजरा, तिल आदि की खेती करते हैं। जो मानसूनी सीजन में इन गरीबों की आजीविका का बड़ा सहारा होता है, लेकिन गंगा नदी में बाढ़ आने की वजह से इन किसानों की सैकड़ों एकड़ में लगी सब्जी की खेती बर्बाद हो गई है। हरा चारा भी बाढ़ में डूब जाने से गल कर नष्ट हो गया है। हजारों, लाखों रुपए की लागत के बाद ठाला सीजन में फसलों के नुकसान से किसान मायूस और निराश हैं। उन्हें सरकारी मुआवजे की दरकार है।
किसानों के पास कोई काम नहीं
चंदौली जनपद के नियामताबाद विकासखंड स्थित सहजौर गांव की तराई में चारों तरफ बाढ़ का पानी जमा होने से दूर-दूर तक के खेत में लगी फसल गल कर नष्ट हो रही है। अधिकांश खेतों में लगी सब्जी की फसल को नदी ने बाढ़ में अपने साथ लाई गई गाद से पाट दिया है। जल जमाव और फसलों के गलन से उमस भरे माहौल में तबियत पसीने से तर-बतर हुई जा रही थी। मुश्किल से दो-तीन कदम की दूरी पर हरहराती गंगा की बाढ़ है। इसमें उठते भंवर से निकलती डरावनी आवाज आबोहवा को बोझिल और असहज कर रही है।
ग्रामीण युवक सुन्दर ने जनचौक की टीम को तराई की बाढ़ प्रभावित खेतों का मुआयना कराया और पीड़ित किसानों से मिलाया। जनचौक की टीम विजय के साथ-साथ बगैर चप्पल-जूते के नंगे पांव तकरीबन एक किमी गंगा की दक्षिणी सीमा तक ऊंचे-ढाल, कांटे-कुश, बाढ़ के पानी में डूबे खेतों में लगी फसलों से होते हुए और धंसते गाद में संभलते हुए तरी में पहुंची। यहां अजय कुमार मंगलवार की दोपहर में वीरान पड़े तराई में अकेले भैंस चराते मिले।

अजय 12 हजार रुपए प्रति बीघे की दर से 8 बीघे की खेती बंटाई पर लेकर गंगा की तराई में परवल की खेती किये थे। वह “जनचौक” को बताते हैं कि “दो लाख रुपए कर्ज लेकर परवल की खेती किया था। परवल के बीज 5 हजार रुपए प्रति बोझ जमानिया (गाजीपुर) से मंगाया था। मजदूरों को लगाकर खेती कराई। इसमें कीटनाशक, उर्वरक, टॉनिक और श्रमिकों पर मोटी रकम व्यय के बाद फसल भी कायदे की उत्पादन देने लायक हो गई थी। इसी बीच फसल गंगा की बाढ़ में डूब गई और कई दिनों तक फसल के ऊपर से गंगा जल बहता ही रहा, जब पानी थोड़ा उतरा भी तो तकरीबन दो से तीन फीट कीचड़-गाद में फसल दब गई। जबकि, जिस समय पांच से छह कुंतल परवल रोज सब्जी मंडी ले जाता, लेकिन अब खेतों में भैंस चारा रहा हूं। मेरे पास कोई काम नहीं है। सबकुछ पानी में चला गया।“

प्रतिमाह 9 हजार रुपए कर्ज के क़िस्त भरने हैं
अजय आगे कहते हैं कि “फसल तो गई ही, उससे नुकसान अलग। तिसपर दो लाख रुपए कर्ज लिया हूं। इसका प्रतिमाह 9 हजार रुपए क़िस्त भरने हैं, लगातार 20 महीने तक। मुझे समझ नहीं आ रहा कि कहां से हर महीने 9 हजार रुपए बचाऊ और क़िस्त अदा करूं। साथ ही अगली फसल की चिंता सता रही है कि उसके लिया कहां से पूंजी जुटाऊं। “अभी दो दिन पहले खाद (उर्वरक) खरीदने सहकारी समिति पर गया तो वहां सचिव प्रति बोरी उर्वरक पर 20 रुपए अतिरिक्त ले रहा था। ये भी बेलगाम हो चुके हैं। मेरी सरकार और शासन से मांग है कि बिना ब्याज का आसान ऋण मुहैया कराया जाए व हमलोगों के फसली नुकसान का सर्वे कर आर्थिक भरपाई की जाए।“
आमदनी दोगनी की बात बेशर्मी
चहनियां विकासखंड के रौना गांव निवासी पचपन वर्षीय कृपाशंकर की गंगा की तराई में तीन बीघे में लगी हरे चारे (ज्वार) की फसल गंगा ने डूबकर नष्ट कर दिया। अब उनके सामने मवेशियों के लिए चारे का संकट खड़ा हो गया है। वे कहते हैं “मेरे पास खेत के नाम पर यही जमीन है, जिसपर मेरा तिरपाल का आशियाना बना है। इसी से सटे प्लास्टिक की शेड\तिरपाल से छाई गई गौशाला में मवेशी खूंटे से बंधे हैं। इसमें से दो गाय तीन-तीन लीटर दूध देती हैं। जिन्हें बेचकर मैं गृहस्थी की गाड़ी खींच रहा हूं। पिछले महीने मेरा हाथ टूट गया था, जिसका इलाज में किसान सम्मान निधि से मिलने वाली राशि से कराया। एक बार समाजवादी पार्टी की सरकार में डूब से फसल नष्ट होने पर आर्थिक मुआवजा मिला था। लेकिन भाजपा और योगी की सरकार में किसानों की दुर्गति किसी से छिपी नहीं है। खेती-किसानी से दो वक्त का दाल-रोटी बड़ी मशक्कत से चल रही है। आमदनी दोगनी की बात बेशर्मी से कैसे जा रही है।“

पूंजी डूबी, अब बीमारी का प्रकोप
वह आगे बताते हैं “मैं 5 से 6 बीघे खेत बंटाई पर लेकर कुल आठ हजार रुपए की रुपए की लागत से हरे चारे की खेती किया था। फसल कमर तक आ गई थी। इसी बीच दो-तीन दिन पहले गंगा की बाढ़ में पूरी फसल बुड़-बहा गई। चारा के घटने की वजह से अब कुवांर माह में ही ऊंची कीमत पर मुगलसराय से भूसा खरीदना पड़ेगा, अन्यथा मवेशी बेचना पड़ेगा। बाढ़ की वजह से मेरे मवेशियों को संक्रामक बीमारी भी लग गई है। इनके इलाज में दो-तीन हजार रुपए खर्च हो गए। सरकार की तरफ से पशु चिकित्सा विभाग का कोई भी कर्मी मवेशियों को टीका लगाने नहीं आया है। सब कुछ जैसे-तैसे चल रहा है।”
पेट पालने के लिए ढूंढना होगा काम
सहजौर गांव के बबलू चौहान ने बताया कि “गांव में 125 से अधिक गरीब मजदूर अपनी पसीने की कमाई से कुछ पैसे रोजमर्रा के खर्चों से बचाकर दो-बीघे व तीन बीघे तराई के खेत लेकर सब्जी की खेती करते हैं। जिसमें नोनिया (चौहान), चमार (दलित), अहीर व गोंड (आदिवासी ) समाज के लोग शामिल है। ये पैसे-रुपए से बंटाई और मालगुजारी पर खेत लेकर खेती करते हैं। हमलोगों के परिवार की महिलाएं और बच्चे खेती में सहयोग देते हैं। जिससे अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में मुझे मजदूरी नहीं करनी पड़ती है। मैं सब्जी बेचकर रोजाना तीन से चार हजार रुपए कमा लेता था, लेकिन इस बार मेहनत और पैसा खर्च करने के बाद कुछ हाथ नहीं आया। पूरी सब्जी की फसल नष्ट हो गई है। अब परिवार का पेट पालने के लिए मजदूरी के लिए यहां-वहां भटकना पड़ेगा। खेत भी आगामी तीन महीने परती रहेंगे।”

अंशुमान चौहान की दो बीघे में लगी करैला-परवल, मनमोज, गणेश, पप्पू, गायत्री, चम्मन, राजिंदर समेत सैकड़ों बंटाईदार-मालगुजारी किसानों की पचास से अधिक बीघे में लगी सब्जी व हरे चारे की फसल डूब गई है।
जबरदस्त घाटा से सहमा किसान
किसान नखड़ू को 80 से 90 हजार रुपए का जबरदस्त घाटा सिर्फ सब्जी की खेती में इस बरस लगा है। वे कहते हैं कि “मेरा दिमाग ही नहीं काम कर रहा है, कि आगे क्या किया जाए कि अगली फसल के लिए पूंजी जुटाई जा सके। गाजीपुर से 25 हजार रुपए का परवल का बीज मंगाया था। तपती गर्मी और लू में श्रमिकों के सींचकर, निराई-गुड़ाई कर, समय-समय पर उर्वरक और कीटनाशक डालने के बाद फसल के उत्पादन की बारी आई तो बाढ़ ले डूबी। मेरा परवल के साथ 5 बिस्वा में लगा करैला व 6 विस्वा में लगा नेनुआ भी बर्बाद हो गया है। खेती के अलावें भैंस पालकर दूध बेचता हूं। परिवार बड़ा होने की वजह से अब दूध की आमदनी खर्च में निकल जाती है। बचत का काम सब्जी के पैसे से होता लेकिन, अब सब आपके सामने हैं.. क्या बताएं। “

उपजिलाधिकारी पीडीडीयू नगर\नियामताबाद आलोक कुमार ने “जनचौक” को बताया कि “गंगा नदी के बाढ़ से नुकसान की सूचना अभी हल्का प्रभारी लेखपाल द्वारा अवगत नहीं कराई गई है। इस संबंध में निर्देशानुसार लेखपाल\राजस्व कर्मी से किसानों के नुकसान का सर्वेक्षण कराया जाएगा, ताकि किसानों की समस्याओं का निराकरण किया जा सके।”
(चंदौली से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)
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