बनारस। मैं उत्कर्ष सिंह बरेका इन्टर कालेज में विज्ञान का छात्र हूं करोना के चलते जो आर्थिक मार की सुनामी चली उसका शिकार मेरा परिवार भी हुआ। मेरा स्कूल रेलवे द्वारा संचालित सरकारी स्कूल है। मैं फीस नहीं जमा कर पाया। मुझे फीस के 12 हजार जमा करने हैं। प्रिंसिपल का कहना है कि बिना फीस के परीक्षा नहीं।
मैंने अपनी फीस माफी के लिए प्रिंसिपल से लेकर अधिकारियों तक को पत्र लिखकर मेरे मामले में सहानुभूति पूर्वक विचार करने को कहा पर मेरी फरियाद बेअसर रही। मैंने मेरे शहर के सांसद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी पत्र लिखकर अपने मन की बात कही पर मैं बहुत छोटा हूं। प्रधानमंत्री जी बड़े मेरे जैसे एक सामान्य छात्र की मन की बात और सपने भी उनके लिए मायने नहीं रखते। इसलिए उनके तरफ से कोई जवाब नहीं आया। …मैं अपनी बात कैसे और किससे कहूं?
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के रहने वाले उत्कर्ष सिंह के पास फीस भरने के पैसे नहीं हैं ब.रे.का इन्टर कालेज के 12वीं के छात्र उत्कर्ष की कल यानी 2 अप्रैल से प्रायोगिक परीक्षाएं शुरू हो रही हैं। स्कूल के प्रिंसिपल का कहना है कि फीस नहीं तो परीक्षा नहीं।
एस्ट्रो फिजिक्स के क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण खोज करने वाले उत्कर्ष सिंह ने अपने हालात का जिक्र करते हुए कहा कि हाथ-पैर बहुत मारे स्कूल के प्रिंसिपल से लेकर बाल कल्याण समिति, जिला विद्यालय निरीक्षक से लगायत वाराणसी लोकोमोटिव वर्क्स (बरेका) के अधिकारियों से फीस माफ करने के लिए आग्रह किया। जिला विद्यालय निरीक्षक ने स्कूल के प्रिंसिपल से इस संबंध में साहनुभूति पूर्वक विचार करने को भी कहा पर उत्कर्ष के हिस्से सहानुभूति नहीं आई।
अंत में हारकर उत्कर्ष ने अपने शहर के सांसद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ट्वीट के जरिए अपना हाल बयान किया तो उसके ट्विटर अकाउंट को हफ्ते भर के लिए बंद कर दिया गया है। दरअसल पिछले दो साल से कोरोना कहर के चलते आर्थिक मार के शिकार हुए लोगों में उत्कर्ष का परिवार भी है। उत्कर्ष की परीक्षा में 12 घंटे रह गये हैं। उससे फीस के 12 हजार रुपए मांगे जा रहे हैं जो उसके परिवार के पास नहीं हैं। कागज पर लिखी अर्जियां बेअसर साबित हो चुकी हैं अब सवाल यह है कि लोक कल्याणकारी राज में क्या उत्कर्ष के हक की शिक्षा उससे छीन ली जाएगी या फिर सरकार और उसकी मशीनरी का दिल पसीजेगा? आने वाले 12 घंटे में क्या उत्कर्ष शिक्षा के हक से वंचित कर दिया जाएगा।
लाल कार्ड न होने की वजह से झारखंड में कई दिनों की भूखी संतोषी भात-भात कहते हुए मर गई और यहां बनारस का उत्कर्ष फीस माफी के लिए गुहार लगा रहा है। वैसे तो सरकार अगर मेहरबान हो तो चुनिंदा लोगों के लाखों-करोड़ों माफ हो जाते हैं तो क्या उत्कर्ष के फीस के 12 हजार? और आज ही की खबर है कि स्टेट बैंक ने अडानी की 12 हजार करोड़ रुपये से ऊपर के कर्जे को माफ कर दिया है। अब कोई पूछ सकता है कि ये बैंक का पैसा किसका था। उत्कर्ष के मां-बाप जैसे उन लाखों लोगों का जिन्होंने टैक्स के जरिये सरकार के खजाने को भरा है। लेकिन शायद इस सत्ता की यही नियति है उत्कर्ष जैसे लोग स्कूल के बाहर सड़क पर होंगे और अडानी जैसे लोग मालामाल।
(वाराणसी से भास्कर गुहा नियोगी की रिपोर्ट।)