मणिपुर में आदिवासी महिलाओं पर हुई हिंसा के खिलाफ कांगड़ा में विरोध प्रदर्शन, सीएम के इस्तीफे की मांग

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धर्मशाला। मणिपुर में पिछले तीन महीने से जारी हिंसा और महिलाओं के यौन उत्पीड़न के विरोध में देश भर में प्रदर्शन हो रहे हैं। विपक्षी पार्टियां संसद में मोदी सरकार से जवाब मांग रही हैं तो सड़क पर जनाता और नागरिक संगठन विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। इस कड़ी में मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह की आलोचना भी हो रही है। एन बीरेन सिंह सरकार पर मैतेई हिंसक समूहों से मिलीभगत का आरोप है।

हिमाचल प्रदेश के प्रगतिशील कार्यकर्ताओं, व्यक्तियों और संगठनों ने मिलकर नागरिक अधिकार मंच कांगड़ा के बैनर तले जिला मुख्यालय धर्मशाला में विरोध प्रदर्शन किया, रैली निकाली और अतिरिक्त उपायुक्त कांगड़ा का ज्ञापन सौंपा। प्रदर्शन में दर्जनों की संख्या में महिला, पुरषों और क्वियर समुदाय के लोगों ने भाग लिया। सभा को जागोरी ग्रामीण से आभा भैया, पर्वतीय अधिकार मंच से बिमला विश्व प्रेमी, नानकी भारद्वाज, पर्यावरण समूह हिमधारा से मानिशी अशेर, सामाजिक कार्यकर्ता सुखदेव विश्वप्रेमी, हिमाचल क्वियर फाउंडेशन से डॉन होस्सर ने रैली को संबोधित किया।

आभा भैया ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के प्रगतिशील कार्यकर्ता, व्यक्ति और संगठन, मणिपुर में महिलाओं और अन्य हाशिए पर खड़े जनजातीय समाज के खिलाफ हिंसा की घटनाओं की कड़ी निंदा करते हैं। पिछले कुछ महीनों में सामने आई इन भयावह घटनाओं ने हमें अपने सहनागरिकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित होने पर मजबूर कर दिया है। इस बयान के साथ हम राज्य की सभी संस्थानों विशेष रूप से पुलिस प्रशासन, राज्य और केंद्र सरकारों की सामूहिक विफलता पर रोष प्रकट करते हैं, क्योंकि इससे क्षेत्र में हिंसा बढ़ गई है और इसकी सबसे क्रूर कीमत क्षेत्र की महिलाओं के शारीर पर वार करके ली जा रही है।

मणिपुर में घटी भयावह घटना, जिसमें दो कुकी आदिवासी महिलाओं को यौन उत्पीड़न और हिंसा का शिकार बनाया गया, यह हमारे समाज की गहरी पितृसत्तात्मक जड़ें जमा चुकी लिंग आधारित हिंसा का भी सबूत है। इस तरह का हमला न केवल महिलाओं के मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन हैं बल्कि महिलाओं के शरीर को खास कर विवादित क्षेत्रों में युद्ध का मैदान बनाने वाली जहरीली विचारधारा को और गहरा करता है।

हम मानते हैं कि एक विशेष हाशिये पर पड़े आदिवासी समुदाय की महिलाओं के खिलाफ हिंसा की वीडियो रिकॉर्डिंग कोई एक घटना नहीं है। इंडिया टुडे के साथ हाल ही में एक टेलीफोनिक साक्षात्कार में, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने यह पुष्टि की कि मणिपुर में कई सौ ऐसे ही मामले सामने आए हैं। फिर भी, सत्ताधारी पार्टी द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है, जो राज्य में नागरिक सुरक्षा और शांति बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है।

3 मई, 2023 से मणिपुर में पूर्ण इंटरनेट प्रतिबंध है। हम मुख्यमंत्री, मणिपुर में पुलिस बलों, गृह मंत्रालय और राष्ट्रीय महिला परिषद जैसे निकायों की चुप्पी से अचंभित हैं। वायरल वीडियो में अपराधियों का चेहरा साफ साफ़ दिखाई देने के बावजूद मामले में पुलिस ने एक शून्य FIR दर्ज की। साथ ही घटना थाने के बिल्कुल नजदीक हुई तो फिर लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों और अधिनियमों के आधार पर उचित एफआईआर क्यों दर्ज नहीं की गई?

मानिशी और नानकी का कहना था कि हम समझते हैं कि मणिपुर में चल रही इस हिंसा की उत्पत्ति जटिल है, जो शायद बहुआयामी विवादों से शुरू हुई है, मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के फैसले और इससे बड़ी पूंजी द्वारा खनिज और वन संपदा के संभावित दोहन और पहाड़ी समुदायों की पारंपरिक भूमि को हड़पने के संभावित खतरे ने शायद इस विवाद को और उकसाया।

मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व में सरकार पर कुकी के बजाय मैतेई लोगों का पक्ष लेने का आरोप है। यह कथन, किसी भी तरह से किसी भी एक समुदाय को दोषी ठहराने का इरादा नहीं रखता है, क्योंकि हम इस बात से वाकिफ हैं कि सामुदायों के बीच आपसी रिश्ते हैं और इन मुश्किल परिस्थितियों में भी ऐसे लोग हैं जो संवेदनशील पहचान के व्यक्तियों का सहयोग कर रहे हैं। तो स्पष्ट रूप से इस संघर्ष के जातीय, धार्मिक और सामुदायिक आयाम है जिनके मद्देनजर राज्य सरकार समय पर हस्तक्षेप करके हिंसा पर रोक लगा सकता थी और समुदायों की लोकतांत्रिक भागीदारी के साथ संवाद शुरू कर सकती थी। हम इस सब में मुख्यधारा मीडिया की भूमिका पर भी सवाल उठाते हैं जो इन घटनाओं को उजागर करने में विफल रही।

नागरिक अधिकार मंच कांगड़ा ने बयान जारी करते हुए कहा कि “हमारा उद्देश्य यह भी सवाल उठाना है कि हमारा राज्य महिलाओं और अन्य कमजोर पहचानों के खिलाफ हिंसा के अपराधियों से कैसे निपटता है। यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिला पहलवानों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शनों के बावजूद बृज भूषण सिंह को दी गई जमानत इस बात का सबूत है। गुरमीत राम रहीम सिंह जैसे व्यक्तियों को पैरोल पर रिहा करना इसी खौफनाख सिलसिले का हिस्सा है। यह हमें यह पूछने पर मजबूर करता है कि, हाशिये पर मौजूद पहचानों के लिए सुरक्षित स्थान बनाने में हमारे राज्य की क्या भूमिका हैं और क्या समानता और न्याय के मूल्य हमारी व्यवस्था में नज़र आते हैं?”

इन घटनाओं ने हमें यह पूछने पर मजबूर कर दिया है की नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में हमारी न्याय प्रणाली कितनी प्रभावशाली है? खासकर उन लोगों की सुरक्षा जो विभिन्न की जो अदृश्य किये गये समाजों और पहचानों से सम्बन्ध रखते हैं अपराधियों को पकड़ने में देरी और इन मुद्दों को तुरत संबोधित करने में विफलता बेहद निंदनीय है और हमारी कानूनी और संवैधानिक प्रक्रियाओं की प्रभावकारिता पर सवाल उठाती है। हमारा दृढ़ विश्वास है कि ऐसी हिंसा के पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए तत्काल और निर्णायक कार्रवाई आवश्यक है।

अपने ज्ञापन में उन्होंने मांग की है कि मणिपुर के सीएम का तत्काल इस्तीफा लिया जाए। और राज्य में महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले आदिवासी समुदायों के खिलाफ हिंसा की सभी रिपोर्ट की गई घटनाओं की व्यापक और न्यायपूर्ण जांच हो।

(धर्मशाला से गगनदीप सिंह की रिपोर्ट, फोटो-शालिनी।)

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