पंजाब भाजपा की नई शिकारगाह है। लंबे अरसे से भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस सरहदी राज्य में अपनी जड़ें मजबूत करने में लगे हैं। इसीलिए 2022 और 2023 में रिकॉर्ड पैमाने पर दलबदल हुआ। कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के कई दिग्गज भाजपा में चले गए। यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष तथा अकाली-भजपा गठबंधन में नेता प्रतिपक्ष सुनील कुमार जाखड़ तक अपने करीबी सहयोगियों एवं वरिष्ठ नेताओं के साथ भगवा ब्रिगेड में शामिल हो गए। सुनील कुमार जाखड़ को पिछले दिनों पंजाब प्रदेश का अध्यक्ष बनाया गया है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह के बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें भी किसी बड़े पद से जल्द ही नवाजा जाएगा। कैप्टन की पत्नी महारानी परनीत कौर पटियाला से कांग्रेसी सांसद हैं। न तो उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दिया और न ही पार्टी ने उन्हें बर्खास्त किया। अलबत्ता सांसद होने की उनकी हैसियत बरकरार है। कैप्टन अमरिंदर सिंह का पूरा परिवार ही भाजपा में है। उनकी बेटी जयइंदर कौर को भाजपा के विशेष समागमों और रैलियों में खास जगह दी जाती है। कयास हैं कि वह 2024 में भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ेंगी। सुनील कुमार जाखड़ कैप्टन अमरिंदर सिंह परिवार के काफी करीबी हैं और जयइंदर कौर अक्सर उनके साथ दिखाई देती हैं।
जाखड़ को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का ओहदा तो मिल गया लेकिन आगे की राह में कांटे ही कांटे हैं। टकसाली भाजपाई उन्हें बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। वे चाहते थे कि भाजपा के किसी पुराने नेता या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से वाबस्ता व्यक्ति को पंजाब की कमान दी जाए। अब उनकी शिकायत है कि ‘बाहरी’ अथवा दलबदलूओं को तरजीह दी जा रही है। पिछले दिनों सुनील कुमार जाखड़ बाढ़ ग्रस्त इलाकों में केंद्रीय सहायता के लिए राज्यपाल को ज्ञापन देने गए तो उनके साथ एक भी टकसाली नेता नहीं था। जबकि उन्हें आने के लिए कहा गया था। जाखड़ ने आलाकमान से शिकायत की तो सबके अपने-अपने बहाने थे लेकिन हकीकत जगजाहिर है।
इधर, सुनील कुमार जाखड़ टकसाली नेताओं के बजाए नए लोगों को तरजीह देना चाहते हैं। हाईकमान ने उन्हें ग्रामीण पंजाब में भाजपा की जड़ें मजबूत करने का टारगेट दिया है और 2024 के लोकसभा चुनाव में सूबे से कम से कम चार सीटों पर जीत की अपेक्षा अथवा उम्मीद रखी है। जाखड़ इसी हिदायत को अमलीजामा पहनाने की कवायद कर रहे हैं।
जाखड़ कहते हैं, “संयुक्त अकाली दल भाजपा के साथ है और मालवा में ढींडसा परिवार की बहुत अच्छी पकड़ है। खासतौर से गांवों में। शहरों में भाजपा का अपना कैडर है। सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई वाला शिरोमणि अकाली दल हाशिए पर है और आगामी लोकसभा चुनाव तक उसके उठने की उम्मीद भी नहीं है। मालवा के अनेक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अब भाजपा में हैं। मुझे विश्वास है कि अकेले मालवा से तीन या चार सीटें भाजपा को मिल सकती हैं। गांवों में हम पूरा जोर लगा रहे हैं और अच्छे नतीजे भी मिल रहे हैं।”
लंबे अरसे से भाजपा की रणनीति थी कि सिख चेहरे भाजपा में आएं और पार्टी की छवि थोड़ा बदले। देशभर में बेशक हिंदुत्व की बात होती है लेकिन पंजाब में इस शब्द को कोई छूता तक नहीं। वजह साफ है। हाल ही में कई नए सिख चेहरे भाजपा में शामिल हुए हैं और उन्हें पहली कतार में रखा गया है। पुराने भाजपा नेताओं को यह बर्दाश्त नहीं है। खासतौर से भाजपा में पहले से काम कर रहे सिख नेताओं को।
उन्होंने किसान आंदोलन के दौरान फजीहत सही। अब उन्हें दरकिनार किया जा रहा है। भाजपा के पुराने सिख नेता ने नाम न देने की शर्त पर कहा कि ‘बाहरी’ लोगों के आने के बाद वे पार्टी में अप्रसांगिक हो गए हैं। आलाकमान में सुनाई नहीं होती और पंजाब में सब कुछ कांग्रेस से भाजपा में आए सुनील कुमार जाखड़ की रहनुमाई में होता है। भाजपा के साथ जाखड़ की वफादारी पर कितना विश्वास पार्टी कर सकती है?
आतंकवाद के दौर में वामपंथियों के बाद भाजपा को सबसे ज्यादा निशाना बनाया गया। तब उसके साथ बहुत कम सिख चेहरे थे। इनमें से एक नाम दया सिंह सोढ़ी का भी था। अमृतसर से लोकसभा सांसद भी रहे। साठ के दशक से उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ काम करना शुरू किया था। 1998 में वह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने और सांसद भी। बाद में फिरोजपुर से सुखपाल सिंह नन्नू, जालंधर से अमरजीत सिंह अमरी, मालवा से मनजीत सिंह राय, सुरजीत सिंह ग्रेवाल और सुखविंदर सिंह आदि विभिन्न पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं ने भाजपा का दामन थामा और शहरों से लेकर गांवों तक खूब काम किया।
सुखपाल सिंह नन्नू दो बार विधायक बने लेकिन अब उन्हें दरकिनार कर दिया गया है। मनजीत सिंह राय राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के वाइस चेयरमैन रहे और पार्टी की पंजाब इकाई के महासचिव भी। वह भी सुनील कुमार जाखड़ के आसपास कहीं नजर नहीं आते। नजर न आने वाले पुराने नेताओं में से पंजाबी युवा भाजपा के दो पूर्व प्रदेश प्रधान शिवबीर सिंह राजन और गुपरवेज सिंह भी हैं। पंजाब भाजपा में उनका अच्छा आधार रहा है लेकिन अब हाशिए पर हैं। अमृतसर से भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने वाले और पार्टी के कद्दावर नेता राजेंद्र मोहन सिंह छीना ने भी जाखड़ के आने के बाद पार्टी कार्यक्रमों से दूरी बना ली है और घर बैठ गए हैं।
सभी की शिकायत है कि पार्टी के पुराने वरिष्ठ नेताओं को अलग-थलग किया जा रहा है और सुनील कुमार जाखड़ अपनी नई टीम खड़ा करना चाहते हैं। जाहिर है कि इनमें दलबदलू ही ज्यादा होंगे। दरअसल, जाखड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा आलाकमान ने नया प्रयोग किया है। वह पहले ऐसे प्रदेश अध्यक्ष हैं जिनकी पृष्ठभूमि संघ की नहीं है। भाजपा में आने तक वह ठेठ कांग्रेसी रहे और यही पार्टी के पुराने अथवा टकसाली नेताओं को हजम नहीं हो रहा।
एक पुराने नेता कहते हैं कि ,”भाजपा अनुशासित पार्टी है लेकिन अब उसका स्वरूप बदल गया है। पहले दल बदल कर आने वालों को अच्छी तरह जांच परख कर लिया जाता था। अब कोई भी आ सकता है। भले उनकी छवि दागदार अथवा आपराधिक हो। इस मुद्दे पर अनुशासित कहलाने वाली भाजपा में सुनील कुमार जाखड़ की नई टीम के गठन के बाद बाकायदा बगावत भी हो सकती है। वैसे भी संघ और भाजपा के पुराने नेता दिल से जाखड़ के साथ नहीं जाएंगे।”
मतलब साफ है कि सुनील कुमार जाखड़ के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पंजाब भाजपा में बगावत हो सकती है। फौरी आसार तो यही हैं। ऐसा होता है तो पंजाब को काबू करने का भाजपा का सपना टूट जाएगा।
(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)
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