झारखंड: गिरिडीह में दाड़ी का दूषित पानी पीने से दो लोगों की मौत, एक दर्जन बीमार

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गिरिडीह। एक तरफ जहां गर्मी के मौसम में पीने के पानी का अभाव झारखंड वासियों के लिए परेशानी का सबब रहा है, वहीं बरसात के इस मौसम में साफ पानी के अभाव से राज्य के कई इलाकों में लोग तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।

इसका जीता जागता उदाहरण गिरिडीह जिले के पीरटांड़ प्रखंड में देखा जा सकता है। पीरटांड़ प्रखंड में दूषित पानी पीने के कारण कई लोग डायरिया के शिकार होकर अस्पताल में पड़े हैं। डायरिया के शिकार दो लोग काल के गाल में भी समा चुके हैं। 

पीरटांड़ प्रखंड के संताल आदिवासी बहुल गांव बेकटपुर और आसोरायडीह के सैकड़ों परिवारों को गांव के चापाकल खराब होने और जलमीनार से जलापूर्ति नहीं होने के कारण दाड़ी का दूषित पानी पीना पड़ रहा है।

प्रखंड के खुखरा पंचायत के आसोरायडीह व बांध पंचायत के बेकटपुर गांव के बीच बहियार में एक प्राकृतिक दाड़ी है। इसी दाड़ी से क्षेत्र के लगभग सौ परिवारों की प्यास बुझ रही है। बेकटपुर गांव के सावड़ीटांड़ टोला में लगभग 40 आदिवासी परिवार रहते हैं। आसोरायडीह, पुरानडीह एवं नावाडीह के आधे से अधिक लोग भी इसी दाड़ी के पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं।

बेकटपुर के खेतों के बीच स्थित इस दाड़ी में चारों तरफ के खेतों के गंदे पानी का बहाव होता है। हालांकि, गांव वालों ने दाड़ी को चारों ओर से मिट्टी से बांध दिया है, ताकि गंदा पानी दाड़ी में नहीं जा सके। लेकिन, जब तेज बारिश होती है तो गंदा पानी दाड़ी में घुस जाता है।

बेकटपुर की इस दाड़ी में जामुन की लकड़ी को वर्षों पहले एक गोलाकार आकार देकर पानी में डाला गया था, जिसके कारण उसी आकार में पानी दिखता है और लकड़ी के किनारे से पानी रिस कर पानी साफ रहता है।

बेकटपुर गांव के टोला सावड़ीटांड़ में दो चापाकल हैं, लेकिन दोनों चापाकल खराब हैं। पुरानडीह में एक जलमीनार भी बना है, लेकिन इससे जलापूर्ति नहीं होती है। जिसकी वजह से लोग दाड़ी का दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। दूषित पानी के उपयोग से क्षेत्र में डायरिया का प्रकोप बढ़ गया है। पिछले 8 अगस्त को क्षेत्र के मंदनाडीह में डायरिया से प्रभु बेसरा और बड़की मझियाइन की मौत होने के बाद एक दर्जन पीड़ित लोगों में से छह लोगों को इलाज के लिए पीरटांड़ स्वास्थ केंद्र और छह लोगों को हरलाडीह स्वास्थ केंद्र में भर्ती किया गया। 

अस्पताल में भर्ती मरीज।

इस खतरे के बावजूद क्षेत्र के लोग दाड़ी का पानी पीने को मजबूर हैं। ग्रामीण प्रदीप टुडू बताते हैं कि ‘बहुत पहले से ही हम लोग यहां का पानी पीते आ रहे हैं। गर्मी के दिनों में भी इस दाड़ी से आसानी से पानी मिल जाता है। वैसे भी पानी की दूसरी कोई व्यवस्था नहीं है’।

बाबूराम हांसदा कहते हैं कि ‘गांव का चापानल खराब है। पानी का कोई दूसरा स्रोत नहीं है। यही कारण है कि बरसात में भी हम लोग इस दाड़ी के पानी का ही उपयोग करते हैं’।

वहीं राजू हांसदा बताते हैं कि ‘दाड़ी का पानी पीने की आदत हम लोगों को लग गयी है। पानी का स्वाद अच्छा है। बरसात में पानी कभी-कभी गंदा रहता है, लेकिन कोई विकल्प भी नहीं है’।

गांव की ही बड़की मझियाइन कहती हैं कि ‘इलाके में पानी के विकल्प के रूप में बस यही एकमात्र दाड़ी है, जिससे सैकड़ों परिवारों की प्यास बुझती है। चापाकल हो या जलमीनार, यह तो केवल दिखावे का है। इससे पानी मिलता कहां है’।

प्रशासनिक स्तर से अभी तक पीने के साफ पानी का कोई विकल्प तैयार नहीं किया जा सका है। बीडीओ मनोज कुमार मरांडी बताते हैं कि ‘इसकी हमें कोई सूचना नहीं थी। सूचना मिली है। संबंधित मुखिया व पंचायत सेवक से बात की जा रही है। बेकटपुर व आसपास के लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने की पहल की जा रही है’।

पेयजल व स्वच्छता विभाग के प्रखंड समन्वयक गिरीश कुमार ने भी बेकटपुर गांव पहुंचकर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है। अब देखना यह है कि इनके आश्वासन का असर क्षेत्र के लोगों पर कब तक होता है?

मामले की जानकारी मिलने पर क्षेत्र के विधायक सुदिव्य कुमार सोनू मंदनाडीह गांव पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया। उनकी पहल पर स्वास्थ्य विभाग की टीम भी मंदनाडीह पहुंची। लगभग एक दर्जन बीमार लोगों को एम्बुलेंस से हरलाडीह स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। सोनू ने बताया कि डायरिया पीड़ित लोगों का इलाज शुरू कर दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव में कैम्प कर रही है।

(विशद कुमार पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

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