क्या राज्य को केंद्रीय अधिकारियों के रिश्वत मामले में कार्यवाही करने का अधिकार है?

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तमिलनाडु के भ्रष्टाचार निवारण विभाग ने, प्रवर्तन निदेशालय ED के एक अधिकारी, बीस लाख की रिश्वत लेते गिरफ्तार किया है। इसके पहले, ईडी के अधिकारी का एक ट्रैप, राजस्थान में हुआ और छत्तीसगढ़ में, ईडी के एक छापे पर, ईडी के ही, गवाह और वादी ने सवाल उठा दिया। अमूमन, केंद्रीय एजेंसी के खिलाफ इस तरह की, कार्यवाही, राज्य के सतर्कता या एंटी करप्शन संस्थान नहीं करते हैं। यह घटनाएं, एक नया संकेत हैं, जो आगे चल कर बिगड़ते हुए केंद्र राज्य संबंधों में और खटास ही उत्पन्न करेंगी। 

हुआ यह कि, तमिलनाडु के सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (डीवीएसी) ने, ईडी के एक अधिकारी को, एक सरकारी कर्मचारी से 20 लाख रुपये की रिश्वत मांगने और स्वीकार करने के आरोप में गिरफ्तार किया है। इसे ट्रैप कहा जाता है। यह ट्रैप डिंडीगुल में हुआ और ईडी के अफसर को, हिरासत में लिए जाने के बाद, डीवीएसी अधिकारियों की एक टीम ने मदुरै में उप-क्षेत्र ईडी कार्यालय में, अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों से भी ‘पूछताछ’ की। 

डीवीएसी ने, गिरफ्तार अधिकारी का नाम, अंकित तिवारी बताया है, जो “केंद्र सरकार के मदुरै प्रवर्तन विभाग कार्यालय में एक प्रवर्तन अधिकारी के रूप में कार्यरत है।” अक्टूबर में, अंकित तिवारी ने, डिंडीगुल के एक सरकारी कर्मचारी से संपर्क किया और उस जिले में उनके खिलाफ दर्ज एक सतर्कता मामले का उल्लेख किया, जिसका निस्तारण “पहले ही किया जा चुका था।”

अंकित तिवारी ने “कर्मचारी को सूचित किया कि जांच करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से निर्देश प्राप्त हुए हैं” और सरकारी कर्मचारी को 30 अक्टूबर को मदुरै में ईडी कार्यालय के सामने पेश होने के लिए कहा।”

एफआईआर के अनुसार, जब वह व्यक्ति मदुरै गया, तो अंकित तिवारी ने मामले में कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए, उक्त कर्मचारी से, 3 करोड़ रुपये रिश्वत देने को कहा। बाद में, ईडी के अफसर, अंकित तिवारी ने कहा कि, “उसने अपने वरिष्ठों से बात की है और उनके निर्देशों के अनुसार, वह रिश्वत के रूप में 51 लाख रुपये लेने के लिए सहमत हुए”। अंकित तिवारी ने, उक्त कर्मचारी को व्हाट्सएप कॉल और टेक्स्ट संदेशों के माध्यम से कई बार धमकाया कि उसे 51 लाख रुपये की पूरी राशि का भुगतान करना होगा, अन्यथा उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे, ऐसा डीवीएसी की विज्ञप्ति में कहा गया है।

ईडी के इस दबाव से, सरकारी कर्मचारी को संदेह हुआ और उसने गुरुवार को डिंडीगुल जिला सतर्कता और भ्रष्टाचार विरोधी इकाई में अपनी शिकायत दर्ज कराई। शुक्रवार को डीवीएसी के अधिकारियों ने अंकित तिवारी को, शिकायतकर्ता से 20 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए, रंगे हाथों पकड़ लिया। उसी विज्ञप्ति के अनुसार, इसके बाद, अंकित तिवारी को, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सुबह 10.30 बजे गिरफ्तार कर लिया गया। यह उल्लेख करना उचित है कि अधिकारियों ने उनके कदाचार के संबंध में कई आपत्तिजनक दस्तावेज जब्त किए हैं। यह स्पष्ट करने के लिए जांच की जा रही है कि क्या उन्होंने इस पद्धति को अपनाकर किसी अन्य अधिकारी को ब्लैकमेल/धमकी दी थी या नहीं। तमिलनाडु सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसी ने कहा, “ऑपरेंडी” और प्रवर्तन निदेशालय के नाम पर धन एकत्र किया।”

डीवीएसी के अनुसार, “ईडी के अन्य अधिकारियों की संभावित संलिप्तता का पता लगाने के लिए भी, पूछताछ की जाएगी, इसमें कहा गया है कि सतर्कता अधिकारी, ईडी के अफसर, अंकित तिवारी के आवास और मदुरै में उनके प्रवर्तन निदेशालय कार्यालय पर तलाशी ले रहे हैं और, “अंकित तिवारी से जुड़े स्थानों पर आगे की तलाशी ली जाएगी।”

ईडी केंद्र सरकार के अंतर्गत आती है तो, मदुरै में केंद्रीय एजेंसी ईडी के कार्यालय में डीवीएसी अधिकारियों के पहुंचने के बाद, भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के जवानों को ‘सुरक्षा’ उपाय के रूप में ईडी कार्यालय के अंदर अधिकारियों द्वारा तैनात किया गया था। एक ही समय में राज्य पुलिस और केंद्रीय पुलिस बल (आईटीबीपी, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के तहत) की मौजूदगी से मदुरै इलाके में थोड़ा तनाव हो गया था। 

इस घटना और ट्रैप को लेकर यह सवाल उठ रहा है कि, क्या राज्य के सतर्कता निदेशालय और भ्रष्टाचार निवारण विभाग को, केंद्र सरकार के किसी कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार या रिश्वत लेने की घटनाओं पर कार्यवाही करने का अधिकार है?

तमिलनाडु के इस मामले के गुण-दोष को दरकिनार करते हुए, यह कहा जा सकता है कि, सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय, तमिलनाडु को यानी राज्य को, रिश्वतखोरी के आरोप में एक ईडी अधिकारी (केंद्र सरकार कर्मचारी) को गिरफ्तार करना, राज्य पुलिस के अधिकार क्षेत्र में है। राज्य सरकार द्वारा डीएसपीई अधिनियम (जिसके अंतर्गत सीबीआई काम करती है, की धारा 6 के तहत सीबीआई के लिए, राज्यों द्वारा दी जाने वाली सामान्य सहमति को रद्द करने के साथ, राज्य पुलिस के पास, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत, अपने क्षेत्र में केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों पर भी, कार्यवाही करने का, उसका एकमात्र अधिकार क्षेत्र, बन जाता है।

सीबीआई, भले ही केंद्र सरकार के आधीन आती है, पर किसी भी राज्य में उसे कोई जांच करने, ट्रैप करने या अन्य कोई भी राज्य सरकार से जुड़े कार्य कलाप की जांच करने के पहले, राज्य द्वारा धारा 6 DSPE (डीएसपीई) के अंतर्गत, सामान्य सहमति प्राप्त करनी होती है। तमिलनाडु सरकार ने, सीबीआई को यह जनरल कंसेंट नहीं दिया है तो, फिर सीबीआई, उक्त राज्य में कोई गतिविधि नहीं चला पाएगी। सीबीआई के ऊपर जब राजनैतिक दुरुपयोग की शिकायतें मिलीं, तब गैर बीजेपी राज्यों में से अधिकांश ने, सीबीआई को, इस तरह की दी गई कंसेंट वापस ले लिया। ऐसे में, यदि कोई भ्रष्टाचार या रिश्वत मांगने की शिकायत प्राप्त होती है तो, राज्य का सतर्कता या एंटी करप्शन विभाग, अपने राज्य की सीमा में, ट्रैप कर सकता है। 

इस संबंध में, केरल हाईकोर्ट ने, 2023 के एक फैसले में, कहा है कि,  “पीसी अधिनियम या डीएसपीई अधिनियम का कोई भी प्रावधान केंद्र सरकार के कर्मचारियों से संबंधित मामलों में जांच के लिए अकेले सीबीआई या केंद्रीय सतर्कता आयोग या किसी अन्य केंद्रीय सरकारी एजेंसी को अधिकृत नहीं करता है। किसी अन्य सक्षम कानून के तहत अपराधों की जांच करने के लिए नियमित पुलिस अधिकारियों की शक्ति को विघटित करने वाले डीएसपीई अधिनियम या पीसी अधिनियम में किसी विशिष्ट प्रावधान के अभाव में, यह नहीं कहा जा सकता है कि, राज्य पुलिस या किसी विशेष एजेंसी की शक्ति को, अपने राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा, कथित तौर पर किए गए अपराध को दर्ज करने और उसकी जांच करने का अधिकार छीन लिया गया है।  इन कारणों से, मेरा मानना ​​है कि वीएसीबी, मुख्य रूप से पी.सी. के तहत रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और कदाचार की जांच करने के लिए एक विशेष रूप से गठित निकाय है। अधिनियम को हमेशा राज्य के भीतर होने वाले भ्रष्टाचार से जुड़े अपराधों की जांच करने का अधिकार दिया गया है, चाहे वह केंद्र सरकार के कर्मचारी द्वारा किया गया हो या राज्य सरकार के कर्मचारी द्वारा।”

यानी, इन दोनों कानून में कहीं भी राज्य सरकार को, किसी केंद्र सरकार के अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ, करप्शन के अपराध में, कार्यवाही करने पर रोका नहीं गया है। हालांकि, व्यवहारतः ऐसा होता नहीं है। राज्य सरकार के सतर्कता या एंटी करप्शन विभाग को, यदि केंद्र सरकार के किसी कर्मचारी के खिलाफ रिश्वत मांगने की सूचना आती भी है तो, उसे सीबीआई को रेफर कर दिया जाता है, और फिर यह ट्रैप, सीबीआई करती थी। यह केंद्र और राज्यों के एक अलिखित समझदारी भरा तालमेल है, जो लगता है, अब टूट रहा है। क्योंकि, जबसे केंद्रीय एजेंसियों ने, राजनीतिक दृष्टिकोण से, गैर बीजेपी राज्यों में अपना तंत्र फैलाना शुरू किया तो राज्यों ने भी इस अधिकार का उपयोग करना शुरू कर दिया। 

एक बात और, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत धारा 17 ए की मंजूरी की आवश्यकता के संबंध में पीसी अधिनियम की धारा 17 ए के तहत प्रावधानों में प्रावधान है कि रंगे हाथों पकड़े गए रिश्वत के मामले में किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है। यानी ट्रैप के मामले में किसी की अनुमति की जरूरत नहीं है। ऐसा इसलिए किया गया है, जिससे ट्रैप की गोपनीयता बनी रहे और जल्दी से जल्दी ट्रैप की कार्यवाही पूरी हो सके। 

“कोई भी पुलिस अधिकारी इस अधिनियम के तहत किसी लोक सेवक द्वारा कथित तौर पर किए गए किसी अपराध की कोई जांच बिना पूर्व अनुमोदन के नहीं करेगा, जहां कथित अपराध ऐसे लोक सेवक द्वारा अपने आधिकारिक कार्यों के निर्वहन में की गई किसी सिफारिश या लिए गए निर्णय से संबंधित है।” 

धारा 17ए सरकारी कर्मचारियों को, उनके द्वारा राज कार्य में किए गए कार्यों के संबंध में, बिना सरकार की अनुमति के जांच करने से रोकती है। उक्त धारा के अनुसार, 

(ए) ऐसे व्यक्ति के मामले में जो उस सरकार के या संघ (यूनियन ऑफ इंडिया) के मामलों के संबंध में उस समय कार्यरत था या कार्यरत है जब अपराध किए जाने का आरोप लगाया गया था;

(बी) ऐसे व्यक्ति के मामले में, जो किसी राज्य के मामलों के संबंध में, उस सरकार में उस समय कार्यरत था या कार्यरत है, जब अपराध किए जाने का आरोप लगाया गया था;

(सी) किसी अन्य व्यक्ति के मामले में, उस समय जब, अपराध किए जाने का आरोप लगाया गया था।

लेकिन, अपने लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई भी अनुचित लाभ (रिश्वत) स्वीकार करने या स्वीकार करने का प्रयास करने के आरोप में किसी व्यक्ति की मौके पर ही गिरफ्तारी से जुड़े मामलों के लिए ऐसी कोई मंजूरी आवश्यक नहीं होगी। 

इस प्रकार रिश्वत मांगने वाला व्यक्ति यदि केंद्र सरकार का अधिकारी हो तब भी राज्य की एंटी करप्शन एजेंसी को, उसे सूचना पर ट्रैप करने का अधिकार है। 

पिछले कुछ सालों से ईडी, सीबीआई, आयकर के गंभीर दुरुपयोग की शिकायतें मिलने लगी हैं। चाहे ऑपरेशन लोटस जैसे गैर लोकतांत्रिक मिशन के अंतर्गत, राज्यों की चुनी हुई सरकारों को तोड़ना या अस्थिर करना हो, या चाहे अडानी समूह को, कोई नई कंपनी या हवाई अड्डे दिलवाना हो, इन एजेंसियों का दुरुपयोग निर्लज्जता पूर्वक किया गया। राज्यों को मंत्रियों, यहां तक कि मुख्य मंत्रियों को भी ईडी के छापों से अर्दब में लेने की कोशिश की गई और अब भी की जा रही है। ईडी इस समय देश की सबसे अधिक विवादित जांच एजेंसी है और अब, जब राज्य सरकारों को, ईडी के अफसरों के खिलाफ रिश्वत मांगने डराने धमकाने की शिकायत मिली तो उन्होंने भी एक नया मोर्चा खोल दिया। इससे केंद्र और राज्य सरकार की जांच और प्रवर्तन एजेंसियों के बीच जो तनाव और शत्रुता फैलेगी, वह, एक आदर्श गवर्नेंस के लिए, बेहद नुकसानदेह होगी। 

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस हैं और कानपुर में रहते हैं।)

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