संयुक्त किसान मोर्चा के साथ आए सेब उत्पादक

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चंडीगढ़। संयुक्त किसान मोर्चा को देश के सेब उत्पादकों का साथ हासिल हो गया है। हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड को भारत की ‘सेब बेल्ट’ माना जाता है। इन प्रदेशों में सेब का उत्पादन मुख्य फसल के तौर पर होता है। यहां के सैकड़ों सेब किसान/उत्पादक चंडीगढ़ के सेक्टर 30 स्थित चीमा भवन में एप्पल फॉर्म्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एएफएफआई) के बैनर तले दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में जुटे और खुलकर केंद्र सरकार के खिलाफ बरसे। 

इस राष्ट्रीय सम्मेलन में सेब उत्पादकों को दरपेश दिक्कतों के अलावा उनकी लंबित मांगों को लेकर इंटेंस कैंपेन शुरू करने के साथ-साथ 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड और 16 फरवरी को केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की ओर से बुलाए गए ‘ग्राम बंद’ की हिमायत करने का फैसला लिया गया। 

राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन अखिल भारतीय किसान सभा के वित्त सचिव पी. कृष्णप्रसाद ने किया। उनके मुताबिक, “केंद्र सरकार सेब किसानों की सरासर अनदेखी कर रही है। उत्पादकों को फसल का सही मूल्य नहीं मिलता और न सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान किया जा रहा है। जबकि सेब एक महत्वपूर्ण और जरूरी फसल है। सरकारी बेरुखी के चलते बेशुमार किसान सेब उत्पादन से किनारा कर रहे हैं। इसके लिए सरकार जिम्मेवार है।”

हिमाचल प्रदेश के पूर्व विधायक राकेश सिंघा कहते हैं, “घटती कीमतों और सरकार की उपेक्षा के चलते सेब पट्टी के किसान बदहाल हैं। सेब बेल्ट अक्सर ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं से कुप्रभावित होती है, जिससे सेब की उपज पर अति गंभीर प्रभाव पड़ता है। सरकारें मुआवजा देने में आनाकानी करती हैं। गिरदावरी तक नहीं कराई जाती। हजारों किसान पीढ़ी दर पीढ़ी सेब की फसल उगाते आए हैं। यहां का सेब सुदूर देशों तक जाता है। नुकसान के आलम में सरकार साथ नहीं देती तो किसान क्या करें? आंदोलन के अलावा कोई रास्ता नहीं!”

अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव विजू कृष्णन के अनुसार, “सरकारी नीतियों के चलते सेब-फसल की उत्पादकता में ठहराव है। किसान तंगहाली में हैं। पर्याप्त और सब्सिडीशुदा कोल्ड चेन बुनियादी ढांचा वक्त की मांग है। अपनी मुनासिब मांगों को लेकर देश भर के किसान आंदोलन की राह पर हैं। सेब उत्पादक भी उनका हिस्सा हैं। इस बार के व्यापक किसान आंदोलन में लाखों सेब किसान संयुक्त किसान मोर्चा की अगुवाई में शिरकत करेंगे।”

हिमाचल प्रदेश के प्रमुख सेब किसान नेता बृजेश सिंह राणा कहते हैं, “सरकार किसान हितैषी होने का दावा करती है लेकिन असली फायदा पूंजीपतियों को पहुंचाया जा रहा है। सेब उत्पादक लागत मूल्य या घाटे में अपनी फसल बड़े व्यापारियों के हवाले करने को मजबूर हैं। बड़े व्यापारियों पर सरकारपरस्त धनाढ्य पूंजीपतियों का हाथ है, जिन्हें किसानों की मूलभूत समस्याओं से कोई सरोकार नहीं।”

उन्होंने कहा कि कभी सेब की फसल को बहुत मुनाफे वाली माना जाता था लेकिन अब बाजार के खेल ने इसे घाटे का सौदा बना दिया है। सेब उत्पादक निरंतर सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियों के कर्जदार हो रहे हैं। सरकारें उनकी सुध नहीं ले रहीं। सेब किसान भी अपनी मांगे मनवाने के लिए आंदोलन की राह अख्तियार करने के लिए मजबूर हो गए हैं।” 

उल्लेखनीय है कि एप्पल फॉर्म्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के दो दिवसीय चंडीगढ़ सम्मेलन में राष्ट्रीय संयोजक और सहसंयोजकों के साथ कोर कमेटी का चुनाव भी किया गया। सम्मेलन में 2024 के अंत तक कुल 56,000 उत्पादकों की सदस्यता पूरी करने का निर्णय भी लिया गया। एएफएफआई के पास फिलहाल तकरीबन 10,000 किसानों की सदस्यता है। 

संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेता उजागर सिंह के अनुसार, “सेब उत्पादकों कि समस्याएं अलहदा नहीं हैं। हम खुलकर उनके साथ हैं। देश के किसान सरकारी नीतियों के चलते भारी मुसीबतों में हैं। हमारी पुरजोर कोशिश है कि हर फसल का उत्पादक हमारे आगामी आंदोलन में हिस्सा ले।”

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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