नई दिल्ली। 11 अगस्त, 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सुभाष मोहल्ला में भीड़ ने कारवां के तीन पत्रकारों– शाहिद तंत्री, प्रभजीत सिंह और एक महिला पत्रकार पर हमला किया। पत्रकारों पर सांप्रदायिक टिप्पणियां की गईं, हत्या की धमकी दी गई और महिला रिपोर्टर को भी प्रताड़ित किया गया। एक व्यक्ति जिसने खुद को भारतीय जनता पार्टी का “एक महासचिव” बताया, ने हमारे पत्रकारों पर हमला शुरू किया था जब उसे शाहिद तंत्री की मुस्लिम पहचान के बारे में पता चला।
पत्रकारों पर हमला डेढ़ घंटे तक चला। पुलिस के हस्तक्षेप के बाद पत्रकारों को भजनपुरा पुलिस थाने ले जाया गया, जहां उन्होंने विस्तृत शिकायतें दर्ज कराईं। उस यातना का ब्यौरा, पत्रकारों की विस्तृत शिकायतों के साथ कारवां की वेबसाइट पर उपलब्ध है और राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी उसकी खबरें आईं।
लगभग चार साल बाद, मई, 2024 में भजनपुरा पुलिस थाने ने प्रभजीत सिंह को घटना से संबंधित जांच में शामिल होने के लिए नोटिस भेजा। नोटिस सिंह के पूर्वी आवास पर लगाया गया था। उन्होंने जब पुलिस से संपर्क किया तो कारवां को पता चला कि नोटिस कारवां के पत्रकारों के एफआईआर के संबंध में नहीं था, बल्कि उस प्राथमिकी के बारे में था जिसमें तीन पत्रकारों को 354 (महिला के सम्मान को ठेस पहुंचाना) और 153ए (सांप्रदायिक वैमन्स्य फैलाना) के तहत आरोपी बनाया गया था।
कारवां के पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर की कोई प्रमाणित प्रति नहीं दी गई, कारण इसकी संवेदनशील प्रकृति बताई गई। कारवां को पता चला है कि पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर 2020 में उसी दिन कारवां की एफआईआर से एक घंटा पहले दर्ज की गई थी। उल्लेखनीय है कि भले कारवां की शिकायतें घटना के दिन ही दी गई थीं, पर पुलिस ने तीन दिन तक एफआईआर दर्ज न कर, 14 अगस्त 2020 को दर्ज की। पुलिस ने कारवां को बताया है कि उसकी एफआईआर को “काउन्टर एफआईआर” माना जा रहा है।
यह बेहद चिंताजनक है। एफआईआर में आरोप पूरी तरह से गलत और गढ़े हुए हैं। चार सालों तक, न तो कारवां को और न सम्बद्ध पत्रकारों को ऐसी किसी एफआईआर के बारे में बताया गया।
कारवां की एफआईआर, जिसमें उसके पत्रकारों पर हमले के बारे में विस्तार से बताया गया है, जांच अभी लंबित है। चार सालों तक, उस मामले में न तो उसके पत्रकारों को जांच में शामिल होने को कहा गया और न कभी जांच की प्रगति के बारे में बताया गया। इसके विपरीत, कारवां के पत्रकारों के खिलाफ कथित मामला तैयार किया गया।
यह भी चिंताजनक है कि कारवां के पत्रकार जो दिल्ली हिंसा की शिकायतकर्ता के पुलिस के खिलाफ आरोपों पर रिपोर्ट कर रहे थे, अब उसी पुलिस थाने में एफआईआर का सामना कर रहे हैं। जिस समय हमला हुआ, तीन पत्रकार सिंह और तंत्री की रिपोर्टिंग का फॉलोअप कर रहे थे। वह लेख एक मुस्लिम महिला पर केंद्रित था जिन्होंने भजनपुरा पुलिस थाने के पुलिसकर्मियों पर कुछ दिन पहले उन्हें और उनकी बेटी पर यौन हमले का आरोप लगाया था। महिला ने अगस्त, 2020 के प्रारंभ में पुलिस से संपर्क किया था, अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के बाद इलाके में सांप्रदायिक तनाव फैलने के बाद।
उसी साल की शुरुआत में उस महिला ने फरवरी, 2020 में दिल्ली हिंसा से संबंधित एक शिकायत भी दर्ज कराई थी। उस दौरान, खासकर मुस्लिमों के प्रति हिंसा को लेकर, पुलिस के रवैये पर गंभीर सवाल उठाये गए थे। इन सारी बातों को जब एक साथ रखा जाए तो स्पष्ट होता है कि कारवां के पत्रकारों को एक झूठे, गढ़े गए मामले में आरोपी बनाना उनकी पत्रकारिता का गला घोंटने का प्रयास है। यह प्रेस स्वतंत्रता पर हमला है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सीधा उल्लंघन है।
इस पूरे प्रकरण पर कारवां ने कहा कि हम जांच में शामिल हो चुके हैं और कानूनी प्रक्रिया के पालन का इरादा रखते हैं। हम इन झूठे आरोपों को चुनौती देने और खारिज कराने के लिए कानून के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल भी करेंगे।
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