पटना। भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि भाजपा-जदयू शासन में दलित-गरीबों के आवासीय अधिकार की कोई सुरक्षा नहीं है। पूरे राज्य में भूमाफिया गिरोह के हमले बढ़े हैं। न्यायालय व प्रशासनिक मिलीभगत के जरिए भूमाफिया गिरोह लगातार दलित-गरीबों को बेदखल करके जमीन पर कब्जा जमा रहे हैं। भाजपा के बुलडोजर राज की तर्ज पर ही बिहार में भी यह सबकुछ हो रहा है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन मसलों से अपनी नजरें फेर ली हैं।
भाकपा-माले एक बार फिर यह मांग करती है कि राज्य सरकार प्राथमिकता देते हुए जो जहां बसे हैं, उस जमीन का पर्चा दे। पर्चा देना ही काफी नहीं है बल्कि उनकी सुरक्षा की गारंटी का भी जिम्मा ले। हमने यह भी मांग की है कि इन मामलों में सरकार पर्चाधारियों को भी एक पक्ष बनाए।
गया जिले के टेकारी प्रखंड के चिरैली मांझी टोला में जिस प्रकार से सामंती ताकतों ने जमीन से बेदखली का विरोध कर रहे संजय मांझी का हाथ काट लिया, उससे जाहिर हो रहा है कि भाजपा-जदयू के शासन में ये ताकतें बेखौफ सी हो गई हैं। विगत दिनों घोसी विधायक रामबली सिंह यादव, अगिआंव विधायक शिवप्रकाश रंजन, गया के जिला सचिव निरंजन कुमार एवं अन्य साथियों ने चिरैली मांझी टोला का दौरा किया और संजय मांझी के हाथ काट डालने के मामले की पूरी जानकारी ली।
जांच दल की रिपोर्ट: यह घटना विगत 5 जून की है। चिरैली मांझी टोला में करीब 120 घर मांझी एवं 2 घर पासी जाति के लोग रहते हैं। ये लोग अंग्रेजी जमाने से बसे हैं। गांव के बीच में एक नवसृजित प्राथमिक विद्यालय है, जो टूटे हुए सामुदायिक भवन में चलता है। इसे दूसरे विद्यालय में टैग कर देने का खतरा बना हुआ है।
1914 के सर्वे के अनुसार अथवा नया सर्वे के पहले यह जमीन मालिक गैरमजरूआ जमीन थी। पासी जाति सहित 25 परिवारों को सरकार ने गैरमजरूआ जमीन का पर्चा भी दिया था। 1970-75 के नए सर्वे में पूरी ज़मीन को रैयती करार देकर खतियान बना दिया गया और चिरैली गांव निवासी इंद्रदेव मिश्र के परिवार के नाम दर्ज कर दिया गया। नया सर्वे अधिकांश जगहों पर नॉट फाइनल है, जबकि इस जमीन का सर्वे फाइनल और मान्य है। मांझी परिवार ने इसके खिलाफ मुकदमा भी लड़ा, लेकिन टेकारी अंचल ने रैयतीकरण रद्द नहीं किया। उसने रैयतीकरण को जायज करार देते हुए 55 मांझी परिवार को बासगीत का पर्चा इस तर्क के साथ निर्गत किया कि रैयती प्रकृति होने के बावजूद लम्बे समय से बसे होने के कारण कानूनी प्रावधान के तहत इन्हें पर्चा दिया जाता है।
इसका लाभ उठाते हुए शिवेंद्र मिश्र (पिता-स्व इंद्रदेव मिश्र) ने गांव के तीन तरफ से खाली जमीन में मिट्टी भरवाना शुरू कर दिया। इसका विरोध करते हुए लोग टेकारी अनुमंडल गए, लेकिन पदाधिकारियों द्वारा चुनाव में व्यस्तता बताकर मामले को टाला जाता रहा। इसे पदाधिकारियों की मिलीभगत कहना गलत नहीं होगा। मांझी परिवार में दहशत था कि खाली जमीन भरने के बाद वे लोग बासगीत पर्चे की जमीन पर भी धावा बोलेंगे।
संजय मांझी को अपने पिता बैशाखी मांझी के नाम बासगीत पर्चा मिला हुआ था। वे सुअरबाड़ा के लिए अपनी जमीन पर मिट्टी की दीवार उठा रहे थे। लगभग 2 फीट दीवार उठा चुके थे कि 5 जून की दोपहर को शिवेंद्र मिश्र और उनके परिवार के 8-10 सदस्य ट्रैक्टर से दीवार को रौंदने लगे। जानकारी मिलने पर संजय मांझी जैसे ही वहां पहुंचे कि शिवेंद्र मिश्र ने गर्दन पर तलवार चला दिया। बाए हांथ से गर्दन बचाने में केहुनी के नीचे का हाथ कटकर जमीन पर गिर गया। दूसरा हमला रोकने में दाहिने हाथ की अंगुली कटकर गिर गई। टोला के लोग दौड़े तब जाकर वे सब भागे। पुलिस आयी और धारा 307 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ। इलाज के लिए मगध मेडिकल कॉलेज गया में भेज दिया गया। इस मुकदमे में 8 अभियुक्त बनाये गए थे। सभी गिरफ्तार कर लिए गए हैं, लेकिन पीड़ित परिवार पर भी धारा 307 के तहत काउंटर मुकदमा दर्ज किया गया है, जो प्रशासन की मिलीभगत के साफ संकेत हैं।
माले जांच दल का मानना है कि पदाधिकारियों को कोर्ट जाकर रैयतीकरन को रद्द करना चाहिए था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। जिसके कारण सामंतों को मौका मिल गया। माले जांच दल ने रैयतीकरण रद्द कर खाली जमीन को गरीबों में वितरित करने, संजय मांझी की पत्नी को 10 लाख मुआवजा व सरकारी नौकरी तथा उनके ऊपर दर्ज फर्जी मुकदमे वापस लेने, चिरैली मंझी टोला के गरीबों की सुरक्षा की गारंटी करने आदि मांगें उठाईं। भाकपा-माले बिहार के मुख्यमंत्री से इस मामले में अपने स्तर से हस्तक्षेप की मांग करती है।
(भाकपा-माले की जांच रिपोर्ट)
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